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हम हईं भोजपुरिया

hum hain bhojapuriya

सूर्यदेव पाठक ‘पराग’

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सूर्यदेव पाठक ‘पराग’

हम हईं भोजपुरिया

सूर्यदेव पाठक ‘पराग’

और अधिकसूर्यदेव पाठक ‘पराग’

    हमरा के लीहऽ पहचान हो, हम हई भोजपुरिया!

    सइँतल बा हमरा में कबिरा के थाती,

    नेहिया के रात-दिन जरे जहाँ बाती,

    समझीले सभके समान हो, हम हई भोजपुरिया!

    अस्सी रे बरिसवो पर चढ़ेला जवानी,

    भोजपुरी माटी के इहे निशानी,

    जानेला सगरो जहान हो, हम हई भोजपुरिया!

    जब कबो देसवा के धरती पुकारे,

    फेंटा कसि धावेले मइया दुवारे

    नारी-नर-लड़का-जवान हो, हम हई भोजपुरिया!

    मेहनत से करीलेजा मटिया के सोना,

    रहीले धरतिया के कवना ना कोना,

    कतहीं चलीले सीना तान हो, हम हई भोजपुरिया!

    सभका से सीधे मन करीलेजा बतिया,

    समझीले भइया आपन संघतिया,

    अतिथि बुझाले भगवान हो, हम हई भोजपुरिया!

    छलकेला राहुल का ज्ञान के गगरिया,

    ठाकुर भिखारी बाड़े दिल के कगरिया,

    छेड़ेले महेन्दर पुरवी तान हो, हम हईं भोजपुरिया!

    कवि रघुवीर नारायण, मनोरंजन,

    महेन्दर शास्त्री जी अँखिया के अंजन

    'प्रणयी' में बसेला परान हो, हम हईं भोजपुरिया!

    राम विचार 'प्रदीप' कवि 'नाथ'

    'शैदा', 'श्रीमन्त', 'भानु', 'सुन्दर' जी साथ,

    इनका पर करीले गुमान हो, हम हईं भोजपुरिया!

    धनि भोजपुरी धनि इहवाँ के माटी,

    गुन के बखान करत सबद ना आँटी,

    कन-कन जहाँ के महान हो, हम हईं भोजपुरिया!

    स्रोत :
    • पुस्तक : अलग-अलग रंग (पृष्ठ 94)
    • रचनाकार : सूर्यदेव पाठक ‘पराग’
    • प्रकाशन : प्रभात कुमार पाठक
    • संस्करण : 2009

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