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फूलमती

phulamti

एक गाँव में एक ब्राह्मण पति-पत्नी रहते थे। दोनों का जीवन सुख से बीत रहा था कि अचानक एक दिन किसी अज्ञात बीमारी से पति मर गया। उस समय उसकी विधवा सात महीने की गर्भवती थी। एक बार वह विधवा खड़ी होकर बाल सँवार रही थी, तभी हाथ से कंघी उठाने में उसे तकलीफ़ हुई। उसने कुछ दूरी पर खड़े एक कुत्ते से कंघी उठा देने का अनुरोध किया। उस कुत्ते ने नीचे से कंघी उठाकर देने से पहले एक शर्त रखी। वह शर्त थी कि अगर लड़का होगा तो उससे दोस्ती करेगा और लड़की हुई तो वह उसको दे देगी। इस शर्त पर विधवा ब्राह्मणी राज़ी हुई तो कुत्ते ने कंघी नीचे से उठाकर दे दी।

इसी तरह दिन पर दिन बीत जाने के बाद नौ महीने दस दिन होने पर ब्राह्मणी ने एक लड़की को जन्म दिया। लड़की का नाम उसने फूलमती रखा। लड़की धीरे-धीरे बड़ी होने लगी। एक दिन अपनी सखी-सहेलियों के साथ फूलमती खेल रही थी, तब सबने उससे कहा, “फूलमती, तुझे कुत्ता ले जाएगा। यह बात हम सबने अपनी-अपनी माँ से सुनी है।” फूलमती यह बात सुनकर सोच में पड़ गई। भले ही ब्राह्मणी कुत्ते को दिए वचन को पूरी तरह से भूल गई थी, पर कुत्ते को यह बात याद थी।

एक दिन रात में कुत्ता आकर फूलमती के घर के आगे बैठ गया। फूलमती को यह बात पता चल गई। कुत्ते के चंगुल से कैसे निकलेगी, उसका उपाय वह सोचने लगी। आँखों के सामने रहेगी तो कुत्ता उसे ज़रूर ले जाएगा, इसलिए आधी रात को घर से बहुत दूर चले जाने का निर्णय लिया उसने। पर कुत्ता तो बाहर है और उसे जाने नहीं देगा कभी भी। तो अब वह क्या करे? रोते-रोते वह निद्रा देवी से प्रार्थना करने लगी कि कुत्ता गहरी नींद में सो जाए।

उसकी प्रार्थना से निद्रा देवी प्रसन्न हुईं। कुत्ता गहरी नींद में सो गया। लेकिन जब उसकी नींद टूटी तो वह सूँघते हुए आगे बढ़ने लगा। ज़मींदार के घर के पास तक पहुँचते-पहुँचते फूलमती ने कुत्ते को देख लिया और घबराकर ज़मींदार के लड़के को पकड़ लिया। कुत्ते से अपने को बचा लेने के लिए उसने ज़मींदार के लड़के से अनुरोध किया। ज़मींदार के लड़के ने कुत्ते को वहाँ से भगाकर फूलमती को बचाया। उस समय ज़मींदार के लड़के को शीतला माई आई हुई थी। उसके दूसरे दिन देवी शीतला ने ज़मींदार के लड़के को अपने पास बुला लिया। अपनी इकलौती संतान की मौत पर ज़मींदार, उसकी पत्नी और फूलमती बहुत रोए। गाँव के लोगों ने ज़मींदार को सांत्वना देते हुए कहा कि अब इस लड़की को ही अपना बेटा मानकर घर में रखिए। ज़मींदार ने फूलमती को अपनी बेटी की तरह घर में रखा। फूलमती घर का सारा काम सँभालते हुए ज़मींदार के घर में रहने लगी।

एक दिन आधी रात को ज़मींदार का मृत लड़का प्रेत बनकर सफ़ेद घोड़े पर चढ़कर अपने घर आया। घोड़े को एक पेड़ से बाँधकर फूलमती के कमरे का दरवाज़ा खटखटाने लगा। आधी रात को कौन दरवाज़ा खटखटा रहा है, यह जानने के लिए फूलमती ने दरवाज़ा खोला तो सामने प्रेत को देखकर डर गई। प्रेत बोला, “मुझे देखकर डरो मत। कमरे के अंदर चलो।” अंदर जाकर उसने अपना वही दिव्य रूप धर लिया। रातभर फूलमती के साथ गपशप करके सुबह होने से पहले वापस चला गया।

इसी तरह हर दिन रात में मृत ज़मींदार का लड़का फूलमती के पास आता रहा और दोनों के बीच प्रेम संबंध बन गया। कुछ दिन ऐसे ही बीत गए। फूलमती गर्भवती हो गई। नौ महीने दस दिन के बाद उसे एक लड़का पैदा हुआ। लोगों के बीच हलचल मच गई। गाँव वालों ने उसके इस पाप कर्म के लिए उसे गाँव से निकाल बाहर करने का निर्णय ले लिया। पर ज़मींदार ने गाँव वालों से कहा, “फूलमती जब मेरे आश्रय में है तो मैं उसे उसकी ग़लती के लिए क्षमा करूँगा और अपने घर में ही रखूँगा, नहीं तो मुझे पाप लगेगा। फूलमती मारे शर्म के घर से बाहर नहीं निकल पाती। अपनी क़िस्मत को कोसते हुए रोते-रोते जीने लगी।

ज़मींदार का मृत लड़का हर रात आकर फूलमती और अपने बेटे को देख जाता। एक रात उसके घर की दो नौकरानियों ने उसे देख लिया। उन्हें अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हुआ। इसलिए दूसरे दिन रात को भी छुपकर सब देखा और मृत ज़मींदार के पुत्र को फूलमती के सोने के कमरे में ज़िंदा देखकर अचंभित हो गईं। सुबह गाँव वालों से रात की सारी घटना बताई। पर किसी ने भी उनकी बातों पर विश्वास नहीं किया। उसके दूसरे दिन गाँव वालों ने अपनी नज़रों से देखा तो विश्वास किया।

ज़मींदार और उसकी पत्नी भी यह सब देखकर बहुत ख़ुश हुए। उन्होंने बेटे को रोककर घर में रह जाने का अनुरोध किया। पर उसने कहा कि मैं जीवितावस्था में घर में रह नहीं पाऊँगा। मैं देवी माता के पास हूँ। अगर वह चाहेंगी, तभी मानव का रूप पाकर घर में रह सकूँगा। ज़मींदार और उसकी पत्नी बहुत रोए। माता-पिता को रोता हुआ देखकर बेटा बोला, “तुम लोग इस साल चैत पर्व पर एक भव्य पूजा का आयोजन करो। उस पूजा में देवी को बारह बोरी लाई का बड़ा-सा लड्डू और बाइस बैलगाड़ी में भरा हुआ नारियल चढ़ावा देकर पूजा करना और चैत के महीने में तपे हुए नदी के बालू पर पोते को अकेला सुला देना। तब जाकर देवी संतुष्ट होंगी और उसे जीवनदान मिल जाएगा।” इतना कहकर बेटा देवी के पास लौट गया।

बेटे के कहे अनुसार ज़मींदार चैत पर्व की तैयारी करने लगे। बारह बोरी लाई से एक बड़ा लड्डू बनाया गया, बाइस बैलगाड़ी में नारियल भरकर लाया गया और उसे देवी माँ के सामने फोड़ा गया। ढोल, तुरही, मृदंग के नाद से सारा गाँव गुलज़ार हो गया। धूप-दीप- नैवेद्य से देवी प्रसन्न होकर गाँव में विराजीं। देवी ने आते समय तपते बालू पर लेटे एक नवजात शिशु को रोता देखकर उसे गोदी में उठा लिया और गाँव में पधारीं।

वह ख़ूब ग़ुस्से से भरकर गाँव के एक-एक आदमी से पूछने लगीं, “कहो यह नवजात लड़का किसका है? किस पापिष्ठ ने उसे ऐसी निष्ठुरता के साथ चैत महीने के तपते बालू पर सुला दिया था? जल्दी बताओ, नहीं तो सबका गला मोड़कर खा जाऊँगी, पूरे गाँव का ध्वंस कर दूँगी।” सभी एक-दूसरे का चेहरा देखने लगे।

ज़मींदार का मृत पुत्र और फूलमती तो इसी मौक़े का इंतज़ार कर रहे थे। तुरंत दोनों बोल पड़े, “माँ यह नवजात शिशु हमारा है। लोकलाज के मारे हमने उसे तपती नदी के बालू पर सुला दिया था। हमें माफ़ कर दीजिए माँ।” देवी माँ ने पूछा, “तुम लोगों ने ऐसा काम क्यों किया?”

ज़मींदार का लड़का बोला, “माँ, फूलमती को मैंने बचाया था। वह मेरी शरण में आई थी। मैं हर रात आपको बिना बताए उसके पास जाता रहा। अब आप मेरी रक्षा कीजिए माँ।” देवी माँ बोलीं, “ठीक है। अब तू मेरे साथ चल।” उसी समय फूलमती, ज़मींदार और उसकी पत्नी देवी माता के चरणों पर गिरकर रोते-रोते प्रार्थना करने लगे, “हे माँ! आप हमारी रक्षा कीजिए। उसे फिर से आदमी का शरीर प्रदान कीजिए।” नवजात शिशु भी हिलकर रोने लगा। वृद्ध ज़मींदार, उसकी पत्नी, फूलमती और नवजात शिशु की प्रार्थना से प्रसन्न होकर देवी ने ज़मींदार के प्रेतरूपी पुत्र को सहला दिया। उसे जीवन्यास मिल गया। अपने पहले रूप में वह लौट आया और माता-पिता, पत्नी, बच्चे को लेकर सुख से रहने लगा।

स्रोत :
  • पुस्तक : ओड़िशा की लोककथाएँ (पृष्ठ 86)
  • संपादक : महेंद्र कुमार मिश्र
  • प्रकाशन : राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, भारत
  • संस्करण : 2017

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