उन दिनों जशपुर राज्य के एक गाँव में सात भाई रहते थे। उनकी एक बहन थी। बहन सबसे छोटी थी। उन भाई-बहनों के माता-पिता मर चुके थे इसलिए अपनी छोटी बहन की देख-भाल वे सातों भाई करते थे। वे अपनी बहन से बहुत प्यार करते थे। सातों भाई प्रतिदिन शिकार करने जंगल चले जाते। इधर बहन घर के आस-पास उगी साग-भाजी लाकर खाना पकाती। शाम को जब सातों भाई घर लौटते तो वे अपनी बहन के हाथों बना सादा किंतु स्वादिष्ट खाना बड़े प्रेम से खाते।
एक दिन जब सातो भाई शिकार से लौटकर आने वाले थे तब बहन ने सोचा कि जल्दी से खाना पका लूँ। भाई आएँगे तो उन्हें गर्म-गर्म खाना खिलाऊँगी। यह सोचकर बहन भाजी लाई और उसे काटने बैठ गई। भाजी काटते-काटते उसका हाथ फिसल गया जिससे उसकी उँगली कट गई और उँगली से ख़ून बहने लगा। ख़ून बहने से रोकने के लिए उसने भाजी का एक पत्ता उठाया और उसी से उँगली से बहता ख़ून पोंछ दिया। भाइयों के आने का समय हो रहा था। अत: वह जल्दी-जल्दी खाना पकाने लगी। खाना पकाने की जल्दी में उसे ध्यान नहीं रहा और उसने ख़ून लगा पत्ता भी भाजी में मिलाकर पका दिया।
भाई घर आए तो उन्हें बड़ी जोर की भूख लगी थी। वे जल्दी से हाथ-पैर धोकर खाना खाने बैठ गए। बहन ने रोटी परोसी, भात परोसा और भाजी परोसी। भाइयों ने खाना शुरू किया। आज उन्हें भाजी का स्वाद और दिनों की अपेक्षा अधिक स्वादिष्ट लगा।
‘आज तो भाजी बड़ी स्वादिष्ट बनी है।’ एक भाई ने कहा।
‘हाँ, आज की भाजी का तो स्वाद ही निराला है।’ दूसरे भाई ने कहा।
‘आज भाजी में कुछ और डाला है क्या? आज इसमें बड़ी मिठास लग रही है।’ तीसरे भाई ने पूछा।
शेष भाई भी भाजी के स्वाद की प्रशंसा करते हुए पूछने लगे कि आज भाजी में क्या मिलाया है जो इसका स्वाद इतना बढ़िया है?
‘भैया, मैंने तो भाजी वैसी ही पकाई है जैसी रोज़ पकाती हूँ।’ बहन ने चकित होते हुए कहा।
‘नहीं, मैं नहीं मान सकता हूँ। तू ज़रूर कुछ छिपा रही है। आज कोई बात अवश्य हुई है जिससे यह भाजी इतनी स्वादिष्ट बनी है।’ सबसे बड़े भाई ने हठ करते हुए पूछा।
‘कुछ विशेष नहीं हुआ है। हाँ, इतना अवश्य हुआ कि भाजी काटते समय मेरी उँगली कट गई थी जिसे मैंने भाजी के एक पत्ते से पोंछ दिया था। मुझे लगता है कि वो पत्ता धोखे से मैंने भाजी के साथ पका दिया है।’ बहन ने हिचकते हुए बताया। उसे लगा कि यह जानकर उसके भाई उस पर नाराज़ होंगे। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ।
बहन की बात सुनकर बड़ा भाई चुप हो गया। शेष भाई भी चुपचाप खाना खाते रहे।
दूसरे दिन सातों भाई प्रतिदिन की भांति जंगल की ओर चल पड़े। जंगल में पहुँचकर बड़ा भाई एक स्थान पर रुक गया। उसे देखकर शेष भाई भी रुक गए।
‘भाइयों, हमारी बहन के ख़ून की कुछ बूँदें भाजी में मिल जाने से भाजी का स्वाद इतना बढ़ गया तो तनिक सोचो कि बहन का मांस कितना स्वादिष्ट होगा। मेरा विचार है कि कल हम बहन को घुमाने के बहाने अपने साथ ले आएँगे और उसे यहीं मारकर उसका मांस पका कर खाएँगे।’ बड़े भाई ने कहा।
शेष पाँच भाइयों ने बड़े भाई का समर्थन किया लेकिन सबसे छोटा भाई चुप रहा। वह अपने भाइयों की मंशा जानकर घबरा गया वह अपनी बहन को बहुत प्रेम करता था किंतु बड़े भाइयों के डर से विरोध नहीं कर सका।
दूसरे दिन भाइयों ने बहन से कहा कि वह भी उनके साथ चले।
बहना, ‘तुम रोज़ घर में अकेली रह जाती हो। तुम्हें बड़ा उदास लगता होगा। इसलिए आज हमारे साथ चलो, ज़रा घूमना हो जाएगा।’ सबसे बड़े भाई ने कहा।
‘हाँ बहना, तुम्हें रोज़ घर में अकेले हम सबके लिए खाना पकाना पड़ता है।
आज हम सब भाई वहीं जंगल में खाना पकाएँगे और तुम वहीं आराम करना। मँझला भाई बोला।
‘हाँ-हाँ बहना, ‘तुम हमारे साथ चलो। हम तुम्हें जंगल घुमाएँगे। पशु-पक्षी दिखाएँगे।’ सँझला भाई बोल उठा।
‘बहना, ‘जंगल तो शिकार और शिकारियों जगह है। संभलकर चलना, वहाँ तुम्हें दोनों देखने को मिल जाएँगे।’ सबसे छोटे भाई ने बहन को सचेत करना चाहा।
बहन भोली-भाली थी। वह तो सपने में भी नहीं सोच सकती थी कि उसके अपने सगे भाई उसके प्राण लेना चाहते हैं। वह छोटे भाई के संकेत को नहीं समझ सकी और बड़े भाइयों का आमंत्रण पाकर ख़ुश हो गई।
सातों भाई बहन को साथ लेकर जंगल में जा पहुँचे। वहाँ एक चौरस स्थान पर एक मिट्टी का एक टीला बना हुआ था।
‘बहन, ‘तुम इस टीले पर बैठ जाओ। हम खाने के लिए कंदमूल-फल लेकर आते हैं।’ बड़े भाई ने कहा।
बहन टीले पर चढ़कर बैठ गई। सातो भाई टीले से कुछ दूर झाड़ियों में छिपकर खड़े हो गए। फिर सबसे पहले सबसे बड़े भाई ने धनुष पर बाण चढ़ाया और अपनी बहन को मारने के लिए निशाना साधा। भाग्यवश तीर निशाने से चूक गया और बहन बच गई। तब दूसरे भाई ने तीर चलाया। वह भी चूक गया। फिर तीसरे भाई ने तीर चलाया। वह भी चूक गया। फिर चौथे भाई ने तीर चलाया। उसका तीर भी निशाने पर नहीं लगा। पाँचवाँ भाई भी असफल रहा। छठे भाई को आशा थी कि उसका तीर तो बहन को मार गिराएगा किंतु उसे भी निराशा हाथ लगी। इसके बाद सातवें अर्थात् सबसे छोटे भाई की बारी आई। बड़े भाई ने छोटे के हाथों धनुष-बाण थमा दिया।
‘नहीं, ‘मैं अपनी बहन पर तीर नहीं चलाऊँगा।’ छोटे भाई ने रोते हुए कहा।
‘यदि तुम तीर नहीं चलाओगे तो हम बहन को मारने से पहले तुम्हें मारकर तुम्हारा मांस खा जाएँगे।’ बड़े भाइयों ने छोटे भाई को धमकाया।
धमकी सुनकर छोटा भाई डर गया। उसने बुझे मन से धनुष उठाया, उस पर बाण साधा और इस ढंग से बाण छोड़ा कि वह बहन को न लगे। मगर होनी को कौन टाल सकता है? छोटे भाई का तीर बहन के सीने में जा धँसा और बहन उसी क्षण गिरकर मर गई।
अब बड़े भाइयों ने छोटे भाई को आदेश दिया कि वह आग जलाने के लिए लकड़ियों का गट्ठा ले आए लेकिन उस गट्ठे को किसी रस्सी से न बाँधे।
‘यदि तुमने गट्ठे को किसी रस्सी या कपड़े या लता से बाँधा तो हम तुम्हें मार डालेंगे।’ बड़े भाई ने धमकी दी।
छोटे भाई ने जंगल से लकड़ियाँ बटोरी और इकट्ठी कर लीं। मगर अब उसे समझ में नहीं आ रहा था कि अब वह लकड़ियों के गट्ठे को बिना बाँधे उठाए कैसे?
छोटा भाई यह सोचकर रोने लगा कि यदि वह गट्ठा नहीं पहुँचाएगा तो उसके भाई उसे मार डालेंगे।
जहाँ छोटा भाई रो रहा था वहीं एक धामन सर्प रहता था।
‘क्यों भाई, तुम इस तरह क्यों रो रहे हो? क्या मैं तुम्हारी कोई मदद कर सकता हूँ?’ धामन सर्प ने छोटे भाई से पूछा।
छोटे भाई ने रोते-रोते पूरा क़िस्सा सुनाया। क़िस्सा सुनकर धामन सर्प को छोटे भाई पर बड़ी दया आई।
‘चिंता मत करो, ‘मैं तुम्हारी मदद करूँगा।’ यह कहकर धामन सर्प ने लकड़ी के गट्ठे को अपनी कुंडली से लपेट लिया। छोटे भाई ने गट्ठा उठाया और बड़े भाइयों के पास जा पहुँचा। उसने जैसे ही लकड़ी के गट्ठे को ज़मीन पर रखा वैसे ही धामन सर्प चुपके से एक ओर सरक गया। बड़े भाइयों को पता ही नहीं चला।
वस्तुत: बड़े भाई अपने छोटे भाई से पीछा छुड़ाना चाहते थे और किसी न किसी बहाने उसे भी मार देना चाहते थे। इसलिए बड़े भाई ने छोटे भाई को अगला आदेश दिया।
‘जाओ, इस घड़े में नदी से पानी भर लाओ। यदि तुम इस घड़े में पानी नहीं ला सके तो हम तुम्हें मार देंगे।’ बड़े भाइयों ने छोटे भाई से कहा।
बड़े भाइयों ने छोटे भाई को जो घड़ा दिया था उसकी तली में एक छेद था। छोटा घड़े में पानी भरकर घड़ा उठाता कि दूसरे ही पल घड़ा खाली होने लगता। छोटे भाई ने घड़े में कंकड़, मिट्टी डाल कर छेद बंद करना चाहा लेकिन छेद बंद नहीं हुआ। अब छोटा भाई घबरा गया कि यदि वह घड़े में पानी भरकर नहीं ले जा पाया तो उसके बड़े भाई उसके प्राण ले लेंगे। वह डर के मारे रोने लगा। उसका रोना सुनकर नदी से एक मेंढक निकल आया।
‘क्यों भैया, क्यों रो रहे हो? कुछ खो गया है क्या? या नदी में कुछ गिर गया है?’ मेंढक ने पूछा।
छोटे भाई ने रोते-रोते उसे पूरा क़िस्सा सुनाया। क़िस्सा सुनकर मेंढक को छोटे भाई पर दया आने लगी।
'ऐसा करो भैया, कि तुम मुझे उठाकर घड़े के अंदर छेद पर बिठा दो। मैं छेद ढाँक दूँगा और तुम घड़े में पानी भरकर पहुँचा देना।’ मेंढक ने छोटे भाई से कहा।
छोटे भाई ने वैसा ही किया और पानी से भरा घड़ा लेकर बड़े भाइयों के पास जा पहुँचा।
अब बड़े भाइयों ने अगला आदेश दिया।
‘जाओ, घर से आग लेकर आओ। आग को अपनी हथेली पर रखकर लाना, किसी और चीज़ पर नहीं। यदि तुम अपनी हथेली पर आग नहीं ला सके तो हम तुम्हें मारकर खा जाएँगे।’ बड़े भाइयों ने कहा।
छोटा भाई आग लाने चल पड़ा। घर पहुँचकर उसने आग उठाई और आग को अपनी हथेली पर रखकर जंगल की ओर चल पड़ा। जंगल में प्रवेश करते-करते उसकी हथेली जलने लगी। छोटे भाई से पीड़ा सहन नहीं हुई। आग उसकी हथेली से नीचे गिर गई। यह देखकर छोटा भाई पीड़ा और भय से रोने लगा। छोटे भाई का रुदन सुनकर सिंगबोंगा देवता प्रकट हो गए।
‘क्यों बेटा, तुम इस प्रकार क्यों रो रहे हो और ये आग तुमने अपने हाथ में क्यों उठा रखी थी?’ सिंगबोंगा देवता ने पूछा।
छोटे भाई ने रोते-रोते उसे पूरा क़िस्सा सुनाया। क़िस्सा सुनकर सिंगबोंगा देवता को छोटे भाई पर दया आ गई।
‘सुनो, ऐसा करो कि तुम मेरा यह एक हाथ अपने हाथ पर रखकर ले जाओ। मेरे हाथ पर आग रख लेना। इससे तुम्हारा हाथ भी नहीं जलेगा और तुम्हारे भाइयों को पता भी नहीं चलेगा। जब काम हो जाए तो तुम मेरा हाथ मुझे वापस कर देना।’ सिंगबोंगा देवता ने कहा।
‘ठीक है। आपकी बड़ी कृपा।’ छोटे भाई ने सिंगबोंगा देवता के हाथ पर आग रखी और उनके हाथ को अपने हाथ पर रखकर अपने बड़े भाइयों के पास जा पहुँचा।
बड़े भाइयों ने आग से लकड़ियाँ सुलगाईं और उसमें बहन के मांस को पकाने लगे। पकने के बाद बड़े भाई ने मांस के सात हिस्से किए। सबसे छोटा हिस्सा सबसे छोटे भाई को दिया। इसके बाद सभी बड़े भाई बड़े चाव से स्वाद ले-लेकर अपनी बहन के मांस को खाने लगे। मगर छोटा भाई उनकी ओर पीठ करके बैठ गया। उसने अपनी बहन के अपने हिस्से के मांस को चुपचाप वहीं ज़मीन में गाड़ दिया और नदी से लाई मछलियाँ खाता हुआ ऐसा अभिनय करने लगा जैसे वह भी मांस खा रहा हो।
सातो भाई खा-पीकर घर लौट गए।
कुछ दिन बाद बड़े भाइयों ने विवाह कर लिया लेकिन छोटा भाई अविवाहित रहा। वह अब अपने भाइयों से अलग एक झोपड़ी बनाकर उसमें रहने लगा। छोटे भाई के पास एक केनदरा (बाँस की सारंगी) था। जब उसे अपनी बहन की याद आती तो वह केनदरा बजाकर अपना मन बहला लिया करता।
जिस स्थान पर छोटे भाई ने अपने हिस्से का मांस गाड़ दिया था वहाँ बाँस उग आया। एक दिन एक भिखारी बाँस काटने आ पहुँचा। वह भिखारी बाँस से बना केनदरा बजा-बजाकर भीख माँगा करता था। उसका केनदरा टूट गया था और उसे नया केनदरा बनाने के लिए बाँस की आवश्यकता थी। वह बाँस ढूँढ़ता हुआ जंगल में आया तभी उसे बाँस का वह पेड़ दिख गया। भिखारी ने बाँस काटने के लिए जैसे ही कुल्हाड़ी चलाई वैसे ही बाँस ने मार्मिक स्वर में कहा—
‘ना काट, ना काट, बूढ़ा
इह तो भाई का रोपल बाँस हौ...’
यह सुनकर भिखारी डर गया और बाँस काटे बिना घर लौट गया। उसे ख़ाली हाथ आया देखकर भिखारी की पत्नी बहुत नाराज़ हुई। पत्नी ने भिखारी को फिर दूसरे दिन बाँस काटने को भेजा।
भिखारी ने जैसे ही कुल्हाड़ी का वार बाँस पर करना चाहा वैसे ही बाँस बोल उठा—
‘ना काट, ना काट, बूढ़ा
इह तो भाई का रोपल बाँस हौ...’
इस पर भिखारी ने बाँस से कहा कि यदि वह बाँस नहीं काटेगा तो वह केनदरा नहीं बना सकेगा। यदि वह केनदरा नहीं बना सका तो वह बिना केनदरा बजाए भीख नहीं माँग सकेगा। यदि वह भीख नहीं माँग सका तो उसका परिवार भूखों मर जाएगा।
भिखारी की बात सुनकर बाँस चुप हो गया। भिखारी ने बाँस काटा और अपने घर ले आया। घर पर उसने बाँस से एक केनदरा बनाया। इसके बाद भिखारी केनदरा बजाते हुए भीख माँगने निकल पड़ा।
भिखारी गाँव में घूमते-घूमते जैसे ही सबसे बड़े भाई के घर के दरवाज़े पर पहुँचा वैसे ही केनदरा से स्वर निकला—
‘ना बाज रे, ना बाज रे, केनदरा
इह तो दुश्मन केर घर है रे, केनदरा...’
यह सुनकर भिखारी घबरा गया और वह वहाँ से आगे बढ़कर दूसरे भाई के दरवाज़े पर जा खड़ा हुआ। केनदरा से फिर वही स्वर निकला—
‘ना बाज रे, ना बाज रे, केनदरा
इह तो दुश्मन केर घर है रे, केनदरा...’
भिखार ने वहाँ से भी आगे बढ़ लेने में अपनी भलाई समझी और वह तीसरे भाई के दरवाज़े पर जा खड़ा हुआ। केनदरा ने फिर वही पंक्तियाँ दोहराईं—
‘ना बाज रे, ना बाज रे, केनदरा
इह तो दुश्मन केर घर है रे, केनदरा...’
इसी तरह भिखारी एक-एक करके छहों भाइयों के घर के दरवाज़े पर पहुँचा और केनदरा उससे यही कहता रहा कि—
‘ना बाज रे, ना बाज रे, केनदरा
इह तो दुश्मन केर घर है रे, केनदरा...’
अंत में भिखारी सबसे छोटे भाई के घर के दरवाज़े पर पहुँचा। भिखारी जैसे ही सबसे छोटे भाई के घर के दरवाज़े के सामने जाकर खड़ा हुआ वैसे ही केनदरा से प्रसन्नता भरा स्वर फूटा—
‘बाज रे, बाज रे, केनदरा
इह तो भैया केर घर रे, केनदरा...’
छोटे भाई ने केनदरा का स्वर सुना तो वह चकित रह गया। उसने भिखारी से कहा कि वह उसके केनदरा से अपना केनदरा बदल ले। बदले में छोटा भाई उसे पैसे भी देगा। भिखारी मान गया।
जब छोटा भाई काम पर जाता तो बहन केनदरा से निकलती और भाई के लिए अच्छे-अच्छे पकवान बनाकर रख देती। छोटा भाई जब घर लौटता तो उसे यह देखकर बड़ा अचंभा होता कि उसके लिए पकवान बनाकर कौन रख देता है?
एक दिन छोटे भाई ने पकवान बनाने वाले का पता लगाने का निश्चय किया और घर से जाने का बहाना करके घर में ही छिपकर बैठ गया। बहन ने सोचा कि भाई चला गया है। वह केनदरा से निकली और पकवान बनाने लगी। यह देखकर छोटा भाई बहुत ख़ुश हुआ। पकवान बनाकर वह जैसे ही केनदरा में घुसने लगी वैसे ही छोटे भाई ने लपककर उसका हाथ पकड़ लिया। बहन-भाई दोनों परस्पर गले मिलकर रोने लगे। रो-रोकर जब मन हल्का हो गया तो दोनों ने एक-दूसरे को अपना दुख-सुख सुनाया। छोटे भाई ने अपनी विवशता का हाल बताया कि किस प्रकार उसे बड़े भाइयों के कहने पर उस पर तीर चलाना पड़ा। बहन ने सुना तो भाई को गले लगाकर बोली कि वह जानती है कि इसमें छोटे भाई का कोई दोष नहीं है। इसके बाद बहन-भाई ख़ुशी-ख़ुशी रहने लगे।
एक दिन छोटे भाई ने बहन के कहने पर अपने बड़े भाइयों को भोजन पर बुलाया। बड़े भाई प्रसन्नतापूर्वक छोटे भाई के घर पहुँचे। अब तक बड़े भाइयों को यह पता नहीं था कि उनकी बहन जीवित हो गई है। बहन सामने नहीं आई। छोटे भाई ने बड़े भाइयों के लिए तरह-तरह के पकवान परोस दिए। बड़े भाई चटखारे लेते हुए, पकवानों की प्रशंसा करते हुए खाने लगे।
‘ये पकवान तो बहुत स्वादिष्ट हैं। हमने इतने स्वादिष्ट पकवान आज तक कभी नहीं खाए।’ सबसे बड़े भाई ने कहा।
शेष भाइयों ने उसके कथन का समर्थन किया।
उसी समय बहन सामने आ गई।
‘भाइयों, आज आप लोग जिन पकवानों की प्रशंसा कर रहे हैं उन्हें मैंने बनाया है और इनमें न तो मेरा ख़ून मिला है और न मेरा मांस मिला है फिर भी आप लोगों को ये अत्यंत स्वादिष्ट लग रहे हैं।’ बहन ने बड़े भाइयों से कहा।
बड़े भाइयों ने अपनी बहन को जीवित देखा तो सकते में आ गए और उसकी बात सुनकर उन्हें अपनी भूल का अहसास हुआ। वे लज्जित अनुभव करते हुए धरती माँ से प्रार्थना करने लगे कि उन्होंने इतना गंभीर अपराध किया है कि अब वे किसी को मुँह दिखाने योग्य नहीं हैं अत: धरती माँ उन्हें अपने भीतर शरण दे दें।
जैसे ही बड़े भाइयों को अपने कृत्य पर पश्चाताप हुआ वैसे ही धरती फट गई और उसमें छहों बड़े भाई समा गए। बहन ने बड़े भाइयों को धरती में समाने से रोकने का प्रयास किया। वह उन्हें पकड़े को लपकी। किंतु बड़े भाइयों के सिर के बाल ही उसके हाथ आए। बहन ने भाइयों के सिर के बालों को मैदान में बिखरा दिया। वे बाल देखते ही देखते सबाई घास के रूप में उग आए। बिरहोर आज भी सबाई घास से दैनिक उपयोग की तरह-तरह की वस्तुएँ बनाते हैं।
kisi desh mein ek raja rahta tha. uski teen raniyan theen aur tinon raniyon se ek ek rajakumar the. ek baar raja ne svapn mein hans ke saman sundar shvet rang ka ghoDa dekha. wo hansraj ghoDa tha. usi ke saath raja ko ek vichitr tota dikhai paDa jo manushya ki boli mein bol raha tha jiska naam tha mukhbolta tota. neend se jagne par raja ko laga ki wo hansraj ghoDa aur mukhbolta tota use milna chahiye. raja ne DhinDhora pitva diya ki jo koi bhi hansraj ghoDa aur mukhbolta tota lekar ayega use iinam mein aadha rajya de diya jayega. aadha rajya pane ki lalach mein anek vyakti aage aaye. unhonne hansraj ghoDa aur mukhbolta tota DhunDhane ka bahut prayas kiya lekin ve saphal nahin ho sake.
raja ne dekha ki koi bhi uski ichchha puri nahin kar pa raha hai to dukh ke karan uska svasthya bigaD gaya. din pratidin uska svasthya girne laga. ye dekhkar rajakumaron ko chinta hui. sabse pahle baDe rajakumar ne hansraj ghoDa aur mukhbolta tota DhunDhane jane ka nishchay kiya.
baDa rajakumar apne shvet shyaam ghoDe par savar hokar jangal ki or nikal paDa. chalte chalte wo ghane jangal mein pahunch gaya. tab tak use zor ki bhookh lag aai thi. usne aas paas dekha lekin khane yogya kuch bhi na dikha. usi samay vahan ek buDhiya dikhai di. rajakumar ne usse puchha ki yahan khane ko kuch mil sakta hai kyaa?
‘is ghane jangal mein kya milega? tum meri jhopDi mein chalo, main tumhein dahi chiuDa khilaungi. ’ buDhiya ne kaha.
rajakumar buDhiya ke saath uski jhopDi mein ja pahuncha. buDhiya ne dahi mein chiuDa Dala aur rajakumar ko khane ko diya. dahi bahut mithi thi aur chiuDa bhi svadisht tha. aisa svadisht dahi chiuDa rajakumar ne kabhi nahin khaya tha. dahi chiuDa khakar jab rajakumar buDhiya se vida lekar jane ko hua to buDhiya ne uske ghoDe ki lagam pakaD li.
‘ja kahan rahe ho, ye to bataya nahin. ’ buDhiya ne kaha.
‘main hansraj ghoDa aur mukhbolta tota lene ja raha hoon. ’ rajakumar ne bataya.
‘tum mat jao. ye kaam tumhare vash ka nahin hai. tum rakshas ke hathon mare jaoge ya dum daba kar bhaag aoge. ’ buDhiya ne rajakumar se kaha.
‘na to main mara jaunga aur na hi dum dabakar bhagunga. main rakshas ko markar aage baDh jaunga. ’ rajakumar ne kaha.
‘tum aisa nahin kar paoge. ’ buDhiya ne kaha.
‘main aisa hi karunga. ’ rajakumar bola.
‘to lagi shart?’ buDhiya boli.
‘haan, lagi shart!’ rajakumar bola.
‘yadi main hari to main jivan bhar tumhari dasi bankar rahungi lekin yadi tum hare tumhein jivan bhar mera daas bankar rahna hoga. ’ buDhiya ne kaha.
‘mujhe svikar hai. ’ rajakumar ne buDhiya ki shart maan li aur apna ghoDa dauData hua chal paDa.
kuch door jane par use ek rakshas mila.
‘main bhukha hoon! main tumhein kha jaunga!’ rakshas ne garajte hue kaha rajakumar ne rakshas ko dekha to uski bhayanak akriti dekhkar hi wo Dar gaya aur ghoDa moDkar apni jaan bachakar bhaag khaDa hua. rajakumar bhagkar buDhiya ke paas pahuncha.
‘kyon shart haar ge?’ buDhiya ne muskurate hue kaha. iske baad usne rajakumar ko apna daas bana liya.
jab kai din ho ge aur baDe rajakumar ki koi suchana nahin mili to shesh donon rajakumaron ko chinta hui. ab manjhle rajakumar ne hansraj ghoDa aur mukhbolta tota lane aur baDe rajakumar ko DhunDhane jane ka nishchay kiya. wo apne bhure rang ke ghoDe par savar hokar nikal paDa.
manjhle rajakumar ke saath bhi vahi hua. use vahi buDhiya mili. usne manjhle rajakumar ko dahi chiuDa khilaya. shart lagai aur manjhla rajakumar bhi shart haar kar uska daas ban gaya.
kai saptah vyatit ho jane par bhi baDe tatha manjhle rajakumar ki koi suchana na milne par sabse chhote rajakumar ne hansraj ghoDa aur mukhbolta tota lane aur apne donon bhaiyon ko DhunDhane jane ka nishchay kiya. wo apne kale rang ke ghoDe par savar hokar nikal paDa. chalne se pahle usne apni maan se dahi chiuDa bandhvaya jo raste mein khane ke kaam aata aur ghoDe ke liye thoDa sa chara bandhva liya. iske baad wo bhala, barchhi, dhanush baan, talvar aur koDa lekar nikal paDa.
ghane jangal mein pahunchne par chhote rajakumar ko bhookh lagi. usne dahi chiuDa ki hanDi nikali aur khane laga. itne mein buDhiya aa gai. usne dekha ki chhota rajakumar apne saath laya dahi chiuDa kha raha hai. atah usne dusra bahana kiya aur chhote rajakumar se boli, ‘beta, main buDhi thak gai hoon. bhatak gai hoon. mujhe apne ghoDe par bitha kar meri jhopDi tak mujhe pahuncha do. ’
rajakumar ko buDhi par daya aa gai. usne buDhiya ko ghoDe par bithaya aur uski jhopDi tak pahuncha diya. buDhiya chhote rajakumar ko dekhkar hi samajh gai thi ki pahle vale rajakumar isi ke bhai hain atah usne jadu ke bal se donon rajakumaron ko meDhe mein badal diya tha jisse chhota rajakumar unhen pahchan na sake.
chhota rajakumar buDhiya ko pahunchakar aage baDhne ko hua to buDhiya ne lapakkar uske gheDe ki lagam pakaD li.
‘tumne ye to bataya nahin ki tum kahan ja rahe ho?’ buDhiya boli.
chhote rajakumar ko laga ki abhi kuch der pahle to ye buDhiya thakan ke mare mari ja rahi thi aur ab iske paas itni himmat kahan se aa gai ki isne mere ghoDe ki lagam pakaD kar mere ghoDe ko rok rakha hai. chhote rajakumar ne buDhiya par sata sat koDe barsaye to buDhiya ne ghoDe ki lagam chhoD di. chhota rajakumar ghoDa dauData hua chal diya.
kuch door jane par use ek rakshas mila.
‘main ‘bhukha hoon. main tumhein kha jaunga. ’ rakshas ne kaha.
‘are nana, ye kya kah rahe ho? jo tum mujhe khaoge to tumhari beti tumse naraz ho jayegi. ’ chhote rajakumar ne Dare bina rakshas se kaha.
rakshas ne socha ki ye laDka theek kahta hai. bhale hi ye manushya hai lekin hai to meri beti ka putr yani mera nati. ab main apne nati ko kaise khaun?
chhote ‘nana tumhein bhookh lagi hai to main tumhare liye hiran maar deta hoon, tum use kha lo. ’ rajakumar ne kaha aur ek hiran markar rakshas ko de diya. rakshas hiran pakar bahut prasann hua.
‘nati, tum kahan ja rahe ho?’ rakshas ne puchha.
‘nana ji, main hansraj ghoDa aur mukhbolta tota lane ja raha hoon. ’ chhote rajakumar ne bataya.
‘yah to bahut kathin kaam hai. ’ rakshas ne kaha.
‘lekin main to unhen pakar rahunga. ’ chhote rajakumar ne atmavishvas ke saath kaha.
aisa hai to theek hai, main tumhein tumhare mama ke paas bhejta hoon. use ye hira de dena to wo samajh jayega ki mainne tumhein bheja hai aur tum uske bhanje ho. ’ rakshas ne ek hira dete hue chhote rajakumar se kaha.
chhote rajakumar ne hira liya aur dusre rakshas ke paas chal paDa. dusra rakshas javan tha. usne jaise hi chhote rajakumar ko dekha vaise hi use khane ko lapka.
‘are are, mama! ye kya kar rahe ho? apne bhanje ko khaoge kyaa?’ chhote rajakumar ne kaha aur hira nikal kar us javan rakshas ko de diya.
javan rakshas hira dekhkar bahut prasann hua. wo pahli baar apne bhanje se mil raha tha. usne chhote rajakumar se uske aane ka uddeshya puchha. chhote rajakumar ne bataya ki use hansraj ghoDa aur mukhbolta tota le jana hai. jise pane mein use chhote rajakumar ki madad karni hogi.
‘ye donon to mere danavraj ke paas hain jinke yahan main kaam karta hoon. ye donon tumhein nahin mil sakenge. ’ mama rakshas ne kaha.
‘theek hai, main unhen ek baar dekh to sakta hoon?’ chhote rajakumar ne puchha.
‘haan, main ek baar tumhein dikha dunga. ’ mama rakshas maan gaya.
chhota rajakumar mama rakshas ke saath danavraj ke mahl pahuncha. vahan use hansraj ghoDa aur mukhbolta tota dikhai diye. abhi wo soch hi raha tha ki in donon ko kaise hathiyaya jaye ki usi samay danavraj ki putri udhar aa nikli.
danavraj ki putri ne chhote rajakumar ko dekha to bas, dekhti hi rah gai. pratham drishti mein hi chhota rajakumar use bha gaya. usne ye baat tatkal apne pita ko batai.
danavraj ne mama rakshas ko bulaya aur usse chhote rajakumar ke bare mein poochh taachh ki. jab danavraj ko pata chala ki wo mama rakshas ka bhanja hai to usne apni putri ka vivah chhote rajakumar se karne ka nishchay kar liya.
danavraj ne chhote rajakumar ko apne paas bulakar kaha ki wo uski putri se vivah kar le.
‘yah to mere liye saubhagya ki baat hai danavraj! kintu main ek hi shart par vivah karne ko taiyar hoon yadi aap vivah karne par mujhe hansraj ghoDa aunar mukhbolta tota de den. ’ chhote rajakumar ne kaha.
apni putri ke prem ko dhyaan mein rakhte hue danavraj ne chhote rajakumar ki shart maan li. iske baad chhote rajakumar ne apna ghoDa mama rakshas ko uphaar mein de diya aur hansraj ghoDe par apni dulhan sahit savar hokar, apne kandhe par mukhbolte tote ko bithakar apne rajya ki or chal paDa.
raste mein buDhiya ki jhopDi mili. jiske darvaze par do meDhe char rahe the. unhen dekhte hi danavraj ki putri ne bata diya ki ye meDhe vastav mein do rajakumar hain. usi samay buDhiya aa gai. chhote rajakumar ne talvar se buDhiya ki gardan kaat di. buDhiya ki gardan katte hi donon rajakumar apne asli roop mein aa ge. chhote rajakumar ne dekha ki ye to uske baDe aur manjhle bhai hain, wo bahut harshit hua. tinon bhai chhote rajakumar ki patni sahit prasannatapurvak apne mahl mein laut aaye.
hansraj ghoDa aur mukhbolta tota dekhkar raja ke sabhi rog door ho ge aur wo purnatya svasth hokar apne putron ki sahayata se rajakaj dekhne laga.
un dinon jashpur rajya ke ek gaanv mein saat bhai rahte the. unki ek bahan thi. bahan sabse chhoti thi. un bhai bahnon ke mata pita mar chuke the isliye apni chhoti bahan ki dekh bhaal ve saton bhai karte the. ve apni bahan se bahut pyaar karte the. saton bhai pratidin shikar karne jangal chale jate. idhar bahan ghar ke aas paas ugi saag bhaji lakar khana pakati. shaam ko jab saton bhai ghar lautte to ve apni bahan ke hathon bana sada kintu svadisht khana baDe prem se khate.
ek din jab sato bhai shikar se laut kar aane vale the tab bahan ne socha ki jaldi se khana paka loon. bhai ayenge to unhen garm garm khana khilaungi. ye sochkar bahan bhaji lai aur use katne baith gai. bhaji katte katte uska haath phisal gaya jisse uski ungli kat gai aur ungli se khoon bahne laga. khoon bahne se rokne ke liye usne bhaji ka ek patta uthaya aur usi se ungli se bahta khoon ponchh diya. bhaiyon ke aane ka samay ho raha tha. atah wo jaldi jaldi khana pakane lagi. khana pakane ki jaldi mein use dhyaan nahin raha aur usne khoon laga patta bhi bhaji mein milakar paka diya.
bhai ghar aaye to unhen baDi jor ki bhookh lagi thi. ve jaldi se haath pair dhokar khana khane baith ge. bahan ne roti parosi, bhaat parosa aur bhaji parosi. bhaiyon ne khana shuru kiya. aaj unhen bhaji ka svaad aur dinon ki apeksha adhik svadisht laga.
‘aaj to bhaji baDi svadisht bani hai. ’ ek bhai ne kaha.
‘haan, aaj ki bhaji ka to svaad hi nirala hai. ’ dusre bhai ne kaha.
‘aaj bhaji mein kuch aur Dala hai kyaa? aaj ismen baDi mithas lag rahi hai. ’ tisre bhai ne puchha.
shesh bhai bhi bhaji ke svaad ki prshansa karte hue puchhne lage ki aaj bhaji mein kya milaya hai jo iska svaad itna baDhiya hai?
‘bhaiya, mainne to bhaji vaisi hi pakai hai jaisi roz pakati hoon. ’ bahan ne chakit hote hue kaha.
‘nahin, main nahin maan sakta hoon. tu jarur kuch chhipa rahi hai. aaj koi baat avashya hui hai jisse ye bhaji itni svadisht bani hai. ’ sabse baDe bhai ne hath karte hue puchha.
‘kuchh vishesh nahin hua hai. haan, itna avashya hua ki bhaji katte samay meri ungli kat gai thi jise mainne bhaji ke ek patte se ponchh diya tha. mujhe lagta hai ki wo patta dhokhe se mainne bhaji ke saath paka diya hai. ’ bahan ne hichakte hue bataya. use laga ki ye jankar uske bhai us par naraz honge. lekin aisa kuch nahin hua.
bahan ki baat sunkar baDa bhai chup ho gaya. shesh bhai bhi chupchap khana khate rahe.
dusre din saton bhai pratidin ki bhanti jangal ki or chal paDe. jangal mein pahunchakar baDa bhai ek sthaan par ruk gaya. use dekhkar shesh bhai bhi ruk ge.
‘bhaiyon, hamari bahan ke khoon ki kuch bunden bhaji mein mil jane se bhaji ka svaad itna baDh gaya to tanik socho ki bahan ka maans kitna svadisht hoga. mera vichar hai ki kal hum bahan ko ghumane ke bahane apne saath le ayenge aur use yahin markar uska maans paka kar khayenge. ’ baDe bhai ne kaha.
shesh paanch bhaiyon ne baDe bhai ka samarthan kiya lekin sabse chhota bhai chup raha. wo apne bhaiyon ki mansha jankar ghabra gaya wo apni bahan ko bahut prem karta tha kintu baDe bhaiyon ke Dar se virodh nahin kar saka.
dusre din bhaiyon ne bahan se kaha ki wo bhi unke saath chale.
bahna, ‘tum roz ghar mein akeli rah jati ho. tumhein baDa udaas lagta hoga. isliye aaj hamare saath chalo, zara ghumna ho jayega. ’ sabse baDe bhai ne kaha.
‘bahna, ‘jangal to shikar aur shikariyon jagah hai. samhal kar chalna, vahan tumhein donon dekhne ko mil jayenge. ’ sabse chhote bhai ne bahan ko sachet karna chaha.
bahan bholi bhali thi. wo to sapne mein bhi nahin soch sakti thi ki uske apne sage bhai uske praan lena chahte hain. wo chhote bhai ke sanket ko nahin samajh saki aur baDe bhaiyon ka amantran pakar khush ho gai.
saton bhai bahan ko saath lekar jangal mein ja pahunche. vahan ek chauras sthaan par ek mitti ka ek tila bana hua tha.
‘bahan, ‘tum is tile par baith jao. hum khane ke liye kandmul phal lekar aate hain. ’ baDe bhai ne kaha.
bahan tile par chaDhkar baith gai. sato bhai tile se kuch door jhaDiyon mein chhip kar khaDe ho ge. phir sabse pahle sabse baDe bhai ne dhanush par baan chaDhaya aur apni bahan ko marne ke liye nishana sadha. bhagyvash teer nishane se chook gaya aur bahan bach gai. tab dusre bhai ne teer chalaya. wo bhi chook gaya. phir tisre bhai ne teer chalaya. wo bhi chook gaya. phir chauthe bhai ne teer chalaya. uska teer bhi nishane par nahin laga. panchvan bhai bhi asaphal raha. chhathe bhai ko aasha thi ki uska teer to bahan ko maar girayega kintu use bhi nirasha haath lagi. iske baad satven arthat sabse chhote bhai ki bari aai. baDe bhai ne chhote ke hathon dhanush baan thama diya.
‘nahin, ‘main apni bahan par teer nahin chalaunga. ’ chhote bhai ne rote hue kaha.
‘yadi tum teer nahin chalaoge to hum bahan ko marne se pahle tumhein markar tumhara maans kha jayenge. ’ baDe bhaiyon ne chhote bhai ko dhamkaya.
dhamki sunkar chhota bhai Dar gaya. usne bujhe man se dhanush uthaya, us par baan sadha aur is Dhang se baan chhoDa ki wo bahan ko na lage. magar honi ko kaun taal sakta hai? chhote bhai ka teer bahan ke sine mein ja dhansa aur bahan usi kshan girkar mar gai.
ab baDe bhaiyon ne chhote bhai ko adesh diya ki wo aag jalane ke liye lakaDiyon ka gattha le aaye lekin us gatthe ko kisi rassi se na bandhe.
‘yadi tumne gatthe ko kisi rassi ya kapDe ya lata se bandha to hum tumhein maar Dalenge. ’ baDe bhai ne dhamki di.
chhote bhai ne jangal se lakDiyan batori aur ikatthi kar leen. magar ab use samajh mein nahin aa raha tha ki ab wo lakaDiyon ke gatthe ko bina bandhe uthaye kaise?
chhota bhai ye sochkar rone laga ki yadi wo gattha nahin pahunchayega to uske bhai
use maar Dalenge.
jahan chhota bhai ro raha tha vahin ek dhaman sarp rahta tha.
‘kyon bhai, tum is tarah kyon ro rahe ho? kya main tumhari koi madad kar sakta
hoon?’ dhaman sarp ne chhote bhai se puchha.
chhote bhai ne rote rote pura qissa sunaya. kissa sunkar dhaman sarp ko chhote bhai par baDi daya aai.
‘chinta mat karo, ‘main tumhari madad karunga. ’ ye kahkar dhaman sarp ne lakDi ke gatthe ko apni kunDli se lapet liya. chhote bhai ne gattha uthaya aur baDe bhaiyon ke paas ja pahuncha. usne jaise hi lakDi ke gatthe ko zamin par rakha vaise hi dhaman sarp chupke se ek or sarak gaya. baDe bhaiyon ko pata hi nahin chala.
vastutah baDe bhai apne chhote bhai se pichha chhuDana chahte the aur kisi na kisi bahane use bhi maar dena chahte the. isliye baDe bhai ne chhote bhai ko agla adesh diya.
‘jao, is ghaDe mein nadi se pani bhar lao. yadi tum is ghaDe mein pani nahin la sake to hum tumhein maar denge. ’ baDe bhaiyon ne chhote bhai se kaha.
baDe bhaiyon ne chhote bhai ko jo ghaDa diya tha uski tali mein ek chhed tha. chhota ghaDe mein pani bharkar ghaDa uthata ki dusre hi pal ghaDa khali hone lagta. chhote bhai ne ghaDe mein kankaD, mitti Daal kar chhed band karna chaha lekin chhed band nahin hua. ab chhota bhai ghabra gaya ki yadi wo ghaDe mein pani bharkar nahin le ja paya to uske baDe bhai uske praan le lenge. wo Dar ke mare rone laga. uska rona sunkar nadi se ek menDhak nikal aaya.
‘kyon bhaiya, kyon ro rahe ho? kuch kho gaya hai kyaa? ya nadi mein kuch gir gaya hai?’ menDhak ne puchha.
chhote bhai ne rote rote use pura qissa sunaya. qissa sunkar menDhak ko chhote bhai par daya aane lagi.
aisa karo bhaiya, ki tum mujhe utha kar ghaDe ke andar chhed par bitha do. main chhed Dhaank dunga aur tum ghaDe mein pani bharkar pahuncha dena. ’ menDhak ne chhote bhai se kaha.
chhote bhai ne vaisa hi kiya aur pani se bhara ghaDa lekar baDe bhaiyon ke paas ja pahuncha.
ab baDe bhaiyon ne agla adesh diya.
‘jao, ghar se aag lekar aao. aag ko apni hatheli par rakhkar lana, kisi aur cheez par nahin. yadi tum apni hatheli par aag nahin la sake to hum tumhen
markar kha jayenge. ’ baDe bhaiyon ne kaha.
chhota bhai aag lane chal paDa. ghar pahunchakar usne aag uthai aur aag ko apni hatheli par rakhkar jangal ki or chal paDa. jangal mein pravesh karte karte uski hatheli jalne lagi. chhote bhai se piDa sahn nahin hui. aag uski hatheli se niche gir gai. ye dekhkar chhota bhai piDa aur bhay se rone laga. chhote bhai ka rudan sunkar singbonga devta prakat ho ge.
‘kyon beta, tum is prakar kyon ro rahe ho aur ye aag tumne apne haath mein kyon utha rakhi thee?’ singbonga devta ne puchha.
chhote bhai ne rote rote use pura kissa sunaya. qissa sunkar singbonga devta ko chhote bhai par daya aa gai.
‘suno, aisa karo ki tum mera ye ek haath apne haath par rakhkar le jao. mere haath par aag rakh lena. isse tumhara haath bhi nahin jalega aur tumhare bhaiyon ko pata bhi nahin chalega. jab kaam ho jaye to tum mera haath mujhe vapas kar dena. ’ singbonga devta ne kaha.
‘theek hai. apaki baDi kripa. ’ chhote bhai ne singbonga devta ke haath par aag rakhi aur unke haath ko apne haath par rakhkar apne baDe bhaiyon ke paas ja pahuncha.
baDe bhaiyon ne aag se lakDiyan sulgain aur usmen bahan ke maans ko pakane lage. pakne ke baad baDe bhai ne maans ke saat hisse kiye. sabse chhota hissa sabse chhote bhai ko diya. iske baad sabhi baDe bhai baDe chaav se svaad le lekar apni bahan ke maans ko khane lage. magar chhota bhai unki or peeth karke baith gaya. usne apni bahan ke apne hisse ke maans ko chupchap vahin zamin mein gaaD diya aur nadi se lai machhliyan khata hua aisa abhinay karne laga jaise wo bhi maans kha raha ho.
sato bhai kha pi kar ghar laut ge.
kuch din baad baDe bhaiyon ne vivah kar liya lekin chhota bhai avivahit raha. wo ab apne bhaiyon se alag ek jhopDi banakar usmen rahne laga. chhote bhai ke paas ek kenadra (baans ki sarangi) tha. jab use apni bahan ki yaad aati to wo kenadra bajakar apna man bahla liya karta.
jis sthaan par chhote bhai ne apne hisse ka maans gaaD diya tha vahan baans ug aaya. ek din ek bhikhari baans katne aa pahuncha. wo bhikhari baans se bana kenadra baja bajakar bheekh manga karta tha. uska kenadra toot gaya tha aur use naya kenadra banane ke liye baans ki avashyakta thi. wo baans DhunDhta hua jangal mein aaya tabhi use baans ka wo peD dikh gaya. bhikhari ne baans katne ke liye jaise hi kulhaDi chalai vaise hi baans ne marmik svar mein kaha—
‘na kaat, na kaat, buDha
ih to bhai ka ropal baans hau. . . ’
ye sunkar bhikhari Dar gaya aur baans kate bina ghar laut gaya. use khali bharat ke haath aaya dekhkar bhikhari ki patni bahut naraz hui. patni ne bhikhari ko phir dusre din baans katne ko bheja.
bhikhari ne jaise hi kulhaDi ka vaar baans par karna chaha vaise hi baans bol uthaa—
‘na kaat, na kaat, buDha
ih to bhai ka ropal baans hau. . . ’
is par bhikhari ne baans se kaha ki yadi wo baans nahin katega to wo kenadra nahin bana sakega. yadi wo kenadra nahin bana saka to wo bina kenadra bajaye bheekh nahin maang sakega. yadi wo bheekh nahin maang saka to uska parivar bhukhon mar jayega.
bhikhari ki baat sunkar baans chup ho gaya. bhikhari ne baans kata aur apne ghar le aaya. ghar par usne baans se ek kenadra banaya. iske baad bhikhari kenadra bajate
hue bheekh mangne nikal paDa.
bhikhari gaanv mein ghumte ghumte jaise hi sabse baDe bhai ke ghar ke darvaze par pahuncha vaise hi kenadra se svar nikla—
‘na baaj re, na baaj re, kenadra
ih to dushman ker ghar hai re, kenadra. . . ’
ye sunkar bhikhari ghabra gaya aur wo vahan se aage baDhkar dusre bhai ke darvaze par ja khaDa hua. kenadra se phir vahi svar nikla—
‘na baaj re, na baaj re, kenadra
ih to dushman ker ghar hai re, kenadra. . . ’
bhikhar ne vahan se bhi aage baDh lene mein apni bhalai samjhi aur wo tisre bhai
ke darvaze par ja khaDa hua. kenadra ne phir vahi panktiyan dohrain—
‘na baaj re, na baaj re, kenadra
ih to dushman ker ghar hai re, kenadra. . . ’
isi tarah bhikhari ek ek karke chhahon bhaiyon ke ghar ke darvaze par pahuncha aur kenadra usse yahi kahta raha ki—
‘na baaj re, na baaj re, kenadra
ih to dushman ker ghar hai re, kenadra. . . ’
ant mein bhikhari sabse chhote bhai ke ghar ke darvaze par pahuncha. bhikhari jaise hi sabse chhote bhai ke ghar ke darvaze ke samne jakar khaDa hua vaise hi kenadra se prasannata bhara svar phuta—
‘baaj re, baaj re, kenadra
ih to bhaiya ker ghar re, kenadra. . . ’
chhote bhai ne kenadra ka svar suna to wo chakit rah gaya. usne bhikhari se kaha ki wo uske kenadra se apna kenadra badal le. badle mein chhota bhai use paise
bhi dega. bhikhari maan gaya.
jab chhota bhai kaam par jata to bahan kenadra se nikalti aur bhai ke liye achchhe achchhe pakvan banakar rakh deti. chhota bhai jab ghar lautta to use ye dekhkar
baDa achambha hota ki uske liye pakvan banakar kaun rakh deta hai?
ek din chhote bhai ne pakvan banane vale ka pata lagane ka nishchay kiya aur ghar se jane ka bahana karke ghar mein hi chhip kar baith gaya. bahan ne socha ki bhai chala gaya hai. wo kenadra se nikli aur pakvan banane lagi. ye dekhkar chhota bhai bahut khush hua. pakvan banakar wo jaise hi kenadra mein ghusne lagi vaise hi chhote bhai ne lapak kar uska haath pakaD liya. bahan bhai donon paraspar gale milkar rone lage. ro ro kar jab man halka ho gaya to donon ne ek dusre ko apna dukh sukh sunaya. chhote bhai ne apni vivashta ka haal bataya ki kis prakar use baDe bhaiyon ke kahne par us par teer chalana paDa. bahan ne suna to bhai ko gale lagakar boli ki wo janti hai ki ismen chhote bhai ka koi dosh nahin hai. iske baad bahan bhai khushi khushi rahne lage.
ek din chhote bhai ne bahan ke kahne par apne baDe bhaiyon ko bhojan par bulaya. baDe bhai prasannatapurvak chhote bhai ke ghar pahunche. ab tak baDe bhaiyon ko ye pata nahin tha ki unki bahan jivit ho gai hai. bahan samne nahin aai. chhote bhai ne baDe bhaiyon ke liye tarah tarah ke pakvan paros diye. baDe bhai chatkhare lete hue, pakvanon ki prshansa karte hue khane lage.
‘ye pakvan to bahut svadisht hain. hamne itne svadisht pakvan aaj tak kabhi nahin khaye. ’ sabse baDe bhai ne kaha.
shesh bhaiyon ne uske kathan ka samarthan kiya.
usi samay bahan samne aa gai.
‘bhaiyon, aaj aap log jin pakvanon ki prshansa kar rahe hain unhen mainne banaya hai aur inmen na to mera khoon mila hai aur na mera maans mila hai phir bhi aap logon ko ye atyant svadisht lag rahe hain. ’ bahan ne baDe bhaiyon se kaha.
baDe bhaiyon ne apni bahan ko jivit dekha to sakte mein aa ge aur uski baat sunkar unhen apni bhool ka ahsas hua. ve lajjit anubhav karte hue dharti maan se pararthna karne lage ki unhonne itna gambhir apradh kiya hai ki ab ve kisi ko munh dikhane yogya nahin hain atah dharti maan unhen apne bhitar sharan de den.
jaise hi baDe bhaiyon ko apne kritya par pashchatap hua vaise hi dharti phat gai aur usmen chhahon baDe bhai sama ge. bahan ne baDe bhaiyon ko dharti mein samane se rokne ka prayas kiya. wo unhen pakDe ko lapki. kintu baDe bhaiyon ke sir ke baal hi uske haath aaye. bahan ne bhaiyon ke sir ke balon ko maidan mein bikhra diya. ve baal dekhte hi dekhte sabai ghaas ke roop mein ug aaye. birhor aaj bhi sabai ghaas se dainik upyog ki tarah tarah ki vastuen banate hain.
kisi desh mein ek raja rahta tha. uski teen raniyan theen aur tinon raniyon se ek ek rajakumar the. ek baar raja ne svapn mein hans ke saman sundar shvet rang ka ghoDa dekha. wo hansraj ghoDa tha. usi ke saath raja ko ek vichitr tota dikhai paDa jo manushya ki boli mein bol raha tha jiska naam tha mukhbolta tota. neend se jagne par raja ko laga ki wo hansraj ghoDa aur mukhbolta tota use milna chahiye. raja ne DhinDhora pitva diya ki jo koi bhi hansraj ghoDa aur mukhbolta tota lekar ayega use iinam mein aadha rajya de diya jayega. aadha rajya pane ki lalach mein anek vyakti aage aaye. unhonne hansraj ghoDa aur mukhbolta tota DhunDhane ka bahut prayas kiya lekin ve saphal nahin ho sake.
raja ne dekha ki koi bhi uski ichchha puri nahin kar pa raha hai to dukh ke karan uska svasthya bigaD gaya. din pratidin uska svasthya girne laga. ye dekhkar rajakumaron ko chinta hui. sabse pahle baDe rajakumar ne hansraj ghoDa aur mukhbolta tota DhunDhane jane ka nishchay kiya.
baDa rajakumar apne shvet shyaam ghoDe par savar hokar jangal ki or nikal paDa. chalte chalte wo ghane jangal mein pahunch gaya. tab tak use zor ki bhookh lag aai thi. usne aas paas dekha lekin khane yogya kuch bhi na dikha. usi samay vahan ek buDhiya dikhai di. rajakumar ne usse puchha ki yahan khane ko kuch mil sakta hai kyaa?
‘is ghane jangal mein kya milega? tum meri jhopDi mein chalo, main tumhein dahi chiuDa khilaungi. ’ buDhiya ne kaha.
rajakumar buDhiya ke saath uski jhopDi mein ja pahuncha. buDhiya ne dahi mein chiuDa Dala aur rajakumar ko khane ko diya. dahi bahut mithi thi aur chiuDa bhi svadisht tha. aisa svadisht dahi chiuDa rajakumar ne kabhi nahin khaya tha. dahi chiuDa khakar jab rajakumar buDhiya se vida lekar jane ko hua to buDhiya ne uske ghoDe ki lagam pakaD li.
‘ja kahan rahe ho, ye to bataya nahin. ’ buDhiya ne kaha.
‘main hansraj ghoDa aur mukhbolta tota lene ja raha hoon. ’ rajakumar ne bataya.
‘tum mat jao. ye kaam tumhare vash ka nahin hai. tum rakshas ke hathon mare jaoge ya dum daba kar bhaag aoge. ’ buDhiya ne rajakumar se kaha.
‘na to main mara jaunga aur na hi dum dabakar bhagunga. main rakshas ko markar aage baDh jaunga. ’ rajakumar ne kaha.
‘tum aisa nahin kar paoge. ’ buDhiya ne kaha.
‘main aisa hi karunga. ’ rajakumar bola.
‘to lagi shart?’ buDhiya boli.
‘haan, lagi shart!’ rajakumar bola.
‘yadi main hari to main jivan bhar tumhari dasi bankar rahungi lekin yadi tum hare tumhein jivan bhar mera daas bankar rahna hoga. ’ buDhiya ne kaha.
‘mujhe svikar hai. ’ rajakumar ne buDhiya ki shart maan li aur apna ghoDa dauData hua chal paDa.
kuch door jane par use ek rakshas mila.
‘main bhukha hoon! main tumhein kha jaunga!’ rakshas ne garajte hue kaha rajakumar ne rakshas ko dekha to uski bhayanak akriti dekhkar hi wo Dar gaya aur ghoDa moDkar apni jaan bachakar bhaag khaDa hua. rajakumar bhagkar buDhiya ke paas pahuncha.
‘kyon shart haar ge?’ buDhiya ne muskurate hue kaha. iske baad usne rajakumar ko apna daas bana liya.
jab kai din ho ge aur baDe rajakumar ki koi suchana nahin mili to shesh donon rajakumaron ko chinta hui. ab manjhle rajakumar ne hansraj ghoDa aur mukhbolta tota lane aur baDe rajakumar ko DhunDhane jane ka nishchay kiya. wo apne bhure rang ke ghoDe par savar hokar nikal paDa.
manjhle rajakumar ke saath bhi vahi hua. use vahi buDhiya mili. usne manjhle rajakumar ko dahi chiuDa khilaya. shart lagai aur manjhla rajakumar bhi shart haar kar uska daas ban gaya.
kai saptah vyatit ho jane par bhi baDe tatha manjhle rajakumar ki koi suchana na milne par sabse chhote rajakumar ne hansraj ghoDa aur mukhbolta tota lane aur apne donon bhaiyon ko DhunDhane jane ka nishchay kiya. wo apne kale rang ke ghoDe par savar hokar nikal paDa. chalne se pahle usne apni maan se dahi chiuDa bandhvaya jo raste mein khane ke kaam aata aur ghoDe ke liye thoDa sa chara bandhva liya. iske baad wo bhala, barchhi, dhanush baan, talvar aur koDa lekar nikal paDa.
ghane jangal mein pahunchne par chhote rajakumar ko bhookh lagi. usne dahi chiuDa ki hanDi nikali aur khane laga. itne mein buDhiya aa gai. usne dekha ki chhota rajakumar apne saath laya dahi chiuDa kha raha hai. atah usne dusra bahana kiya aur chhote rajakumar se boli, ‘beta, main buDhi thak gai hoon. bhatak gai hoon. mujhe apne ghoDe par bitha kar meri jhopDi tak mujhe pahuncha do. ’
rajakumar ko buDhi par daya aa gai. usne buDhiya ko ghoDe par bithaya aur uski jhopDi tak pahuncha diya. buDhiya chhote rajakumar ko dekhkar hi samajh gai thi ki pahle vale rajakumar isi ke bhai hain atah usne jadu ke bal se donon rajakumaron ko meDhe mein badal diya tha jisse chhota rajakumar unhen pahchan na sake.
chhota rajakumar buDhiya ko pahunchakar aage baDhne ko hua to buDhiya ne lapakkar uske gheDe ki lagam pakaD li.
‘tumne ye to bataya nahin ki tum kahan ja rahe ho?’ buDhiya boli.
chhote rajakumar ko laga ki abhi kuch der pahle to ye buDhiya thakan ke mare mari ja rahi thi aur ab iske paas itni himmat kahan se aa gai ki isne mere ghoDe ki lagam pakaD kar mere ghoDe ko rok rakha hai. chhote rajakumar ne buDhiya par sata sat koDe barsaye to buDhiya ne ghoDe ki lagam chhoD di. chhota rajakumar ghoDa dauData hua chal diya.
kuch door jane par use ek rakshas mila.
‘main ‘bhukha hoon. main tumhein kha jaunga. ’ rakshas ne kaha.
‘are nana, ye kya kah rahe ho? jo tum mujhe khaoge to tumhari beti tumse naraz ho jayegi. ’ chhote rajakumar ne Dare bina rakshas se kaha.
rakshas ne socha ki ye laDka theek kahta hai. bhale hi ye manushya hai lekin hai to meri beti ka putr yani mera nati. ab main apne nati ko kaise khaun?
chhote ‘nana tumhein bhookh lagi hai to main tumhare liye hiran maar deta hoon, tum use kha lo. ’ rajakumar ne kaha aur ek hiran markar rakshas ko de diya. rakshas hiran pakar bahut prasann hua.
‘nati, tum kahan ja rahe ho?’ rakshas ne puchha.
‘nana ji, main hansraj ghoDa aur mukhbolta tota lane ja raha hoon. ’ chhote rajakumar ne bataya.
‘yah to bahut kathin kaam hai. ’ rakshas ne kaha.
‘lekin main to unhen pakar rahunga. ’ chhote rajakumar ne atmavishvas ke saath kaha.
aisa hai to theek hai, main tumhein tumhare mama ke paas bhejta hoon. use ye hira de dena to wo samajh jayega ki mainne tumhein bheja hai aur tum uske bhanje ho. ’ rakshas ne ek hira dete hue chhote rajakumar se kaha.
chhote rajakumar ne hira liya aur dusre rakshas ke paas chal paDa. dusra rakshas javan tha. usne jaise hi chhote rajakumar ko dekha vaise hi use khane ko lapka.
‘are are, mama! ye kya kar rahe ho? apne bhanje ko khaoge kyaa?’ chhote rajakumar ne kaha aur hira nikal kar us javan rakshas ko de diya.
javan rakshas hira dekhkar bahut prasann hua. wo pahli baar apne bhanje se mil raha tha. usne chhote rajakumar se uske aane ka uddeshya puchha. chhote rajakumar ne bataya ki use hansraj ghoDa aur mukhbolta tota le jana hai. jise pane mein use chhote rajakumar ki madad karni hogi.
‘ye donon to mere danavraj ke paas hain jinke yahan main kaam karta hoon. ye donon tumhein nahin mil sakenge. ’ mama rakshas ne kaha.
‘theek hai, main unhen ek baar dekh to sakta hoon?’ chhote rajakumar ne puchha.
‘haan, main ek baar tumhein dikha dunga. ’ mama rakshas maan gaya.
chhota rajakumar mama rakshas ke saath danavraj ke mahl pahuncha. vahan use hansraj ghoDa aur mukhbolta tota dikhai diye. abhi wo soch hi raha tha ki in donon ko kaise hathiyaya jaye ki usi samay danavraj ki putri udhar aa nikli.
danavraj ki putri ne chhote rajakumar ko dekha to bas, dekhti hi rah gai. pratham drishti mein hi chhota rajakumar use bha gaya. usne ye baat tatkal apne pita ko batai.
danavraj ne mama rakshas ko bulaya aur usse chhote rajakumar ke bare mein poochh taachh ki. jab danavraj ko pata chala ki wo mama rakshas ka bhanja hai to usne apni putri ka vivah chhote rajakumar se karne ka nishchay kar liya.
danavraj ne chhote rajakumar ko apne paas bulakar kaha ki wo uski putri se vivah kar le.
‘yah to mere liye saubhagya ki baat hai danavraj! kintu main ek hi shart par vivah karne ko taiyar hoon yadi aap vivah karne par mujhe hansraj ghoDa aunar mukhbolta tota de den. ’ chhote rajakumar ne kaha.
apni putri ke prem ko dhyaan mein rakhte hue danavraj ne chhote rajakumar ki shart maan li. iske baad chhote rajakumar ne apna ghoDa mama rakshas ko uphaar mein de diya aur hansraj ghoDe par apni dulhan sahit savar hokar, apne kandhe par mukhbolte tote ko bithakar apne rajya ki or chal paDa.
raste mein buDhiya ki jhopDi mili. jiske darvaze par do meDhe char rahe the. unhen dekhte hi danavraj ki putri ne bata diya ki ye meDhe vastav mein do rajakumar hain. usi samay buDhiya aa gai. chhote rajakumar ne talvar se buDhiya ki gardan kaat di. buDhiya ki gardan katte hi donon rajakumar apne asli roop mein aa ge. chhote rajakumar ne dekha ki ye to uske baDe aur manjhle bhai hain, wo bahut harshit hua. tinon bhai chhote rajakumar ki patni sahit prasannatapurvak apne mahl mein laut aaye.
hansraj ghoDa aur mukhbolta tota dekhkar raja ke sabhi rog door ho ge aur wo purnatya svasth hokar apne putron ki sahayata se rajakaj dekhne laga.
un dinon jashpur rajya ke ek gaanv mein saat bhai rahte the. unki ek bahan thi. bahan sabse chhoti thi. un bhai bahnon ke mata pita mar chuke the isliye apni chhoti bahan ki dekh bhaal ve saton bhai karte the. ve apni bahan se bahut pyaar karte the. saton bhai pratidin shikar karne jangal chale jate. idhar bahan ghar ke aas paas ugi saag bhaji lakar khana pakati. shaam ko jab saton bhai ghar lautte to ve apni bahan ke hathon bana sada kintu svadisht khana baDe prem se khate.
ek din jab sato bhai shikar se laut kar aane vale the tab bahan ne socha ki jaldi se khana paka loon. bhai ayenge to unhen garm garm khana khilaungi. ye sochkar bahan bhaji lai aur use katne baith gai. bhaji katte katte uska haath phisal gaya jisse uski ungli kat gai aur ungli se khoon bahne laga. khoon bahne se rokne ke liye usne bhaji ka ek patta uthaya aur usi se ungli se bahta khoon ponchh diya. bhaiyon ke aane ka samay ho raha tha. atah wo jaldi jaldi khana pakane lagi. khana pakane ki jaldi mein use dhyaan nahin raha aur usne khoon laga patta bhi bhaji mein milakar paka diya.
bhai ghar aaye to unhen baDi jor ki bhookh lagi thi. ve jaldi se haath pair dhokar khana khane baith ge. bahan ne roti parosi, bhaat parosa aur bhaji parosi. bhaiyon ne khana shuru kiya. aaj unhen bhaji ka svaad aur dinon ki apeksha adhik svadisht laga.
‘aaj to bhaji baDi svadisht bani hai. ’ ek bhai ne kaha.
‘haan, aaj ki bhaji ka to svaad hi nirala hai. ’ dusre bhai ne kaha.
‘aaj bhaji mein kuch aur Dala hai kyaa? aaj ismen baDi mithas lag rahi hai. ’ tisre bhai ne puchha.
shesh bhai bhi bhaji ke svaad ki prshansa karte hue puchhne lage ki aaj bhaji mein kya milaya hai jo iska svaad itna baDhiya hai?
‘bhaiya, mainne to bhaji vaisi hi pakai hai jaisi roz pakati hoon. ’ bahan ne chakit hote hue kaha.
‘nahin, main nahin maan sakta hoon. tu jarur kuch chhipa rahi hai. aaj koi baat avashya hui hai jisse ye bhaji itni svadisht bani hai. ’ sabse baDe bhai ne hath karte hue puchha.
‘kuchh vishesh nahin hua hai. haan, itna avashya hua ki bhaji katte samay meri ungli kat gai thi jise mainne bhaji ke ek patte se ponchh diya tha. mujhe lagta hai ki wo patta dhokhe se mainne bhaji ke saath paka diya hai. ’ bahan ne hichakte hue bataya. use laga ki ye jankar uske bhai us par naraz honge. lekin aisa kuch nahin hua.
bahan ki baat sunkar baDa bhai chup ho gaya. shesh bhai bhi chupchap khana khate rahe.
dusre din saton bhai pratidin ki bhanti jangal ki or chal paDe. jangal mein pahunchakar baDa bhai ek sthaan par ruk gaya. use dekhkar shesh bhai bhi ruk ge.
‘bhaiyon, hamari bahan ke khoon ki kuch bunden bhaji mein mil jane se bhaji ka svaad itna baDh gaya to tanik socho ki bahan ka maans kitna svadisht hoga. mera vichar hai ki kal hum bahan ko ghumane ke bahane apne saath le ayenge aur use yahin markar uska maans paka kar khayenge. ’ baDe bhai ne kaha.
shesh paanch bhaiyon ne baDe bhai ka samarthan kiya lekin sabse chhota bhai chup raha. wo apne bhaiyon ki mansha jankar ghabra gaya wo apni bahan ko bahut prem karta tha kintu baDe bhaiyon ke Dar se virodh nahin kar saka.
dusre din bhaiyon ne bahan se kaha ki wo bhi unke saath chale.
bahna, ‘tum roz ghar mein akeli rah jati ho. tumhein baDa udaas lagta hoga. isliye aaj hamare saath chalo, zara ghumna ho jayega. ’ sabse baDe bhai ne kaha.
‘bahna, ‘jangal to shikar aur shikariyon jagah hai. samhal kar chalna, vahan tumhein donon dekhne ko mil jayenge. ’ sabse chhote bhai ne bahan ko sachet karna chaha.
bahan bholi bhali thi. wo to sapne mein bhi nahin soch sakti thi ki uske apne sage bhai uske praan lena chahte hain. wo chhote bhai ke sanket ko nahin samajh saki aur baDe bhaiyon ka amantran pakar khush ho gai.
saton bhai bahan ko saath lekar jangal mein ja pahunche. vahan ek chauras sthaan par ek mitti ka ek tila bana hua tha.
‘bahan, ‘tum is tile par baith jao. hum khane ke liye kandmul phal lekar aate hain. ’ baDe bhai ne kaha.
bahan tile par chaDhkar baith gai. sato bhai tile se kuch door jhaDiyon mein chhip kar khaDe ho ge. phir sabse pahle sabse baDe bhai ne dhanush par baan chaDhaya aur apni bahan ko marne ke liye nishana sadha. bhagyvash teer nishane se chook gaya aur bahan bach gai. tab dusre bhai ne teer chalaya. wo bhi chook gaya. phir tisre bhai ne teer chalaya. wo bhi chook gaya. phir chauthe bhai ne teer chalaya. uska teer bhi nishane par nahin laga. panchvan bhai bhi asaphal raha. chhathe bhai ko aasha thi ki uska teer to bahan ko maar girayega kintu use bhi nirasha haath lagi. iske baad satven arthat sabse chhote bhai ki bari aai. baDe bhai ne chhote ke hathon dhanush baan thama diya.
‘nahin, ‘main apni bahan par teer nahin chalaunga. ’ chhote bhai ne rote hue kaha.
‘yadi tum teer nahin chalaoge to hum bahan ko marne se pahle tumhein markar tumhara maans kha jayenge. ’ baDe bhaiyon ne chhote bhai ko dhamkaya.
dhamki sunkar chhota bhai Dar gaya. usne bujhe man se dhanush uthaya, us par baan sadha aur is Dhang se baan chhoDa ki wo bahan ko na lage. magar honi ko kaun taal sakta hai? chhote bhai ka teer bahan ke sine mein ja dhansa aur bahan usi kshan girkar mar gai.
ab baDe bhaiyon ne chhote bhai ko adesh diya ki wo aag jalane ke liye lakaDiyon ka gattha le aaye lekin us gatthe ko kisi rassi se na bandhe.
‘yadi tumne gatthe ko kisi rassi ya kapDe ya lata se bandha to hum tumhein maar Dalenge. ’ baDe bhai ne dhamki di.
chhote bhai ne jangal se lakDiyan batori aur ikatthi kar leen. magar ab use samajh mein nahin aa raha tha ki ab wo lakaDiyon ke gatthe ko bina bandhe uthaye kaise?
chhota bhai ye sochkar rone laga ki yadi wo gattha nahin pahunchayega to uske bhai
use maar Dalenge.
jahan chhota bhai ro raha tha vahin ek dhaman sarp rahta tha.
‘kyon bhai, tum is tarah kyon ro rahe ho? kya main tumhari koi madad kar sakta
hoon?’ dhaman sarp ne chhote bhai se puchha.
chhote bhai ne rote rote pura qissa sunaya. kissa sunkar dhaman sarp ko chhote bhai par baDi daya aai.
‘chinta mat karo, ‘main tumhari madad karunga. ’ ye kahkar dhaman sarp ne lakDi ke gatthe ko apni kunDli se lapet liya. chhote bhai ne gattha uthaya aur baDe bhaiyon ke paas ja pahuncha. usne jaise hi lakDi ke gatthe ko zamin par rakha vaise hi dhaman sarp chupke se ek or sarak gaya. baDe bhaiyon ko pata hi nahin chala.
vastutah baDe bhai apne chhote bhai se pichha chhuDana chahte the aur kisi na kisi bahane use bhi maar dena chahte the. isliye baDe bhai ne chhote bhai ko agla adesh diya.
‘jao, is ghaDe mein nadi se pani bhar lao. yadi tum is ghaDe mein pani nahin la sake to hum tumhein maar denge. ’ baDe bhaiyon ne chhote bhai se kaha.
baDe bhaiyon ne chhote bhai ko jo ghaDa diya tha uski tali mein ek chhed tha. chhota ghaDe mein pani bharkar ghaDa uthata ki dusre hi pal ghaDa khali hone lagta. chhote bhai ne ghaDe mein kankaD, mitti Daal kar chhed band karna chaha lekin chhed band nahin hua. ab chhota bhai ghabra gaya ki yadi wo ghaDe mein pani bharkar nahin le ja paya to uske baDe bhai uske praan le lenge. wo Dar ke mare rone laga. uska rona sunkar nadi se ek menDhak nikal aaya.
‘kyon bhaiya, kyon ro rahe ho? kuch kho gaya hai kyaa? ya nadi mein kuch gir gaya hai?’ menDhak ne puchha.
chhote bhai ne rote rote use pura qissa sunaya. qissa sunkar menDhak ko chhote bhai par daya aane lagi.
aisa karo bhaiya, ki tum mujhe utha kar ghaDe ke andar chhed par bitha do. main chhed Dhaank dunga aur tum ghaDe mein pani bharkar pahuncha dena. ’ menDhak ne chhote bhai se kaha.
chhote bhai ne vaisa hi kiya aur pani se bhara ghaDa lekar baDe bhaiyon ke paas ja pahuncha.
ab baDe bhaiyon ne agla adesh diya.
‘jao, ghar se aag lekar aao. aag ko apni hatheli par rakhkar lana, kisi aur cheez par nahin. yadi tum apni hatheli par aag nahin la sake to hum tumhen
markar kha jayenge. ’ baDe bhaiyon ne kaha.
chhota bhai aag lane chal paDa. ghar pahunchakar usne aag uthai aur aag ko apni hatheli par rakhkar jangal ki or chal paDa. jangal mein pravesh karte karte uski hatheli jalne lagi. chhote bhai se piDa sahn nahin hui. aag uski hatheli se niche gir gai. ye dekhkar chhota bhai piDa aur bhay se rone laga. chhote bhai ka rudan sunkar singbonga devta prakat ho ge.
‘kyon beta, tum is prakar kyon ro rahe ho aur ye aag tumne apne haath mein kyon utha rakhi thee?’ singbonga devta ne puchha.
chhote bhai ne rote rote use pura kissa sunaya. qissa sunkar singbonga devta ko chhote bhai par daya aa gai.
‘suno, aisa karo ki tum mera ye ek haath apne haath par rakhkar le jao. mere haath par aag rakh lena. isse tumhara haath bhi nahin jalega aur tumhare bhaiyon ko pata bhi nahin chalega. jab kaam ho jaye to tum mera haath mujhe vapas kar dena. ’ singbonga devta ne kaha.
‘theek hai. apaki baDi kripa. ’ chhote bhai ne singbonga devta ke haath par aag rakhi aur unke haath ko apne haath par rakhkar apne baDe bhaiyon ke paas ja pahuncha.
baDe bhaiyon ne aag se lakDiyan sulgain aur usmen bahan ke maans ko pakane lage. pakne ke baad baDe bhai ne maans ke saat hisse kiye. sabse chhota hissa sabse chhote bhai ko diya. iske baad sabhi baDe bhai baDe chaav se svaad le lekar apni bahan ke maans ko khane lage. magar chhota bhai unki or peeth karke baith gaya. usne apni bahan ke apne hisse ke maans ko chupchap vahin zamin mein gaaD diya aur nadi se lai machhliyan khata hua aisa abhinay karne laga jaise wo bhi maans kha raha ho.
sato bhai kha pi kar ghar laut ge.
kuch din baad baDe bhaiyon ne vivah kar liya lekin chhota bhai avivahit raha. wo ab apne bhaiyon se alag ek jhopDi banakar usmen rahne laga. chhote bhai ke paas ek kenadra (baans ki sarangi) tha. jab use apni bahan ki yaad aati to wo kenadra bajakar apna man bahla liya karta.
jis sthaan par chhote bhai ne apne hisse ka maans gaaD diya tha vahan baans ug aaya. ek din ek bhikhari baans katne aa pahuncha. wo bhikhari baans se bana kenadra baja bajakar bheekh manga karta tha. uska kenadra toot gaya tha aur use naya kenadra banane ke liye baans ki avashyakta thi. wo baans DhunDhta hua jangal mein aaya tabhi use baans ka wo peD dikh gaya. bhikhari ne baans katne ke liye jaise hi kulhaDi chalai vaise hi baans ne marmik svar mein kaha—
‘na kaat, na kaat, buDha
ih to bhai ka ropal baans hau. . . ’
ye sunkar bhikhari Dar gaya aur baans kate bina ghar laut gaya. use khali bharat ke haath aaya dekhkar bhikhari ki patni bahut naraz hui. patni ne bhikhari ko phir dusre din baans katne ko bheja.
bhikhari ne jaise hi kulhaDi ka vaar baans par karna chaha vaise hi baans bol uthaa—
‘na kaat, na kaat, buDha
ih to bhai ka ropal baans hau. . . ’
is par bhikhari ne baans se kaha ki yadi wo baans nahin katega to wo kenadra nahin bana sakega. yadi wo kenadra nahin bana saka to wo bina kenadra bajaye bheekh nahin maang sakega. yadi wo bheekh nahin maang saka to uska parivar bhukhon mar jayega.
bhikhari ki baat sunkar baans chup ho gaya. bhikhari ne baans kata aur apne ghar le aaya. ghar par usne baans se ek kenadra banaya. iske baad bhikhari kenadra bajate
hue bheekh mangne nikal paDa.
bhikhari gaanv mein ghumte ghumte jaise hi sabse baDe bhai ke ghar ke darvaze par pahuncha vaise hi kenadra se svar nikla—
‘na baaj re, na baaj re, kenadra
ih to dushman ker ghar hai re, kenadra. . . ’
ye sunkar bhikhari ghabra gaya aur wo vahan se aage baDhkar dusre bhai ke darvaze par ja khaDa hua. kenadra se phir vahi svar nikla—
‘na baaj re, na baaj re, kenadra
ih to dushman ker ghar hai re, kenadra. . . ’
bhikhar ne vahan se bhi aage baDh lene mein apni bhalai samjhi aur wo tisre bhai
ke darvaze par ja khaDa hua. kenadra ne phir vahi panktiyan dohrain—
‘na baaj re, na baaj re, kenadra
ih to dushman ker ghar hai re, kenadra. . . ’
isi tarah bhikhari ek ek karke chhahon bhaiyon ke ghar ke darvaze par pahuncha aur kenadra usse yahi kahta raha ki—
‘na baaj re, na baaj re, kenadra
ih to dushman ker ghar hai re, kenadra. . . ’
ant mein bhikhari sabse chhote bhai ke ghar ke darvaze par pahuncha. bhikhari jaise hi sabse chhote bhai ke ghar ke darvaze ke samne jakar khaDa hua vaise hi kenadra se prasannata bhara svar phuta—
‘baaj re, baaj re, kenadra
ih to bhaiya ker ghar re, kenadra. . . ’
chhote bhai ne kenadra ka svar suna to wo chakit rah gaya. usne bhikhari se kaha ki wo uske kenadra se apna kenadra badal le. badle mein chhota bhai use paise
bhi dega. bhikhari maan gaya.
jab chhota bhai kaam par jata to bahan kenadra se nikalti aur bhai ke liye achchhe achchhe pakvan banakar rakh deti. chhota bhai jab ghar lautta to use ye dekhkar
baDa achambha hota ki uske liye pakvan banakar kaun rakh deta hai?
ek din chhote bhai ne pakvan banane vale ka pata lagane ka nishchay kiya aur ghar se jane ka bahana karke ghar mein hi chhip kar baith gaya. bahan ne socha ki bhai chala gaya hai. wo kenadra se nikli aur pakvan banane lagi. ye dekhkar chhota bhai bahut khush hua. pakvan banakar wo jaise hi kenadra mein ghusne lagi vaise hi chhote bhai ne lapak kar uska haath pakaD liya. bahan bhai donon paraspar gale milkar rone lage. ro ro kar jab man halka ho gaya to donon ne ek dusre ko apna dukh sukh sunaya. chhote bhai ne apni vivashta ka haal bataya ki kis prakar use baDe bhaiyon ke kahne par us par teer chalana paDa. bahan ne suna to bhai ko gale lagakar boli ki wo janti hai ki ismen chhote bhai ka koi dosh nahin hai. iske baad bahan bhai khushi khushi rahne lage.
ek din chhote bhai ne bahan ke kahne par apne baDe bhaiyon ko bhojan par bulaya. baDe bhai prasannatapurvak chhote bhai ke ghar pahunche. ab tak baDe bhaiyon ko ye pata nahin tha ki unki bahan jivit ho gai hai. bahan samne nahin aai. chhote bhai ne baDe bhaiyon ke liye tarah tarah ke pakvan paros diye. baDe bhai chatkhare lete hue, pakvanon ki prshansa karte hue khane lage.
‘ye pakvan to bahut svadisht hain. hamne itne svadisht pakvan aaj tak kabhi nahin khaye. ’ sabse baDe bhai ne kaha.
shesh bhaiyon ne uske kathan ka samarthan kiya.
usi samay bahan samne aa gai.
‘bhaiyon, aaj aap log jin pakvanon ki prshansa kar rahe hain unhen mainne banaya hai aur inmen na to mera khoon mila hai aur na mera maans mila hai phir bhi aap logon ko ye atyant svadisht lag rahe hain. ’ bahan ne baDe bhaiyon se kaha.
baDe bhaiyon ne apni bahan ko jivit dekha to sakte mein aa ge aur uski baat sunkar unhen apni bhool ka ahsas hua. ve lajjit anubhav karte hue dharti maan se pararthna karne lage ki unhonne itna gambhir apradh kiya hai ki ab ve kisi ko munh dikhane yogya nahin hain atah dharti maan unhen apne bhitar sharan de den.
jaise hi baDe bhaiyon ko apne kritya par pashchatap hua vaise hi dharti phat gai aur usmen chhahon baDe bhai sama ge. bahan ne baDe bhaiyon ko dharti mein samane se rokne ka prayas kiya. wo unhen pakDe ko lapki. kintu baDe bhaiyon ke sir ke baal hi uske haath aaye. bahan ne bhaiyon ke sir ke balon ko maidan mein bikhra diya. ve baal dekhte hi dekhte sabai ghaas ke roop mein ug aaye. birhor aaj bhi sabai ghaas se dainik upyog ki tarah tarah ki vastuen banate hain.
स्रोत :
पुस्तक : भारत के आदिवासी क्षेत्रों की लोककथाएं (पृष्ठ 19)
हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी
‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।