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राजकुमार का मित्र—मंत्रीकुमार

rajakumar ka mitr—mantrikumar

बहुत दिन हुए किसी नगर में कोई प्रतापी राजा राज्य करता था। उसका मंत्री बुद्धिमान और राजभक्त था।

राजा और मंत्री दोनों के एक-एक पुत्र थे। राजा और मंत्री की तरह राजकुमार और मंत्रीकुमार भी एक-दूसरे पर पूरा विश्वास करते और सच्चे मित्रों की तरह खेलते-कूदते थे।

एक दिन राजकुमार और मंत्रीकुमार जंगल में शिकार खेलने गए। शिकार खेलते-खेलते दोनों बहुत दूर निकल गए। शाम हो जाने के कारण उन्होंने जंगल में ही किसी वृक्ष के नीचे रात बिताने का निश्चय किया।

वे विश्राम करने के लिए ठीक स्थान ढूँढ़ रहे थे कि तभी उन्हें दूर तेज़ प्रकाश दिखाई दिया। प्रकाश देखकर दोनों कुमार उस ओर बढ़े। एक भयंकर साँप प्रकाश की सीमा में घूमता हुआ दिखाई दिया। तेज़ प्रकाश उसी साँप की मणि से निकल रहा था।

मंत्रीकुमार ने राजकुमार से कहा, “बड़ा विषधर साँप है। इसकी मणि यदि किसी वस्तु से ढक दी जाए तो यह सरलता से मारा जा सकता है।” थोड़ा सोच-विचार कर दोनों कुमारों ने तालाब से थोड़ी गीली मिट्टी लाकर मणि के ऊपर डाल दी।

मिट्टी के नीचे मणि दब जाने से बिलकुल अँधेरा हो गया। साँप व्याकुल होकर इधर-उधर फन मारने लगा। तभी मौका देखकर दोनों कुमारों ने तलवार से साँप के टुकड़े-टुकड़े कर दिए और मणि उठा ली, फिर निश्चित होकर रातभर विश्राम किया।

सुबह उठकर दोनों कुमार जंगल में इधर-उधर घूम रहे थे तो थोड़ी दूर पर उन्हें कोई सरोवर दिखाई दिया। सरोवर के चारों ओर बड़ी ही सुंदर फुलवारी बनी हुई थी, परंतु सरोवर के तट पर कोई लड़की दुखी होकर रो रही थी। यह देखकर दोनों कुमार लड़की के पास गए और पूछने लगे, “तुम्हें क्या दुख है, जो यों फूट-फूटकर रो रही हो?”

लड़की ने कहा, “मैं राजा की लड़की हूँ। यह बग़ीचा और सरोवर मेरे पिता ने बनवाया था। यहाँ से थोड़ी ही दूर पर मेरे पिता ने एक महल भी बनवाया था। मैं अपने माता-पिता के साथ उसी महल में रहती थी। परंतु एक विषधर साँप ने एक-एक करके मेरे माता-पिता को डस लिया। आज मेरी बारी है। साँप अभी आता होगा और मुझे भी इस कर मार डालेगा।” इतना कहकर लड़की फिर आँसू बहाने लगी।

दोनों कुमारों ने कहा, “रोओ मत, अब वह साँप तुम्हें डसने के लिए जीवित नहीं है। हमने कल रात उसे मार डाला है।”

यह सुनकर राजकुमारी ख़ुशी से फूली नहीं समाई। दोनों कुमार जब चलने लगे तो राजकुमारी ने कहा, “आपका यह उपकार मैं ज़िंदगी-भर नहीं भूलूँगी। मैं चाहती हूँ कि आप कुछ दिन मेरे अतिथि बनकर रहें। मुझे विश्वास है कि आप मेरे इस अनुरोध को टालेंगे नहीं।”

दोनों कुमार पास ही बने राजा के महल में गए। उनके रहने से राजकुमारी भी अपने को हर प्रकार से सुरक्षित अनुभव करने लगी।

एक दिन जब दोनों कुमार शिकार खेलने चले गए तो राजकुमारी सरोवर में स्नान करने गई। जब राजकुमारी स्नान कर रही थी तो कोई शिकारी राजकुमार सरोवर में पानी पीने आया और राजकुमारी की सुंदरता देखकर वहीं बेसुध होकर गिर पड़ा।

जब राजकुमारी स्नान करके चली गई तो राजकुमार को होश आया। परंतु आस-पास राजकुमारी को देखकर वह पागल हो गया और बार-बार कहने लगा, “अभी थी, अभी ग़ायब हो गई।”

यही वाक्य बार-बार कहते-कहते राजकुमार अपने महल में गया। राजा अपने बेटे की पागलों जैसी दशा देखकर बड़े चिंतित हुए। सारे राज्य में यह शोर हो गया कि राजकुमार पागल हो गया।

वैद्यों के उपचार से भी जब राजकुमार कई दिन तक ठीक नहीं हुआ तो राजा ने घोषणा करा दी कि जो व्यक्ति राजकुमार का पागलपन दूर कर देगा, उसे हम अपना आधा राज्य दे देंगे और उसी के साथ राजकुमारी का विवाह भी कर देंगे।

राजा की घोषणा सुनकर महल के पास रहने वाली बुढ़िया ने सोचा कि हो सकता है राजकुमार को किसी ने जादू-टोना कर दिया हो। बुढ़िया राजा के पास गई और बोली, “मैं राजकुमार का पागलपन दूर करने की कोशिश करूँगी। लेकिन इसके लिए मुझे राजकुमार के साथ शिकार खेलने जाने वाले सिपाहियों की ज़रूरत पड़ेगी।”

राजा ने तुरंत राजकुमार के साथ शिकार के लिए जाने वाले सिपाहियों को बुढ़िया के साथ जाने का आदेश दे दिया।

बुढ़िया ने सिपाहियों से कहा, “जिस दिन राजकुमार पागल हुआ था, उस दिन कहाँ-कहाँ शिकार खेलने गया था, मुझे चलकर दिखाओ।”

कई स्थानों पर घुमाते-फिराते सिपाही बुढ़िया को लेकर जब सरोवर के निकट पहुँचे तो उस समय भी राजकुमारी स्नान करने आई हुई थी। चतुर बुढ़िया ने परम सुंदरी राजकुमारी को देखते ही तुरंत समझ लिया कि अवश्य ही इस राजकुमारी के रूप से राजकुमार पागल हुआ है।

बुढ़िया ने सिपाहियों से सरोवर के पास झोंपड़ी बनाने के लिए कहा। जब झोंपड़ी बन गई तो बुढ़िया उसी में रहने लगी। कई दिन तक बुढ़िया प्रतिदिन राजकुमारी का आना और सरोवर में स्नान करके चली जाना देखती रही।

एक दिन जब राजकुमारी स्नान करके जाने लगी तो बुढ़िया ने कहा, “बेटी, इधर आओ। मैं कई दिन से इस झोंपड़ी में रहती हूँ। तुम नित्य आती हो और स्नान करके चली जाती हो। कभी-कभी मुझ बुढ़िया के पास भी आकर बैठ जाया करो। इससे मेरा और तुम्हारा दोनों का ही समय बातचीत से कट जाया करेगा।”

बातों-बातों में बुढ़िया ने कुछ देर तक राजकुमारी को बैठाए रखा। कुछ देर के बाद जब राजकुमारी जाने लगी तो बुढ़िया ने सिपाहियों को इशारा कर दिया। सिपाहियों ने ज़बरदस्ती राजकुमारी को उठाकर राजा के महल में पहुँचा दिया। राजकुमारी फूट-फूटकर रोती और बुढ़िया को कोसती।

राजकुमारी की यह दशा देखकर राजा को बड़ा दुख हुआ। राजा ने बुढ़िया को बुलाकर पूछा, “इस बेचारी लड़की को तू क्यों पकड़ लाई?”

बुढ़िया ने कहा, “महाराज, यही वह रूपवती लड़की है, जिसके रूप से राजकुमार पागल हुआ है।”

राजा को जब बुढ़िया की बातों पर विश्वास हो गया तो राजकुमारी से बोला, “बेटी, तुम्हें यहाँ किसी प्रकार का कष्ट नहीं होगा। यदि सच में तुम्हारे कारण मेरा बेटा पागल हुआ है तो तुम मेरी सहायता करो। मैं चाहता हूँ कि उसके साथ तुम विवाह कर लो।”

राजकुमारी बुढ़िया की दुष्टता से क्रोध के मारे जल रही थी। उसने कहा, “इस पर विचार करने के लिए मैं बारह वर्ष तपस्या करूँगी। इसके बाद मैं अपना विचार बताऊँगी।”

राजा ने सहर्ष उसे बारह वर्ष तपस्या करने का समय दे दिया। राजकुमार ने जब राजकुमारी को देखा और उसे यह मालूम हुआ कि राजकुमारी यहीं महल में ही बारह वर्ष तपस्या करेगी तो उसका पागलपन दूर हो गया।

उधर राजकुमार और मंत्रीकुमार जब शिकार खेलकर लौटे तो पता चला कि राजकुमारी सुबह से ग़ायब है। राजकुमार को इससे बड़ा दुख हुआ। थोड़ा सोच-विचार के बाद मंत्रीकुमार ने राजकुमार से कहा, “आप दुखी हों। मैं हर संभव प्रयत्न करके राजकुमारी को खोज निकालूँगा।”

उसी दिन से मंत्रीकुमार नित्य ही दूर-दूर तक जाकर राजकुमारी की खोज करने लगा। इसी तरह बहुत दिन बीत गए, परंतु राजकुमारी का कुछ भी पता चला।

अंत में एक दिन ढूँढ़ते-ढूँढ़ते मंत्रीकुमार उसी राज्य में पहुँचा, जहाँ राजकुमारी को बंदी बनाकर लाया गया था। उस राज्य में पहुँचकर मंत्रीकुमार ने किसी नगरवासी से पूछा, “क्यों भाई, इस नगर का राजा कैसा है?”

नगरवासी ने कहा, “राजा तो बहुत अच्छा है, पर इन दिनों वह बड़ी परेशानी में पड़ा हुआ है।”

मंत्रीकुमार ने कहा, “कैसी परेशानी भाई ?”

नगरवासी ने बताया, “राजकुमार एक दिन जंगल में शिकार खेलने गया तो वहाँ किसी सुंदरी के रूप को देखकर मूर्च्छित हो गया था और तभी से पागल हो गया। राजा ने राजकुमार के पागलपन को दूर करने के लिए आधा राजपाट और राजकुमारी से शादी कर देने की घोषणा की। एक बुढ़िया उस सुंदरी को बंदी बनाकर राजा के पास ले आई। अब राजा उस बुढ़िया को आधा राजपाट देकर उसके लड़के के साथ राजकुमारी की शादी करेगा।’

मंत्रीकुमार ने पूछा, “तो उस सुंदरी से राजकुमार की शादी हो गई?”

नगरवासी ने कहा, “नहीं, शादी तो अभी नहीं हुई। वह सुंदरी बारह वर्ष से तपस्या कर रही है। अब दो-चार दिन में वह अपना विचार राजा को बताएगी। परंतु सुंदरी के आने से राजकुमार का पागलपन दूर हो गया है।”

मंत्रीकुमार ने पूछा, “बुढ़िया और उसका लड़का कहाँ हैं?”

नगरवासी ने बताया, “राजमहल के पास ही बुढ़िया की झोंपड़ी है। उसका लड़का पागल है। तीन-चार साल बाद कहीं से माँगता-खाता इधर भी जाता है। क्योंकि राजा वचन दे चुका है, इसलिए राजकुमारी की शादी उस पागल से अवश्य कर देगा।”

मंत्रीकुमार ने उस नगरवासी से सारा हाल-चाल और बुढ़िया के पागल लड़के की शक्ल-सूरत का पता लगा लिया।

पूरी बात जान लेने के बाद मंत्रीकुमार लौटकर राजकुमार के पास गया, उसे सब बातें बताईं। राजकुमार को थोड़ा संतोष देकर मंत्रीकुमार फिर वहाँ से निकला। रास्ते में ही उसने बुढ़िया के पागल लड़के का भेष बना लिया और पागलों की तरह बकता-बड़बड़ाता बुढ़िया की झोंपड़ी में गया।

बुढ़िया ने उसे अपना लड़का समझकर बहुत प्यार किया, फिर खाना देते हुए बोली, “अच्छा हुआ बेटा, तू चला आया। तेरे साथ अब राजकुमारी की शादी हो जाएगी। तेरे-मेरे लिए भी अब महल बन जाएगा। तू भी अब राजा का आधा राज्य लेकर राजा बन जाएगा।”

दूसरे दिन सवेरा होते ही सारे राज्य में शोर हो गया कि बुढ़िया का लड़का गया। बुढ़िया भी ख़ुशी-ख़ुशी लड़के को राजमहल दिखाने ले गई।

राजा ने बुढ़िया के लड़के को दामाद मान सारे राजमहल में घूमने-फिरने और अपनी लड़की देखने की आज्ञा दे दी। मंत्रीकुमार बुढ़िया के लड़के के रूप में पागल बनकर सारे महल में घूमने-फिरने लगा और राजा की लड़की से पागलों की तरह बात करता हुआ वहाँ भी गया जहाँ राजकुमारी तपस्या कर रही थी। राजकुमारी के पास पहुँचकर मंत्रीकुमार ने बहुत धीरे से कहा, “मैं बुढ़िया के लड़के का रूप बनाकर तुम्हारे पास तक पहुँचा हूँ। अब तुम चिंता मत करो। मैं रात को इसी पागल भेष में तुम्हारे पास आऊँगा। तुम तैयार रहना। मौक़ा देखकर मैं तुम्हें यहाँ से निकाल ले चलूँगा।”

राजकुमारी ने मंत्रीकुमार को पहचान लिया। वह बहुत प्रसन्न हुई, बोली, “मैं तैयार रहूँगी। मेरी बारह वर्ष की तपस्या आज सफल हुई। अब मुझे कोई चिंता नहीं है।”

राजकुमारी से बातचीत करके मंत्रीकुमार पागलों की तरह इधर-उधर देखता हुआ वापस बुढ़िया की झोंपड़ी में चला गया। सभी सिपाही और कर्मचारी उसके साथ राजा के दामाद जैसा व्यवहार करने लगे।

रात को जब सभी कर्मचारी सो गए तो मंत्रीकुमार बुढ़िया के पुत्र के रूप में पागलों जैसा बड़बड़ाता हुआ इधर-उधर घूमने लगा। सिपाही और कर्मचारी उसे राजा का दामाद मानकर कुछ नहीं बोलते थे। उसके लिए हर समय आने-जाने की पूरी छूट थी।

मंत्रीकुमार घूमता-फिरता महल के भीतर राजकुमारी के पास गया। राजकुमारी तैयार बैठी थी। मंत्रीकुमार राजकुमारी को अपने साथ लेकर बाहर निकला। कुछ सिपाहियों ने राजकुमारी को मंत्रीकुमार के साथ देखा। उन्होंने समझा कि राजा की लड़की अपने होने वाले पति के साथ कहीं घूमने जा रही है। किसी ने उन्हें रोका नहीं। मंत्रीकुमार और राजकुमारी सवेरा होते-होते उस राज्य से बाहर हो गए।

रात में सुंदरी राजकुमारी के निकल भागने की बात सुनकर राजा बड़ा दुखी हुआ। सारे राज्य में शोक छा गया।

मंत्रीकुमार जब राजकुमारी को लेकर राजकुमार के पास पहुँचा तो उनके जीवन में जैसे हरियाली-सी छा गई। मंत्रीकुमार ने राजकुमारी को राजकुमार के साथ विवाह कर लेने की सलाह दी। राजकुमार और राजकुमारी पहले से ही एक-दूसरे को चाहते थे, इसलिए मंत्रीकुमार की बात दोनों ने मान ली।

राजकुमार और राजकुमारी का विवाह हो जाने के बाद मंत्रीकुमार ने कहा, “हमें घर से निकले बारह वर्ष से अधिक हो गए। हमारे माता-पिता दुखी होंगे। अब हमें अपने राज्य में लौटना चाहिए।” राजकुमार ने भी उसकी बात से अपनी सहमति जताई और राजकुमारी के साथ दोनों अपने राज्य लौट गए। अपने राज्य में पहुँचने पर उनका भव्य स्वागत हुआ।

स्रोत :
  • पुस्तक : बिहार की लोककथाएँ (पृष्ठ 75)
  • संपादक : रणविजय राव
  • प्रकाशन : राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, भारत
  • संस्करण : 2019

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