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अपने बाएँ अंग से विवाह करने वाला राजकुमार

apne bayen ang se vivah karne vala rajakumar

किसी राजा के एक बेटा था। राजकुमार बड़ा हो गया तो राजा ने उसके विवाह करने की सोची। पर राजकुमार ने विवाह करने से साफ़ मना कर दिया। सबने उसे बहुत समझाया, पर उसने एक सुनी। बुज़ुर्गों के कहे पर भी उसने कान नहीं दिया। राजा को बहुत दुख हुआ। उसने धमकी दी कि अगर राजकुमार विवाह नहीं करेगा तो वह आत्महत्या कर लेगा। तब राजकुमार ने कहा, “ठीक है। मेरे शरीर को दो हिस्सों में चीरो और बाएँ हिस्से को फूलों में गाड़ दो। उससे एक स्त्री पैदा होगी। मैं उसी से विवाह करूँगा, और किसी से नहीं।”

सुनकर राजा सिहर गया। चीरने से वह मर गया तो? उसने राजकुमार से पूछा, “और कोई उपाय नहीं? कोई सरल उपाय?” राजकुमार ने कहा, “नहीं, और कोई उपाय नहीं है। दूसरी स्त्रियों को नियंत्रण में नहीं रखा जा सकता। उन्हें सीधे मार्ग पर चलाना कठिन है।”

आख़िर राजा मान गया। उसने राजकुमार के शरीर को दो बराबर हिस्सों में कटवाया और बाएँ हिस्से को फूलों में गड़वा दिया। कुछ दिनों बाद उन फूलों से एक स्त्री उत्पन्न हुई। राजा ने उसका राजकुमार से विधिपूर्वक विवाह कर दिया।

राजकुमार ने अपनी पत्नी के लिए उजाड़ स्थान पर भव्य महल बनवाया। वहाँ वह जब-तब उससे मिलने जाता था। राजा बहू को बहुत चाहता था। वह भी अक्सर उससे मिलने जाता था। बहू की सुख-सुविधा का वह पूरा ध्यान रखता था।

एक बार एक जादूगर उधर से निकला। वीरान जगह पर भव्य महल! वह महल को चारों तरफ़ से घूमकर देखने लगा। झरोखे में खड़ी राजकुमार की पत्नी उसे देखकर मुस्कुराई।

जादूगर पास के गाँव में गया और एक बुढ़िया के यहाँ ठहरा। वह बुढ़िया राजकुमार की पत्नी के लिए हर रोज़ मालाएँ बनाकर ले जाती थी। एक दिन जादूगर ने एक अनूठी माला बनाई और उसे बुढ़िया को देते हुए कहा, “यह राजकुमार की पत्नी को देना और मुझे बताना कि वह क्या कहती है।”

राजकुमार की पत्नी ने माला को ध्यान से देखा। वह जादूगर का संदेशा समझ गई। मन ही मन उसे ख़ुशी हुई, पर ऊपर से ग़ुस्से का दिखावा करते हुए उसने अपना हाथ सिंदूर से रंगा और बुढ़िया के गाल पर तमाचा जड़ दिया। बुढ़िया रोते हुए घर आई और जादूगर को अपना गाल दिखाया। उसने बुढ़िया को ढाढ़स बंधाया, “इसमें रोने की क्या बात है? वह मुझसे कहना चाहती है कि अभी वह रजस्वला है।”

कुछ दिन बाद उसने दूसरी माला बनाकर बुढ़िया को दी। इस बार राजकुमार की पत्नी ने माला देखकर चूने में अपना हाथ डुबाया और बुढ़िया की छाती पर जड़ दिया। बुढ़िया रोते हुए घर आई। सफेद निशान देखकर जादूगर ने कहा, “रोती क्यों हो? वह कहना चाहती है कि आज पूनम है।”

कुछ दिन बाद उसने तीसरी माला भेजी। इस बार राजकुमार की पत्नी ने अपना हाथ काली स्याही में डुबाया और बुढ़िया की पीठ पर जड़ दिया। वह फिर रोते हुए घर आई। जादूगर ने कहा, “तुम इन बातों को पढ़ना नहीं जानती। वह कहना चाहती है कि मैं अमावस की रात को महल के पिछवाड़े पहुँचूँ।”

जादूगर अमावस की रात को वहाँ गया तो उसने महल के झरोखे से रस्सी लटकती हुई देखी। वह रस्सी के सहारे ऊपर चढ़ा और झरोखे में से भीतर चला गया। राजकुमार की पत्नी उसकी बाट जोह रही थी। उसे देखकर वह बहुत ख़ुश हुई। वे एक-दूसरे की बाँहों में समा गए। उसने जादूगर को स्नेहसिक्त स्वर में कहा, “अगर तुम अपने असली रूप में आओगे तो पहरेदार तुम्हें दरवाज़े पर रोक लेंगे। दूसरे रूप में तुम जब चाहो सकते हो।” इसमें जादूगर को क्या मुश्किल थी! सो उसके बाद वह साँप का रूप धरकर उससे मिलने आता। नाली के रास्ते वह महल में घुसता और राजकुमार की पत्नी के कमरे में पहुँचकर फिर आदमी बन जाता। उसके असली रूप में आते ही वे एक-दूसरे में समा जाते। इस तरह काफ़ी समय बीत गया।

एक दिन राजा बहू से मिलने के लिए आया तो उसने एक साँप को नाली के रास्ते महल में घुसते देखा। उसने तुरंत नौकरों को बुलाया और साँप को मरवा दिया। मृत साँप को बाहर फेंकने का आदेश देकर वह बहू से मिलने के लिए उसके कमरे में गया। बहू को उसने बताया, “अंदर आते समय मैंने एक साँप देखा। तुम्हारा भाग्य अच्छा था जो मेरी नज़र उस पर पड़ गई और मरवाकर बाहर फेंकवा दिया।” सुनकर बहू के मुँह से चीख़ निकल गई, “अयो, साँप!” चीख़ के साथ ही वह बेहोश हो गई।

पानी के छींटे डालने से काफ़ी देर बाद उसे होश आया। अपने प्रेमी की मौत पर उसका मन हाहाकार कर रहा था। पर उसने ऐसा दिखावा किया मानो नाली से साँप के घुसने की बात सुनकर वह भयाक्रांत हो गई हो। जाने से पहले राजा ने उसे तसल्ली देने के लिए कहा, “अब डरने की कोई बात नहीं। साँप कब का मर गया और मैंने उसे बाहर भी फेंकवा दिया।” उस दिन से शोक के मारे उसने एक दाना भी मुँह में नहीं डाला, ही वह एक पल भी सो सकी।

एक दिन एक जोगी उसके द्वार पर भिक्षा के लिए आया। उसने जोगी को भीतर बुलवाया और कहा, “मेरा एक छोटा-सा काम कर दो! इसके लिए मैं आपको एक रुपया दूँगी। बाहर एक साँप मरा पड़ा था। कृपा करके आप यह पता करने का कष्ट करें कि क्या वह अब भी वहाँ पड़ा है?” जोगी बाहर गया। वापस आकर उसने बताया कि बाहर मृत साँप पड़ा है। वह कहने लगी, “इसे श्मशान में ले जाओ और इसका अंतिम संस्कार करके उसकी भस्म मुझे दो। इस काम के लिए मैं आप को दो रुपए दूँगी।” जोगी मान गया। उसने साँप का विधि-विधान से अंतिम संस्कार कर दिया और भस्म लाकर राजकुमार की पत्नी को दे दी। जोगी को उसने तीन रुपए और देते हुए कहा, “सुनार के यहाँ से मुझे एक तावीज़ ला दो!” जोगी सुनार के यहाँ गया और उसे तावीज़ ला दिया।

राजकुमार की पत्नी ने अपने प्रेमी के भस्म को तावीज़ में डाला और उसे बाँह पर बाँध लिया। प्रेमी की मृत्यु के दुख से दिनोंदिन वह दुर्बल होती चली गई। पत्नी की दशा के बारे में सुनकर राजकुमार ने सोचा, “जाने कौन-सा दुख उसे खाए जा रहा है! मुझे जाकर उसे ढाढ़स बंधाना चाहिए। वह दिनोंदिन कमज़ोर होती जा रही है।

राजकुमार उससे मिलने गया और पूछा कि क्या बात है, वह इतनी कमज़ोर और बीमार क्यों लग रही है। पर पत्नी ने होंठ नहीं खोले। उसने राजकुमार से कोई बात नहीं की। राजकुमार ने उसे अपनी गोद में बिठाया और उसे मनाने में अपना पूरा कौशल लगा दिया। अंततः पत्नी ने कहा, “तुम्हारी बला से, मैं जीऊँ या मरूँ! तुमने मुझे यहाँ कारागार में बंद कर दिया। पूनम और चाँदनी दूज को छोड़कर मैं तुम्हारी शक्ल देखने के लिए तरस जाती हूँ। तुम्हीं बताओ, मैं ख़ुश रहूँ तो कैसे?” उसकी व्यथा सुनकर राजकुमार अनुताप से भर गया। उसने पत्नी को आश्वासन दिया, “ठीक है, अब से मैं हर रोज़ तुम्हारे पास आया करूँगा।”

पत्नी ने कहा, “मैं तुमसे एक पहेली पूछती हूँ। अगर तुमने उसे हल कर लिया तो मैं आग में कूद कर मर जाऊँगी और अगर तुम हल नहीं कर पाए तो तुम्हें आग में कूदना होगा। बाद में किसी ने पूछा कि यह कैसे हुआ तो हममें से कोई एक शब्द भी नहीं बताएगा। तुम्हें मंज़ूर हो तो मैं पहेली पूछती हूँ, नहीं तो छोड़ो!”

मूर्ख राजकुमार ने उसकी बात मान ली। उसने पत्नी के सर पर हाथ रखकर क़सम खाई कि वह अपने वचन का पालन करेगा। तब पत्नी ने पहेली पूछी—

एक उसे देखने के लिए,

दो उसे जलाने के लिए,

अपने बाएँ अंग से विवाह करने वाला राजकुमार

तीन उसे भुजा पर बाँधने के लिए—

पति जंघा पर,

साजन भुजा पर।

बूझो तो क्या?

पहेली को सुलझाने की राजकुमार ने भरसक चेष्टा की, पर अकारथ। उसने निःश्वास छोड़ा। उसे लगा कि सारी उम्र माथा लड़ाकर भी वह इसे हल नहीं कर सकेगा। वचन के अनुसार वह आग में जल मरा। उसकी पत्नी ने दूसरा प्रेमी ढूँढ़ लिया और सुख से रही।

स्रोत :
  • पुस्तक : भारत की लोक कथाएँ (पृष्ठ 322)
  • संपादक : ए. के. रामानुजन
  • प्रकाशन : राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, भारत
  • संस्करण : 2001

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