चरण गहे थे मौन रहे थे
charn gahe the maun rahe the
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला
Surykant Tripathi Nirala
चरण गहे थे मौन रहे थे
charn gahe the maun rahe the
Surykant Tripathi Nirala
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला
और अधिकसूर्यकांत त्रिपाठी निराला
चरण गहे थे, मौन रहे थे,
विनय वचन बहु-रचन कहे थे।
भक्ति-आँसुओं पद पखारकर,
नयन-ज्योति आरति उतारकर,
तन-मन-धन सर्वस्व वारकर,
अमर-विचाराधार बहे थे।
आस लगी है जी की जैसी
खंडित हुई तपस्या वैसी,
विरति सुरति में आई कैसी,
कौन मान-उपमान लहे थे।
ठोकर गली-गली की खाई
जगती से न कभी बन आई
रहे तुम्हारी एक सगाई,
इसीलिए कुल ताप सहे थे।
- पुस्तक : निराला संचयिता (पृष्ठ 157)
- संपादक : रमेशचंद्र शाह
- रचनाकार : सूर्यकांत त्रिपाठी निराला
- प्रकाशन : वाणी प्रकाशन
- संस्करण : 2010
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