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राजकुमारी और हाथी दूल्हा

rajakumari aur hathi dulha

अज्ञात

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राजकुमारी और हाथी दूल्हा

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    एक राज्य में एक राजा शासन कर रहा था। उसके पास ढेर सारी संपत्ति थी। नौकर-चाकर, दास-दासी भी बहुत थे। परिवार काफ़ी बड़ा था। राजमहल के अंदर हाथी, घोड़ा, बाघ, भालू, हिरन, गैंडा आदि जीव-जंतुओं का ज़ख़ीरा था। वह राजा महाप्रतापी था। कई राज्यों पर विजय हासिल कर शत्रुविहीन होकर आनंद के साथ प्रजा का पालन कर रहा था। उसकी एक रूपवती रानी थी। वह भी हमेशा राजा का मन मोहने में तत्पर रहती। इन सबके बावजूद राजा के मन में एक अभाव रह गया था। कारण था उसका इकलौता बेटा, जो रूपवान, वीर और निर्भीक था, पर विद्या-बुद्धिहीन था।

    राजा बेटे की बात सोचकर दुःखी हो जाता। उसके मन में निरंतर एक ही चिंता रहती कि वह अब उम्र के चौथे पड़ाव पर पहुँच चुका है और उसकी एकमात्र संतान मूर्ख है। ऐसे में राज्य का दायित्व किसे सौंपें? एक दिन बेटे को अपने पास बुलाकर राजा ने कहा, “बेटा! तुम इस राज्य के राजकुमार हो और इसके भविष्य के राजा, पर तुम बुद्धिहीन हो। इस हालात में इतने बड़े राज्य का अधीश्वर होना मामूली बात नहीं है। तुम्हें आज से कुछ कुछ विद्या हासिल करनी होगी।”

    राजकुमार ने अपने पिता की बातों पर ग़ौर किया तो लगा कि उनकी बात तो सही है। किसी भी विद्या को हासिल किए बिना वह राज्य पर शासन करेगा कैसे? मन ही मन अपमानित महसूस करते हुए उसने निर्णय लिया कि यह राज्य छोड़कर वह चला जाएगा। जब तक राज्य शासन करने की विद्या में वह प्रवीण नहीं हो जाएगा तब तक वापस नहीं लौटेगा। मन में ऐसा सोचकर एक दिन सुयोग समय पर रात के अँधेरे में अश्वशाला से घोड़ा लेकर राजकीय वेशभूषा में हाथ में तलवार लिए वह निकल पड़ा। सुबह जब राजमहल में सब जगे तो देखा राजकुमार नहीं हैं। चारों तरफ़ खलबली मच गई। राजा और रानी बेटे के घर छोड़कर चले जाने के ग़म में दुःखी होकर दिन बिताने लगे।

    उधर घोड़े पर सरपट भागते-भागते राजकुमार दूसरे एक राज्य में पहुँचा। वहाँ पहुँचकर घोड़े से उतरकर राजसी ठाट से सीधा दरबार की तरफ़ बढ़ा। सिंहद्वार पर पहुँचकर दरबान से राजा को ख़बर पहुँचाने के लिए कहा। दरबान ने जाकर राजा से कहा, “महाराज! एक वीर युवक आपके दर्शन के इंतज़ार में है।” राजा ख़ुद चलकर आए और देखा तो लगा सच ही वीर युवक है कोई। सुंदर बलिष्ठ शरीर। तेजोदीप्त मुख, ठीक किसी राजकुमार की तरह। राजा ने उसके आने का कारण जानना चाहा। युवक ने उत्तर दिया, “महाराज! मैं एक राजपुत्र हूँ। दुर्भाग्य से मैं कोई विद्या-साधना कर नहीं पाया। पिता मेरे हाथों राज्य का दायित्व सौंपेंगे या नहीं, इसे लेकर मैं चिंतित हूँ। इसलिए मैं कुछ दिन विदेश भ्रमण करके कुछ अनुभूति संग्रह करने की आस लिए घर से निकला हूँ। पूर्ण अभिज्ञता होने तक अपने राज्य नहीं लौटूँगा। इसलिए इस दरबार में मुझे परिचारक के रूप में स्वीकार कीजिए।” विवेकवान राजा ने आगंतुक राजपुत्र के स्पष्ट सभ्य व्यवहार और सरल स्वभाव से मुग्ध होकर उसे दरबान के पद पर नियुक्त किया। उसी दिन से राजकुमार वहाँ द्वारपाल के रूप में निष्ठा के साथ अपना कर्तव्य पालन करने लगा।

    उस राजा की एक बहुत ख़ूबसूरत बेटी थी। उसकी सुंदरता देखकर युवा लड़के दंग रह जाते। राजा अपनी इस बेटी के लायक़ लड़का ढूँढ़-ढूँढ़कर थक गए थे। जिस भी राज्य में दूतों को भेजा, सभी लौटकर राजकुमारी के लायक़ वर मिलने की ही सूचना देते। राजा अब करें तो क्या? फिर एक दिन राजा ने तय किया कि राजा और राजकुमारों को निमंत्रित कर राजकुमारी का स्वयंवर रचाया जाए। आख़िर में वही किया गया। विभिन्न राज्यों में निमंत्रण भेजा गया। एक निर्दिष्ट दिन वे सब यहाँ एकत्र होंगे और राजकुमारी उनमें से किसी एक का वरण करेगी।

    राजकुमारी सोलह-सत्रह साल की भरी जवानी में अपने को सँभालने में असमर्थ महसूस कर रही थीं। हर समय उसकी दासियाँ आस-पास रहकर उसकी पूरी देखभाल करती रहतीं। फिर भी राजकुमारी का मन एक जीवनसाथी की तलाश में था। अचानक एक दिन उसने द्वारपाल के रूप में काम करने वाले उस विदेशी राजकुमार को देख लिया। पहली नज़र में ही वह उसके प्रति आकर्षित हो गईं। उस दरबान की चाल-ढाल, तौर-तरीक़े में एक राजकुमार की ठाट के लक्षण का अनुमान उसे हो रहा था। उसके सुंदर चेहरे और पौरुष पर मुग्ध होकर राजकुमारी ने अपनी परिचारिकाओं को उसका परिचय लाने का आदेश दिया।

    राजकुमारी के मन की बात जानकर परिचारिकाओं ने उस दरबान से उसका असली परिचय पूछा। राजकुमार ने अपना सही-सही परिचय उन्हें दिया। अचानक क्यों उन्होंने उसका परिचय जानना चाहा, यह सोचकर राजकुमार ने इधर-उधर नज़र फिराई तो उसकी नज़र ऊपर महल में उसकी तरफ़ ही चेहरा किए खड़ी राजकुमारी पर पड़ गई। खरे सोने के रंग जैसा उसका तन, गोल चाँद की तरह चेहरे पर वह धीमी मुसकान कितनी सुंदर जँच रही है। राजकुमार बिना पलक झपकाए उसे निहारता रह गया। राजकुमारी भी उस पर नज़र गड़ाए रही। आपस में कोई बातचीत नहीं, बस चार आँखों का मूक मिलन हुआ। उसी एक पल में दोनों आपस में एक-दूसरे को समर्पित हो गए। उसी पल से राजकुमार और राजकुमारी एक-दूसरे को चाहने लगे। दोनों के मन में बस एक ही चिंता थी कि कैसे एक-दूसरे को पा सकेंगे।

    परिचारिकाओं ने जाकर राजकुमारी को द्वारपाल का असली परिचय बता दिया, जिसे सुनकर राजकुमारी के आनंद का ठिकाना ना रहा। वह पहली नज़र में ही अपना दिल हार चुकी थी। वह एक राजकुमार है, यह जानकर उसका दिल बल्लियों उछलने लगा। उसके बाद से सखियों के साथ जब भी होती, सिर्फ़ उसी राजकुमार की बातें करतीं। उधर राजकुमार भी मन-ही-मन राजकुमारी को याद करते उसके विरह में अपना शरीर जलाने लगा। उसका अब किसी भी काम में मन नहीं लगता। पर मन में भय भी था कि कहीं काम में कोताही करने पर राजा उसे नौकरी से निकाल दे। वह किसी राज्य का राजकुमार है ज़रूर, पर यहाँ तो वह द्वारपाल है। इसलिए किसी सामान्य दरबान को राजा भला अपनी इकलौती कन्या का दान क्यों करेंगे? इस तरह चिंताओं में घिरकर राजकुमार दिन-पर-दिन कमज़ोर होता गया। उधर राजकुमारी का भी हाल बेहाल था।

    ठीक उसी समय राज्य के सारे जीव-जंतुओं ने सुनसान जंगल में एक सभा का आयोजन किया। बाघ, भालू, सिंह, गैंडा, हिरन, सांभर, ख़रगोश, सियार, हाथी, बनबिलाव, भेड़िया आदि जंतु वहाँ उपस्थित थे। वे सब विचार करने लगे कि राजा ने इतनी सुंदर कन्या रत्न को पाया है, पर उसके लिए योग्य वर ढूँढ़ने में असमर्थ हैं। आख़िर में सबने मिलकर यही तय किया कि उस राजकुमारी से सिर्फ़ हाथी ही विवाह कर पाएगा और कोई नहीं।

    यह फ़ैसला सुनकर हाथी मन-ही-मन ख़ूब ख़ुश हुआ। राजकुमारी से वह आसानी से शादी कर लेगा, भला किसकी क़िस्मत में ऐसा सुयोग आता है। उसके बाद उसने मन में काफ़ी विचार किया कि कैसे वह राजकुमारी से विवाह कर पाएगा। हाथी ने अपने घर लौटकर बाक़ी हाथियों को बुलाकर अलग से एक सभा की। उसी सभा में एक हाथी ने बहुत ही बुद्धिमानी भरा उपाय बताया। उसने कहा, “भाइयो! राजकुमारी हर दिन सुबह अपनी सखियों के साथ राजउद्यान के तालाब में नहाने आती है और सूरज उगने से पहले वापस राजमहल लौट जाती है। हम अगर उन से पहले वहाँ जाकर तालाब के अंदर घुसकर पत्थर समान बनकर खड़े रहेंगे तो राजकुमारी को आसानी से उठा ले आएँगे।” इतना सुंदर प्रस्ताव सब के मन को भा गया। सबने मिलकर तय किया कि दूसरे दिन ही यह काम कर लिया जाए।

    दूसरे दिन राजा स्वयंवर सभा के आयोजन में व्यस्त थे। कई देशों के राजा राजमहल पहुँच चुके थे। इसलिए सखियाँ सुबह होने से काफ़ी पहले राजकुमारी को लेकर नहाने के लिए तालाब ले गईं। तब तक सारे हाथी पानी के अंदर सूँड़ ऊपर और पीठ थोड़ी बाहर निकालकर खड़े थे। राजकुमारी और सखियों ने हाथियों की पीठ को पत्थर समझकर उसके ऊपर बैठकर नहा-धोकर वापस लौटने लगीं। सभी तालाब से बाहर निकल चुकी थीं, पर राजकुमारी को मुक्ता झाबा से अपना शरीर मलते थोड़ी देर हो गई। उसी समय अचानक सारे हाथी पानी से उठकर दौड़ने लगे। राजकुमारी हाथी की पीठ से उतर नहीं पाईं और इस तरह से हाथियों के साथ वह भी जंगल पहुँच गई।

    सखियों ने राजकुमारी की यह हालत देखकर रोते-रोते राजा के आगे सारी बातें बता दीं। अंत:पुर में खलबली मच गई। राजकुमारी पर यह कैसी आपदा आन पड़ी। सभी हाय-तोबा मचाने लगे। द्वार पर प्रहरी का काम करने वाले राजकुमार ने जैसे ही यह बात सुनी, उसके सिर पर मानो आसमान फट पड़ा। उसकी मन की मानसी आज अपहृता! अनेक दिनों की आशा, विश्वास, सपने क्या सब पानी में मिल जाएँगे? जिसके लिए बेगानों के द्वार पर प्रहरी बनकर भी वह गर्वित है, उसका आज ऐसा हाल है! वह कैसे यह सब सह पाएगा? उसका मन बार-बार मथने लगा। उसने सोचा कि राजकुमारी अपनी ऐसी असहाय स्थिति में उसे ज़रूर याद कर रही होंगी। इसलिए अब कैसे भी हो, उनकी रक्षा करनी होगी, नहीं तो फिर अपना जीवन भी वह हार देगा। किसके लिए इस दुनिया में अब वह ज़िंदा रहेगा।

    इसलिए वह राजा से अनुमति लेकर घने जंगल की तरफ़ रवाना हो गया। बीहड़ जंगल में दुपहर के समय भी सूर्य की किरण दिखाई पड़ना स्वप्न की तरह था। बाघ कह रहा है, “मैं हूँ” साँप कह रहा है “मैं हूँ।” भूत-पिशाचिनों के हो-हल्ले से रोम-रोम काँप रहे हैं। कमर में बारह हाथ की तलवार खोंसकर ख़ूब साहस के साथ अपने प्राण से भी प्यारी राजकुमारी की जीवन रक्षा करने के लिए राजकुमार आगे बढ़ने लगा।

    चलते-चलते बहुत दूर जाने पर उसने देखा कि एक बहुत बड़ा साँप उसका रास्ता रोककर खड़ा है। जो भी है, है तो राजकुमार, इतनी आसानी से कैसे डर जाएगा? मन में साहस जुटाकर साँप को सुनाते हुए बोला, “मैं जाने कितने बड़े-बड़े साँपों को मारकर खा गया हूँ, ये एक मामूली साँप मुझे भला क्या डराएगा? यह तो मेरे एक कौर के लिए भी कम है।”

    उसकी बात सुनकर साँप ने डरते हुए धीरे-धीरे वहाँ से खिसकना शुरू किया। यह देखकर राजकुमार ने अपनी कमर से बारह हाथ की तलवार निकालकर साँप को मारने के लिए ऊपर उठाई। तभी साँप सहमकर बोला, “भाई मुझे मत मारो। मेरे पास एक 'मणि' है, उसे ले जाओ। ज़रूरत पड़ने पर मंत्र पढ़कर इसे नीचे रख दोगे तो बारह कोस तक चारों तरफ़ जलमग्न हो जाएगा।” शायद ज़रूरत पड़ जाए, ऐसा सोचकर साँप से मणि लेकर मंत्र सीखा और राजकुमारी के बारे में साँप से पूछा। इसी रास्ते से हाथियों के राजकुमारी को ले जाने की बात साँप ने उसे बताई। उसके बाद साँप को तलवार से एक चोट मारकर राजकुमार आगे बढ़ गया।

    कुछ दूर जाने पर और भी घना जंगल पड़ा। चारों तरफ़ सन्नाटा था। सामने देखा एक बहुत बड़ा बाघ हुँकार भर रहा है। राजकुमार के रोम-रोम काँप उठे। पर सीने में दम भरकर बिना डरे आगे बढ़ा और बाघ को सुनाते हुए बोला, “ओहो! जाने ऐसे कितने बाघों को मैं मार चुका हूँ। इस पिद्दी से भला मैं क्यों डरूँ? इसे खाऊँ तो एक ग्रास भी ना हो।'' राजकुमार की बात सुनकर बाघ डरकर दो क़दम पीछे हट गया।

    राजकुमार को तलवार निकालते देखकर बाघ बोला, “भाई मुझे मत मारो। मुझे मारकर भला तुम्हें क्या लाभ मिलेगा? तुम्हें एक अनमोल चीज़ दे रहा हूँ, यह ले जाओ। इसे लेकर मंत्र पढ़कर नीचे रख दोगे तो एक कोस चौड़ी और एक कोस लंबी जगह पर बाँस का एक कंटीला जंगल खड़ा हो जाएगा।” इतना कहकर बाघ ने उसे मंत्र बताकर बाँस की एक नली दी। राजकुमार ने बाँस की नली लेकर राजकुमारी के बारे में पूछा। बाघ ने बताया कि हाथियों का झुंड राजकुमारी को इसी रास्ते से ले गया है। बाघ ज़िंदा रहेगा तो कहीं दुश्मनी ना करे, यह सोचकर तलवार के एक प्रहार से बाघ को मारकर राजकुमार आगे बढ़ चला।

    कुछ दूर और चलने पर और भी बीहड़ जंगल मिला। चारों तरफ़ रात का अँधेरा फैला हुआ था। ठंडी हवा से शरीर काँप रहा था। मन को कड़ा करके राजकुमार आगे बढ़ रहा था, तभी उसे सामने एक राक्षस दाँत निकालकर हँसता हुआ खड़ा मिला। राजकुमार ने तलवार की मूठ पर हाथ रखकर सतर्कता के साथ आगे बढ़ते हुए राक्षस को सुनाता-सा बोला, “ओहो! जाने ऐसे कितने राक्षसों को मैं मार चुका हूँ इसकी भला क्या औक़ात है। इसे खाऊँगा तो मेरे एक ग्रास के बराबर भी ना होगा।” राजकुमार की बात सुनकर राक्षस डर गया। विनती करते हुए राक्षस बोला, “भाई! मुझे मत मारो, मैं तुम्हें एक मणि दूँगा। तुम उसे ले जाना। शायद तुम्हारे काम आए। मंत्र पढ़कर इसे नीचे रख देने पर बारह कोस तक सिर्फ़ आग ही आग होगी।”

    राजकुमार ने राक्षस से राजकुमारी के बारे में पूछा तो राक्षस बोला, “कुमार! यह जंगल की सबसे घनी जगह है। यहाँ से कुछ दूर जाने पर एक बहुत बड़ा बरगद का पेड़ मिलेगा, जो जाने कब से उस जगह पर अपनी शाखा-प्रशाखा फैलाए खड़ा है। वह एक बड़ी छतरी की तरह फैला हुआ है। वहाँ किसी भी इंसान का आना-जाना नहीं है। उसी पेड़ के नीचे जंगल के सारे हाथी झुंड बनाकर रहते हैं। वह पेड़ इतना घना है कि धूप, बरसात और ठंड से उन सब का बचाव करता है। दिन में हाथी चरने निकलते हैं और रात में वहाँ सोते हैं। उन्हें एक दिव्य सुंदरी लड़की को ले जाते हुए मैंने देखा है।”

    राक्षस से इतना सुनने के बाद राजकुमार ने चालाकी से उसे मार दिया और बहुत सतर्कता के साथ धीरे-धीरे चलकर उस बरगद के पास पहुँचा। उसने देखा कि सचमुच काफ़ी निरापद जगह है वह। इंसान का कोई नामो-निशान नहीं है वहाँ। राक्षस के बताए अनुसार जगह थी वह। सारे हाथी यहाँ-वहाँ चरने गए थे। चारों तरफ़ घूम-फिरकर राजकुमार देखता रहा। पेड़ के बीचोंबीच एक ऊँची जगह पर पुआल और घास डालकर एक छोटा बिछौना बनाया गया है। राजकुमार ने सोचा कि हो हो यह राजकुमारी का आसन होगा। उसके बाद देखा कि पेड़ के बीचोंबीच एक बहुत बड़ी खोह है। उसमें एक क्या, दो-तीन आदमी आराम से छिपे रह सकते हैं। इसलिए सबकुछ जाँच-परख लेने के बाद उसी खोह में तलवार लिए राजकुमार बैठ गया।

    वह मन ही मन सोचता रहा कि हाथियों को पता चल जाएगा तो उसके प्राण नहीं बचेंगे। इसलिए वह वनदुर्गा का स्मरण करने लगा। राजकुमार के भक्तिपूर्ण प्रार्थना से वनदुर्गा ने प्रसन्न होकर वर माँगने के लिए कहा। राजकुमार ने राजकुमारी का उद्धार करने की बात बताई। वनदुर्गा उसे अभयदान देते हुए बोली, “आधी रात को राजकुमारी को लेकर वह हाथियों की पीठ पर भी चलकर चला जाएगा तो भी उनको पता नहीं चलेगा। उस समय सारे हाथी मोहनिद्रा में होंगे।” इतना कहकर वनदुर्गा ग़ायब हो गई।

    राजकुमार पेड़ की खोह में उसी तरह बैठा रहा। शाम घिर आई। फिर अँधेरा घिरने लगा। हाथी एक विराट झुंड बनाकर रहे थे। पेड़ के खोह के अंदर से राजकुमार ने देखा, बीच में एक बड़े हाथी की पीठ पर राजकुमारी को बैठाकर, बाक़ी हाथी उसे चारों तरफ़ से घेरकर लिए रहे हैं। हाथियों ने पेड़ के नीचे बनाए गए बिछौने पर राजकुमारी को बिठा दिया और पेड़ के चारों तरफ़ बैठकर वे सब आराम करने लगे। सबसे बड़ा हाथी राजकुमारी के सिर पर अपनी ठुड्डी रखकर लेट गया। सारे हाथी राजकुमारी की इसी तरह हर दिन रखवाली करते थे।

    राजकुमार ने पेड़ की खोह में से धीमी आवाज़ में राजकुमारी को आवाज़ दी ताकि हाथियों को सुनाई पड़े। राजकुमारी ने थोड़ा सा घूमकर देखा तो अचानक खोह के अंदर दरबान की नौकरी करने वाले राजकुमार को बैठे देखा। उसे वहाँ देखकर राजकुमारी के विस्मय का ठिकाना रहा, पर साथ ही उसके मन में थोड़ा साहस उपजा। आख़िर फिर वह उसके मन का मीत जो था। कौन लड़की होगी जो ख़ुश होगी। पर यह सोचकर वह दुःखी भी हो गई कि अगर किसी तरह हाथियों को पता चल जाएगा तो वे राजकुमार को ज़रूर मार देंगे। राजकुमार ने उसे आश्वस्त किया और वनदुर्गा के वरदान के बारे में भी बताया। फिर उसने राजकुमारी से हाथियों के सोने का समय जानना चाहा। तब राजकुमारी बोली, “यह जो हाथी अपना सूँड़ उसके सिर पर रखकर लेटा है, जब सूँड़ अपने आप नीचे हो जाएगी तभी जानना हाथी सो गए।”

    राजकुमार हाथियों के सो जाने का इंतज़ार करता रहा। राजकुमारी बहुत ही व्याकुल होकर राजकुमार से बोली, “हे कुमार! मुझे तो हाथी यहाँ ले आए। मैं ख़ुद ऐसी विपदा में पड़ गई। जीऊँगी या नहीं, नहीं जानती। ऐसे में तुम क्यों यहाँ गए? तुम चले जाओ। मैं मर जाऊँ पर तुम ज़िंदा रहो। तुम्हें मेरे जैसी बहुत राजकुमारियाँ मिलेंगी। मेरे लिए भला तुम अपनी जान क्यों दो?” राजकुमारी की बात सुनकर राजकुमार की आँखें छलछला आईं। उसने कहा, “मैं तुम्हारा यहाँ से ज़रूर उद्धार करूँगा, नहीं तो मैं अपना जीवन गँवा देने के लिए भी राज़ी हूँ। तुम्हारे बिना इस शरीर में प्राण रहना बेकार ही है।” इसी तरह आपस में बातचीत करके दोनों ने तय किया कि आधी रात को वे भाग जाएँगे।

    ठीक आधी रात को सारे हाथी सो गए। राजकुमारी के सिर पर सूँड़ रखकर लेटा हुआ हाथी भी सो गया, इसलिए उसका सूँड़ धीरे-धीरे नीचे खिसकता गया। राजकुमार इस मौक़े को हाथ से जाने देने वाला नहीं था। वह तुरंत राजकुमारी को साथ लेकर हाथियों को पीठ पर से लाँघते हुए बरगद के नीचे से बाहर आया और वनदुर्गा को याद करते हुए जिस रास्ते से आया था, उसी रास्ते से लौटने लगा। वनदुर्गा की माया से हाथियों को कुछ पता नहीं लगा।

    दोनों जब काफ़ी दूर निकल गए, तब हाथियों को होश आया। उठकर देखा तो राजकुमारी नदारद थी। उन्होंने अनुमान लगाया कि चार पाँव के निशान हैं, यानी दो आदमी होंगे। उनमें से एक स्त्री और एक पुरुष। इसका अर्थ हुआ कोई पुरुष ही राजकुमारी को ले गया है। पाँव के निशान का पीछा करते हुए सारे हाथी दौड़ने लगे। बहुत दूर जाने के बाद दोनों उन्हें दिख गए। उन्हें देखते ही हाथी चिंघाड़ने लगे। उनकी चिंघाड़ सुनकर राजकुमार को कोई शक़ नहीं रहा कि हाथी उनका पीछा कर रहे हैं। इसलिए जैसे ही हाथी पास पहुँचने को हुए, उसने साँप की दी गई मणि को नीचे रखकर मंत्र फूँक दिया। देखते ही देखते चारों तरफ़ पानी भर गया। राजकुमार और राजकुमारी जल्दी-जल्दी आगे बढ़ने लगे। हाथियों ने काफ़ी कोशिश कर, पेड़ों से डाली तोड़ और पानी के ऊपर डालकर, उस पर चढ़कर पार करने लगे और फिर दौड़ने लगे। जब हाथी फिर उनके पास पहुँचने लगे तो राजकुमार ने बाघ की दी गई बाँस नली को मंत्र पढ़कर नीचे रख दिया। बारह कोस लंबा और एक कोस चौड़ा बाँस का जंगल तैयार हो गया। हाथी बड़ी मुश्किल से एक-एक बाँस तोड़कर उसके अंदर से रास्ता निकालकर आगे बढ़े। वे बाँस के जंगल को पार कर पाते, तब तक राजकुमार और राजकुमारी काफ़ी आगे निकल गए।

    फिर जब राजकुमार ने देखा कि हाथी तो उनका पीछा छोड़ने वाले नहीं हैं और वे फिर पास आने लगे हैं तो राक्षस की मणि को मंत्र पढ़कर नीचे रख दिया। तुरंत बारह कोस दूर तक आग ही आग फैल गई। हाथी अब आगे नहीं बढ़ सके। आग से डरकर पीछे क़दम हटाते हुए अपने ठिकाने पर वापस लौट गए।

    अब राजकुमार ख़ूब ख़ुश होकर राजकुमारी को लेकर राजदरबार पहुँच गया। दरबान राजकुमार की बहादुरी देखकर सभी विस्मित हो गए। राजा ने फिर उसे दरबान के रूप में नियुक्त कर अपनी इकलौती बेटी का विवाह उससे करा दिया। अंत में राजा बेटी और दामाद के हाथों राज्य का दायित्व सौंपकर ख़ुद वानप्रस्थ के लिए रवाना हो गए। वह राजकुमार फिर अपने राज्य लौटकर वहीं राजा बनकर प्रजा का पालन सुखपूर्वक करने लगा।

    स्रोत :
    • पुस्तक : ओड़िशा की लोककथाएँ (पृष्ठ 57)
    • संपादक : महेंद्र कुमार मिश्र
    • प्रकाशन : राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, भारत
    • संस्करण : 2017
    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

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