Font by Mehr Nastaliq Web

दो राजकुमार

do rajakumar

एक राजा था। उसकी एक रानी और दो बेटे थे। उनके राज में एक बार अकाल पड़ा। राजा ने वर्षा होने के लिए कई पूजा-पाठ, यज्ञ करवाए, दान-धर्म किया। होम, जप आदि अनेक धर्मानुष्ठान करने के कारण राजकोष लगभग शेष होने लगा। फिर भी राज्य में एक बूँद पानी नहीं गिरा। राजा चिंतित हो गए।

उसी बीच रानी का देहांत हो गया। कुछ दिन बीत जाने के बाद राजा ने मंत्री के साथ परामर्श कर फ़ैसला किया कि राजकोष से पैसा ख़र्च करके यज्ञानुष्ठान करने पर कुछ फ़ायदा नहीं हो रहा है। अब प्रजा से अर्थ संग्रह करके उन पैसों से यज्ञ, धर्मानुष्ठान आदि कार्य संपन्न किया जाए। उसके बाद मंत्री ने ख़बर भिजवाकर राज्य के विभिन्न इलाक़ों से अर्थ इकट्ठा करना शुरू किया।

अर्थ संग्रह करने के बाद ब्राह्मणों को निमंत्रण देकर यज्ञ का आयोजन करने के लिए जब निर्देश दिया गया, तब ब्राह्मणों ने कहा कि रानी के बिना राजा किसी भी तरह का धर्म-कर्म नहीं कर पाएँगे। ब्राह्मणों का मत सुनने के बाद राजा चिंता में पड़ गए। वे मंत्री के साथ सलाह-मशविरा करके दूसरा विवाह करने के लिए राज़ी हुए। ऐसा नहीं करेंगे तो फिर बरसात के बिना प्रजा परेशान हो जाएगी।

राजा का आदेश पाते ही मंत्री ने एक दूसरे राज्य में जाकर वहाँ के राजा से उनकी बेटी का हाथ राजा के लिए माँगा। राजा बोले, “मैं इस बारे में कुछ कह नहीं पाऊँगा, तुम मेरी लड़की से जाकर पूछो। वह जैसा कहेगी उसी के अनुसार काम होगा।” उसके बाद मंत्री ने राजकुमारी को बुलाकर सारी बातें बताईं और विवाह के लिए सहमति देने के लिए कहा। मंत्री ने सब कुछ राजकुमारी को सच-सच बताया ज़रूर, पर उनके दो बेटे हैं यह बात छुपा गए। राजा की यह पहली शादी है ऐसा सोचकर उस देश की राजकुमारी को भुलावा दे दिया। मासूम राजकुमारी ने रहस्य की बात जानकर विवाह के लिए पूर्ण सहमति दे दी।

राजा ने उसके लिए विवाह का आयोजन कर हाथी-घोड़ा लाव-लश्कर के साथ बारात लेकर यात्रा करने का बंदोबस्त किया। पिता का विवाह देखने पर पुत्रों को दोष लगता है, ऐसा कहकर दोनों राजकुमारों के राजमहल से दूर एक महल में सात दिन के लिए रहने का बंदोबस्त कर दिया। एक हफ़्ते के लिए दोनों राजकुमारों की सुरक्षा की सारी तैयारी करके कुछ दास-दासियों को भी उनकी सेवा में नियुक्त करवा दिया गया।

उसके बाद राजा की बारात दुलहन के राज्य पहुँची और वहाँ राजा विवाह करके नई रानी को साथ लेकर अपने महल वापस लौट आए। सुहागरात के दूसरे दिन सुबह रानी उठकर दासी, सखी और परिवार की कुछ स्त्रियों के साथ राज-उद्यान के तालाब में स्नान करने गई।

उस समय कुछ दूरी पर स्थित, जिस महल में दोनों राजकुमार रह रहे थे, उन्होंने आपस में विचार किया कि, “हमें तो यहाँ रहते एक हफ़्ता बीत चुका है, चलो अब अपने महल चलते हैं।” ऐसा सोचकर दोनों राजमहल पहुँचे। राजा ने उन्हें अलग महल में रखवाकर एक हफ़्ते के लिए गुरु के द्वारा धनुर्विद्या की व्यवस्था भी करवाई थी। इसलिए राजमहल लौटते ही दोनों राजकुमार धनुष-तीर लेकर अभ्यास करने के लिए राज-उद्यान पहुँचे।

उसी समय छोटे राजकुमार ने तालाब के किनारे के एक पेड़ पर एक कौवे को बैठे देखा। तुरंत उसने बड़े भाई को तीर मारने के लिए कहा। तीर कौवे को लगा तो वह नीचे गिर गया। साथ ही तीर पेड़ के दूसरी तरफ़ जाकर नई रानी के पैर के पास ज़मीन पर धँस गया।

रानी चौंक गई। विवाह की एक रात ही बीती है और उनका ऐसा कौन-सा शत्रु है जो उन्हें तीर बेध सकता है? रानी ने सहचरियों से पूछा कि यह तीर किसका है। सखियों ने चारों तरफ़ नज़र दौड़ाई तो देखा कि बग़ीचे की एक जगह पर दोनों राजकुमार धनुष-तीर का अभ्यास कर रहे हैं। नई रानी से राजा ने अपने दो बेटे होने की बात छुपाई थी, यह बात सखी-सहचरियों को पता नहीं थी। इसलिए उन सब ने रानी से सच-सच बात बताते हुए कहा कि, “यह जो दो किशोर तीर चला रहे हैं, वह हमारे राजा की पहली पत्नी के बेटे हैं।” नई रानी उनकी बात सुनकर एकदम अवाक् रह गई। राजा ने पहले भी विवाह किया था और उनके दो बेटे भी हैं, यह बात रानी अचानक विश्वास नहीं कर पाई और अंदर से टूट गई।

विवाह का सारा सुख, आनंद भूलकर मुरझाए मन से रानी तालाब में स्नान करके अपने अंतःपुर में वापस आई। मन-ही-मन रानी सोचने लगी कि जब राजा के पहले ही दो लड़के हैं तो फिर उसका अपना लड़का होने पर उसे इस राज्य का राजा बनने का मौक़ा नहीं मिलेगा। इसलिए इन दोनों को किसी भी उपाय से मार देना होगा। ऐसा सोचकर रानी चूहों से भरे, बिल्ली के विष्ठा से सने एक परित्यक्त कमरे में बिछी टूटी खाट पर पेट के बल मुँह छुपाकर सो गई।

दिन क्या दुपहर होने को आई, रानी ने खाया पीया। सारे रसोइयों ने राजा के पास पहुँचकर यह ख़बर देते हुए कहा, “महाराज! नई रानी को जाने क्या परेशानी ने घेरा है कि उन्होंने आज सुबह से ही कुछ खाया-पीया नहीं, बस मुँह के बल सोई पड़ी हैं।” राजा यह बात सुनकर अवाक् रह गए और तुरंत राज-काज छोड़कर अंतःपुर में पहुँचकर देखा कि रसोइयों की बात सच है। राजा के काफ़ी पुकारने पर रानी ने सिर उठाया। राजा ने रानी की सारी मनोकामना पूरी करने की बार-बार क़सम खाई, जिसके बाद रानी बोली, “पहले तो आपने मुझसे झूठ बोलकर विवाह किया। आपके पहले से दो लड़के हैं। उनके रहते तो राज्य की प्रजा मेरे लड़के को राजा बनने नहीं देगी। इसलिए अगर किसी भी तरह से दोनों राजकुमारों को मरवा दिया जाए, तभी मैं उठकर भोजन करूँगी, नहीं तो भोजन नहीं करूँगी।” अब राजा क्या करे? उनके सिर पर तो मानो बिजली गिरी। पर और कोई उपाय भी नहीं है। आख़िर में रानी की बात पर सहमत होकर उन्हें खाना खिलाया।

अभी तो यज्ञानुष्ठान हुआ नहीं है, ऊपर से भूख से अगर रानी की जान चली जाएगी तो देश में पाप की मात्रा बढ़ जाएगी। ऐसा सोचकर राजा ने एकांत में मंत्री को बुलाकर सारी बातें बताईं और रानी के सामने ही दोनों राजपुत्रों की हत्या करने का आदेश दिया। उसके बाद मंत्री दोनों राजकुमारों को मारने के लिए अपने साथ लेकर निकले।

कुछ सैनिकों को साथ लेकर दोनों राजकुमारों को मंत्री अपराधियों की तरह जब ले जा रहे थे, उस समय रास्ते में एक धार्मिक व्यक्ति मिले। उन्होंने मंत्री को रोककर पूछा कि राजकुमारों को कहाँ लिए जा रहे हो। मंत्री ने तुरंत “राजकुमारों की हत्या करने के लिए ले जा रहा हूँ” कहकर सारी बातें उन्हें बताईं। उस धर्मनिष्ठ व्यक्ति के मन में दया उपजी। उन्होंने मंत्री से अनुरोध किया कि राजकुमारों का वध वह करें और उन्हें सौंप दें। मंत्री उस व्यक्ति के हाथों राजकुमारों को सौंपकर जंगल की चिड़िया को मारकर उसका ख़ून एक पात्र में रखकर रानी के पास ले गए। राजकुमारों की मौत की ख़बर पाकर रानी ख़ुश हुई।

उस व्यक्ति ने राजकुमारों के लिए दो घोड़ों का बंदोबस्त करके उन्हें कहीं चले जाने के लिए कहा। उनकी बात मानकर दोनों राजकुमार घोड़ों पर चढ़कर किसी दूसरे राज्य की तरफ़ निकल गए। चलते-चलते काफ़ी दूर जाने के बाद बीहड़ जंगल आया। उस समय शाम हो चली थी और दिन भर चलते-चलते राजकुमार काफ़ी थक चुके थे। बीच जंगल में एक विशाल बरगद का पेड़ देखकर वहीं विश्राम करने के लिए रुके।

घोड़े से उतरकर पास के झरने से घोड़ों को पानी पिलाकर उसी बरगद के तने से दोनों को बाँध दिया। दोनों भाई धनुष-तीर लेकर कोमल टहनी, पत्ते बिछाकर उस पर बैठ गए। कुछ देर बाद बड़े भाई को नींद लगी तो वह सो गया। छोटा भाई उसी तरह बैठा रहा। आधी रात को पेड़ की टहनी पर बैठा एक तोता टें.. टें.. कर चीख़ने लगा। उसकी चीख़ सुनकर पास के बिल में से एक साँप निकलकर तोते को खा जाने की धमकी देने लगा।

साँप की धमकी सुनकर तोता बोला, “अरे जो मुझे मारकर खा जाएगा वह एक राजा होगा।'' तोते की बात सुनकर साँप भी बोला, “मुझे भी जो मारकर खाएगा, वह जब दाँत घिसेगा तो सोना निकलेगा।'' छोटा राजकुमार चुपचाप उनकी बातें सुनता रहा।

मौक़ा देखकर धनुष-तीर चढ़ाकर छोटे राजकुमार ने तोते को मारकर नीचे गिरा दिया। पक्षी को नीचे गिरते देखकर जैसे ही साँप उसे निगलने के लिए आगे बढ़ा, राजकुमार ने उसके दो टुकड़े कर दिए। उसके बाद दोनों को दो अलग जगहों पर पकाया और तोते के माँस को अलग रखकर साँप के माँस को ख़ुद खा लिया।

कुछ देर बाद साँप के ज़हर के कारण छोटा राजकुमार बेहोश होकर वहीं गिर गया। सुबह बड़े भाई की नींद खुली। उठकर उसने देखा कि छोटे भाई ने कहीं से कुछ शिकार करके उसके लिए पकाकर रख दिया है। इसलिए तालाब में नहा-धोकर पकाया माँस खाकर बड़ा भाई छोटे भाई के उठने का इंतज़ार करने लगा।

दोनों भाई जिस राज्य के जंगल में थे, उस राज्य में कोई राजा नहीं था। इसलिए हाथी के सूँड़ में कलश रखकर उसे हर जगह घुमाया जा रहा था। उस दिन हाथी उसी जंगल की तरफ़ चलने लगा। बरगद के पेड़ के नीचे बैठे बड़े भाई के सिर पर कलश का पानी डालकर सूँड़ से उसको प्रणाम किया। हाथी के पीछे-पीछे उस राज्य के मंत्री, सेनापति, राजगुरु, नागरिक सभी चल रहे थे। बड़े भाई को सम्मान के साथ अपना राजा घोषित कर हाथी के पीठ पर उसे बिठाकर राजधानी ले गए। छोटे भाई की सुध लेने की किसे फ़ुरसत थी!

इस घटना के तीन-चार दिन बाद उसी पेड़ के पास से एक संन्यासी गुज़र रहे थे। उन्होंने देखा कि बरगद के नीचे एक सुंदर किशोर बेहोश पड़ा है। पास जाकर उन्होंने जाना कि यह हालत किसी तेज़ ज़हरीले साँप के कारण हुई है। उनके मन में दया उपजी। झाड़-फूँक करके उसके ज़हर के असर को कम करने की कोशिश की और छोटे भाई के उठने तक साधु वहीं उसकी पहरेदारी करते रहे।

ठीक सात दिन, सात रात गुज़र जाने के बाद ज़हर का असर ख़त्म हुआ, तब जाकर छोटा राजकुमार उठ बैठा। साधु ने उसे नहला-धुला दिया। उसे स्वस्थ किया। जब वह थोड़ा ठीक हुआ तो अपने आस-पास देखा। बड़ा भाई उसे कहीं दिखाई नहीं दिया। संन्यासी से विदा लेकर वह बड़े भाई की तलाश में निकल पड़ा। चलते-चलते एक शहर की सीमा पर पहुँचा। वहीं एक टूटे मकान में टहनी-पत्तियों का बिस्तर लगाकर रहने लगा। हर दिन दाँत घिसते समय तीन टुकड़ा सोना गिरता था। उसे ही बेचकर अपना पेट पालेगा, ऐसा उसने सोचा।

उसने पहले दो-तीन दिन का सोना इकट्ठा किया और राजधानी में कुछ लोगों को बेचने के लिए गया। दो-चार ने मना कर दिया। फिर एक महाजन उससे सोना ख़रीदने पर सहमत हुआ। छोटा भाई तब सोना बेचकर उसके पास गिरवी रखकर कुछ रुपया लेकर आया। उसी तरह हर दिन कुछ सोना उस महाजन के पास गिरवी रखकर कुछ पैसा ले आता और उसी से उसका काम चल जाता।

एक दिन बूढ़े महाजन और बुढ़िया ने सोचा, यह युवक तो हमें सोना बेच नहीं रहा है, सिर्फ़ गिरवी रख रहा है। इसलिए इसे किसी तरीक़े से जान से मार दिया जाए। ऐसा सोचकर दूसरे दिन जब युवक सोना लेकर आएगा तो उसे ज़हर देकर मार देने का फ़ैसला करके वे मिठाई, पकवान बनाने लग गए।

उसके दूसरे दिन छोटा भाई सोना लेकर महाजन के पास पहुँचा तो हर दिन से भी ज़्यादा लाड़-दुलार दिखाकर उसे प्यार से घर के अंदर ले जाकर दिव्य आसन पर बिठाया। हर दिन उन्हें सोना देने के कारण उनके बीच एक तरह से मित्रता हो गई है, कहकर उसे कई तरह के पकवान, मिठाई खाने के लिए दिए। उस मिठाई में ज़हर मिला था। छोटा भाई उनकी चालबाज़ी को समझ पाकर सारी मिठाई खा गया।

मिठाई खाने के बाद उसे नशा हो गया। वहाँ से घबराकर लौटते हुए वह एक धर्मशाला में ठहरा। धर्मशाला के कुछ लोगों द्वारा एक-दो दिन सेवा टहल करने के बाद वह ठीक हुआ। पर ज़हर के ऊपर फिर ज़हर खाने के कारण अब और दाँत घिसते समय सोना नहीं गिरा। तब उसने जो सोना गिरवी रखा था, उसे वापस लेने के लिए उसी महाजन के पास गया।

महाजन युवक को सशरीर वापस आता देखकर अवाक् रह गया। उसने सोचा था कि ज़हर खाकर वह मर जाएगा और वह निश्चिंत होकर उसके सोने को अपने पास रख लेगा। पर यहाँ तो सब पलट गया। महाजन ने चालाकी से युवक को किसी और दिन आने को कहा।

महाजन अब छोटे राजकुमार को किसी और उपाय से मारने की सोचने लगा। उसने घर के एक हिस्से में पंद्रह हाथ का एक गड्ढा खोदकर उसके ऊपर एक पतली चद्दर ढक दी और धीरे से उस पर एक कुर्सी रख दी। अबकी बार छोटा राजकुमार आएगा तो उसे उस कुर्सी पर बैठने के लिए कहेगा और उसके बैठते ही गड्ढे में गिर जाने पर गड्ढे का मुँह लकड़ी के पट्टे से बंद करवा देगा।

दो-तीन दिन बाद छोटा राजकुमार आया। महाजन सादर उसे घर के अंदर ले गया। पहले से तैयार किए गए उस गड्ढे के ऊपर स्थित कुर्सी पर उसे बैठने के लिए कहा। जैसे ही छोटा राजकुमार उस पर बैठा वैसे ही गड्ढे में गिर गया। महाजन इसी मौक़े का फ़ायदा उठाकर गड्ढे का मुँह ढककर निश्चिंत हो गया।

सात दिन के बाद, महाजन ने ढक्कन खोलकर अंदर झाँका तो देखा कि लड़का मरा नहीं है, बल्कि दमखम के साथ कुर्सी पर बैठा है। महाजन को देखा तो उसने कहा, “महाजन, मुझे तुम बिना किसी दोष के ऐसे मारना चाहोगे तो नहीं मार पाओगे। यहाँ से मुझे ऊपर उठाओ। उसके बाद अपनी मौत कैसे होगी तुम्हें बताऊँगा।'' उसकी बात सुनकर सोने के लालच में वह उसे ऊपर ले आया। उसके बाद छोटा राजकुमार बोला, “महाजन भाई, अब मेरे लिए एक लड़की ठीक करो। फिर तुम्हारा बेटा बनकर उस लड़की से सबके सामने वेदी पर मैं विवाह करूँगा। उसके बाद सुहागरात के दिन मुझे ले जाकर कुएँ में डाल देना और अपने छोटे बेटे को सुहागरात के कमरे में नववधू का पति बनाकर भेज देना। तभी जाकर तुम्हारे लंगड़े, कुरूप लड़के को लड़की मिलेगी। मैं तुम्हारा इतना उपकार करने के बाद अपने-आप ही मर जाऊँगा।''

लड़के की बात पर पूरी तरह से विश्वास करते हुए उसी दिन से महाजन ने उसे अपना बेटा घोषित किया और हाट-बाज़ार सब जगह अपने साथ लिए घूमने लगा। अपने असली लंगड़े बेटे को घर में छुपा कर रखा। कुछ दिन बाद उस मुहल्ले के एक और अमीर व्यक्ति की लड़की के साथ अपने लड़के का संबंध तय कर उसे बहू बनाकर लाने की बात सोचने लगा। ख़ूबसूरत बहू चुनी है, जानकर सभी ख़ुश हुए। ठीक समय पर विवाह कार्य संपन्न हुआ। कई तरह के दान-दहेज़ साथ में लेकर महाजन घर लौटा। उस दिन बेटा-बहू की सुहागरात मनेगी। छोटा राजकुमार वधू के घर जाने के बाद ख़ुद ही कुएँ के अंदर चला गया। महाजन ने पहले की तरह गड्ढे का मुँह बंद करके कमरे का दरवाज़ा बंद करके ताला लगा दिया। सुहागरात की सारी तैयारियाँ करके अपने लंगड़े लड़के को वधू के पास भेजा। लंगड़े ने दरवाज़ा खोलकर अंदर वधू के पलंग पर जैसे ही बैठना चाहा, वधू ने उसे दुत्कारते हुए मारकर वहाँ से भगा दिया।

लंगड़ा “मुझे मार डाला, मुझे मार डाला'' चिल्लाते हुए घर से बाहर निकल गया। उसकी व्याकुल चीख़-पुकार को सुनकर पास-पड़ोस के लोग इकट्ठा हो गए। महाजन बोला, “देख रहे हो भाइयो, मैंने कामदेव की तरह सुंदर लड़के की शादी कराई थी और इस कुलक्षणी ने उसे लात-घूँसा मारकर कैसे लंगड़ा कर दिया।'' गाँव वाले कहते भी क्या? सच बात जानने पर भी अमीर आदमी से क्या मुँह लगना, यह सोचकर सब अपने-अपने घर लौट गए।

उसके दूसरे दिन सारी बातें राजा को बताने का मन बनाकर महाजन बूढ़ा-बुढ़िया अपने लंगड़े बेटे को साथ बैलगाड़ी में बैठकर राजदरबार की तरफ़ चले। राजा से जाकर सारी बात कही तो राजा ने कहा, “वह ख़ुद जाँच-पड़ताल करेंगे।''

उस बीच नई बहू ने देखा कि एक कमरे में ताला लगा हुआ है और उसे खोलने के लिए महाजन ने सबको आदेश दे रखा है। कौतूहलवश नई वधू ने ताला खोलकर देखा कि वहाँ पंद्रह हाथ गहरा एक गड्ढा है और उसका असली पति उसके अंदर बैठा है।

बहू ने उससे पूछा, “यह सब कैसे हुआ?'' छोटे राजकुमार ने एक-एक करके सारी बातें बताईं। राजा जब जाँच करने आए तो उन्होंने यह सब अतीत की सभी घटनाएँ भी बताने के लिए नव वधू से अनुरोध किया। वधू अपने पति को स्वादिष्ट भोजन परोसकर महाजन के परिवार के लौटने से पहले ही फिर से दरवाज़ा वैसे ही बंद करके अपने कमरे में बैठ गई।

राजा ने सैन्य-सामंत लेकर महाजन के घर के अंदर प्रवेश किया। महाजन राजा को वधू के पास ले गया। तब वधू ने सारी बातें सच-सच राजा को बताईं। छोटे राजकुमार ने उसे यह भी बता दिया था कि उसका बड़ा भाई इस देश का राजा बना है और यह बात ज़रूर राजा को बताने का निर्देश दिया था उसने।

राजा ने वधू की सारी बात सुन लेने के बाद कौतूहलवश पूछा कि उसे इन सब बातों की जानकारी कैसे है, तब वधू बोली, “इस महाजन ने घर के अंदर एक कुआँ खोदकर सोने के लालच में एक राजकुमार को मारने की योजना बनाई है। उन्हीं से मेरी शादी भी हुई थी। वही मेरे असली पति हैं।'' इतना कहकर राजा को उसी जगह पर ले गई। राजा ने देखा कि वह युवक कोई और नहीं, उसका अपना छोटा भाई है। वहाँ से उसका उद्धार करके ससम्मान राजमहल में ले जाकर मंत्री के पद पर रखा और उस अपराधी महाजन को कठोर दंड के तहत राज्य की सीमा से बाहर खदेड़ दिया।

स्रोत :
  • पुस्तक : ओड़िशा की लोककथाएँ (पृष्ठ 167)
  • संपादक : महेंद्र कुमार मिश्र
  • प्रकाशन : राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, भारत
  • संस्करण : 2017
हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

Additional information available

Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

OKAY

About this sher

Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

Close

rare Unpublished content

This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

OKAY