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अकाल का प्रतिकार

akal ka pratikar

एक बार पृथ्वी पर बारह वर्ष तक बरसात नहीं हुई। घोर अकाल पड़ा। जल के अभाव में पूरी धरती पर हाहाकार मच गया। आसमान में एक भी बादल नहीं दिखा। धरती जगह-जगह से फट गई। सूरज की तीखी किरणों से धरती तप कर धूसर दिखने लगी। धरती के रूखे पहाड़, सूखे पेड़-पौधों के बीच कमज़ोर आदमी विकलांग नज़र रहे थे। आदमियों के हाथ-पैर सूखी लकड़ी की तरह दिखने लगे। पिंजर की हड्डी गिनी जा सकती थी। धँसी हुई आँखें और गाल देखकर आदमी ज़िंदा है या मर गया, जानना मुश्किल हो गया।

धीरे-धीरे अनाज के अभाव से आदमी और पालतू पशु सब मरने लगे। कुछ लोग जो अन्य चीज़ें खाकर ज़िंदा थे, वे सोच में पड़ गए। इस धरती पर अब पानी तो बरसेगा नहीं। एक-दो नहीं पूरे बारह वर्ष का अकाल है यह। शायद मानव जाति इस धरती पर लुप्त हो जाएगी।

एक दिन अस्सी साल के एक बूढ़े किसान ने अपने पाँचों बेटों को पास बुलाकर कहा, “बच्चो, खेती के बारे में मेरा जो ज्ञान है, उसका बखान करूँ तो ख़त्म होगा नहीं। अपने जीवन में पहले कभी ऐसा अकाल तो मैंने देखा नहीं था। वर्षा तो होगी नहीं, फिर खेती कैसे होगी? मैं तो सूखे पेड़ का पत्ता हूँ। कभी भी झड़ जाऊँगा। हमारा समय अब ख़त्म हो रहा है। तुम सब घर में निकम्मे होकर बैठे रह गए। मैंने जो कुछ कमाया उसे तुम सबने भोगा। मेरी चिंता यही है कि मेरे बाद कैसे खेतीबाड़ी करके तुम सब ज़िंदा रहोगे। जंगल तभी रहेगा, जब तुम सब शिकार करके, फल-फूल खाकर साल-छह महीने ज़िंदा रह पाओगे। अगर तुम हल चलाना सीख लोगे तो इस धरती पर जब कभी भी पानी गिरेगा, तब तुम सब खेती कर फ़सल उगा सकोगे और मेरे वंश की रक्षा कर सकोगे।”

बच्चों ने सोचा वृद्ध सही बात कह रहे हैं। हम सब जवान होते हुए भी वृद्ध पर आश्रित रहे। खेती का काम सीखा नहीं। तब बच्चों ने वृद्ध से खेती के बारे में पूछा।

वृद्ध बोला, “हल और बूढ़े बैलों को लेकर खेत पर चलो। वहीं सिखाऊँगा तुम्हें खेती करना।”

वृद्ध की बात सुनकर बच्चे हल-नागल लेकर खेत पर गए। वृद्ध भी उनके साथ गया। पर ज़मीन तो सख़्त हो गई थी। फटकर खुल गई थी। हल का फाल ज़मीन पर चलेगा कैसे? तब वृद्ध ने एक उपाय किया। गाँव के पास नदी के बालू पर बच्चों को ले जाकर हल कैसे चलाया जाता है, बीज कैसे बोया जाता है, निराई-गुड़ाई किस तरह की जाती है, उस सबके बारे में बच्चों को सिखाना शुरू किया। नदी के अंदर किसान का बैलों के हकालने के शब्द अट...हर...हर...से गूँजने लगा और ऐसा आभास देने लगा मानो पास ही कहीं खेती की जा रही है।

उधर स्वर्ग में देवराज इंद्र ने सुना कि मृत्युलोक में कोई खेती कर रहा है। पिछले चार-पाँच दिनों से हल-नागल लेकर कुछ किसान अट..त्..त्.. आवाज़ निकालते हुए खेती करते से लग रहे हैं। वह मन ही मन हँसे। बोले, “मूर्ख प्राणी! बारह वर्ष से मैंने एक बूँद पानी भी पृथ्वी पर नहीं बरसाया है। बिना जल के मिट्टी उर्वर कैसे होगी और खेती संभव कैसे होगी? पर कौन है वह दुस्साहसी व्यक्ति, जो बारह वर्ष के अकाल में भी ज़िंदा रहकर हल लेकर खेती कर रहा है।” इंद्र देव के मन में यह प्रश्न उभरा।

अपने मन के कौतूहल को दबा पाकर देवराज इंद्र एक ब्राह्मण का छद्म वेश धरकर धरती पर उसी नदी किनारे पहुँचे। वहाँ देखा एक वृद्ध किसान हल-नागल लेकर अपने लड़कों को खेती करना सिखा रहा है। छद्मवेशी इंद्र ने पूछा, “हे वृद्ध! तुम पागल हो गए हो क्या? नदी के बालू पर कहीं खेती होती है? ऊपर से तेज़ धूप, नीचे तपती रेत, इतनी तकलीफ़ उठाकर हल चलाने का क्या कारण है?”

वृद्ध उनकी बात सुनकर हँसा। सिर की पगड़ी खोलकर चेहरे से पसीना पोंछा और दाहिने हाथ से अपनी अँगोछी पकड़कर पसीना सुखाने के लिए हवा करते हुए छद्मवेशी इंद्र के पास पहुँचकर बोला, “हे श्रीमान प्रणाम! आप तो सच ही कह रहे हैं स्वामी। पर मैं तो वृद्ध हूँ, पका हुआ हूँ। आज हूँ, कल नहीं रहूँगा। मेरे यह बच्चे हल पकड़कर खेत जोतना नहीं जानते हैं। बारह वर्ष हो गए, पृथ्वी पर वर्षा नहीं हो रही है। पर कभी कभी तो बरसात होगी। उस समय मेरे बच्चे खेती करना नहीं जान रहे होंगे तो बिना खेती के अपना पेट कैसे पालेंगे? इसलिए मैंने यह पुरखों की विद्या उन्हें सिखा देना ठीक समझा और खेत में क्यों हल नहीं जोत रहा हूँ, यह तो आप जान ही गए होंगे श्रीमान, बच्चे सीख रहे हैं, भविष्य में काम आएगा। धर्म देवता सूरज तो हर दिन उदित हो रहे हैं, अस्त हो रहे हैं। हर कोई अपना कर्तव्य करे तो यह पृथ्वी कैसे क़ायम रह पाएगी?”

वृद्ध की बात सुनकर इंद्र देवता स्वर्ग लौट गए। मृत्युलोक से वापस लौटते समय उनके मन में बार-बार एक प्रश्न दस्तक दे रहा था। वह तो हमेशा स्वर्ग के सिंहासन में बैठे नहीं रहेंगे। यह सिंहासन तो किसी एक का नहीं है। स्वर्ग के सभी देवताओं का है। जो इसके लिए योग्य विवेचित होगा, वही इस पर बैठेगा। इसलिए अगर वह अपने बेटों को मृत्युलोक में किस तरह बरसात करना होता है, यह गुर सिखा देंगे तो भविष्य में वे भी इंद्र का पद पा सकेंगे। अन्यथा फिर बारह वर्ष पृथ्वी पर अकाल पड़ने पर उनके बेटे, किसान के पुत्रों की तरह निकम्मे होकर अपना कर्तव्य भूल जाएँगे।

इसलिए इंद्र ने स्वर्गपुरी पहुँचते ही तुरंत अपने पुत्रों को बुलाकर चारों दिशाओं में उन्हें भेजकर, कैसे आसमान में पानी संग्रह किया जाता है, वज्र सृष्टि कैसे की जाती है, बिजली की चमक, बादल की गड़गड़ाहट, ओस, ओले की सृष्टि कैसे की जाती है, यह सब बताया और फिर वायु के निर्देशानुसार अलग-अलग दिशाओं में अलग तरह की वर्षा, सत्ताइस नक्षत्रों के अनुसार वर्षा पृथ्वी में कैसे होती है, वह सब शिक्षा दी। इंद्र के वही चार पुत्र पिता की आज्ञानुसार अपनी विद्या का कौशल व्यवहार में लाने लगे।

इसके फलस्वरूप बारह वर्ष तक अकाल ग्रस्त पृथ्वी पर बादलों की गड़गड़ाहट, बिजली की चमक, तेज़ हवा के झोंकों के साथ पानी बरसने लगा। पृथ्वी के नदी, नाले, पोखर जल से भर गए। लोग शांति और आश्वस्ति की साँस भरने लगे। जीने की नई आशा लोगों के प्राणों में दिखने लगी। बारह बरस की लंबी अवधि में मिले दुःख, शोक, क्षुधा, प्यास सबको भूलकर लोग अँजुरी-अँजुरी भर पानी पीने लगे। पृथ्वी में नए जीवन का संचार हुआ।

अब देवराज इंद्र को समझ में आया कि पृथ्वी पर बारह बरस तक जिस अकाल की सृष्टि उन्होंने की थी, वह उनके अनजाने में अब ख़त्म हो गई है और इसके पीछे का मूल कारण है वह वृद्ध किसान, जो नदी के रेत पर अपने लड़कों को खेती करना सिखा रहा था।

स्रोत :
  • पुस्तक : ओड़िशा की लोककथाएँ (पृष्ठ 100)
  • संपादक : महेंद्र कुमार मिश्र
  • प्रकाशन : राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, भारत
  • संस्करण : 2017
हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

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