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बाघ का विवाह

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किसी एक राज्य में एक राजा और रानी रहते थे। उनकी कोई संतान नहीं थी। पता नहीं कितने वर्षों तक भगवान की पूजा-अर्चना करने पर रानी गर्भवती हुई। तब रानी ने एक दिन राजा से कहा,हे राजा! आज मुझे कच्ची इमली और कच्चे-मिर्च की चटनी खाने का मन कर रहा है।

उसके ऐसा कहने पर राजा ने अपने नौकरों जगतू और भगतू को कच्ची इमली और मिर्च खोजने के लिए भेजा। घूमते-घूमते उन्हें दूर के एक गाँव में एक बुढ़िया के घर इमली का पेड़ दिखलाई दिया। तब वे दोनों वहाँ गए और बुढ़िया से अनुमति लेकर इमली तोड़ी। रास्ते में एक मरार के घर से कच्ची मिर्च ख़रीदी और ला कर राजा को दी। राजा ने वह सब रानी को दे दिया। तब रानी दो-तीन कच्ची इमली यों ही खा गई और उसके बाद टोकरी भर इमली और मिर्च की चटनी भी।

इस तरह दिन बीतने लगे। एक दिन रानी राजा से कहने लगी,हे राजा! मुझे आज पोलंग भाजी खाने का मन कर रहा है।

यह सुन कर राजा ने फिर से जगतू-भगतू को बुलाया और पोलंग भाजी लाने के लिए कहा। दोनों जन पोलंग भाजी खोजने गए। चलते-चलते वे कई गाँवों में वह भाजी खोजते गए किंतु वह भाजी नहीं मिली। तब एक गाँव के किनारे तालाब में वे नहाने गए। इसी समय उस गाँव की तीन-चार महिलाएँ उसी तालाब में पानी के लिए आईं। तब इन दोनों ने उन महिलाओं से भी पूछा। उन्होंने बतलाया कि तो आसपास के किसी गाँव में और किसी जंगल में ही यह भाजी है,किंतु यहाँ से बहुत दूरी पर पश्चिम दिशा में बड़ी-बड़ी सात पहाड़ियों के आगे यह भाजी अवश्य है। यह सुन कर वे दोनों वहाँ से चल पड़े। जाते-जाते उन दोनों ने एक-एक

कर सातों पहाड़ियाँ लाँघीं। उस पार गए तो देखा पोलंग भाजी के बहुत ही नए और कोमल पत्ते लहलहा रहे थे। यह देख कर वे 'लो मिल गई' कहते हुए जल्दी-जल्दी भाजी तोड़ने लगे। उसी समय वहीं पास की गुफ़ा में रहने वाला बाघ निकला और दोनों नौकरों पर अपने पंजे से वार कर दिया। दोनों की देह से लहू बहने लगा। ऐसे में वे दोनों वहाँ कैसे रहते भला! तोड़ी हुई भाजी पता नहीं कहाँ गिर पड़ी। वे दोनों तुरंत घोड़े पर सवार होकर सीधे राज-महल पहुँचे। राजा ने पूछा,ले आए पोलंग भाजी?

राजा के यह कहने पर दोनों ने सारी बातें कह सुनाईं। यह सुन कर राजा बोला,अच्छा, चलो तो मैं भी जाकर देखूँ। ऐसा कह राजा भी जाने के लिए तैयार हो गया। तब रानी ने कहा,नहीं राजा। आप जाएँ। क्या पता ग़ुस्से में वह बाघ आप पर भी वार कर दे।

किंतु राजा ने उसकी बात नहीं मानी और वह जगतू-भगतू के साथ चला गया। एक के बाद एक पहाड़ियों को पार करते वे सातों पहाड़ियाँ लाँघ गए। पोलंग भाजी के पास पहुँच कर उसे तोड़ने को ही थे कि तभी बाघ पहुँचा। ऐ! मेरी भाजी को तोड़ने वाले तुम लोग कौन हो जी?

राजा ने कहा,नहीं भाई। मेरी रानी पेट से है। उसका मन पोलंग भाजी खाने को ललचा रहा है,इसीलिए हम यहाँ भाजी तोड़ने आए हैं।

तब बाघ ने कहा,यों तो मैं किसी को भी यह भाजी तोड़ने नहीं देता किंतु मेरी एक बात मानने पर दे सकता हूँ।

राजा ने कहा,अच्छा,कौन-सी बात है,बताओ।

बाघ बोला,देखिए,आपके यहाँ बेटे का जन्म होने पर उसे मेरा मीत बनाना और यदि बेटी हुई तो उसका विवाह मेरे संग करना पड़ेगा।

राजा ने विचार किया,अभी तो किसी तरह भाजी ले जाएँ। बाद की बाद में देखी जाएगी और 'हाँ' कह दी। फिर उन्होंने बड़ी ही प्रसन्नता पूर्वक भाजी तोड़ी और महल वापस हो गए। रानी ने पोलंग भाजी रंधवा कर भरपेट खाई। भाजी खाते ही उसे प्रसव पीड़ा होने लगी। राजा ने जगतू-भगतू को बुलवाया और धाय को बुला लाने के लिए भेजा। धाय के पास जाने पर धाय कहने लगी,मैं यों ही नहीं आऊँगी। मुझे रानी के सारे कपड़े-लत्ते,कंघी-दर्पण, सोना-चाँदी आदि सारी वस्तुएँ ला कर दो तब मैं आऊँगी।

यह सुन कर दोनों जन राजा के पास गए और उससे सारी बातें कहीं। तब राजा ने रानी की सारी सामग्री भेज दी। अब धाय फिर से कहने लगी,अब मेरे घर से राजमहल तक नए कपड़े बिछाओ तब मैं आऊँगी।

उसके ऐसा कहने पर उन दोनों ने फिर से राजा से बतलाया। राजा बोला, धाय जैसा कहती है,वैसा करो। जाओ।

ऐसा कहने पर नौकरों ने धाय के घर से राजमहल तक नए कपड़े बिछा दिए। तब धाय आई। उसके आते ही रानी ने बच्चे को जन्म दिया। उसने एक ख़ूबसूरत राजकुमारी को जन्म दिया। सारे राज्य में ख़ुशी छा गई। राजकुमारी का नाम रखा गया 'माहादई'|

इधर इसी समय बाघ अपने ज्योतिषी से कहने लगा,अरे ज्योतिषी! ज़रा पंचांग देखो तो,राजा के यहाँ किसका जन्म हुआ है?

ऐसा कहने पर ज्योतिषी ने पंचांग देखा और बताया,हे महाराज! राजा के यहाँ राजकुमारी जन्मी हैं।

यह सुन कर बाघ प्रसन्न हो गया और 'ज़रा चल कर देखूँ' कहते राजा के घर चला,पहुँच कर राजा से पूछने पर राजा बोला,लड़का जन्मा है।

बाघ ने कहा,अच्छा,मैं देखूँगा।

राजा बोला,नहीं जी। बच्चे के गाल में आपकी मूँछें चुभेंगी। ज़रा बड़ा हो जाने दें तब देख लीजिएगा।

किंतु बाघ ने नहीं माना और घर के भीतर घुस कर देखा तो राजकुमारी थी। बाघ बहुत क्रोधित हो गया और बोला,आपने मुझे मूर्ख बनाया न। किंतु जैसा कि हमारी बात हुई थी, आपको अपनी बेटी का विवाह तो मुझसे ही करना पड़ेगा। और वहाँ से चला गया।

इधर राजा को बहुत चिंता हो गई। रानी पूछने लगी,क्या हो गया,राजा? आप किसलिए चिंतित हो गए हैं?

राजा उसे कुछ भी नहीं बतलाता किंतु बारंबार पूछने पर राजा ने अंततः सारी बातें बता दीं। उधर बाघ 'अभी तो लड़की बहुत छोटी है' सोच कर सो गया। इस तरह वह आठेक वर्षों तक सोया रह गया। इतने वर्षों तक बाघ के आने पर राजा-रानी बहुत ख़ुश थे कि अब तो बाघ नहीं आएगा,किंतु उसी समय बाघ की नींद टूट गई। तब वह उठ कर सीधे राजमहल की ओर चल पड़ा। रास्ते में उसे बहुत ज़ोरों की भूख लगी तब वह एक हिरण को मार कर खा गया। खाने के बाद उसे लगी प्यास,तब वह रास्ते में एक तालाब में पानी पीने के लिए उतरा। इसी समय राजा के नौकर ने उसे देख लिया और जाकर राजा को बतला दिया। बाघ

के आने की ख़बर सुन कर राजा ने अपनी बेटी माहादई को एक कमरे में बंद कर दिया। ठीक उसी समय बाघ महल में जा पहुँचा राजा से पूछा,माहादई कहाँ है?

राजा बोला,वह तो अपने मामा के घर गई है।

बाघ बोला,आप मुझसे चाहे जितना झूठ बोल लें किंतु आपकी बेटी का विवाह तो आपको मेरे ही साथ करना पड़ेगा। ऐसा कह वह दुबारा वहाँ से चला गया। अपनी गुफ़ा में पहुँच कर वह फिर सो गया। इस बार वह 10 वर्षों तक सोया रह गया। जागने पर उसे फिर से माहादई की याद आई। तब 'अब तो माहादई को लेकर ही आऊँगा' ऐसा निश्चय कर बाघ फिर जा पहुँचा राजमहल में। इस समय राजा-रानी भोजन कर रहे थे। राजा-रानी ने बाघ को देखा और चिंता में पड़ गए। 'अब तो बाघ हमारी बेटी को ले ही जाएगा' यह सोच कर वे अत्यंत दुखी हो गए। तभी बाघ उनके पास जा पहुँचा और माहादई के बारे में पूछने लगा। अभी वे लोग आपस में बातें कर ही रहे थे कि माहादई भी वहीं पहुँची। बाघ ने उसे देखा

तो बहुत प्रसन्न हो गया। उसने माहादई को उठाया और चल पड़ा। राजा-रानी अपने सिर पीट-पीट कर रोते रह गए। कुछ दूर जाने के बाद बाघ ने माहादई से अपनी पीठ पर बैठने को कहा। माहादई उसकी पीठ पर बैठ गई। कई घंटों चलने के बाद बाघ माहादई को लेकर अपनी गुफ़ा में पहुँचा उसके गुफ़ा में प्रवेश करते ही गुफ़ा महल में परिवर्तित हो गई।

बाघ ने माहादई को महल में छोड़ दिया और स्वयं शिकार की खोज में जंगल के भीतर चला गया। जंगल में उसने एक हिरण मारा और उसकी सारी हड्डियाँ खा गया। माँस बचा कर ले आया माहादई के लिए। माहादई ने उस माँस को अनिच्छापूर्वक पका कर खाया। इस तरह उनके दिन बीतने लगे। माहादई बहुत दुखी रहा करती। वह प्रति दिन सवेरे भगवान की पूजा किया करती और विनती करती कि भगवान उसे इस दुःख से शीघ्र ही मुक्ति दें।

एक दिन की बात है। किसी एक राज्य का राजकुमार आखेट करता हुआ उधर ही निकला। वह राह भूल गया था। भूख-प्यास से उसकी हालत दयनीय हो गई थी। तभी उसने जंगल के भीतर उस महल को देखा। उसे बड़ा ही आश्चर्य हुआ। वह उस महल की ओर बढ़ चला। सिंह-डयोढ़ी लाँघते ही उसे माहादई दिखलाई पड़ी। उसने उससे अपनी स्थिति बतलाई और पानी माँगा। माहादई ने उस पर दया करते हुए उसे केवल पानी पिलाया बल्कि खाने को हिरण का माँस भी दिया। राजकुमार ने भरपेट माँस खाया और पानी पी कर बैठ गया। राजकुमार को यह जान कर और भी आश्चर्य हुआ कि उस बड़े-से महल में उस एक युवती के अतिरिक्त और कोई भी नहीं था। तब उसने जिज्ञासावश उससे पूछा। माहादई ने तब राजकुमार से अपनी आप बीती कह सुनाई। बाघ के साथ विवाह की बात सुन कर राजकुमार

बहुत घबराया। माहादई और राजकुमार में प्रेम हो गया। तब राजकुमार ने माहादई को अपने साथ चलने को कहा। माहादई भी उसकी बात से सहमत हो गई किंतु बाघ के जीवित रहते तक कैसे जा पाएँगे,यह उन दोनों के लिए चिंता का विषय था। तब राजकुमार ने 'ठीक है, मैं जल्द ही कुछ-न-कुछ उपाय कर बाघ को मारूँगा और आपको लिवा ले जाऊँगा' कहा और कुछ देर बाद वहाँ से अपनी राह चला गया।

वहाँ से किसी तरह वह अपने राज्य में जा पहुँचा महल में पहुँच कर उसने अपनी माँ से कहा,माँ! तुम मुझे रोज़ ही विवाह करने के लिए कहती रहती हो और मैं मना करता जाता हूँ। लेकिन आज मैं स्वयं ही राजकुमारी देख आया हूँ। मैं उसी से विवाह करूँगा।

यह सुन कर रानी बहुत प्रसन्न हो गई। उसने यह बात राजा से भी कही। राजा भी यह सुन कर बहुत आनंदित हो गया। तब राजकुमार ने कहा,माँ! विवाह के पहले मैं एक बार और उस राजकुमारी से मिलने जाऊँगा।

रानी उससे सहमत हो गई। तब राजकुमार एक दिन आखेट के सारे साजो-सामान लेकर जंगल में गया। मौक़ा देख कर उसने बाघ को मार दिया और राजकुमारी के पास जाकर उससे साथ चलने को कहा। तब माहादई ने कहा,नहीं राजा,मैं ऐसे नहीं जाऊँगी। मैं भी तो एक राजकुमारी हूँ। मेरे भी माता-पिता हैं। आप मुझे मेरे माता-पिता के घर से विधि-विधान पूर्वक विवाह कर ले जाएँ।

उसकी बात सुन कर राजकुमार भी उससे सहमत हो गया और उसे लेकर उसके माता-पिता के पास गया। वहाँ जाकर उन्होंने देखा कि राज-महल तहस-नहस हो चुका है और माहादई के माता-पिता की देह में दीमक लग गया है। यह देख कर माहादई बहुत रोने लगी। तब राजकुमार ने उसे ढाढ़स बँधाया और पानी ला कर उसके माता-पिता के ऊपर डाला। इससे दीमक ढह गया और राजा-रानी सचेत हो गए। आँखें खोलीं तो देखा माहादई और उसके साथ एक राजकुमार को। उन्होंने उससे पूछा कि वह कौन है,तब माहादई ने उन्हें सारी बातें बतलाईं और कहा कि ये मुझसे विवाह करना चाहते हैं। यह सुन कर राजा-रानी बहुत प्रसन्न हो गए। तब राजकुमार वहाँ से अपने राज्य लौट गया। महल में पहुँच कर अपनी माँ से विवाह की तैयारी करने को कहा। सारी सामग्री आनन-फानन में जुटाई गई और दोनों का विवाह हो गया।

सब बड़े ही आनंदपूर्वक जीवन बिताने लगे।

स्रोत :
  • पुस्तक : बस्तर की लोक कथाएँ (पृष्ठ 82)
  • संपादक : लाला जगदलपुरी, हरिहर वैष्णव
  • प्रकाशन : राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, भारत
  • संस्करण : 2013

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