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वो जो थोड़ी मुश्किलों से हो के आजिज़ मर गए

wo jo thoDi mushkilon se ho ke aajiz mar gaye

शतदल

शतदल

वो जो थोड़ी मुश्किलों से हो के आजिज़ मर गए

शतदल

और अधिकशतदल

    वो जो थोड़ी मुश्किलों से हो के आजिज़ मर गए।

    उनसे क्या उम्मीद थी और देखिए क्या कर गए?

    उस इमारत को भला पुख़्ता इमारत क्या कहें

    नींव में जिसकी लगाए मोम के पत्थर गए।

    उम्र भर अंधी गुफाओं में रहे दरअसल हम

    इसलिए कल धूप में साए से अपने डर गए।

    फूल खिलते हैं बड़ी उम्मीद से, देखो इन्हें

    उम्र थोड़ी मुस्करा कर डालियों से झर गए।

    बँट रहा है तेल मिट्टी का किसी ने जब कहा

    छोड़ कर बच्चे मदरसा अपने-अपने घर गए।

    हम किसी को क्या समझ पाते कि करते एहतराम

    हम तो अपने वक़्त से पहले ही यारो! मर गए।

    स्रोत :
    • रचनाकार : शतदल
    • प्रकाशन : कविता कोश

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