कहानी दिल की लिखने का इरादा करके बैठे हैं
kahani dil ki likhne ka irada karke baithe hain
लक्ष्मण गुप्त
Laxman Gupta
कहानी दिल की लिखने का इरादा करके बैठे हैं
kahani dil ki likhne ka irada karke baithe hain
Laxman Gupta
लक्ष्मण गुप्त
और अधिकलक्ष्मण गुप्त
कहानी दिल की लिखने का इरादा करके बैठे हैं
नहीं आसाँ है लेकिन उनसे वादा करके बैठे हैं
हमें मालूम है आख़िर हमारा हश्र क्या होगा
सियासी दावँ में ख़ुद को ही प्यादा करके बैठे हैं
मेरे रँगरेज़ चल तुझको वहाँ लेकर मैं चलता हूँ
जहाँ कुछ लोग अब भी दिल को सादा करके बैठे हैं
सिसकती है, तड़पती है, मुहब्बत उस जगह यारों
जहाँ पर लोग नफ़रत का इरादा करके बैठे हैं
गए हो जब से तुम मुझको अकेला छोड़कर प्यारे
तुम्हारी याद को अपना लबादा करके बैठे हैं
- रचनाकार : लक्ष्मण गुप्त
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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