गगन बजाने लगा जल-तरंग फिर यारों
gagan bajane laga jal tarang phir yaron
गोपालदास नीरज
Gopaldas Neeraj
गगन बजाने लगा जल-तरंग फिर यारों
gagan bajane laga jal tarang phir yaron
Gopaldas Neeraj
गोपालदास नीरज
और अधिकगोपालदास नीरज
गगन बजाने लगा जल-तरंग फिर यारों,
कि भीगें हम भी ज़रा संग-संग फिर यारों।
यह रिमझिमाती निशा और ये थिरकता सावन,
है याद आने लगा इक प्रसंग फिर यारों।
किसे पता है कि कब तक रहेगा ये मौसम,
रख है बाँध के क्यूँ मन-कुरंग फिर यारों।
घुमड़-घुमड़ के जो बादल घिरा अटारी पर,
विहंग बन के उड़ी इक उमंग फिर यारों।
कहीं पे कजली कहीं तान उठी बिरहा की,
ह्रदय में झाँक गया इक अनंग फिर यारों।
पिया की बाँह में सिमटी है इस तरह गोरी,
सभंग श्लेष हुआ है अभंग फिर यारों।
जो रंग गीत का बलबीर जी के साथ गया
न हमने देखा कहीं वैसा रंग फिर यारों।
- पुस्तक : बादलों से सलाम लेता हूँ (पृष्ठ 99)
- रचनाकार : गोपालदास नीरज
- प्रकाशन : डायमंड पॉकेट बुक्स
- संस्करण : 2004
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