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गति और गंतव्य

gati aur gantawy

नरेंद्र शर्मा

नरेंद्र शर्मा

गति और गंतव्य

नरेंद्र शर्मा

और अधिकनरेंद्र शर्मा

     

    एक

    क्षणिक शक्तिबल, दाँव-पेंच
    या कूटनीति की क्षमता!
    विस्मृत सब आदर्श, 
    लुप्त मानवता के प्रति ममता!

    इष्टभ्रष्ट कोई, अनिष्टकर साधन 
    यहाँ किसी के;
    श्वास-श्वास में द्वंद्व छिड़ा है 
    जो न निमिष भर थमता!

    रक्तपात से नहीं रुकेगी
    गति पर मानवता की!
    पशुता लड़ती है, कटती
    जाती है जड़ जड़ता की!

    मानवता गिरि-शिखर, 
    गहन गह्वर-सी है पाशवता—
    सीमा नहीं मनुज के गिर कर 
    उठने की क्षमता की!

    दो

    जिनकी शक्ति और भय-संशय 
    साथ-साथ बढ़ते हैं;
    जो मोहार्त प्राण रक्षा हित 
    मृत्युभीत लड़ते हैं, 
    संशयशील अविश्वासी 
    अविवेकी वे गत युग के—
    उनकी मिट्टी में नव युग के 
    प्राणांकुर उगते हैं!

    सभी प्रयोजन मात्र नियति को 
    भाव-अभाव-विनिर्मित, 
    देकर जन्म कलानिधि को 
    हो जाता तिमिर तिरोहित!
    प्रगति, अगति, दुर्गति, सद्गति;
    गंतव्य एक जीवन का—
    हो यह वसुधा शुचितर अभिनव 
    मनुष्यत्व से शोभित!

    स्रोत :
    • पुस्तक : अग्निशस्य (पृष्ठ 10)
    • रचनाकार : नरेंद्र शर्मा
    • प्रकाशन : भारती भंडार
    • संस्करण : 1950

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