धूप हल्दिया छाँव काजली
dhoop haldiya chhanw kajali
हरिहर प्रसाद चौधरी ‘नूतन’
Harihar Prasad Choudhary ‘Nutan’
धूप हल्दिया छाँव काजली
dhoop haldiya chhanw kajali
Harihar Prasad Choudhary ‘Nutan’
हरिहर प्रसाद चौधरी ‘नूतन’
और अधिकहरिहर प्रसाद चौधरी ‘नूतन’
धूप हल्दिया, छाँव काजली,
दोनों एक मचान पर
बैठी पाँव हिलाती दिन भर
बनजारे के गान पर।
लहक रहा माथा पर्वत का
कितने रंग-गुलाल से
अगल-बग़ल से रहीं खाइयाँ
जिसको निरख मलाल से
कुछ इस तरह चढ़ी घाटी की
सुंदरता भी शान पर—
औंधे मुँह गिर गई एक
पगडंडी खड़ी ढलान पर।
उबटन लगा बदन घाटी का
लुटा किसी संकेत पर
व्यंग्य कस गया कोई जैसे
खेत, निपूती रेत पर
रहा ऐंठता पेड़ ढाक का
अपने ही अभिमान पर
ओठ काट रह गई झाड़ियाँ
ऐसे निपट गुमान पर।
गेरू-सी माटी से पनपा
मोहक बिरवा गीत का
खड़ा शाल का पौधा जैसे
हो संबोधन प्रीत का
सुबह सोनिया, साँझ साँवली की
जुड़वाँ मुस्कान पर
हो बैठा आश्वस्त बटोही—
मन भी गहन थकान पर।
- रचनाकार : हरिहर प्रसाद चौधरी ‘नूतन’
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए सतीश नूतन द्वारा चयनित
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