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सावधान

sawdhan

बुंदेला बाला

और अधिकबुंदेला बाला

     

    (1)

    सावधान हे युवक उमगो, सावधानता रखना ख़ूब।
    युवा समय के महा मनोहर विषयों में मत जाना डूब॥
    सर्वकाज करने के पहिले पूछो अपने दिल से आप।
    इसका करना इस दुनिया में पुण्य मानते हैं या पाप॥

    (2)

    जो उत्तर दिल देय तुम्हारा उसे समझ लो अच्छी भाँति।
    काज करो अनुसार उसी के नष्ट होय दुखों की पाँति॥
    कभी भूल ऐसा मत करना अच्छी के लालच में आज।
    देना पड़े कल्ह ही तुमको रत्नमाल सम निज कुल लाज॥

    (3)

    युवा समय के गर्भ रक्त में मत बोओ तुम ऐसा बीज।
    वृद्ध समय के क्षीण रक्त में फूलै चिंता फलै कुबीज॥
    पश्चात्ताप कुरस नित टपकैं बदनामी गुठली दृढ़ होय।
    उँगली उठै बार में चलते मुँहभर बात न बूझै कोय॥

    (4)

    यौवन ऋतु बसंत में प्यारे कुसुम समूह देखि मत भूल।
    दबादबा कर युक्ति सहित रख निज उमंग के सुंदर फूल॥
    सावधान! इनको विनष्ट कर फिर पीछे पछतावेगा।
    वृद्ध वयस सम्मान सुगंधित फिर कैसे महकावेगा॥

    (5)

    परमेश्वर की न्याय-तुला की डांडी जग में जाहर है।
    उसको ऊँच नीच कछु करना मानव-बल से बाहर है॥
    अहंकार सर्वदा जगत में मुँह की खाता आया है।
    नय, नम्रता, मान, पाते हैं सब ने यही बताया है॥

    (6)

    है प्रत्येक भव्यता के हित इस जग में निकृष्टता एक।
    विषय रूप मिष्ठान्न मध्य है विषमय आमय कीट अनेक॥
    इंद्रिय विषय शिखर दूरहिं तें महा मनोरम लगते हैं।
    निकट जाय जांचे समझोगे, रूप हरामी ठगते हैं॥

    (7)

    है प्रत्येक ऊँच में नीचा प्रतिमिठास में कड़ुआ स्वाद।
    प्रतिकुकर्म में शर्म भरी है भ्रम खोय मत हो बरबाद॥
    प्रकृति नियम यह सदा सत्य है, कैसे इसे मिटाओगे।
    जग में जैसा कर्म करोगे वैसा ही फल पाओगे॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : स्त्री कवि-संग्रह (पृष्ठ 92)
    • संपादक : ज्योतिप्रसाद मिश्र 'निर्मल'
    • रचनाकार : बुंदेला बाला
    • प्रकाशन : साहित्य-भवन-लिमिटेड, प्रयाग
    • संस्करण : 1940

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