धुरवा प्रदेश में एक गाँव था मारेंगा। वहाँ दो भाई रहते थे। बड़े भाई का नाम था भाग और छोटे भाई का नाम था आयतू। दोनों भाई हिल-मिलकर रहते थे। दोनों साथ-साथ एक ही खेत में धान बोया करते थे। जब धान पकता तो दोनों भाई साथ-साथ खेत जाते और धान काट कर ले आते। भादू का विवाह हो चुका था जबकि आयतू अविवाहित था।
एक बार भाटू और आयतू ने अपने खेत में धान बोया। जब धान की फसल पकने का समय आया तो खेत में रहकर फसल की पहरेदारी करना आवश्यक हो गया। मगर उन्हीं दिनों भादू का स्वास्थ्य बिगड़ गया। आयतू ने भादू को घर पर रहकर आराम करने की सलाह दी और स्वयं खेत की रखवाली करने चला गया।
आयतू दिन-रात खेत पर ही रहता। इधर भादू का स्वास्थ्य दिन-प्रतिदिन गिरता ही जा रहा था। भादू की पत्नी ने वैद्य से दवा कराया किंतु भादू को कोई लाभ नहीं हुआ। सिरहा (ओझा) और गुनिया से भी झाड़-फूँक कराया लेकिन स्वास्थ्य था कि सुधरने का नाम ही नहीं ले रहा था। बीमारी से जूझता हुआ भादू एक दिन मर गया। भगवान की आज्ञा से यमदूत आए और भादू के जीव (आत्मा) को अपने साथ लेकर वापस भगवान के घर चल दिए।
आयतू उन दिनों अपने खेत पर था। खेत गाँव से बहुत दूर था। इसलिए आयतू को भादू के मरने का समाचार तत्काल नहीं मिल पाया। उधर यमदूत जब भादू के जीव को अपने साथ लेकर भगवान के घर जा रहे थे तो वे आयतू के खेत से होकर निकले। आयतू ने देखा तो वह चकित रह गया। उसे यह देखकर अचंभा हुआ भादू अपरिचित लोगों के साथ जा रहा है और उसने आयतू की ओर देखा भी नहीं। आयतू के मन में जिज्ञासा उत्पन्न हुई कि आख़िर ये अपरिचित हैं कौन, जिनके साथ भादू जा रहा है?
आयतू उसी समय घर की ओर चल पड़ा। घर पहुँचकर आयतू ने देखा कि उसका भाई भादू मर चुका है और उसके भाई के शव का अंतिम संस्कार किए जाने की तैयारी चल रही है। आयतू को अब समझ में आया कि जिसे उसने खेत के रास्ते जाते हुए देखा था वह उसके भाई का जीव था और उसके भाई के जीव के साथ जो अपरिचित दिखाई दिए थे, वे यमदूत थे।
मगर आयतू ने इस बात की चर्चा किसी से नहीं की।
उधर भादू के जीव को लेकर यमदूत भादू और आयतू के खेत से गुज़र रहे थे तो एक यमदूत ने खेत से धान की एक बाली उखाड़ ली थी। भादू के जीव को लेकर यमदूत भगवान के पास पहुँचे।
‘तुम लोग सही जीव को लाए हो न?’ भगवान ने पूछा।
‘जी स्वामी, हम सही जीव को लाए हैं।’ एक यमदूत ने उत्तर दिया।
‘ठीक है, हम अपने बहीखाते से मिलान कर लेते हैं। इसका नाम?’ भगवान ने पूछा।
‘भादू।’ यमदूत ने उत्तर दिया।
‘इसकी मृत्यु का कारण?’ भगवान ने अगला प्रश्न किया।
‘असाध्य रोग से मरा है यह।’
‘ठीक है। जीव तो सही लाए हो तुम लोग। जाओ इस जीव को हमारे खजाने में जमा कर दो।’ भगवान ने कहा। तभी भगवान की दृष्टि एक यमदूत के हाथ पर पड़ी, ‘अरे, लेकिन तुम्हारे हाथ में ये क्या है?’
‘स्वामी, ये धान की बाली है।’ यमदूत ने उत्तर दिया।
‘ये किसके खेत से उखाड़ लाए तुम?’ भगवान ने फिर प्रश्न किया।
'स्वामी, ये भादू और आयतू के खेत की बाली है।’ यमदूत ने बताया।
‘यह तो अपराध है। घोर अपराध।’ भगवान ने क्रोधित होते हुए कहा, ‘हमने तुम्हें भादू का जीव लाने को भेजा था और तुम उसके जीव के साथ-साथ उसके खेत की धान की बाली भी उखाड़ लाए। तुम्हें भादू का जीव लाने को भेजा था, उसके खेत की बाली नहीं। लाओ इधर दो बाली।’
कहते हुए भगवान ने यमदूत से बाली ले ली और उस बाली के एक-एक दाने गिनने लगे। उस बाली में कुल सौ दाने थे।
‘इस बाली में धान के पूरे सौ दाने हैं। इन्हें तोड़ने के अपराध का दंड यह है कि अब तुम भादू के घर जाओ और उसके भाई आयतू के साथ रह कर तब तक काम करो जब तक आयतू के पास सौ कोठी धान न हो जाए।’ भगवान ने यमदूत को दंड देते हुए कहा।
‘जो आज्ञा स्वामी!’ यमदूत ने भगवान को प्रणाम किया और अपना दंड भुगतने चल पड़ा।
उधर आयतू ने अपने भाई भादू की अर्थी को कांधा दिया और श्मशान में जाकर अंतिम संस्कार किया। इसके बाद वह घर लौट आया। आयतू ने देखा कि श्वेत वस्त्रधारी एक अपरिचित आदमी श्मशानघाट से ही उसके पीछे-पीछे घर तक चला आया है।
‘क्यों भाई, तुम कौन हो? मेरे पीछे-पीछे घर तक क्यों चले आए?’ आयतू ने उस आदमी से पूछा।
‘मालिक, मैं दूसरे गाँव से भटकता-भटकता यहाँ चला आया हूँ। मेरे पास कोई काम नहीं है। पेट पालने का कोई साधन नहीं है। यदि आप कृपा करके मुझे कोई काम दे दें तो मैं आभारी रहूँगा।’ उस आदमी ने कहा।
‘तुम क्या काम कर सकते हो? तुम्हें कितनी पगार देनी होगी?’ आयतू ने पूछा।
‘मैं खेती-किसानी के सारे काम बख़ूबी कर सकता हूँ और मुझे आप दो समय भात दे दिया कीजिएगा और साल भर में एकाध जोड़ी कपड़ा पहनने को।’ उस आदमी ने कहा।
‘ठीक है, मुझे स्वीकार है। तुम्हारा नाम क्या है?’ आयतू ने उसे काम देना स्वीकार करते हुए उससे उसका नाम पूछा।
'आप चाहें तो मुझे सत्तू के नाम से पुकार सकते हैं।’ उस आदमी ने कहा।
वस्तुत: वह आदमी वही यमदूत था जिसे आयतू के साथ काम करने का दंड भगवान ने दिया था।
आयतू की स्वीकृति पाकर यमदूत अर्थात् सत्तू, आयतू के साथ काम करने लगा। आयतू और सत्तू खेत में जी-तोड़ मेहनत करते। उनकी मेहनत रंग लाई। एक वर्ष में पाँच कोठी धान की पैदावार हुई। तब तक भादू की बरसी का समय आ गया। गाँव वालों ने आयतू से कहा कि वह अपनी विधवा भाभी से विवाह कर ले। क्योंकि धुरवा संस्कृति में बड़े भाई के मृत्यु के बाद उसकी विधवा का विवाह छोटे भाई के साथ करा दिया जाता है। गाँव वालों के कहने पर आयतू ने अपनी भाभी के साथ विवाह कर लिया।
इधर सत्तू के रूप में यमदूत धान की सौ कोठियाँ पूरी होने की प्रतीक्षा में अथक श्रम करता रहता। कुछ वर्ष बाद अस्सी कोठी धान होने पर यमदूत ने यह सोचकर अपने मन को तसल्ली दी कि अब बीस कोठी धान शेष रह गया है इसके बाद उसे दंड से मुक्ति मिल जाएगी।
एक दिन आयतू की पत्नी घड़े में पानी भरने नदी गई। नदी से उसने पानी भरा और घड़े को अपने सिर पर उठाए चली आ रही थी कि सत्तू ने देखा कि उस घड़े में एक प्रेत घुस गया है। सत्तू जानता था कि यह प्रेत आयतू की पत्नी को क्षति पहुँचा सकता है और उसके प्राण तक ले सकता है। लेकिन इसके साथ ही उसे लगा कि यदि वह इस बारे में आयतू की पत्नी को बताएगा तो वह भयभीत हो जाएगी। अत: सत्तू ने एक कंकड़ उठाया और उस घड़े का निशाना साध कर मारा। कंकड़ लगने से घड़ा फूट गया और प्रेत बाहर निकल आया। प्रेत ने सत्तू को देखा तो वह पहचान गया कि यह तो यमदूत है। इसलिए प्रेत डर कर ऐसा भागा कि उसने पलट कर नहीं देखा।
लेकिन आयतू की पत्नी को सत्तू द्वारा इस तरह घड़ा फोड़ना और उसे पानी से भिगो देना अच्छा नहीं लगा। वह सत्तू पर बहुत क्रोधित हुई।
‘क्यों रे सत्तू! तूने यह क्या किया? मेरा घड़ा फोड़ दिया। मेरे पूरे कपड़े भिगो दिए। तुझे मसखरी करने को मैं ही मिली। अपनी मालकिन के साथ क्या कोई ऐसा व्यवहार करता है? क्या तुझे अपनी नौकरी जाने का भय नहीं है?’ आयतू की पत्नी ने सत्तू को बहुत डाँटा।
‘क्षमा करें मालकिन, ग़लती हो गई।’ इतना कहकर सत्तू चुप हो गया।
‘तू बिलकुल जंगली है, तुझे इतना भी नहीं आता है कि अपनी मालकिन से कैसा व्यवहार करना चाहिए।’ आयतू की पत्नी क्रोध में आकर सत्तू को डाँटती रही।
सत्तू चुपचाप उसकी डाँट सुनता रहा किंतु उसने सच्चाई नहीं बताई और काम करने खेत पर चला गया।
समय व्यतीत होता रहा। सत्तू, आयतू के खेतों में काम करता रहा और उसकी धान की कोठियाँ भरता रहा। सत्तू के श्रम से आयतू को इतना लाभ हुआ अपने क्षेत्र का साहूकार बन गया। वह अधिक से अधिक समय अपने काम में व्यस्त रहने लगा। धीरे-धीरे वह समय भी आ गया जब धान की सौ कोठियाँ भर गईं। संयोगवश उसी दिन आयतू की पत्नी को एक धार्मिक मेले में जाने की इच्छा उत्पन्न हुई।
‘सुनो जी, मैं मेले में जाना चाहती हूँ। तुम मुझे मेला घुमा लाओ। मैं वहाँ नदी में नहाऊँगी, पूजा करूँगी और मेला घूमूँगी।’ आयतू की पत्नी ने आयतू से कहा।
‘देखो, मुझे तो बहुत काम हैं। मैं तुम्हारे साथ नहीं चल सकूँगा।’ आयतू ने अपनी असमर्थता जताई।
‘फिर मैं किसके साथ जाऊँ?’ आयतू की पत्नी तुनक कर बोली।
‘मालिक, यदि आप आदेश करें तो मैं मालकिन के साथ मेला चला जाता हूँ।’ वहीं बैठे सत्तू ने आयतू से कहा।
‘हाँ, यह ठीक रहेगा। सुनो, तुम सत्तू के साथ मेला देखने चली जाओ। यह तुम्हें कोई कष्ट नहीं होने देगा।’ आयतू ने ख़ुश होते हुए कहा।
आयतू की पत्नी भी मान गई। आयतू की पत्नी सत्तू के साथ मेला देखने निकल पड़ी। गाँव के बहुत लोग मेला घूमने जा रहे थे। सत्तू भी अपनी बैलगाड़ी उन्हीं लोगों के पीछे-पीछे हाँकने लगा।
कुछ दूर जाने के बाद जब आयतू की पत्नी ऊँघने लगी तो सत्तू ने बैलगाड़ी दूसरे रास्ते पर डाल दी। सौ कोस चलने के बाद सत्तू ने बैलगाड़ी रोक दी। सामने कीचड और दलदल था।
गाड़ी रुकने से आयतू की पत्नी की नींद खुल गई।
‘क्यों रे सत्तू, हम नदी किनारे आ पहुँचे क्या?’ आयतू की पत्नी ने पूछा।
‘जी मालकिन! आप गाड़ी से उतर कर नदी में नहा लें।’ सत्तू ने कहा।
‘लेकिन नदी कहाँ है सत्तू? यहाँ तो कीचड़ ही कीचड़ है।’ कीचड़ देखकर आयतू की पत्नी ने चकित होते हुए पूछा।
‘यही तो नदी है मालकिन!’ सत्तू बोला।
आयतू की पत्नी सत्तू की बात सुनकर डर गई। उसे लगा कि सत्तू उसे धोखा देकर यहाँ जंगल में ले आया है जहाँ न मेला है और न नदी है। उस दिन सत्तू ने घड़ा फोड़ दिया था जिसके कारण उसने सत्तू को बहुत बुरा-भला कहा था, अब आज सत्तू उस दिन का बदला लेना चाहता है।
‘मुझे नहाने की इच्छा नहीं है, सत्तू। अब ऐसा करते हैं कि वापस चलें। मुझे घर की याद आ रही है।’ आयतू की पत्नी ने कहा।
‘ठीक है मालकिन, लेकिन पहले आप कुछ बना-खा लें। आपको भूख लग आई होगी। फिर हमारे बैल भी थक गए हैं, वे भी तनिक सुस्ता लें।’ सत्तू ने कहा।
मरता क्या न करता। आयतू की पत्नी ने लकड़ी पत्तों की आग जलाई। हाँडी चढ़ाई। भात पकाने लगी। भात बनकर तैयार हुआ तो उसने सत्तू को दिया और स्वयं खाया।
‘अब घर चलें, सत्तू?’ आयतू की पत्नी ने सत्तू से कहा। वह मन ही मन बहुत भयभीत थी।
‘चलते हैं। आपने अभी खाना खाया है, तनिक हाथ-मुँह तो धो लीजिए।’ कहते हुए सत्तू ने लोटे में कीच भरी और अपनी मालकिन के सिर पर उंडेल दी। आयतू की पत्नी की आँखों में भी कीच चली गई। उसकी आँखें बंद हो गईं।
‘ये क्या किया तुमने? क्या तुम अब मुझे मारोगे? मैं समझ गई हूँ किं तुम मुझसे उस घड़े वाले दिन का बदला लेना चाहते हो।’ आयतू की पत्नी ने घबरा कर कहा।
‘नहीं मालकिन, आप मुझे ग़लत समझ रही हैं। मैं आपको कोई क्षति पहुँचाना नहीं चाहता हूँ। सुनिए, मैं आपको वास्तविक बात बताता हूँ। मैं एक यमदूत हूँ।’ सत्तू ने कहा।
‘यमदूत!!’ आयतू की पत्नी और अधिक डर गई।
‘आप डरिए नहीं मालकिन, मेरी बात सुनिए। मैं जब आपके पहले पति यानी आयतू के बड़े भाई भादू का जीव लेने आया था तब जीव लेकर जाते समय मैंने आप लोगों के खेत से धान की एक बाली तोड़ ली थी। जो कि मुझे नहीं तोड़नी चाहिए थी। उस बाली में सौ धान थे। भगवान ने मुझे दंड दिया कि जब तक आपके घर में धान की सौ कोठियाँ न भर दूँ तब तक मैं आप लोगों के खेत में काम करता रहूँ।
आज सौ कोठियाँ भर गई हैं। अत: आज दंड से मुक्त होने का समय आ गया है। भगवान के घर लौटने का रास्ता इसी कीचड़ से होकर जाता है। इसीलिए मैं आपको इस रास्ते पर ले आया जिससे मैं भगवान के घर लौट सकूँ। आपकी आँखों में कीच इसलिए भरा क्योंकि यदि आप देखती रहेंगी तो द्वार नहीं खुलेगा। मेरे जाने के बाद जब आप आँख खोलेंगी तो आप स्वयं को अपने घर के आँगन में पाएँगी। इसलिए आप ज़रा भी न डरें। अच्छा, अब मेरे जाने का समय हो गया है, प्रणाम!' इतना कह कह सत्तू अर्थात यमदूत दलदल में उतर कर भगवान के घर लौट गया।
आयतू की पत्नी ने जब अपनी आँखें खोलीं तो उसने स्वयं को अपने घर के आँगन में पाया। उसने देखा कि घर के दरवाज़े पर उसकी बैलगाड़ी भी खड़ी हुई है।
‘अरे, तुम बहुत जल्दी लौट आई? मेले में मन नहीं लगा क्या?’ आयतू ने अपनी पत्नी को जल्दी वापस आया देखकर पूछा।
‘मैं मेले गई ही नहीं।’ यह कहते हुए आयतू की पत्नी ने आयतू को सत्तू के बारे पूरा क़िस्सा सुनाया। आयतू सत्तू के बारे में जानकर चकित रह गया। उसने भगवान को धन्यवाद देते हुए अपनी पत्नी से कहा—‘देखा, इसीलिए कहा गया है कि अन्न के एक-एक दाने का महत्व होता है। अन्न का एक दाना भी बेकार नहीं जाना चाहिए।’
इसके बाद आयतू अपनी पत्नी और बच्चों के साथ सुखपूर्वक रहने लगा।
dhurva pardesh mein ek gaanv tha marenga. vahan do bhai rahte the. baDe bhai ka naam tha bhaag aur chhote bhai ka naam tha aaytu. donon bhai hil milkar rahte the. donon saath saath ek hi khet mein dhaan boya karte the. jab dhaan pakta to donon bhai saath saath khet jate aur dhaan kaat kar le aate. bhadu ka vivah ho chuka tha jabki aaytu avivahit tha.
ek baar bhatu aur aaytu ne apne khet mein dhaan boya. jab dhaan ki phasal pakne ka samay aaya to khet mein rah kar phasal ki pahredari karna avashyak ho gaya. magar unhin dinon bhadu ka svasthya bigaD gaya. aaytu ne bhadu ko ghar par rah kar aram karne ki salah di aur svayan khet ki rakhvali karne chala gaya.
aaytu din raat khet par hi rahta. idhar bhadu ka svasthya din pratidin girta hi ja raha tha. bhadu ki patni ne vaidya se dava karaya kintu bhadu ko koi laabh nahin hua. sirha (ojha) aur guniya se bhi jhaaD phoonk karaya lekin svasthya tha ki sudharne ka naam hi nahin le raha tha. bimari se jujhta hua bhadu ek din mar gaya. bhagvan ki aagya se yamdut aaye aur bhadu ke jeev (atma) ko apne saath lekar vapas bhagvan ke ghar chal diye.
aaytu un dinon apne khet par tha. khet gaanv se bahut door tha. isliye aaytu ko bhadu ke marne ka samachar tatkal nahin mil paya. udhar yamdut jab bhadu ke jeev ko apne saath lekar bhagvan ke ghar ja rahe the to ve aaytu ke khet se hokar nikle. aaytu ne dekha to wo chakit rah gaya. use ye dekhkar achambha hua bhadu aprichit logon ke saath ja raha hai aur usne aaytu ki or dekha bhi nahin. aaytu ke man mein jigyasa utpann hui ki akhir ye aprichit hain kaun, jinke saath bhadu ja raha hai?
aaytu usi samay ghar ki or chal paDa. ghar pahunchakar aaytu ne dekha ki uska bhai bhadu mar chuka hai aur uske bhai ke shav ka antim sanskar kiye jane ki taiyari chal rahi hai. aaytu ko ab samajh mein aaya ki jise usne khet ke raste jate hue dekha tha wo uske bhai ka jeev tha aur uske bhai ke jeev ke saath jo aprichit dikhai diye the, ve yamdut the.
magar aaytu ne is baat ki charcha kisi se nahin ki.
udhar bhadu ke jeev ko lekar yamdut bhadu aur aaytu ke khet se guzar rahe the to ek yamdut ne khet se dhaan ki ek bali ukhaaD li thi. bhadu ke jeev ko lekar yamdut bhagvan ke paas pahunche.
‘tum log sahi jeev ko laye ho na?’ bhagvan ne puchha.
‘ji svami, hum sahi jeev ko laye hain. ’ ek yamdut ne uttar diya.
‘theek hai, hum apne bahikhate se milan kar lete hain. iska naam?’ bhagvan ne puchha.
‘bhadu. ’ yamdut ne uttar diya.
‘iski mrityu ka karan?’ bhagvan ne agla parashn kiya.
‘asadhya rog se mara hai ye. ’
‘theek hai. jeev to sahi laye ho tum log. jao is jeev ko hamare khajane mein jama kar do. ’ bhagvan ne kaha. tabhi bhagvan ki drishti ek yamdut ke haath par paDi, ‘are, lekin tumhare haath mein ye kya hai?’
‘svami, ye dhaan ki bali hai. ’ yamdut ne uttar diya.
‘ye kiske khet se ukhaaD laye tum?’ bhagvan ne phir parashn kiya.
svami, ye bhadu aur aaytu ke khet ki bali hai. ’ yamdut ne bataya.
‘yah to apradh hai. ghor apradh. ’ bhagvan ne krodhit hote hue kaha, ‘hamne tumhein bhadu ka jeev lane ko bheja tha aur tum uske jeev ke saath saath uske khet ki dhaan ki bali bhi ukhaaD laye. tumhein bhadu ka jeev lane ko bheja tha, uske khet ki bali nahin. lao idhar do bali. ’
kahte hue bhagvan ne yamdut se bali le li aur us bali ke ek ek dane ginne lage. us bali mein kul sau dane the.
‘is bali mein dhaan ke pure sau dane hain. inhen toDne ke apradh ka danD ye hai ki ab tum bhadu ke ghar jao aur uske bhai aaytu ke saath rah kar tab tak kaam karo jab tak aaytu ke paas sau kothi dhaan na ho jaye. ’ bhagvan ne yamdut ko danD dete hue kaha.
‘jo aagya svami!’ yamdut ne bhagvan ko prnaam kiya aur apna danD bhugatne chal paDa.
udhar aaytu ne apne bhai bhadu ki arthi ko kandha diya aur shmshaan mein jakar antim sanskar kiya. iske baad wo ghar laut aaya. aaytu ne dekha ki shvet vastradhari ek aprichit adami shmshanghat se hi uske pichhe pichhe ghar tak chala aaya hai.
‘kyon bhai, tum kaun ho? mere pichhe pichhe ghar tak kyon chale aye?’ aaytu ne us adami se puchha.
‘malik, main dusre gaanv se bhatakta bhatakta yahan chala aaya hoon. mere paas koi kaam nahin hai. pet palne ka koi sadhan nahin hai. yadi aap kripakarke mujhe koi kaam de den to main abhari rahunga. ’ us adami ne kaha.
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‘main kheti kisani ke sare kaam bakhubi kar sakta hoon aur mujhe aap do samay bhaat de diya kijiyega aur saal bhar mein ekaadh joDi kapDa pahanne ko. ’ us adami ne kaha.
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vastutah wo adami vahi yamdut tha jise aaytu ke saath kaam karne ka danD bhagvan ne diya tha.
aaytu ki svikriti pakar yamdut arthat sattu, aaytu ke saath kaam karne laga. aastu aur sattu khet mein ji toD mehnat karte. unki mehnat rang lai. ek varsh mein paanch kothi dhaan ki paidavar hui. tab tak bhadu ki barsi ka samay aa gaya. gaanv valon ne aaytu se kaha ki wo apni vidhva bhabhi se vivah kar le. kyonki dhurva sanskriti mein baDe bhai ke mrityu ke baad uski vidhva ka vivah chhote bhai ke saath kara diya jata hai. gaanv valon ke kahne par aaytu ne apni bhabhi ke saath vivah kar liya.
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‘kyon re sattu! tune ye kya kiya? mera ghaDa phoD diya. mere pure kapDe bhigo diye. tujhe masakhri karne ko main hi mili. apni malkin ke saath kya koi aisa vyvahar karta hai? kya tujhe apni naukari jane ka bhay nahin hai?’ aaytu ki patni ne sattu ko bahut Danta.
‘kshama karen malkin, ghalati ho gai. ’ itna kahkar sattu chup ho gaya.
‘tu bilkul jangli hai, tujhe itna bhi nahin aata hai ki apni malkin se kaisa vyvahar karna chahiye. ’ aaytu ki patni krodh mein aakar sattu ko Dantti rahi.
sattu chupchap uski Daant sunta raha kintu usne sachchai nahin batai aur kaam karne khet par chala gaya.
samay vyatit hota raha. sattu, aaytu ke kheton mein kaam karta raha aur uski dhaan ki kothiyan bharta raha. sattu ke shram se aaytu ko itna laabh hua apne kshetr ka sahukar ban gaya. wo adhik se adhik samay apne kaam mein vyast rahne laga. dhire dhire wo samay bhi aa gaya jab dhaan ki sau kothiyan bhar gain. sanyogvash usi din aaytu ki patni ko ek dharmik mele mein jane ki ichchha utpann hui.
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‘dekho, mujhe to bahut kaam hain. main tumhare saath nahin chal sakunga. ’ aaytu ne apni asmarthata jatai.
‘phir main kiske saath jaun?’ aaytu ki patni tunak kar boli.
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‘haan, ye theek rahega. suno, tum sattu ke saath mela dekhne chali jao. ye tumhein koi kasht nahin hone dega. ’ aaytu ne khush hote hue kaha.
aaytu ki patni bhi maan gai. aaytu ki patni sattu ke saath mela dekhne nikal paDi. gaanv ke bahut log mela ghumne ja rahe the. sattu bhi apni bailgaDi unhin logon ke pichhe pichhe hankne laga.
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‘ji malkin! aap gaDi se utar kar nadi mein nha len. ’ sattu ne kaha.
‘lekin nadi kahan hai sattu? yahan to kichaD hi kichaD hai. ’ kichaD dekhkar aaytu ki patni ne chakit hote hue puchha.
‘yahi to nadi hai malkin!’ sattu bola.
aaytu ki patni sattu ki baat sunkar Dar gai. use laga ki sattu use dhokha dekar yahan jangal mein le aaya hai jahan na mela hai aur na nadi hai. us din sattu ne ghaDa phoD diya tha jiske karan usne sattu ko bahut bura bhala kaha tha, ab aaj sattu us din ka badla lena chahta hai.
‘mujhe nahane ki ichchha nahin hai, sattu. ab aisa karte hain ki vapas chalen. mujhe ghar ki yaad aa rahi hai. ’ aaytu ki patni ne kaha.
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‘ab ghar chalen, sattu?’ aaytu ki patni ne sattu se kaha. wo man hi man bahut bhaybhit thi.
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‘ye kya kiya tumne? kya tum ab mujhe maroge? main samajh gai hoon kin tum mujhse us ghaDe vale din ka badla lena chahte ho. ’ aaytu ki patni ne ghabra kar kaha.
‘nahin malkin, aap mujhe ghalat samajh rahi hain. main aapko koi kshati pahunchana nahin chahta hoon. suniye, main aapko vastavik baat batata hoon. main ek yamdut hoon. ’ sattu ne kaha.
‘yamdut!!’ aaytu ki patni aur adhik Dar gai.
‘aap Dariye nahin malkin, meri baat suniye. main jab aapke pahle pati yani aaytu ke baDe bhai bhadu ka jeev lene aaya tha tab jeev lekar jate samay mainne aap logon ke khet se dhaan ki ek bali toD li thi. jo ki mujhe nahin toDni chahiye thi. us bali mein sau dhaan the. bhagvan ne mujhe danD diya ki jab tak aapke ghar mein dhaan ki sau kothiyan na bhar doon tab tak main aap logon ke khet mein kaam karta rahun.
aaj sau kothiyan bhar gai hain. atah aaj danD se mukt hone ka samay aa gaya hai. bhagvan ke ghar lautne ka rasta isi kichaD se hokar jata hai. isiliye main aapko is raste par le aaya jisse main bhagvan ke ghar laut sakun. apaki ankhon mein keech isliye bhara kyonki yadi aap dekhti rahengi to dvaar nahin khulega. mere jane ke baad jab aap ankh kholengi to aap svayan ko apne ghar ke angan mein payengi. isliye aap zara bhi na Daren. achchha, ab mere jane ka samay ho gaya hai, prnaam! itna kah kah sattu arthat yamdut daldal mein utar kar bhagvan ke ghar laut gaya.
aaytu ki patni ne jab apni ankhen kholin to usne svayan ko apne ghar ke angan mein paya. usne dekha ki ghar ke darvaze par uski bailgaDi bhi khaDi hui hai.
‘are, tum bahut jaldi laut ai? mele mein man nahin laga kyaa?’ aaytu ne apni patni ko jaldi vapas aaya dekhkar puchha.
‘main mele gai hi nahin. ’ ye kahte hue aaytu ki patni ne aaytu ko sattu ke bare pura qissa sunaya. aaytu sattu ke bare mein jankar chakit rah gaya. usne bhagvan ko dhanyavad dete hue apni patni se kaha—‘dekha, isiliye kaha gaya hai ki ann ke ek ek dane ka mahatv hota hai. ann ka ek dana bhi bekar nahin jana chahiye. ’
dhurva pardesh mein ek gaanv tha marenga. vahan do bhai rahte the. baDe bhai ka naam tha bhaag aur chhote bhai ka naam tha aaytu. donon bhai hil milkar rahte the. donon saath saath ek hi khet mein dhaan boya karte the. jab dhaan pakta to donon bhai saath saath khet jate aur dhaan kaat kar le aate. bhadu ka vivah ho chuka tha jabki aaytu avivahit tha.
ek baar bhatu aur aaytu ne apne khet mein dhaan boya. jab dhaan ki phasal pakne ka samay aaya to khet mein rah kar phasal ki pahredari karna avashyak ho gaya. magar unhin dinon bhadu ka svasthya bigaD gaya. aaytu ne bhadu ko ghar par rah kar aram karne ki salah di aur svayan khet ki rakhvali karne chala gaya.
aaytu din raat khet par hi rahta. idhar bhadu ka svasthya din pratidin girta hi ja raha tha. bhadu ki patni ne vaidya se dava karaya kintu bhadu ko koi laabh nahin hua. sirha (ojha) aur guniya se bhi jhaaD phoonk karaya lekin svasthya tha ki sudharne ka naam hi nahin le raha tha. bimari se jujhta hua bhadu ek din mar gaya. bhagvan ki aagya se yamdut aaye aur bhadu ke jeev (atma) ko apne saath lekar vapas bhagvan ke ghar chal diye.
aaytu un dinon apne khet par tha. khet gaanv se bahut door tha. isliye aaytu ko bhadu ke marne ka samachar tatkal nahin mil paya. udhar yamdut jab bhadu ke jeev ko apne saath lekar bhagvan ke ghar ja rahe the to ve aaytu ke khet se hokar nikle. aaytu ne dekha to wo chakit rah gaya. use ye dekhkar achambha hua bhadu aprichit logon ke saath ja raha hai aur usne aaytu ki or dekha bhi nahin. aaytu ke man mein jigyasa utpann hui ki akhir ye aprichit hain kaun, jinke saath bhadu ja raha hai?
aaytu usi samay ghar ki or chal paDa. ghar pahunchakar aaytu ne dekha ki uska bhai bhadu mar chuka hai aur uske bhai ke shav ka antim sanskar kiye jane ki taiyari chal rahi hai. aaytu ko ab samajh mein aaya ki jise usne khet ke raste jate hue dekha tha wo uske bhai ka jeev tha aur uske bhai ke jeev ke saath jo aprichit dikhai diye the, ve yamdut the.
magar aaytu ne is baat ki charcha kisi se nahin ki.
udhar bhadu ke jeev ko lekar yamdut bhadu aur aaytu ke khet se guzar rahe the to ek yamdut ne khet se dhaan ki ek bali ukhaaD li thi. bhadu ke jeev ko lekar yamdut bhagvan ke paas pahunche.
‘tum log sahi jeev ko laye ho na?’ bhagvan ne puchha.
‘ji svami, hum sahi jeev ko laye hain. ’ ek yamdut ne uttar diya.
‘theek hai, hum apne bahikhate se milan kar lete hain. iska naam?’ bhagvan ne puchha.
‘bhadu. ’ yamdut ne uttar diya.
‘iski mrityu ka karan?’ bhagvan ne agla parashn kiya.
‘asadhya rog se mara hai ye. ’
‘theek hai. jeev to sahi laye ho tum log. jao is jeev ko hamare khajane mein jama kar do. ’ bhagvan ne kaha. tabhi bhagvan ki drishti ek yamdut ke haath par paDi, ‘are, lekin tumhare haath mein ye kya hai?’
‘svami, ye dhaan ki bali hai. ’ yamdut ne uttar diya.
‘ye kiske khet se ukhaaD laye tum?’ bhagvan ne phir parashn kiya.
svami, ye bhadu aur aaytu ke khet ki bali hai. ’ yamdut ne bataya.
‘yah to apradh hai. ghor apradh. ’ bhagvan ne krodhit hote hue kaha, ‘hamne tumhein bhadu ka jeev lane ko bheja tha aur tum uske jeev ke saath saath uske khet ki dhaan ki bali bhi ukhaaD laye. tumhein bhadu ka jeev lane ko bheja tha, uske khet ki bali nahin. lao idhar do bali. ’
kahte hue bhagvan ne yamdut se bali le li aur us bali ke ek ek dane ginne lage. us bali mein kul sau dane the.
‘is bali mein dhaan ke pure sau dane hain. inhen toDne ke apradh ka danD ye hai ki ab tum bhadu ke ghar jao aur uske bhai aaytu ke saath rah kar tab tak kaam karo jab tak aaytu ke paas sau kothi dhaan na ho jaye. ’ bhagvan ne yamdut ko danD dete hue kaha.
‘jo aagya svami!’ yamdut ne bhagvan ko prnaam kiya aur apna danD bhugatne chal paDa.
udhar aaytu ne apne bhai bhadu ki arthi ko kandha diya aur shmshaan mein jakar antim sanskar kiya. iske baad wo ghar laut aaya. aaytu ne dekha ki shvet vastradhari ek aprichit adami shmshanghat se hi uske pichhe pichhe ghar tak chala aaya hai.
‘kyon bhai, tum kaun ho? mere pichhe pichhe ghar tak kyon chale aye?’ aaytu ne us adami se puchha.
‘malik, main dusre gaanv se bhatakta bhatakta yahan chala aaya hoon. mere paas koi kaam nahin hai. pet palne ka koi sadhan nahin hai. yadi aap kripakarke mujhe koi kaam de den to main abhari rahunga. ’ us adami ne kaha.
‘tum kya kaam kar sakte ho? tumhein kitni pagar deni hogi?’ aaytu ne puchha.
‘main kheti kisani ke sare kaam bakhubi kar sakta hoon aur mujhe aap do samay bhaat de diya kijiyega aur saal bhar mein ekaadh joDi kapDa pahanne ko. ’ us adami ne kaha.
‘theek hai, mujhe svikar hai. tumhara naam kya hai?’ aaytu ne use kaam dena svikar karte hue usse uska naam puchha.
aap chahen to mujhe sattu ke naam se pukar sakte hain. ’ us adami ne kaha.
vastutah wo adami vahi yamdut tha jise aaytu ke saath kaam karne ka danD bhagvan ne diya tha.
aaytu ki svikriti pakar yamdut arthat sattu, aaytu ke saath kaam karne laga. aastu aur sattu khet mein ji toD mehnat karte. unki mehnat rang lai. ek varsh mein paanch kothi dhaan ki paidavar hui. tab tak bhadu ki barsi ka samay aa gaya. gaanv valon ne aaytu se kaha ki wo apni vidhva bhabhi se vivah kar le. kyonki dhurva sanskriti mein baDe bhai ke mrityu ke baad uski vidhva ka vivah chhote bhai ke saath kara diya jata hai. gaanv valon ke kahne par aaytu ne apni bhabhi ke saath vivah kar liya.
idhar sattu ke roop mein yamdut dhaan ki sau kothiyan puri hone ki prtiksha mein athak shram karta rahta. kuch varsh baad assi kothi dhaan hone par yamdut ne ye sochkar apne man ko tasalli di ki ab bees kothi dhaan shesh rah gaya hai iske baad use danD se mukti mil jayegi.
ek din aaytu ki patni ghaDe mein pani bharne nadi gai. nadi se usne pani bhara aur ghaDe ko apne sir par uthaye chali aa rahi thi ki sattu ne dekha ki us ghaDe mein ek pret ghus gaya hai. sattu janta tha ki ye pret aaytu ki patni ko kshati pahuncha sakta hai aur uske praan tak le sakta hai. lekin iske saath hi use laga ki yadi wo is bare mein aaytu ki patni ko batayega to wo bhaybhit ho jayegi. atah sattu ne ek kankaD uthaya aur us ghaDe ka nishana saadh kar mara. kankaD lagne se ghaDa phoot gaya aur pret bahar nikal aaya. pret ne sattu ko dekha to wo pahchan gaya ki ye to yamdut hai. isliye pret Dar kar aisa bhaga ki usne palat kar nahin dekha.
lekin aaytu ki patni ko sattu dvara is tarah ghaDa phoDna aur use pani se bhigo dena achchha nahin laga. wo sattu par bahut krodhit hui.
‘kyon re sattu! tune ye kya kiya? mera ghaDa phoD diya. mere pure kapDe bhigo diye. tujhe masakhri karne ko main hi mili. apni malkin ke saath kya koi aisa vyvahar karta hai? kya tujhe apni naukari jane ka bhay nahin hai?’ aaytu ki patni ne sattu ko bahut Danta.
‘kshama karen malkin, ghalati ho gai. ’ itna kahkar sattu chup ho gaya.
‘tu bilkul jangli hai, tujhe itna bhi nahin aata hai ki apni malkin se kaisa vyvahar karna chahiye. ’ aaytu ki patni krodh mein aakar sattu ko Dantti rahi.
sattu chupchap uski Daant sunta raha kintu usne sachchai nahin batai aur kaam karne khet par chala gaya.
samay vyatit hota raha. sattu, aaytu ke kheton mein kaam karta raha aur uski dhaan ki kothiyan bharta raha. sattu ke shram se aaytu ko itna laabh hua apne kshetr ka sahukar ban gaya. wo adhik se adhik samay apne kaam mein vyast rahne laga. dhire dhire wo samay bhi aa gaya jab dhaan ki sau kothiyan bhar gain. sanyogvash usi din aaytu ki patni ko ek dharmik mele mein jane ki ichchha utpann hui.
‘suno ji, main mele mein jana chahti hoon. tum mujhe mela ghuma lao. main vahan nadi mein nahaungi, puja karungi aur mela ghumungi. ’ aaytu ki patni ne aaytu se kaha.
‘dekho, mujhe to bahut kaam hain. main tumhare saath nahin chal sakunga. ’ aaytu ne apni asmarthata jatai.
‘phir main kiske saath jaun?’ aaytu ki patni tunak kar boli.
‘malik, yadi aap adesh karen to main malkin ke saath mela chala jata hoon. ’ vahin baithe sattu ne aaytu se kaha.
‘haan, ye theek rahega. suno, tum sattu ke saath mela dekhne chali jao. ye tumhein koi kasht nahin hone dega. ’ aaytu ne khush hote hue kaha.
aaytu ki patni bhi maan gai. aaytu ki patni sattu ke saath mela dekhne nikal paDi. gaanv ke bahut log mela ghumne ja rahe the. sattu bhi apni bailgaDi unhin logon ke pichhe pichhe hankne laga.
kuch door jane ke baad jab aaytu ki patni uunghane lagi to sattu ne bailgaDi dusre raste par Daal di. sau kos chalne ke baad sattu ne bailgaDi rok di. samne kichaD aur daldal tha.
gaDi rukne se aaytu ki patni ki neend khul gai.
‘kyon re sattu, hum nadi kinare aa pahunche kyaa?’ aaytu ki patni ne puchha.
‘ji malkin! aap gaDi se utar kar nadi mein nha len. ’ sattu ne kaha.
‘lekin nadi kahan hai sattu? yahan to kichaD hi kichaD hai. ’ kichaD dekhkar aaytu ki patni ne chakit hote hue puchha.
‘yahi to nadi hai malkin!’ sattu bola.
aaytu ki patni sattu ki baat sunkar Dar gai. use laga ki sattu use dhokha dekar yahan jangal mein le aaya hai jahan na mela hai aur na nadi hai. us din sattu ne ghaDa phoD diya tha jiske karan usne sattu ko bahut bura bhala kaha tha, ab aaj sattu us din ka badla lena chahta hai.
‘mujhe nahane ki ichchha nahin hai, sattu. ab aisa karte hain ki vapas chalen. mujhe ghar ki yaad aa rahi hai. ’ aaytu ki patni ne kaha.
‘theek hai malkin, lekin pahle aap kuch bana kha len. aapko bhookh lag aai hogi. phir hamare bail bhi thak ge hain, ve bhi tanik susta len. ’ sattu ne kaha.
marta kya na karta. aaytu ki patni ne lakDi patton ki aag jalai. hanDi chaDhai. bhaat pakane lagi. bhaat bankar taiyar hua to usne sattu ko diya aur svayan khaya.
‘ab ghar chalen, sattu?’ aaytu ki patni ne sattu se kaha. wo man hi man bahut bhaybhit thi.
‘chalte hain. aapne abhi khana khaya hai, tanik haath munh to dho lijiye. ’ kahte hue sattu ne lote mein keech bhari aur apni malkin ke sir par unDel di. aaytu ki patni ki ankhon mein bhi keech chali gai. uski ankhen band ho gain.
‘ye kya kiya tumne? kya tum ab mujhe maroge? main samajh gai hoon kin tum mujhse us ghaDe vale din ka badla lena chahte ho. ’ aaytu ki patni ne ghabra kar kaha.
‘nahin malkin, aap mujhe ghalat samajh rahi hain. main aapko koi kshati pahunchana nahin chahta hoon. suniye, main aapko vastavik baat batata hoon. main ek yamdut hoon. ’ sattu ne kaha.
‘yamdut!!’ aaytu ki patni aur adhik Dar gai.
‘aap Dariye nahin malkin, meri baat suniye. main jab aapke pahle pati yani aaytu ke baDe bhai bhadu ka jeev lene aaya tha tab jeev lekar jate samay mainne aap logon ke khet se dhaan ki ek bali toD li thi. jo ki mujhe nahin toDni chahiye thi. us bali mein sau dhaan the. bhagvan ne mujhe danD diya ki jab tak aapke ghar mein dhaan ki sau kothiyan na bhar doon tab tak main aap logon ke khet mein kaam karta rahun.
aaj sau kothiyan bhar gai hain. atah aaj danD se mukt hone ka samay aa gaya hai. bhagvan ke ghar lautne ka rasta isi kichaD se hokar jata hai. isiliye main aapko is raste par le aaya jisse main bhagvan ke ghar laut sakun. apaki ankhon mein keech isliye bhara kyonki yadi aap dekhti rahengi to dvaar nahin khulega. mere jane ke baad jab aap ankh kholengi to aap svayan ko apne ghar ke angan mein payengi. isliye aap zara bhi na Daren. achchha, ab mere jane ka samay ho gaya hai, prnaam! itna kah kah sattu arthat yamdut daldal mein utar kar bhagvan ke ghar laut gaya.
aaytu ki patni ne jab apni ankhen kholin to usne svayan ko apne ghar ke angan mein paya. usne dekha ki ghar ke darvaze par uski bailgaDi bhi khaDi hui hai.
‘are, tum bahut jaldi laut ai? mele mein man nahin laga kyaa?’ aaytu ne apni patni ko jaldi vapas aaya dekhkar puchha.
‘main mele gai hi nahin. ’ ye kahte hue aaytu ki patni ne aaytu ko sattu ke bare pura qissa sunaya. aaytu sattu ke bare mein jankar chakit rah gaya. usne bhagvan ko dhanyavad dete hue apni patni se kaha—‘dekha, isiliye kaha gaya hai ki ann ke ek ek dane ka mahatv hota hai. ann ka ek dana bhi bekar nahin jana chahiye. ’
हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी
‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।