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अरुण यह मधुमय देश हमारा

arun ye madhumay desh hamara

जयशंकर प्रसाद

जयशंकर प्रसाद

अरुण यह मधुमय देश हमारा

जयशंकर प्रसाद

और अधिकजयशंकर प्रसाद

    अरुण यह मधुमय देश हमारा।

    जहाँ पहुँच अनजान क्षितिज को मिलता एक सहारा।।

    सरल तामरस गर्भ विभा पर, नाच रही तरुशिखा मनोहर।

    छिटका जीवन हरियाली पर, मंगल कुंकुम सारा।।

    लघु सुरधनु से पंख पसारे, शीतल मलय समीर सहारे।

    उड़ते खग जिस ओर मुँह किए, समझ नीड़ निज प्यारा।।

    बरसाती आँखों के बादल, बनते जहाँ भरे करुणा जल।

    लहरें टकरातीं अनन्त की, पाकर जहाँ किनारा।।

    हेम कुम्भ ले उषा सवेरे, भरती ढुलकाती सुख मेरे।

    मंदिर ऊँघते रहते जब, जगकर रजनी भर तारा।।

    स्रोत :
    • पुस्तक : चंद्रगुप्त (पृष्ठ 92)
    • रचनाकार : जयशंकर प्रसाद
    • प्रकाशन : भारती भंडार, लीडर प्रेस
    • संस्करण : 1958

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