अब के सावन, ऐसे बरसे
बह जाए रंग, मेरी चुनर से
भीगे तन-मन, जिया न तरसे
जम के बरसे ज़रा
रुत सावन की, घटा सावन की
घटा सावन की, ऐसे जम के बरसे
झड़ी बरखा की, लड़ी बूँद की
लड़ी बूँद की, टूट के यूँ बरसे
पहले प्यार की पहली बरखा
कैसी आस जगाए
बारिशें पीने दो मुझको
मन हरा हो जाए
प्यासी धरती, प्यासे अरमाँ
प्यासा है ये जहाँ
भीगने दो, हर गली को
भीगने दो जहाँ
अब के सावन, ऐसे बरसे
बह जाए रंग, मेरी चुनर से
भीगे तन मन, जिया न तरसे
जम के बरसे ज़रा
रुत सावन की, घटा सावन की
घटा सावन की, ऐसे जम के बरसे
झड़ी बरखा की, लड़ी बूँदों की
लड़ी बूँदों की, टूट के यूँ बरसे
लाज बदरी की बिखर के
मोती बन झर जाए
भीग जाए सजना मेरा
लौटकर घर आए
दूरियों का, नहीं ये मौसम
आज है वो कहाँ
मखमली-सी, ये फुहारें
उड़ रही है यहाँ
अब के सावन ऐसे बरसे
बह जाए रंग, मेरी चुनर से
भीगे तन मन, जिया न तरसे
जम के बरसे ज़रा
रुत सावन की
लड़ी बूँदों की
लड़ी बूँदों की, टूट के यूँ बरसे
- पुस्तक : धूप के सिक्के (पृष्ठ 157)
- रचनाकार : प्रसून जोशी
- प्रकाशन : रूपा पब्लिकेशंस
- संस्करण : 2016
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