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अगर नदी में लहर न होती

agar nadi mein lahar na hotee

विनोद श्रीवास्तव

विनोद श्रीवास्तव

अगर नदी में लहर न होती

विनोद श्रीवास्तव

और अधिकविनोद श्रीवास्तव

    अगर नदी में

    लहर होती

    जल में बिंब एक ही तिरता

    जहाँ रहे ख़ुशबू लहराए

    फूलों की पहचान यही है

    जिसके आते ही दुख जाए

    सच मानो मुस्कान वही है

    अगर कहीं

    यह रूप होता

    गीत नहीं प्राणों में फिरता

    अनुभव है जलना दीपक का

    जितनी आग उजाला उतना

    संवेदन जितना गहरा हो

    उतनी गहरी होती रचना

    अगर कहीं

    अनुराग होता

    साँसों का आभास बिखरता

    रीतेपन में है सुख से जो

    उसकी ज़ात अमीरों की है

    जीवन क्या बस सीधी-सादी

    वाणी संत-फ़क़ीरों की है

    अगर कहीं

    यह धूप होती

    चारों ओर अँधेरा घिरता

    स्रोत :
    • रचनाकार : विनोद श्रीवास्तव
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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