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कंध बूढ़ी और अजगर

kandh buDhi aur ajgar

कटिगिंआ नाम का एक गाँव था। उस गाँव के चारों तरफ़ जंगल था। गाँव के लिए कोई पक्का रास्ता नहीं था। गाँव से आने-जाने के लिए एक पतला पैदल चलने वाला रास्ता था। गाँव वाले जहाँ भी जाते पैदल ही जाते।

उसी गाँव से आधे मील की दूरी पर एक घाटी थी। गाँव से बाहर तो उसी घाटी से होकर गुज़रना होता। घाटी के दाहिनी तरफ़ एक बहुत बड़ा पहाड़ था। बाईं तरफ़ ख़ूब गहरा गड्ढा था। उसी के पास एक झरना कल-कल करता बह रहा था।

घाटी के रास्ते से गुज़रते समय एक सुरंग आती थी। लोग कई युगों से उसी सुरंग के अंदर से आना-जाना करते थे। एक दिन जाने कहाँ से एक अजगर आकर उस सुरंग के मुहाने पर छुपकर रहने लगा। गाँव वालों को इस बात की जानकारी नहीं थी। उस सुरंग के रास्ते जो भी जाता, अजगर उसे निगल जाता। गाय, भेड़, बकरी, भैंसें भी उस रास्ते से गुज़रती तो उनको भी अजगर नहीं छोड़ता। वह अजगर एक बार में दो-दो भैंस निगल सकता था। दिन पर दिन गाँव से गाय, बकरी, भेड़ गुम होने लगे!

उन जानवरों को अजगर निगल जा रहा था, इस बात का गाँव वालों को सुराग़ नहीं मिल पा रहा था। एक दिन गाँव का एक आदमी उसी रास्ते से गुज़रा। अजगर उसे हवा में ही उठाकर निगल गया। शाम ढल जाने पर भी वह आदमी घर नहीं लौटा। उसे ढूँढ़ने जो आदमी उस सुरंग के रास्ते गया, वह भी नहीं लौटा। तब उस सुरंग में अजगर के होने का पता गाँव वालों को चल गया। लोगों के मन में भय समा गया। कोई भी उस रास्ते से नहीं जाना चाहता था। सभी चिंतित हो गए। गाँव से कोई बाहर नहीं निकल पाएगा।

गाँव के लोग सोचने लगे, अजगर को कैसे मारें? उसके दूसरे दिन सभा चल रही थी, तभी वहाँ गाँव की एक बूढ़ी पहुँची। उम्र साठ से ज़्यादा होगी। उसने कहा, “बच्चो, तुम सब परेशान मत हो। अजगर को मारने की एक युक्ति मैंने सोची है, सुनो!”

सभी ने बूढ़ी की तरफ़ देखा। बोले, “तुमने क्या उपाय सोचा है, जल्दी बताओ।”

बूढ़ी बोली, “अजगर को मैं मारूँगी। तुम सब डरो मत।”

सभी हँस पड़े।

बूढ़ी बोली, हँसने का समय नहीं है। तुम सब मेरी सहायता करो। जंगल से भालिआ का बीज संग्रह करके लाओ। उसे कड़ाही में पकाकर उसका तेल निकालो। उस तेल को मुझे एक चौड़े मुँह वाले मटके में भरकर दो। उसे लेकर मैं अजगर के पास जाऊँगी।

किसी ने पूछ लिया, “मौसी, तुम उस भालिआ तेल का क्या करोगी?”

बूढ़ी ने तब समझाते हुए कहा, “देखो जब अजगर मुझे निगलने आएगा तब उस मटके में उसका मुँह डूब जाएगा। भालिआ तेल उसकी आँखों में घुस जाएगा, जिससे उसकी आँखें फूट जाएँगी और वह तुरंत अंधा हो जाएगा। अंधे हो जाने पर उसे रास्ता नहीं सूझेगा और वहीं वह रास्ता टटोलता रहेगा। उसी समय तुम सब वहाँ पहुँचकर उसे काटकर मार डालना।”

यह बात सबके मन को भा गई। पर यह जोखिम भरा काम था। जान भी जा सकती है। किसी और ने पूछ लिया, “मौसी, अजगर मरकर तुम्हें निगल ले तो...?”

बूढ़ी ने हँसकर जवाब दिया, “तब भी कोई डर नहीं है। मेरी तो उम्र हो गई है। जी के क्या फ़ायदा? कम से कम गाँव तो इस विपदा से बच जाएगा।”

बूढ़ी की बात पर सभी गाँव वाले एक तरह से राज़ी हो गए। बूढ़ी के कहे अनुसार सभी काम में जुट गए। जंगल से भालिआ का बीज इकट्ठा कर लाए और उसे पकाया। एक मटके में तेल भर दिया।

एक दिन भरी दुपहरी को बूढ़ी मटके को अपने सिर पर रखकर अजगर के पास गई। कुछ दिनों से कुछ खाने को पाकर अजगर भूखा था। बूढ़ी जब सुरंग के अंदर पहुँची, ब्रह्मराक्षस की तरह सर्र-सर्र करते अजगर बूढ़ी को निगलने के लिए मुँह खोलकर आगे बढ़ा। बूढ़ी ने मटके को आगे कर दिया। अजगर का सिर उसमें घुस गया और भालिआ के तेल में उसका सिर डूब गया। वह तेल उसकी आँखों में घुस गया। तुरंत उसकी आँखें बाहर निकल आईं। वह अंधा हो गया। कहीं और भाग पाकर वहीं एक विशाल काले संगमरमर के पत्थर की तरह पड़ा रहा। बूढ़ी मटके को वहीं पटककर चिल्लाने लगी।

गाँव वाले तो पहले से ही तैयार बैठे थे। तुरंत वहाँ पहुँचकर कुल्हाड़ी से अजगर को टुकड़ों में काट डाला। शैतान अजगर की जान चली गई। गाँव वाले ख़ुशी से बूढ़ी को उठाकर ले गए। बूढ़ी की आस-पास के लोगों ने प्रशंसा की। उसी दिन से लोग शांति से रहने लगे।

स्रोत :
  • पुस्तक : ओड़िशा की लोककथाएँ (पृष्ठ 112)
  • संपादक : महेंद्र कुमार मिश्र
  • प्रकाशन : राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, भारत
  • संस्करण : 2017

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