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जेंबरा मातुं

jembra matun

अज्ञात

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जेंबरा मातुं

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    पहले यह पृथ्वी सुनसान थी। चारों तरफ़ सिर्फ़ पानी भरा हुआ था। उस समय केवल एक भाई और एक बहन ही ज़िंदा थे। दोनों एक बहुत बड़े खोखले तूंबे में बैठकर पानी में तैरते हुए ज़िंदा रहे। उसी तरह उनकी उम्र भी बढ़ती गई। वे पानी से बाहर नहीं पाए, कहीं घूम-फिर नहीं पाए। उनके शरीर में जूँ लग गई और दोनों को ख़ूब खुजली होने लगी।

    बड़ा भाई अपनी बहन का शरीर खुजला देता और बहन अपने बड़े भाई का। इस तरह होते-होते दोनों ने एक-दूसरे के शरीर को देख लिया और दोनों के मन में कामभावना ने जन्म लिया। दोनों भाई-बहन का रिश्ता भूलकर पति-पत्नी की तरह आचरण करने लगे। समय बीता और दोनों को दो बेटे हुए। तब तक पृथ्वी का पानी सूख गया था। पहले लड़के का नाम रामा और दूसरे लड़के का नाम भीमा रखा। रामा के ग्यारह लड़के हुए। सबसे छोटे लड़के का नाम था जेंबरा मातुं। बड़े दस भाई अपने इस छोटे भाई से सारा काम करवाते थे। घर की सफ़ाई करने, पानी लाने, जंगल से लकड़ी लाने, गोबर इकट्ठा करने और खाना बनाकर सबको खाना खिलाने तक का सारा काम वह करता। गायों की रखवाली और उन्हें चराने ले जाने का विशेष काम भी उसे सौंप दिया गया था। वे छोटे भाई को ख़ूब परेशान करते और भरपेट खाना भी नहीं देते। घर के अंदर सोने के बजाय बाहर बरामदे में सोने के लिए कहते।

    उसके पास ढंग के कपड़े भी नहीं थे। उसके सिर के बाल काफ़ी बढ़ गए थे। उसके बाल काटने वाला भी कोई नहीं था। इसी तरह कई दिन बीत गए। बड़े भाई उसको प्रताड़ित-अपमानित करते रहे। बहुत दुःख से उसके दिन बीत रहे थे। रोते-रोते वह सब काम करता रहता। कभी-कभी ख़ुद भूखे रहकर भी उसे बड़े भाइयों को खाना खिलाना पड़ता। इसी तरह बहुत दुःख तकलीफ़ में वह अपना जीवन व्यतीत कर रहा था।

    एक दिन स्वर्ग की सूर्य-देवियों ने इस लड़के के दुःख-तकलीफ़ को देखा और उसके दुःख को सह पाने के कारण सूर्य-राज्य से धरती पर आकर उसके सारे काम में उसका हाथ बँटाने लगीं। वे झाड़-पोंछा, रसोई, कपड़े धोना-सुखाना, गोबर इकट्ठा करना आदि सारा काम जल्दी-जल्दी करके अपने राज्य लौट जातीं। इस तरह सारा काम जल्दी निपट जाने के कारण बड़े भाइयों ने एक दिन जेंबरा मातुं से पूछा, “आजकल इतनी जल्दी कैसे तू सारा काम निपटा ले रहा है? तेरी सहायता कौन कर रहा है?”

    छोटा भाई बोला, “मैं ख़ुद ही कर रहा हूँ सारा काम। मेरी कोई सहायता नहीं कर रहा है।” बड़े भाइयों ने वही सवाल तीन बार दुहराया और हर बार उसने वही उत्तर दिया। पर जब चौथी बार वही प्रश्न पूछा तो उसने सारी बातें सच-सच बता दीं। उसने कहा कि, सूर्य देश से सूर्य-देवियाँ आकर मेरी सहायता कर रही हैं।” उसकी बात सुनने के बाद बड़े भाई घर में छुपकर देवियों की राह ताकने लगे। जब देवियाँ आकर काम करने लगीं तो सारे भाइयों ने निकलकर घर का दरवाज़ा बंद कर दिया और इन देवियों को बाँध दिया। दसों भाइयों ने उम्र के हिसाब से दस सूर्य-देवियों से शादी कर ली। उनकी और कोई बहन थी तो छोटे भाई के लिए कोई कन्या नहीं बची। वह अविवाहित रह गया।

    इसी तरह दिन कटते रहे। छोटे आठ भाइयों ने अपनी पत्नियों को अपने छोटे भाई जेंबरा के बारे में अनेक मनगढ़ंत बातें कहीं। उनकी बातें सुनकर उसकी भाभियाँ उसे जान से मार देने का षड्यंत्र रचने लगीं। बड़ा भाई और बड़ी भाभी यह जानकर जेंबरा की जान बचाने की कोशिश करने लगे। बड़ी भाभी रोज़ जेंबरा को कमरे के एक कोने में बिठाकर उस पर लकड़ी का ढेर रखकर उसे छुपा देती। इसी तरह वे दोनों दिन-रात कुछ कुछ उपाय करके उसकी जान बचाते रहे और बाक़ी भाभियाँ उसको मारने की कोशिश करती रहीं।

    इसी तरह दिन बीतते रहे। एक दिन बड़ी भाभी बोली, जेंबरा, तुझे इस तरह मैं कितने दिन छिपाकर रखूँगी? कितने दिन घर के कोने में ऐसे छिपाती रहूँगी? इससे तो अच्छा है तू यह घर छोड़कर चला जा।” भाभी की बात सुनकर जेंबरा बोला, “ठीक है भाभी, मैं यह घर छोड़कर चला जाऊँगा। मैं यहाँ रहूँगा और ना ही तुम्हें और तकलीफ़ दूँगा। इस घर से मैं कुछ लेकर नहीं जाऊँगा, बस अपनी सारंगी और बिल्ली को साथ ले जाऊँगा।” इतना कहकर सारंगी और बिल्ली को लेकर वह घर छोड़कर चला गया।

    चलते-चलते महुए से शराब बनाने वाले एक आदमी से उसकी भेंट हो गई। जेंबरा उससे बातें करने लगा, तभी उस आदमी ने कहा, जेंबरा तुम ज़रा रुको, महुए की शराब थोड़ा पीकर जाओ।” तब जेंबरा ने महुए की शराब पी। इसी तरह बातचीत होते-होते शराब बनाने वाले ने जेंबरा से कहा, “भाई जेंबरा, तुम अपनी सारंगी ज़रा बजाना, मैं सुनूँगा।” जेंबरा बोला, “नहीं भाई, अगर मैं यह सारंगी बजाऊँगा तो बहुत सारे सुख-दुःख के स्वर इसमें से निकलेंगे, तुम सह नहीं पाओगे।”

    फिर भी उसने ज़िद करते हुए कहा, “जेंबरा भाई, इसे बजाओ, मैं सुनूँगा।” तब मजबूर होकर जेंबरा ने सारंगी बजाई। सारंगी सुनकर वह आदमी चूल्हे पर से जलती लकड़ी लेकर नाचने लगा। नाचते-नाचते वह बेसुध-सा होने लगा और बोला, “जेंबरा भाई, कहो इस आग की मशाल को किस दिशा की ओर फेंकूँ? अगर ब्राह्मण देश की तरफ़ फेंकूँगा तो सारे ब्राह्मण मारे जाएँगे, अगर तेलुगू देश की तरफ़ फेंकूँगा तो सारे तेलुगु मारे जाएँगे, अगर ओड़िआ देश की तरफ़ फेंकूँगा तो सारे ओड़िआ मारे जाएँगे। तो कहो किस देश की ओर फेंकूँ?”

    जेंबरा बोला, “भाई, तुम इस मशाल को किस तरफ़ फेंकोगे, यह मैं बताऊँ? तो सुनो, मेरा देश ओड़िशा मिंजर, राजा मिंजर। इसलिए उसी देश की तरफ़ फेंको।”

    जब उसने मशाल को जेंबरा देश की तरफ़ फेंक दिया तो सारा गाँव, पेड़-पौधे जलकर राख हो गए। वहाँ दुर्भिक्ष पड़ गया। लोगों को अन्न भी नहीं मिला। उसी समय जेंबरा अपने उस दुर्भिक्ष पड़े देश में जाकर घर-द्वार बनाकर रहने लगा। धीरे-धीरे जेंबरा उस देश का राजा बन गया। उसके भाइयों को जब यह बात पता चली कि जेंबरा राजा हो गया है तो वे बहुत ख़ुश हुए। फिर भी उसके सामने जाने का साहस नहीं कर पाए। जेंबरा के पास जाकर जो भी उससे शरण माँगता, उससे कुछ भी माँगता, वह उन्हें एक टोकरी धान और टोकरी भर मिट्टी देता था। लोग अपने गाँव में उस मिट्टी को डालकर उसमें वह धान बो कर खेती करके जीते थे।

    यह बात सुनकर जेंबरा के भाई भी उसके पास गए। अपने भाइयों को जेंबरा पहचान गया। अपने बड़े भाई और भाभी को देखकर बहुत दुःखी हुआ। अपने मंत्री को बुलाकर कहा, “उस स्त्री को मेरे पास लेकर आओ।”

    जब उन्होंने उस स्त्री के पास पहुँचकर कहा कि, “राजा तुम्हें बुला रहे हैं” तो वह बहुत डर गई। मन में सोचने लगी कि राजा उसे क्यों बुलवा रहे हैं, क्योंकि जेंबरा मातुं की भाभी राजा को नहीं पहचान पाई। जेंबरा ने भी अपना परिचय नहीं दिया। उसे ख़ूब अच्छा खाना-पीना देने का आदेश दिया। डरते-डरते खाना खाते समय राजा के इस तरह उसके प्रति सहृदय होने के कारण के बारे में वह मन ही मन सोचने लगी।

    खाना खा लेने के बाद राजा जेंबरा मातुं ने पूछा, “मुझे पहचान रही हैं?” वह स्त्री बोली, “नहीं।” तब जेंबरा मातुं बोला, “जिस जेंबरा को तुम अपने आँचल में छिपाकर रखती थी। घर के कोने में लकड़ी के ढेर के पीछे छिपाकर बचाया, वही जेंबरा मातुं हूँ मैं।” यह बात सुनकर उसकी भाभी भौंचक रह गई और उसे गले लगाकर ख़ूब रोई।

    “ऐसा परिवर्तन तुममें कैसे हुआ? तुम राजा कैसे बन गए? इतने बड़े आदमी कैसे हो गए?” रोते-रोते उसने पूछा। इसके बाद जेंबरा ने अपने बाक़ी भाई भाभियों को बुलाकर अपना परिचय दिया। अपनी भूल स्वीकार करते हुए सबने अपने छोटे भाई से माफ़ी माँगी और बोले, “जेंबरा तुम्हारे चले जाने के बाद हमारे इलाक़े में दुर्भिक्ष पड़ा। हमें खाना-पीना नहीं मिला। तुम्हीं अब हमारी रक्षा करो। बचा लो हमें।” सभी ने रोते-रोते कहा।

    सबने जब जेंबरा से विदाई माँगी तो जेंबरा ने उन्हें कहा, “बिल्ली, सारंगी और मेरे चेहरे का चित्र अपने घर की दीवारों में आँकना और उन सबकी पूजा करना, ऐसा करने पर तुम सबों के पास भी धन-संपत्ति आएगी।” उन्होंने जब दीवार पर चित्र बनाकर पूजा की तो ढेर सारी संपत्ति उन्हें मिली। ख़ूब खाने-पीने को मिला। उसके भाई और भाभियों ने अहसास किया कि जिस बालक को हमने इतना दुःख दिया, तकलीफ़ दी, वही बड़ा होकर हमारा राजा बना। उसी के चलते हम खा-पी रहे हैं। हमारे बाल-बच्चे सुख से जी रहे हैं।

    उसी दिन से सारे लोग अपनी दीवारों पर इड़ताल का चित्र बनाकर बिल्ली, बगड़पूजा और गाय-गोरुओं की पूजा करते रहे हैं। दीवारों में प्रकृति के साथ सामंजस्य स्थापित करते हुए विभिन्न चित्र बनाकर पूजा करते रहे हैं। उसी दिन से कुररुआल पुट सुरैंड़ापुर पूजा करते रहे हैं। सारंगी बजाते हुए बिल्ली को पास में रखकर (टोकरी के अंदर रखकर) यह पूजा करते रहे हैं। उसी सुरैंड़ापुर को 'जेंबरा मातुं' भी कहते हैं।

    स्रोत :
    • पुस्तक : ओड़िशा की लोककथाएँ (पृष्ठ 25)
    • संपादक : महेंद्र कुमार मिश्र
    • प्रकाशन : राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, भारत
    • संस्करण : 2017
    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

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    ‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

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