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नागकुमार

nagakumar

अज्ञात

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नागकुमार

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    एक बार मृत्युलोक में चैत का पर्व ख़ूब धूमधाम से मनाया जा रहा था। नाच-गाना, ढोल-नगाड़े के निनाद से पृथ्वी डोल रही थी। पाताल लोक के नागराजा के बेटे नागकुमार ने मृत्युलोक का चैत पर्व देखना चाहा। वह एक बाँबी में से होकर ऊपर आया और इंसान का रूप धरकर चैत पर्व में युवक-युवतियों के संग घूमते हुए सब-कुछ देखा।

    युवतियाँ उसे अपने साथ नाचने के लिए खींचकर ले गईं। सात दिनों तक वह उनके साथ नाचा। चैत पर्व ख़त्म हो जाने पर सभी अपने-अपने घर लौट गए। वह अकेला हो गया। इसलिए पाताल लोक जाने के लिए उसने अपना असली रूप यानी साँप का रूप धरा। मंदिर के अंदर घुसकर वह पाताल लोक जाने का रास्ता ढूँढ़ रहा था, पर रास्ता पाकर फन उठाकर वहीं मंदिर में ही रह गया।

    सुबह पुजारी पूजा करने के लिए आया। दरवाज़ा खोलते ही विशाल साँप को देखकर डरकर भागा। गाँव वाले जमा हो गए। आपस में लोग कहने लगे कि सात दिन तक चैत पर्व पालन करने से ऐसी अनहोनी घटी है। साँप के वहाँ से हटने पर पुजारी और उसकी पत्नी साँप को मारने की सोचने लगे। पर इतने बड़े साँप को मारने की हिम्मत किसी में नहीं थी।

    उस दिन रात को सोते समय पुजारी को स्वप्न में उस साँप ने कहा, “मेरी पूजा करो, तुम्हारा मंगल होगा।” पर लोग साँप को मारने की कोशिश कर रहे थे। इसलिए साँप आगे बोला, मैं लंबाई में सोया रहूँगा। तुम मुझे ठीक बीच में से दो टुकड़ों में काट देना। मेरे सिर को पूर्व दिशा में और पूँछ को उत्तर दिशा में दफ़ना देना। सिर वाले हिस्से पर लाल फूल और पूँछ वाली जगह पर सफ़ेद फूल खिलेगा। लाल फूल को राजा के घर दे आना और सफ़ेद फूल मंत्री के घर दे आना।”

    साँप के कहे अनुसार पुजारी ने उसे तलवार से दो टुकड़ों में काट दिया। सिर को पूर्व दिशा में और पूँछ को उत्तर दिशा में मिट्टी के अंदर दबा दिया।

    कुछ दिन बाद सिर जहाँ दफ़नाया गया था, वहाँ पर लाल फूल और पूँछ वाली जगह पर सफ़ेद फूल खिले। पुजारी सारे फूल तोड़कर, जैसा साँप ने कहा था उसी के अनुसार, लाल फूल राजा के घर और सफ़ेद फूल मंत्री के घर दे आया। पहले कहीं भी मृत्युलोक में इतना सुंदर फूल नहीं खिला था, इसलिए राजा-रानी, मंत्री और मंत्री की पत्नी ऐसा फूल पाकर बहुत ख़ुश हुए। रानी और मंत्री की पत्नी ने बहुत आदर के साथ फूल को बालों में सजाया। उन दोनों को कोई बच्चा नहीं हो रहा था। वह फूल बालों में लगाने के बाद दोनों ही गर्भवती हो गईं। रानी के गर्भवती होने की बात जानने पर राजा ने ख़ुशी से उत्सव का आयोजन किया। समय बीतने पर रानी के प्रसव का दिन पास गया। राजा ने अंतःपुर की दासियों-नौकरानियों को आदेश दिया कि अगर रानी को लड़का हुआ तो सोने की घंटी बजाना और लड़की हुई तो चाँदी की घंटी बजाना।

    रानी को लड़का हुआ। राजा के आदेशानुसार सोने की घंटी बजाई गई। उसी समय मंत्री के घर एक बेटी हुई। दोनों संतान एक ही समय में पैदा हुई थी, इसलिए राजा के बेटे का नाम रखा गया नागकुमार और मंत्री की बेटी का नाम रखा गया फूलमती। दोनों धीरे-धीरे बड़े होने लगे। दोनों ने साथ-साथ पढ़ना शुरू किया। दोनों के बीच मित्रता बढ़ने लगी। दोनों एक-दूसरे को बिना मिले रह नहीं पाते थे। दोनों की पढ़ाई ख़त्म हुई। दोनों ने यौवन में क़दम रखा।

    फूलमती बहुत सुंदर थी। उसके रूप से आकर्षित होकर नागकुमार उससे विवाह करने के लिए अड़ गया। दोनों के भाई-बहन जैसे होने के नाते उनके माता-पिता इस विवाह के लिए राज़ी नहीं हुए। एक दिन राजा का बेटा राजमहल के मुख्य घोड़े पर फूलमती को बिठाकर अपना देश छोड़ दूसरे देश में ले गया।

    राजा और मंत्री ने नागकुमार और फूलमती को बहुत ढूँढ़ा। चारों तरफ़ लोगों को भेजा, पर कोई खोज-ख़बर नहीं मिली। आख़िर मन मारकर दुःखी रहने लगे। एक महीना, दो महीना करते-करते एक साल इंतज़ार किया। फिर भी नागकुमार और फूलमती की कोई खोज-ख़बर नहीं मिली। दोनों अब ज़िंदा नहीं होंगे, ऐसा सोचकर दोनों की शुद्धि-क्रिया कर दी।

    उधर नागकुमार और फूलमती चलते-चलते घने जंगल में पहुँचे। दोनों बहुत थक गए थे। भूख से भी बेहाल थे। फूलमती बोली, “मैं अब और चल नहीं पाऊँगी। इसी बरगद के पेड़ के नीचे आराम करेंगे। यहाँ रसोई बनाकर कुछ खाएँगे, फिर जाकर कुछ कर पाएँगे।” नागकुमार आग ढूँढ़ने गया और फूलमती चूल्हे की तैयारी करने लगी।

    नागकुमार आग ढूँढ़ते-ढूँढ़ते काफ़ी दूर एक बहुत बड़ी कोठी पर पहुँचा। उस कोठी में एक बूढ़ी राक्षसी रहती थी। नागकुमार ने उससे थोड़ी सी आग माँगी। बूढ़ी बोली, “बेटा, मैंने तीन दिनों से कुछ नहीं खाया है। मैं उठ-बैठ नहीं पा रही हूँ। मेरे हाथ-पैर नहीं चल रहे हैं, इसलिए रसोई भी नहीं कर पा रही हूँ। मेरे लिए तू कुछ पका दे।” बूढ़ी की बातों में आकर नागकुमार ने चूल्हा जलाकर खाना बनाया और बूढ़ी को खाने के लिए दिया। बूढ़ी राक्षसी नागकुमार को कैसे खाएगी, उसका उपाय सोचने लगी। वह कमज़ोर थी, इसलिए उसे मारकर खा नहीं पाई। अपने सात लड़कों के वापस आने तक उसे इंतज़ार करना होगा। इसलिए मंत्र फूँककर नागकुमार को फूल सुँघा दिया। वह काला भेड़ बन गया। उसे सोने की ज़ंजीर में बाँध दिया।

    उधर फूलमती नागकुमार की राह ताकती रही। आग लाने में इतनी देर तो नहीं लगती। नागकुमार के लौटने पर उसने सोचा ज़रूर नागकुमार किसी मुसीबत में पड़ गया होगा। देवी की आराधना करके उसने जान लिया कि बूढ़ी राक्षसी ने नागकुमार को काला भेड़ बनाकर सोने की ज़ंजीर से बाँधकर रखा है। इसलिए कैसे उसका उद्धार करे, यह सोचने लगी। फूलमती पुरुष का वेश धरकर बड़े राजा के देश में पहुँची।

    वहाँ वह भीख माँगकर घूमने लगी। उस देश के राजा की दोनों कन्याओं हल्दीमुंडि और सिंदूरमुंडि का स्वयंवर था। इस सभा में अलग-अलग देशों के राजा भाग ले रहे थे। दोनों राजकुमारियों की शर्त थी कि जो निशाना लगाकर मछली की आँखों को तीर से बेध देगा, उसी के गले में वे वर-माला डालेंगी। पर वहाँ उपस्थित कोई भी राजा सही निशाना नहीं लगा पाया।

    राजा दुःखी मन से बैठे थे। तभी मंत्री राजा को सांत्वना देते हुए बोले, “महाराज! उदास मत होइए। राजकुमारियों के लिए मैं उचित वर ढूँढ़ लाऊँगा।” इतना कहकर मंत्री वर ढूँढ़ने निकल पड़े। बहुत जगह ढूँढ़ा, पर कहीं भी राजकुमारियों के लिए उन्हें उपयुक्त वर नहीं मिला।

    दुःखी मन से मंत्री वापस लौट रहे थे, तभी उन्हें एक भिखारी दिखा। उसके पास राजाओं का हुनर होने के लक्षण देखकर मंत्री उसे अपने साथ राजमहल ले आए। उससे निशाना लगाने के लिए कहा गया। उसने आसानी से निशाना लगाकर मछली की आँख में तीर बेध दिया।

    राजा ने ख़ुश होकर दोनों राजकुमारियों का विवाह उसके साथ करने का आदेश दिया। विवाह की बात सुनकर भिखारी का वेश धारण करने वाली फूलमती बोली, “मैं एक व्रत कर रहा हूँ, मेरे गुरु की आज्ञा है कि चौदह वर्ष के अंदर विवाह करने पर अनिष्ट होगा। इसलिए जिस तीर से उसने मछली को निशाना लगाया था, उसी तीर के साथ दोनों को विवाह करना होगा।” उसके कहे अनुसार दोनों राजकुमारियों का ब्याह उस तीर के साथ कर दिया गया।

    चौदह साल बीत जाने पर दोनों राजकुमारियों के विवाह का आयोजन किया गया। भिखारी रूप धरे फूलमती की एक ही चिंता थी कि किस तरह से वह नागकुमार को बूढ़ी राक्षसी के क़ब्ज़े से मुक्त करे। इसलिए उसने एक और योजना बनाई और राजा से कहा, “उसका व्रत तो ख़त्म हो गया है, पर बालीयात्रा (ओड़िशा का एक प्रसिद्ध मेला) करने पर ही उसकी मनोकामना पूर्ण होगी।”

    तब राजा ने बालीयात्रा की सारी तैयारी करने के लिए आदेश दिया। बालीयात्रा में एक काले भेड़ की बलि देने की प्रथा है। इसलिए फूलमती ने काला भेड़ लाने की ज़िम्मेदारी अपने ऊपर ले ली। वह सैन्य-सामंत लेकर बूढ़ी राक्षसी के पास गई और राजा के आदेश की बात उससे कही। बूढ़ी राक्षसी ने पंद्रह-बीस काली भेड़ लाकर फूलमती को दिखाई। फूलमती को पता था नागकुमार काला भेड़ बनकर सोने की ज़ंजीर में बँधा हुआ है। इसलिए वह राक्षसी को धमकाते हुए बोली, “जिस भेड़ को सोने की ज़ंजीर से बाँधकर रखा है, उसे लेकर आ, नहीं तो तुझे और तेरे सातों बेटों को फाँसी दे दी जाएगी।”

    राक्षसी डरकर सोने की ज़ंजीर में बँधे काले भेड़ को ले आई। अब फूलमती बूढ़ी राक्षसी से बोली, “इस भेड़ को असली रूप में ले आ, नहीं तो तुम सब ज़िंदा नहीं रहोगे। यह राजा का आदेश है।” बूढ़ी राक्षसी क्या करती? डरकर फिर से फूल सुँघाकर उसे इंसान बना दिया। नागकुमार अपना पहला रूप वापस पा गया। फूलमती ख़ुशी मन से नागकुमार के साथ लौट आई।

    फूलमती ने पुरुष का रूप त्यागकर अपना पूर्व का रूप धर लिया। फिर उसने सारी बात राजा को बताई। नागकुमार दोनों राजकुमारियों से शादी करने के लिए तैयार हो गया। राजा ने विवाह का सारा आयोजन किया। नागकुमार के साथ सिंदूरमुंडि और हल्दीमुंडि का विवाह संपन्न हुआ। नागकुमार ने फूलमती की विलक्षण बुद्धि की बहुत प्रशंसा की और तीनों रानियों के साथ सुखपूर्वक शासन करने लगा।

    स्रोत :
    • पुस्तक : ओड़िशा की लोककथाएँ (पृष्ठ 64)
    • संपादक : महेंद्र कुमार मिश्र
    • प्रकाशन : राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, भारत
    • संस्करण : 2017
    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

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