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सात बहनें

saat bahnen

अज्ञात

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सात बहनें

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    बहुत दिन पहले की बात है एक नवयुवक था। उसका नाम था समर प्रधान। उसके साथ गाँव के दो बूढ़े थे। वे तीनों पास के गाँव से एक भोज में शामिल होकर अपने गाँव लौट रहे थे। सबने भरपेट शराब पी रखी थी। युवा समर बूढ़ों की गति से तो चलता नहीं, सो वह लंबे डग भरता हुआ आगे चल रहा था। चलते-चलते एक जंगल आया। जाने कहाँ से तूफ़ान की तरह एक सुंदर युवा लड़की उसके सामने आकर खड़ी हो गई। पहले कभी इतनी सुंदर लड़की को अपनी आँखों से देखने वाला समर इस घने जंगल में उसे देखकर दंग रह गया। उसे अपनी आँखों पर भरोसा नहीं हुआ। हाथों की उँगलियों से दोनों आँखों को मलकर वह परखने लगा कि जो कुछ वह देख रहा है, सच है या झूठ। मगर यह झूठ नहीं था। तभी युवती उसका रास्ता रोककर बोली, “बाबू, तुम मेरा एक काम करोगे?”

    समर ने प्रतिप्रश्न करते हुए कहा, “क्या काम करूँ, कहो?”

    कोमल लहलहाते शालपत्र पर एक बच्ची की तरफ़ इशारा करते हुए बोली, “देखो इस बच्ची को माता आई हैं। तुम अगर मंत्र पढ़कर फूँक दोगे तो वह ठीक हो जाएगी।”

    समर ने सोचा कि इस घने जंगल में इंसान का बच्चा कहाँ से आया? बच्ची के पास खड़ी यह युवती उसकी माँ जैसी नहीं लग रही है। उसका शरीर सुबह के तारे की तरह चमक रहा है। कहीं भूत-प्रेत ना हो। उसका दिल ज़ोरों से धड़कने लगा। उसने अपने सीने पर दो-तीन बार थूका और साहस बाँधकर बोला, “नहीं-नहीं, मुझे झाड़-फूँक करना नहीं आता है। तुमने मुझे क्या ओझा समझ लिया? रास्ता छोड़ो, मुझे जाने दो।” कहकर समर आगे बढ़ गया।

    ओझा से तो लोग नफ़रत करते। कोई अगर उलटी, दस्त या किसी बीमारी से मर जाता तो लोग सारा दोष इन्हीं ओझा-गुनिया पर डाल देते। ऊपर से ओझा से डरते, पर पीठ पीछे नफ़रत करते। वह किसी तरह उस युवती से पीछा छुड़ाना चाहता था। अच्छा है उससे उसे छुटकारा मिल गया। इसी तरह कुछ कोस गया होगा कि एक और सुंदर युवती उसे दिखी। समर को देखकर वह बोली, “हे बाबू! उस बच्ची को ज़रा ठीक कर दे।”

    समर ने देखा कि वही बच्ची कोमल शाल के पत्तों पर सोई है और उसके शरीर पर माता फैली है। वह युवती को परे हटाकर आगे बढ़ने लगा तो युवती बोली, “बाबू! तुम ज़रा फूँक देते तो बच्ची ठीक हो जाती। इंकार कर देना क्या उचित है?”

    “मैं ओझा नहीं हूँ। मुझे मंत्र-तंत्र कुछ नहीं आता। जो जानता है उससे जाकर कहो। मैं ऐसा नहीं कर सकता।” इतना कहकर समर आगे बढ़ गया और पीछे मुड़कर देखा तो वह युवती वहाँ नहीं थी। ही वह दोनों बूढ़े व्यक्ति उसे दिखे। शराब पीकर मदहोशी में कहीं गिर ना गए हों! उसके मन में थोड़ा भय समा गया। पर अब उपाय क्या था? आगे बढ़ पा रहा था, पीछे लौट पा रहा था। बीच जंगल में रुकना भी ठीक नहीं। अपने दल से अलग हो गए लौटते बैल की तरह समर आगे बढ़ता रहा।

    इसी तरह रास्ते में उसे सात नवयुवतियाँ मिलीं। उन सभी के पास वही एक बच्ची थी। सभी उससे झाड़-फूँक करने के लिए कहतीं। आख़िरी युवती को मना करके जैसे ही समर आगे बढ़ने लगा कि वह युवती उसे सावधान करते हुए बोली, “हे बाबू! मेरी तरह छह और युवतियों ने तुमसे लड़की को ठीक कर देने के लिए कहा, पर तुमने किसी की नहीं सुनी। हम सभी सात बहनें हैं। तुम सटीक नक्षत्र में पैदा हुए हो इसलिए तुम ही बच्ची को ठीक कर पाओगे। वसंत रोग को ठीक कर देने का मंत्र और किसी को पता नहीं है। तुम्हें हम वह मंत्र सिखा देते हैं। तुम सीख जाओगे तो पृथ्वी के दूसरे लोग भी सीख जाएँगे। नहीं तो इस बीमारी से लोग मर जाएँगे। इसके अलावा हम तुम्हें एक वर देंगे। तुम चाहोगे वही बन जाओगे। वह सिर्फ़ तुम्हारे ही काम आएगा।”

    समर ने सोचा कि एक-एक करके सात युवतियों ने उससे एक बात कही। अगर वह मंत्र सीखकर माता से ग्रस्त लोगों को ठीक कर दे तो नुक़सान क्या है। मंत्र सीखकर लोगों को मारेगा, तभी बदनाम होगा।” ऐसा सोचकर वह युवती की बात पर राज़ी हो गया और पूछा, “तुम सातों बहन रहती कहाँ हो? तुम सबकी बच्ची पर क्या माता का प्रकोप है?”

    युवती ने कहा, “हम सात बहनें इंसान नहीं देवियाँ हैं। यह बच्ची हमारी मानस पुत्री है। माता के प्रकोप से इंसान मुक्त हो, वही मंत्र सिखाने आई हैं। तुम उपयुक्त व्यक्ति हो। तुम सटीक समय और नक्षत्र में जन्मे हो। तुम उस मंत्र को पढ़कर जिसे भी फूँक दोगे, उसके शरीर से चेचक ख़त्म हो जाएगा। यह साधना कोई और नहीं कर पाएगा।”

    उसी समय बाक़ी छह बहनें भी वहाँ पहुँच गईं। सभी का दिव्य रूप देखकर समर को लगा मानो एक गुच्छा सरसों का फूल खिल गया हो। युवा लड़का डरेगा भला क्यों? वे बहनें उसे परेशानी में तो नहीं डाल रही हैं। एक-एक करके सातों ने समर को मंत्र सिखाया और हाथ उठाकर तथास्तु कहा। सातों मंत्र समर के दिमाग़ में घुस गए। उसके बाद एक वर देकर कहा कि, “सिर्फ़ अपने लिए ही इस वर का इस्तेमाल करना। जो चाहोगे वही बन जाओगे और किसी की बातों में जाओगे तो हम यह सारे मंत्र तुमसे छीन लेंगे।”

    उसके बाद उस बच्ची को दिखाकर उसे फूँक मारने के लिए कहा। समर ने वही मंत्र पढ़कर बच्ची को फूँक दिया। तुरंत उसके शरीर से चेचक ग़ायब हो गया। समर ने फिर और देर करते हुए वहाँ से सीधे अपने गाँव का रुख़ किया। कुछ दूर जाने के बाद पीछे पलटकर देखा तो पाया कि वह सात बहनें और बच्ची ग़ायब हो गई थीं।

    एक दिन, दो दिन, तीन दिन, इसी तरह कई दिन बीत गए। समर के गाँव में चेचक फैली। उस समय उस रोग को कोई क्या पहचानता? लोगबाग बेहाल तकलीफ़ झेलने लगे। पर समर उस बीमारी को पहचान रहा था। गाँव भर घूम-घूमकर जिस पर भी माता का प्रकोप देखता मंत्र पढ़कर फूँक देता और वह व्यक्ति देखते ही देखते चंगा हो जाता। इसी तरह सभी को ठीक करने लगा। गाँव के लोग समझ गए कि समर टोना-टोटका सीख गया है। मुँहज़बानी बात फैल गई। देखते ही देखते आस-पास के गाँव के लोग समर को ओझा मानने लगे।

    समर की तो शादी नहीं हुई थी। जवान लड़का। पास के गाँव की लड़की मंदार के साथ उसका प्रेम प्रीति का भाव था। उस गाँव का नाम था कलाड़ी। समर मंदार से मिलने के लिए कभी-कभी कलाड़ी जाता। मंदार के साथ मिलकर हँसी-ख़ुशी बातें करके अलस्सुबह अपने गाँव लौट आता।

    एक दिन कलाड़ी गाँव की एक लड़की की शादी थी। बराती गाँव पहुँच चुके थे। भोज खाकर सुबह दुल्हन को लेकर लौट जाने की प्रथा थी उस गाँव की। उसी दिन दुपहर को गाँव में युवक झुंड बनाकर घूम रहे थे। घूमते-घूमते मंदार के घर के पिछवाड़े उन्हें सलप (एक तरह का पेड़ जिससे दारू बनती है) का पेड़ दिखा। उस पेड़ पर बँधे घड़े से दारू भरकर टप्-टप् नीचे गिर रही थी। यह देखकर उनके मुँह में पानी गया। दारू पीने के लिए सारे युवक तड़पने लगे। वे सब मंदार के पिता के पास पहुँचे। वह शराबी था, दारू पीकर नशे में धुत्त था। सबने उससे पीने के लिए दारू माँगी। उसके मना करने पर मनुहार करने लगे। उसे होश तो था नहीं जो वह उनकी बात मानता। उसने साफ़ इनकार करते हुए कहा, “नहीं, नहीं, दारू-फारू कुछ नहीं है। दौड़े चले आए दारू पीने। चले जाओ, मैं किसी को भी दारू नहीं दूँगा।”

    इंकार सुनकर युवकों ने अपमानित महसूस किया। उनमें एक ओझा भी था। सबने उसे टोना-टोटका करने के लिए कहा। ओझा बोला, “ठीक है, देखता हूँ।” फिर वे सब वहाँ से चले आए। जाते-जाते उसे सुनाकर बोले, “ठीक है बेटा, देखते हैं कैसे तू दारू पिएगा।” उस रात भोज खाकर सुबह दुल्हन को लेकर बरात वापस लौट गई।

    रात बीत जाने पर सुबह मंदार के पिता का नशा उतर चुका था। अपने बग़ीचे में जाकर देखा तो वहाँ सलप का पेड़ नहीं था। वह समझ गया कि जिन्हें उसने दारू नहीं पीने दी, वही लोग मंत्र करके उसका पेड़ ले गए हैं। उन सब के ऊपर उसे ख़ूब ग़ुस्सा आया। बेटा मैं तुम्हें छोड़ने वाला नहीं हूँ, मन में सोचकर, वह उसके घर पहुँचा, जो मंत्र के बल पर उसका पेड़ ले गया था। उसके घर के पिछवाड़े स्थित बग़ीचे में देखा तो पाया कि सलंप का पेड़ वहाँ है। पहले की तरह घड़ा भरकर शराब बाहर टपक रही है। यह देखकर दारू पीने के लिए उसका मन ललचा। पर वह था ज़िद्दी। उसने देखा कि बग़ीचे में एक बहुत बड़ा कटहल का पेड़ है, नीचे से ऊपर तक कटहल फला हुआ है। ऐसा कटहल भी उसने पहले कभी देखा नहीं था। अब उसने कटहल का पेड़ ले जाना चाहा। चुपचाप कटहल के पेड़ के पास पहुँचा। उसके नीचे से मिट्टी का ढेला लेकर वापस अपने गाँव पहुँचा। उसके बाद कैसे उस पेड़ को लाएगा, इसके उपाय सोचने लगा।

    एक दिन रात को समर मंदार से मिलने गया। उस रात मंदार ने उससे कोई बात नहीं की, चुप बैठी रही। यह देखकर समर ने पूछा, “मंदार, तू मुझसे बात क्यों नहीं कर रही है? मुझसे ग़ुस्सा हो? सच क्या है खुलकर बताओ।” बहुत कहने, समझाने पर मंदार बोली, “तुम अगर मुझसे सच्चा प्यार करते हो तो मेरा शरीर छूकर क़सम खाओ, तभी मैं बताऊँगी।”

    समर ने मंदार के सिर पर हाथ रखकर क़सम खाई, “क़सम, क़सम, तीन बार क़सम। अगर क़सम मैं तोड़ता हूँ तो तुम्हें कभी नहीं पाऊँगा।”

    तब मंदार उससे सारी बातें विस्तार से बताने के बाद पेड़ को वापस ला देने के लिए हठ करने लगी। समर सबकुछ सुनने के बाद मंदार से बोला, “तू जाकर अपने पिता से कह कि एक ओझा हमारे गाँव में आया है, तुम उससे जाकर मिलो।” समर के कहे अनुसार मंदार ने अपने पिता से वही बात कह दी। मंदार के पिता ने समर से मिलकर सारी बातें बताईं।

    सब बातें सुनकर समर का सिर चकराने लगा। कैसे दूसरे की इच्छा पूरी करने के लिए वह सातों बहनों को दिए हुए वर का उपयोग करेगा? अगर ऐसा करेगा तो उसके पास से सब दिन के लिए वह मंत्र ग़ायब हो जाएगा। अगर ऐसा नहीं करेगा तो मंदार उसे नहीं मिलेगी। आख़िर में चाहे मंत्र चला जाए, पर मंदार को वह नहीं छोड़ेगा, यही निर्णय उसने लिया।

    उसी रात मंदार के पिता को बुलाकर बोला, “तुम उस कटहल के पेड़ को कहाँ रखोगे, मुझे वह जगह दिखाओ।” मंदार के पिता ने अपने बग़ीचे में वह जगह दिखा दी। समर ने उसी जगह पर खड़े होकर मिट्टी का ढेला हाथ में लेकर मंत्र पढ़ा। पलक झपकते ही वह कटहल का पेड़ वहाँ पहुँच गया। यह देखकर मंदार का पिता ख़ुश हो गया। मंदार की शादी समर के साथ कर दी। काफ़ी धान-चावल, हल-जुआ देकर दोनों की विदाई की। समर मंदार को लेकर अपने घर लौटा।

    ऐसे ही कुछ दिन बीत गए। एक दिन समर जंगल गया। जंगल में घूमते-घूमते अचानक उन्हीं सात बहनों को देखा। उन सबने समर को चारों तरफ़ से घेर लिया। समर डर से काँप रहा था। सातों बहनें एक साथ बोलीं, “समर तुम अपना वादा भूल गए। अपनी इच्छा पूरी करके दूसरे की इच्छा पूरी की। तुम दूसरों की बातों में जाते हो। कभी ऐसे ही दूसरों की बातों में आकर किसी को नुक़सान पहुँचा सकते हो। इसलिए तुम्हारे पास अब मंत्र को हम रहने नहीं देंगी। हम वह सारे मंत्र वापस लौटा लिए जा रही हैं।”

    समर के पास से वह मंत्र वापस लेने के लिए उसकी पाक नज़र को नापाक करना होगा। यह सोचकर सातों बहनों ने अपने-अपने कपड़े एक साथ अपने तन से अलग कर दिए। यह देखकर समर ने शर्म से आँखें बंद कर लीं। पर तब तक उसकी नज़र नापाक हो चुकी थी। आँखें खोलकर समर ने देखा तो सातों बहनें वहाँ से ग़ायब हो चुकी थीं और समर को मिली मंत्र विद्या भी वह भूल चुका था।

    स्रोत :
    • पुस्तक : ओड़िशा की लोककथाएँ (पृष्ठ 51)
    • संपादक : महेंद्र कुमार मिश्र
    • प्रकाशन : राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, भारत
    • संस्करण : 2017
    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

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