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वो आदमी नहीं है मुकम्मल बयान है

vo aadamii nahii.n hai mukammal bayaan hai

दुष्यंत कुमार

दुष्यंत कुमार

वो आदमी नहीं है मुकम्मल बयान है

दुष्यंत कुमार

और अधिकदुष्यंत कुमार

    वो आदमी नहीं है मुकम्मल बयान है,

    माथे पे उसके चोट का गहरा निशान है।

    वे कर रहे हैं इश्क़ पे संजीदा गुफ़्तगू,

    मैं क्या बताऊँ मेरा कहीं और ध्यान है।

    सामान कुछ नहीं है फटेहाल है मगर,

    झोले में उसके पास कोई संविधान है।

    उस सिरफिरे को यों नहीं बहला सकेंगे आप,

    वो आदमी नया है मगर सावधान है।

    फिसले जो इस जगह तो लुढ़कते चले गए,

    हमको पता नहीं था कि इतनी ढलान है।

    देखे हैं हमने दौर कई अब ख़बर नहीं,

    पाँवों तले ज़मीन है या आसमान है।

    वो आदमी मिला था मुझे उसकी बात से

    ऐसा लगा कि वो भी बहुत बेज़ुबान है।

    स्रोत :
    • पुस्तक : साये में धूप (पृष्ठ 59)
    • रचनाकार : दुष्यंत कुमार
    • प्रकाशन : राधाकृष्ण प्रकाशन
    • संस्करण : 2019

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