बहुत समय पहले की बात है। एक गाँव में एक बुढ़िया रहती थी। बुढ़िया थी ग़रीब वह यहाँ-वहाँ से माँगकर आटा ले आती और उस आटे की रोटियाँ बनाकर खा लेती। उसके पास रोटियाँ सेंकने को न तो लकड़ियाँ थीं और न गोबर के कंडे थे। वह घास-फूस बटोरकर आग जलाती और उसमें रोटियाँ सेंकती।
एक दिन बुढ़िया आटा माँगकर लाई। उसने घास-फूस इकट्ठा किया और रोटी सेंकने लगी। उसी समय एक मेंढकी फुदकती हुई उधर आ निकली। मेंढकी ने देखा कि बुढ़िया घास-फूस को जलाकर रोटियाँ बना रही है तो उसे बड़ा आश्चर्य हुआ।
‘क्यों अम्मा, ये क्या कर रही हो?’ मेंढकी ने बुढ़िया से पूछा।
‘अपने लिए रोटियाँ सेंक रही हूँ।’ बुढ़िया ने उत्तर दिया।
‘लेकिन रोटी तो लकड़ियों या गोबर के कंडों की आग में सेंकी जाती है मगर तुम तो घास-फूस की आग में सेंक रही हो। इसमें तो रोटियाँ ठीक से सिंक भी नहीं पाएँगी।’ मेंढकी ने बुढ़िया से कहा।
‘कहती तो तुम ठीक हो, मेंढकी! मगर मैं ठहरी ग़रीब और लाचार, मेरे पास न तो लकड़ियाँ ख़रीदने को पैसे हैं और न कंडे बीनने की ताक़त है। मैं लकड़ियाँ पाऊँ तो कैसे और कंडे बटोरूँ तो कैसे?’ बुढ़िया ने बिना किसी संकोच के कहा।
‘तुम चिंता न करो, अम्मा! लकड़ियाँ लाना तो मेरे लिए भी कठिन है लेकिन मैं अभी कंडे ला देती हूँ।’ मेंढकी ने कहा और वह फुदकती हुई गई और कहीं से कंडे ले आई।
बुढ़िया ने कंडे सुलगाए और उन पर रोटियाँ सेंकने लगी। जब पूरी रोटियाँ सिंक गईं तो मेंढकी रोटियों पर फुदकने लगी। कभी इस रोटी पर तो कभी उस रोटी पर।
‘तुम इस तरह रोटियों पर क्यों कूद रही हो? रोटियाँ ख़राब हो जाएँगी।’ बुढ़िया ने उसे टोंकते हुए पूछा।
‘देखो अम्मा, जंगल गई मैं मेंढकी और जंगल से तुम्हारे लिए कंडे लाई। कंडे जलाकर तुमने रोटियाँ बनाई। अब तुम मुझे कम से कम एक रोटी तो दे दो।’ मेंढकी ने बुढ़िया से कहा।
बुढ़िया ने मेंढकी को एक रोटी दे दी। मेंढकी रोटी लेकर ख़ुशी-ख़ुशी चल पड़ी।
रास्ते में उसे एक ग्वाले का घर मिला। उसने देखा कि ग्वाले के बच्चे भूख के मारे रो रहे हैं। यह देखकर मेंढकी को बच्चों पर दया आ गई। उसने अपनी रोटी उन बच्चों को दे दी। इसके बाद मेंढकी ग्वाले की भैंसों पर कूदने लगी। कभी इस भैंस पर कूदती तो कभी उस भैंस पर। ग्वाले ने मेंढकी को टोंकते हुए पूछा कि तुम मेरी भैंसों पर क्यों कूद रही हो? इससे भैसों का मन ख़राब हो जाएगा और वे दूध नहीं देंगी।
‘सुनो ग्वाले! जंगल गई मैं मेंढकी, जंगल से लाई कंडे, कंडों से बुढ़िया ने बनाई रोटियाँ, एक रोटी बुढ़िया ने दी मुझको। वह रोटी मैंने दे दी तेरे भूखे बच्चों को। अब तू मुझे इसके बदले एक भैंस दे दे।’ मेंढकी ने ग्वाले से कहा।
‘बात तो तुम ठीक कहती हो कि तुमने अपनी रोटी मेरे भूखे बच्चों को दे दी इसलिए अब मुझे भी तुम्हें कुछ देना चाहिए। ठीक है तुम मेरी ये एक भैंस ले लो।’ यह कहते हुए ग्वाले ने अपनी भैंसों में से एक भैंस मेंढकी को दे दी।
मेंढकी भैंस लेकर चल पड़ी। कभी भैंस के आगे-आगे फुदकती तो कभी भैंस की पीठ पर सवारी करने लगती। इसी प्रकार चलती-चलती वह राजा के महल जा पहुँची।
महल में वह सीधे वहाँ जा पहुँची जहाँ राजा खाना खा रहा था। मेंढकी ने देखा कि राजा रूखा भात खा रहा है। यह देखकर उसे बड़ा आश्चर्य हुआ। आख़िर राजा को ऐसी कौन-सी कमी आ पड़ी कि उसे रूखा भात खाना पड़ रहा है?
‘राजा-राजा! आप रूखा भात क्यों खा रहे हैं?’ मेंढकी ने राजा से पूछा।
‘मेरे पास गाय-भैंस कहाँ हैं जो मैं दूध-घी के साथ भात खाऊँ। जैसी भैंस तुम्हारे पास है, वैसी भैंस मेरे पास होती तो मैं दूध-घी के साथ भात खाता।’ राजा ने उदास होते हुए कहा।
राजा की बात सुनकर मेंढकी को राजा पर बड़ी दया आई। उसने अपनी भैंस राजा को दे दी। भैंस पाकर राजा बहुत ख़ुश हुआ। राजा की दो रानियाँ थीं। दोनों रानियों ने यह ख़बर सुनी कि एक मेंढकी ने राजा को अपनी भैंस दे दी है तो वे भी बहुत ख़ुश हुईं। दोनों रानियाँ मेंढकी की भैंस को देखने वहीं आ गईं। अब मेंढकी रानियों पर कूदने लगी। कभी इस रानी पर तो कभी उस रानी पर। यह देखकर राजा ने मेंढकी से पूछा—‘क्यों री मेंढकी, तू मेरी रानियों पर क्यों कूद रही है? जानती नहीं है क्या कि इससे रानियाँ रूठ जाएँगी और मुझे छोड़कर चली जाएँगी।’
‘सुनो राजा! जंगल गई मैं मेंढकी, जंगल से लाई कंडे, कंडों से बुढ़िया ने बनाई रोटियाँ, एक रोटी बुढ़िया ने दी मुझको। वह रोटी मैंने दे दी ग्वाले के भूखे बच्चों को। ग्वाले ने मुझको अपनी एक भैंस दी, भैंस मैंने दे दी तुझको। अब तू मुझे इसके बदले अपनी एक रानी दे दे।’ मेंढकी ने राजा से कहा।
‘कहती तो तुम सही हो। तुमने मुझे भैंस दी है ताकि मैं रूखा भात न खाऊँ और दूध-घी खाऊँ। ठीक है, इसके बदले तुम मेरी एक रानी ले जाओ।’ राजा ने अपनी एक रानी मेंढकी को देते हुए कहा।
मेंढकी, रानी को साथ लेकर फुदकती हुई चल पड़ी। रास्ते में एक बसोर का घर पड़ा। मेंढकी ने देखा कि बसोर अकेला रहता था। उसके घर में और कोई नहीं था। उसका विवाह भी नहीं हुआ था। अपने अकेलेपन से बसोर बड़ा दुखी था। वह बड़ा उदास था। यह देखकर मेंढकी ने रानी बसोर को दे दी। रानी को पाकर बसोर बड़ा ख़ुश हुआ। बसोर ने बाँस के टोकरे बना रखे थे। मेंढकी उन टोकरों पर कूदने लगी। कभी इस टोकरे पर तो कभी उस टोकरे पर। यह देखकर बसोर को बड़ा आश्चर्य हुआ।
‘क्यों री मेंढकी, तू मेरे टोकरों पर क्यों कूद रही है? यदि ये टोकरे ख़राब हो गए तो इन्हें कोई नहीं ख़रीदेगा और यदि टोकरे नहीं बिकेंगे तो मुझे पैसे नहीं मिलेंगे। यदि मुझे पैसे नहीं मिलेंगे तो मैं खाने को आटा कैसे ख़रीदूँगा?’ बसोर ने मेंढकी से पूछा।
'सुनो बसोर, जंगल गई मैं मेंढकी, जंगल से लाई कंडे, कंडों से बुढ़िया ने बनाई रोटियाँ, एक रोटी बुढ़िया ने दी मुझको। वह रोटी मैंने दे दी ग्वाले के भूखे बच्चों को ग्वाले ने मुझको अपनी एक भैंस दी, भैंस मैंने दे दी राजा को। राजा ने मुझको दी एक रानी। रानी मैने दे दी तुझको। अब तू मुझे रानी के बदले अपना एक टोकरा दे दे।’ मेंढकी ने बसोर से कहा।
‘ठीक है, तुम एक टोकरा ले लो।’ बसोर ने मेंढकी को एक टोकरा दे दिया। टोकरा लेकर मेंढकी प्रसन्नतापूर्वक आगे चल पड़ी। चलते-चलते रात हो गई। मेंढकी ने सोचा कि रात को जंगल पार करना ठीक नहीं है। इसलिए वह एक कत्थे के पेड़ पर चढ़ गई और टोकरे को पेड़ की डाल पर टिका कर ऊँघने लगी। थोड़ी देर में उसे नींद आ गई। इसी बीच कुछ चोर वहाँ आए और उसी कत्थे के पेड़ के नीचे बैठकर चोरी के माल का बँटवारा करने लगे। उसी समय ज़ोर की हवा चली जिससे टोकरा पेड़ से नीचे गिर पड़ा। टोकरा गिरा सीधे चोरों के सिर पर। चोरों ने समझा कि यह कोई भूत-प्रेत का मामला है और वे डर के मारे चोरी का अपना सारा माल वहीं छोड़कर भाग खड़े हुए।
मेंढकी पेड़ से नीचे उतरी। उसने चोरी का सारा माल समेटा और बढ़िया के पास चल दी। मेंढकी ने चोरी का माल बुढ़िया को दे दिया। अब बुढ़िया की सारी ग़रीबी दूर हो गई। जिससे बुढ़िया और मेंढकी आराम से ख़ुशी-ख़ुशी साथ-साथ रहने लगीं।
bahut samay pahle ki baat hai. ek gaanv mein ek buDhiya rahti thi. buDhiya thi gharib wo yahan vahan se maang kar aata le aati aur us aate ki rotiyan banakar kha leti. uske paas rotiyan senkne ko na to lakDiyan theen aur na gobar ke kanDe the. wo ghaas phoos bator kar aag jalati aur usmen rotiyan senkti.
ek din buDhiya aata maang kar lai. usne ghaas phoos ikattha kiya aur roti senkne lagi. usi samay ek menDhki phudakti hui udhar aa nikli. menDhki ne dekha ki buDhiya ghaas phoos ko jalakar rotiyan bana rahi hai to use baDa ashcharya hua.
‘kyon amma, ye kya kar rahi ho?’ menDhki ne buDhiya se puchha.
‘lekin roti to lakaDiyon ya gobar ke kanDon ki aag mein senki jati hai magar tum to ghaas phoos ki aag mein senk rahi ho. ismen to rotiyan theek se sink bhi nahin payengi. ’ menDhki ne buDhiya se kaha.
‘kahti to tum theek ho, menDhki! magar main thahri gharib aur lachar, mere paas na to lakDiyan kharidne ko paise hain aur na kanDe binne ki taqat hai. main lakDiyan paun to kaise aur kanDe batorun to kaise?’ buDhiya ne bina kisi sankoch ke kaha.
‘tum chinta na karo, amma! lakDiyan lana to mere liye bhi kathin hai lekin main abhi kanDe la deti hoon. ’ menDhki ne kaha aur wo phudakti hui gai aur kahin se kanDe le aai.
buDhiya ne kanDe sulgaye aur un par rotiyan senkne lagi. jab puri rotiyan sink gain to menDhki rotiyon par phudakne lagi. kabhi is roti par to kabhi us roti par.
‘tum is tarah rotiyon par kyon kood rahi ho? rotiyan kharab ho jayengi. ’ buDhiya ne use tonkte hue puchha.
‘dekho amma, jangal gai main menDhki aur jangal se tumhare liye kanDe lai. kanDe jalakar tumne rotiyan banai. ab tum mujhe kam se kam ek roti to de do. ’ menDhki ne buDhiya se kaha.
buDhiya ne menDhki ko ek roti de di. menDhki roti lekar khushi khushi chal paDi.
raste mein use ek gvale ka ghar mila. usne dekha ki gvale ke bachche bhookh ke mare ro rahe hain. ye dekhkar menDhki ko bachchon par daya aa gai. usne apni roti un bachchon ko de di. iske baad menDhki gvale ki bhainson par kudne lagi. kabhi is bhains par kudti to kabhi us bhains par. gvale ne menDhki ko tonkte hue puchha ki tum meri bhainson par kyon kood rahi ho? isse bhaison ka man kharab ho jayega aur ve doodh nahin dengi.
‘suno gvale! jangal gai main menDhki, jangal se lai kanDe, kanDon se buDhiya ne banai rotiyan, ek roti buDhiya ne di mujhko. wo roti mainne de di tere bhukhe bachchon ko. ab tu mujhe iske badle ek bhains de de. ’ menDhki ne gvale se kaha.
‘baat to tum theek kahti ho ki tumne apni roti mere bhukhe bachchon ko de di isliye ab mujhe bhi tumhein kuch dena chahiye. theek hai tum meri ye ek bhains le lo. ’ ye kahte hue gvale ne apni bhainson mein se ek bhains menDhki ko de di.
menDhki bhains lekar chal paDi. kabhi bhains ke aage aage phudakti to kabhi bhains ki peeth par savari karne lagti. isi prakar chalti chalti wo raja ke mahl ja pahunchi.
mahl mein wo sidhe vahan ja pahunchi jahan raja khana kha raha tha. menDhki ne dekha ki raja rukha bhaat kha raha hai. ye dekhkar use baDa ashcharya hua. akhir raja ko aisi kaun si kami aa paDi ki use rukha bhaat khana paD raha hai?
‘raja raja! aap rukha bhaat kyon kha rahe hain?’ menDhki ne raja se puchha.
‘mere paas gaay bhains kahan hain jo main doodh ghi ke saath bhaat khaun. jaisi bhains tumhare paas hai, vaisi bhains mere paas hoti to main doodh ghi ke saath bhaat khata. ’ raja ne udaas hote hue kaha.
raja ki baat sunkar menDhki ko raja par baDi daya aai. usne apni bhains raja ko de di. bhains pakar raja bahut khush hua. raja ki do raniyan theen. donon raniyon ne ye khabar suni ki ek menDhki ne raja ko apni bhains de di hai to ve bhi bahut khush huin. donon raniyan menDhki ki bhains ko dekhne vahin aa gain. ab menDhki raniyon par kudne lagi. kabhi is rani par to kabhi us rani par. ye dekhkar raja ne menDhki se puchha —‘kyon ri menDhki, tu meri raniyon par kyon kood rahi hai? janti nahin hai kya ki isse raniyan rooth jayengi aur mujhe chhoD kar chali jayengi. ’
‘suno raja! jangal gai main menDhki, jangal se lai kanDe, kanDon se buDhiya ne banai rotiyan, ek roti buDhiya ne di mujhko. wo roti mainne de di gvale ke bhukhe bachchon ko. gvale ne mujhko apni ek bhains di, bhains mainne de di tujhko. ab tu mujhe iske badle apni ek rani de de. ’ menDhki ne raja se kaha.
‘kahti to tum sahi ho. tumne mujhe bhains di hai taki main rukha bhaat na khaun aur doodh ghi khaun. theek hai, iske badle tum meri ek rani le jao. ’ raja ne apni ek rani menDhki ko dete hue kaha.
menDhki, rani ko saath lekar phudakti hui chal paDi. raste mein ek basor ka ghar paDa. menDhki ne dekha ki basor akela rahta tha. uske ghar mein aur koi nahin tha. uska vivah bhi nahin hua tha. apne akelepan se basor baDa dukhi tha. wo baDa udaas tha. ye dekhkar menDhki ne rani basor ko de di. rani ko pakar basor baDa khush hua. basor ne baans ke tokre bana rakhe the. menDhki un tokron par kudne lagi. kabhi is tokre par to kabhi us tokre par. ye dekhkar basor ko baDa ashcharya hua.
‘kyon ri menDhki, tu mere tokron par kyon kood rahi hai? yadi ye tokre kharab ho ge to inhen koi nahin kharidega aur yadi tokre nahin bikenge to mujhe paise nahin milenge. yadi mujhe paise nahin milenge to main khane ko aata kaise kharidunga?’ basor ne menDhki se puchha.
suno basor, jangal gai main menDhki, jangal se lai kanDe, kanDon se buDhiya ne banai rotiyan, ek roti buDhiya ne di mujhko. wo roti mainne de di gvale ke bhukhe bachchon ko gvale ne mujhko apni ek bhains di, bhains mainne de di raja ko. raja ne mujhko di ek rani. rani maine de di tujhko. ab tu mujhe rani ke badle apna ek tokra de de. ’ menDhki ne basor se kaha.
‘theek hai, tum ek tokra le lo. ’ basor ne menDhki ko ek tokra de diya. tokra lekar menDhki prasannatapurvak aage chal paDi. chalte chalte raat ho gai. menDhki ne socha ki raat ko jangal paar karna theek nahin hai. isliye wo ek katthe ke peD par chaDh gai aur tokre ko peD ki Daal par tika kar uunghane lagi. thoDi der mein use neend aa gai. isi beech kuch chor vahan aaye aur usi katthe ke peD ke niche baithkar chori ke maal ka bantvara karne lage. usi samay zor ki hava chali jisse tokra peD se niche gir paDa. tokra gira sidhe choron ke sir par. choron ne samjha ki ye koi bhoot pret ka mamla hai aur ve Dar ke mare chori ka apna sara maal vahin chhoD kar bhaag khaDe hue.
menDhki peD se niche utri. usne chori ka sara maal sameta aur baDhiya ke paas chal di. menDhki ne chori ka maal buDhiya ko de diya. ab buDhiya ki sari gharibi door ho gai. jisse buDhiya aur menDhki aram se khushi khushi saath saath rahne lagin.
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स्रोत :
पुस्तक : भारत के आदिवासी क्षेत्रों की लोककथाएं (पृष्ठ 82)
हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी
‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।