Font by Mehr Nastaliq Web

अकाट चूहा

akat chuha

गर्मी के दिन ख़त्म होने को रहे थे। कुछ दिन बाद बरसात शुरू हो जाएगी। खेती का काम भी तब शुरू हो पड़ेगा। ठीक समय पर उचित कार्यवाही की जाए तो बाद में परेशान होना पड़ेगा। यही सब सोचते-सोचते कंध (एक आदिवासी जाति) बूढ़े को बेचैनी महसूस हुई। इसी समय नया हल-नांगल बना लेने पर खेती करने में कोई दिक़्क़त नहीं रहेगी। यही सोचकर बूढ़े ने रात बीतने पर जंगल जाने का फ़ैसला किया।

अलसुबह कंध बूढ़ा कुल्हाड़ी को कंधे पर रखकर जंगल की तरफ़ चला। घने जंगल के भीतर जाकर हल-नांगल के लिए एक अच्छी लकड़ी ढूँढ़ने लगा। ढूँढ़ते-ढूँढ़ते सारा जंगल छान मारा। काफ़ी कोशिश के बाद उसे अपनी मनपसंद लकड़ी का एक बल्ला मिला। तब तक सूरज सिर पर पहुँच चुका था। तेज़ धूप शरीर झुलसा रही थी। थककर बूढ़े ने पेड़ की छाँव में जाकर बैठ तो गया, पर मारे प्यास के उसका गला सूखने लगा। बूढ़े ने कुछ समय तक अपने को सँभाला, पर आख़िर में सहा गया तो आस-पास पानी ढूँढ़ने लगा, कहीं कोई झरना भी नहीं था। वह तो ठहरा जंगल का आदमी, उसे पता था कि वन में किसी पेड़ की खोह में या पत्थर में बने गड्ढे में पानी ज़रूर होगा, बूढ़े ने जंगल में कई जगहों पर पानी ढूँढ़ा। आख़िर में उसे पत्थर पर एक बहुत बड़ा गड्ढा दिखा। उसके ऊपर एक पेड़ उगा हुआ दिखा। उसके नीचे कितनी अच्छी छाया थी। उसी पेड़ के नीचे वह बैठ गया। आराम से कुछ पल उस पेड़ के नीचे बैठा। पर प्यास अब उससे सही नहीं जा रही थी।

वहीं बैठकर वह इधर-उधर नज़र दौड़ाने लगा। अचानक पत्थर पर एक बड़ा गड्ढा उसे दिखा। उसमें पानी भरा हुआ था। उस पानी में टहनी, पत्ता, तिनका गिरा हुआ था और कीड़े भी लग गए थे। पर बूढ़े ने उस सबको नज़रअंदाज करते हुए साल पेड़ के पत्र को तोड़कर दोना बनाकर उससे पानी निकाला। मन भरकर पानी पीकर वापस उस लकड़ी के बल्ले के पास पहुँचा। शाम ढलने लगी थी। इतने बड़े लकड़ी के बल्ले को कंधे पर रखकर घर पहुँचना तो मुश्किल था। तब वह लकड़ी के बल्ले को छीलकर पतला करने लगा।

लकड़ी के बल्ले को छीलकर पतला करते समय कुल्हाड़ी का फाल मूठ से निकलकर उसके पैर में लगा और मुड़ गया। बूढ़ा यह देखकर अचंभित रह गया। वह लकड़ी के बल्ले पर कुछ देर बैठकर इस बारे में सोचने लगा। उसका पैर क्या लोहे से भी ज़्यादा कठोर है। उसने इधर-उधर नज़र दौड़ाई। उसे कुछ दूरी पर सूखी लकड़ी का टुकड़ा पड़ा दिखाई दिया। उसने लकड़ी को उठाकर आँखें बंद करके अपने पैरों पर तेज़ी से वार किया। लकड़ी के दो टुकड़े हो गए। बूढ़े ने अपने हाथों को भी जाँचा। वे लोहे की तरह सख़्त लगे। उसने महसूस किया मानो उसके अंदर सौ शेर की ताक़त है। बूढ़े को अब यक़ीन हो गया कि उस पत्थर के गड्ढे में से जो पानी पिया है उसी के चलते उसके हाथ-पैर लोहे की तरह सख़्त हो गए हैं। उसने

सोचा ज़रूर उस पानी के अंदर कुछ डूबा हुआ है। बात क्या है जानने के लिए फिर उसी पानी के पास जा पहुँचा। पत्थर के उस गड्ढे में से सारा पानी निकाल दिया तो देखा कि उसके अंदर एक छोटा छेद है। उस छेद में हाथ डाला। उसके हाथ में कुछ लगा जिसे पकड़कर उसने बाहर खींचा तो देखा कि एक चूहा था। बूढ़े ने सोचा यह तो वही अकाट चूहा है, जिसके बारे में बचपन से वह सुनता रहा था। तो यह बात सच थी। नहीं तो इतने बड़े पत्थर में छेद करके वह कैसे रह पाता? जिसकी क़िस्मत अच्छी होगी, उसे ही वह चूहा मिलेगा। बूढ़े ने सोचा उसका भाग्य अच्छा है। उसने सुना था कि इस चूहे के कलेजे को तेल में भूनकर खाने से व्यक्ति ताक़तवर बन जाता है। उसके शरीर को तो कुल्हाड़ी से काटा जा सकता है, तलवार से, किसी और अस्त्र से। बूढ़ा ख़ुश हो गया। चूहे को लेकर घर पहुँचा।

उस रात को बूढ़े ने बूढ़ी के आगे सारी बातें बखान कीं। बूढ़ी ने ख़ुश होकर बूढ़े के पूरे शरीर पर हाथ फिराया। कहीं कुछ भी तो नहीं लग रहा है। बूढ़ा बोला, “सुन तू पहले चूहे के कलेजे को तेल में भूनकर मुझे खाने को दे।” बूढ़ी ने फिर और देर करते हुए चूहे के कलेजे को तेल में भूनकर बूढ़े को खाने को दिया और थोड़ा सा ख़ुद भी खाया। उसके बाद फिर एक बार बूढ़े के शरीर पर बूढ़ी ने हाथ फिराया। बूढ़ा बोला, “सुन ऐसे हाथ से सहलाने पर तुझे कुछ समझ में नहीं आएगा। सुबह होने दे तब देखना।” बूढ़ी को उसकी बात पर विश्वास नहीं हुआ। वह सुबह का इंतज़ार करने लगी।

उस रात बूढ़े को स्वप्न दिखा। सपने में वन देवी उससे बोली, “बूढ़े, तुम बहुत क़िस्मत वाले हो, तुम साहसी और परिश्रमी हो। जंगल में काम करते हो। खेत में हल चलाते हो। हमेशा हथियार से तुम्हारा वास्ता पड़ता है। इसलिए वह अकाट चूहा तुम्हें मिला। उसका कलेजा तुम खा चुके हो। जब भी तुम खेत में काम कर रहे होगे या जंगल में घूम रहे होगे, तभी तुम्हारे शरीर पर अकाट चूहे की जो ताक़त है, वह तुम्हारे काम आएगी, बाक़ी समय में वह ताक़त काम नहीं आएगी। तुमने बहुत बड़ी ग़लती कर दी। मुझे बताकर कलेजे को खा लिया। उसके दिल को खाते तो अमर हो जाते।”

बूढ़े की नींद झटके से खुल गई। तब तक पौ फटने लगी थी। बूढ़ी को कुछ बताकर, सीधा घर के पिछवाड़े की तरफ़ दौड़ा बूढ़ा। वहाँ कूड़े के ढेर में से चूहे का दिल ढूँढा, पर पाया नहीं। दुःखी होकर बूढ़ी के पास जाकर उसे बताया। कहा, “हमने बहुत बड़ी ग़लती कर दी। पहले वन देवी को पुकारते तो वह हमें ज़रूर राह बतातीं।” बूढ़ी आश्चर्य से पूछी, “कैसी भूल?” बूढ़ा उसे समझाते हुए बोला, “चूहे के दिल को पकाकर खाते तो हम अमर हो जाते। यह बात माँ वन देवी ने मुझे सपने में बताई।”

इसी तरह कुछ दिन बीत गए। कलेजे को खाने से उसके या बूढ़े के शरीर में कुछ भी बदलाव उसे नज़र नहीं आया। बूढ़ी ने मन-ही-मन सोचा, बूढ़े ने उसे झूठ बोलकर ठग लिया।

तब तक ठंड के दिन गए। बूढ़े के खेत में धान पकने लगा। जंगल के बीचों-बीच उसका एक धान का खेत था। कहीं कोई चोरी कर ले, इस डर से बूढ़ा-बूढ़ी दोनों पहरा देने के लिए जा रहे थे। पहाड़ी रास्ता था। थोड़ी सी भी असावधानी होने पर सीधे पहाड़ से नीचे गिरते। चलते-चलते अचानक दोनों जंगली हाथी के सामने पड़ गए। हाथी ने बूढ़े को सूँड़ में उठाकर एक गड्ढे के अंदर फेंक दिया। बूढ़ी डर के मारे गिर गई और तीन-चार बार पलटी खाकर पत्थर से टकराकर गड्ढे में गिर गई।

क़िस्मत से दोनों एक ही गड्ढे में गिरे। दोनों बेहोश हो गए। जंगली हाथी वहाँ से चला गया। दो-तीन घंटे के बाद दोनों को होश आया। देखा तो पाया कि दोनों एक गड्ढे में गिरे पड़े हैं। बूढ़ा बोला, “अब समझी उस अकाट चूहे का गुण। तू अगर उस दिन कलेजा नहीं खाई होती तो आज अपने प्राण गँवा बैठती। इतने बड़े पहाड़ से नीचे गिरते समय पत्थर से टकराई, फिर भी ज़िंदा हो।” अब बूढ़ी ने बूढ़े की बात पर विश्वास किया। दोनों घर लौट आए। उसी दिन बूढ़ी को अकाट चूहे का गुण समझ में आया।

स्रोत :
  • पुस्तक : ओड़िशा की लोककथाएँ (पृष्ठ 127)
  • संपादक : महेंद्र कुमार मिश्र
  • प्रकाशन : राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, भारत
  • संस्करण : 2017

संबंधित विषय

हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

Additional information available

Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

OKAY

About this sher

Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

Close

rare Unpublished content

This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

OKAY