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दिल्ली की क्या बात करें

dilli ki kya baat karen

नईम

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दिल्ली की क्या बात करें

नईम

और अधिकनईम

    दिल्ली की क्या बात करें

    देवास दूर है।

    दिल-दिमाग़ की ख़ुराफ़ात,

    कोरा फ़ितूर है।

    कभी-कभार लगा करता है,

    भ्रम सच्चाई से भी ज़्यादा—

    अपना यार सगा लगता है।

    ऐसा लगने में रत्ती भर

    नहीं किसी का भी

    कुसूर हैं।

    रंगमंच पर आशंकाएँ—

    अंदेसे अभिनीत हो रहे,

    लगी हुई हैं कई पीढ़ियाँ।

    इनको अपने होने का

    बेहद ग़ुरूर है।

    तनहाई जब लगे आँसने,

    अपने जी को अनायास ही

    फ़ीता लेकर लगे मापने।

    गाँठ पड़ी अपने ही में—

    कोई ज़रूर है।

    स्रोत :
    • पुस्तक : लिख सकूँ तो— (पृष्ठ 43)
    • रचनाकार : नईम
    • प्रकाशन : भारतीय ज्ञानपीठ
    • संस्करण : 2003

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