किसी देश में एक राजा रहता था। उसकी तीन रानियाँ थीं और तीनों रानियों से एक-एक राजकुमार थे। एक बार राजा ने स्वप्न में हंस के समान सुंदर श्वेत रंग का घोड़ा देखा। वह हंसराज घोड़ा था। उसी के साथ राजा को एक विचित्र तोता दिखाई पड़ा जो मनुष्य की बोली में बोल रहा था जिसका नाम था मुखबोलता तोता। नींद से जागने पर राजा को लगा कि वह हंसराज घोड़ा और मुखबोलता तोता उसे मिलना चाहिए। राजा ने ढिंढोरा पिटवा दिया कि जो कोई भी हंसराज घोड़ा और मुखबोलता तोता लेकर आएगा उसे ईनाम में आधा राज्य दे दिया जाएगा। आधा राज्य पाने की लालच में अनेक व्यक्ति आगे आए। उन्होंने हंसराज घोड़ा और मुखबोलता तोता ढूँढ़ने का बहुत प्रयास किया लेकिन वे सफल नहीं हो सके।
राजा ने देखा कि कोई भी उसकी इच्छा पूरी नहीं कर पा रहा है तो दुख के कारण उसका स्वास्थ्य बिगड़ गया। दिन-प्रतिदिन उसका स्वास्थ्य गिरने लगा। यह देखकर राजकुमारों को चिंता हुई। सबसे पहले बड़े राजकुमार ने हंसराज घोड़ा और मुखबोलता तोता ढूँढ़ने जाने का निश्चय किया।
बड़ा राजकुमार अपने श्वेत-श्याम घोड़े पर सवार होकर जंगल की ओर निकल पड़ा। चलते-चलते वह घने जंगल में पहुँच गया। तब तक उसे ज़ोर की भूख लग आई थी। उसने आस-पास देखा लेकिन खाने योग्य कुछ भी न दिखा। उसी समय वहाँ एक बुढ़िया दिखाई दी। राजकुमार ने उससे पूछा कि यहाँ खाने को कुछ मिल सकता है क्या?
‘इस घने जंगल में क्या मिलेगा? तुम मेरी झोपड़ी में चलो, मैं तुम्हें दही-चिउड़ा खिलाऊँगी।’ बुढ़िया ने कहा।
राजकुमार बुढ़िया के साथ उसकी झोपड़ी में जा पहुँचा। बुढ़िया ने दही में चिउड़ा डाला और राजकुमार को खाने को दिया। दही बहुत मीठी थी और चिउड़ा भी स्वादिष्ट था। ऐसा स्वादिष्ट दही-चिउड़ा राजकुमार ने कभी नहीं खाया था। दही-चिउड़ा खाकर जब राजकुमार बुढ़िया से विदा लेकर जाने को हुआ तो बुढ़िया ने उसके घोड़े की लगाम पकड़ ली।
‘जा कहाँ रहे हो, यह तो बताया नहीं।’ बुढ़िया ने कहा।
‘मैं हंसराज घोड़ा और मुखबोलता तोता लेने जा रहा हूँ।’ राजकुमार ने बताया।
‘तुम मत जाओ। यह काम तुम्हारे वश का नहीं है। तुम राक्षस के हाथों मारे जाओगे या दुम दबाकर भाग आओगे।’ बुढ़िया ने राजकुमार से कहा।
‘न तो मैं मारा जाऊँगा और न ही दुम दबाकर भागूँगा। मैं राक्षस को मारकर आगे बढ़ जाऊँगा।’ राजकुमार ने कहा।
‘तुम ऐसा नहीं कर पाओगे।’ बुढ़िया ने कहा।
‘मैं ऐसा ही करूँगा।’ राजकुमार बोला।
‘तो लगी शर्त?’ बुढ़िया बोली।
‘हाँ, लगी शर्त!’ राजकुमार बोला।
‘यदि मैं हारी तो मैं जीवन भर तुम्हारी दासी बनकर रहूँगी लेकिन यदि तुम हारे तुम्हें जीवन भर मेरा दास बनकर रहना होगा।’ बुढ़िया ने कहा।
‘मुझे स्वीकार है।’ राजकुमार ने बुढ़िया की शर्त मान ली और अपना घोड़ा दौड़ाता हुआ चल पड़ा।
कुछ दूर जाने पर उसे एक राक्षस मिला।
‘मैं भूखा हूँ! मैं तुम्हें खा जाऊँगा!’ राक्षस ने गरजते हुए कहा राजकुमार ने राक्षस को देखा तो उसकी भयानक आकृति देखकर ही वह डर गया और घोड़ा मोड़कर अपनी जान बचाकर भाग खड़ा हुआ। राजकुमार भागकर बुढ़िया के पास पहुँचा।
‘क्यों शर्त हार गए?’ बुढ़िया ने मुस्कुराते हुए कहा। इसके बाद उसने राजकुमार को अपना दास बना लिया।
जब कई दिन हो गए और बड़े राजकुमार की कोई सूचना नहीं मिली तो शेष दोनों राजकुमारों को चिंता हुई। अब मंझले राजकुमार ने हंसराज घोड़ा और मुखबोलता तोता लाने और बड़े राजकुमार को ढूँढ़ने जाने का निश्चय किया। वह अपने भूरे रंग के घोड़े पर सवार होकर निकल पड़ा।
मंझले राजकुमार के साथ भी वही हुआ। उसे वही बुढ़िया मिली। उसने मंझले राजकुमार को दही-चिउड़ा खिलाया। शर्त लगाई और मंझला राजकुमार भी शर्त हार कर उसका दास बन गया।
कई सप्ताह व्यतीत हो जाने पर भी बड़े तथा मंझले राजकुमार की कोई सूचना न मिलने पर सबसे छोटे राजकुमार ने हंसराज घोड़ा और मुखबोलता तोता लाने और अपने दोनों भाइयों को ढूँढ़ने जाने का निश्चय किया। वह अपने काले रंग के घोड़े पर सवार होकर निकल पड़ा। चलने से पहले उसने अपनी माँ से दही-चिउड़ा बंधवाया जो रास्ते में खाने के काम आता और घोड़े के लिए थोड़ा-सा चारा बंधवा लिया। इसके बाद वह भाला, बरछी, धनुष-बाण, तलवार और कोड़ा लेकर निकल पड़ा।
घने जंगल में पहुँचने पर छोटे राजकुमार को भूख लगी। उसने दही-चिउड़ा की हाँडी निकाली और खाने लगा। इतने में बुढ़िया आ गई। उसने देखा कि छोटा राजकुमार अपने साथ लाया दही-चिउड़ा खा रहा है। अत: उसने दूसरा बहाना किया और छोटे राजकुमार से बोली, ‘बेटा, मैं बूढ़ी थक गई हूँ। भटक गई हूँ। मुझे अपने घोड़े पर बिठा कर मेरी झोपड़ी तक मुझे पहुँचा दो।’
राजकुमार को बूढ़ी पर दया आ गई। उसने बुढ़िया को घोड़े पर बिठाया और उसकी झोपड़ी तक पहुँचा दिया। बुढ़िया छोटे राजकुमार को देखकर ही समझ गई थी कि पहले वाले राजकुमार इसी के भाई हैं अत: उसने जादू के बल से दोनों राजकुमारों को मेढे में बदल दिया था जिससे छोटा राजकुमार उन्हें पहचान न सके।
छोटा राजकुमार बुढ़िया को पहुँचाकर आगे बढ़ने को हुआ तो बुढ़िया ने लपककर उसके घेड़े की लगाम पकड़ ली।
‘तुमने ये तो बताया नहीं कि तुम कहाँ जा रहे हो?’ बुढ़िया बोली।
छोटे राजकुमार को लगा कि अभी कुछ देर पहले तो यह बुढ़िया थकान के मारे मरी जा रही थी और अब इसके पास इतनी हिम्मत कहाँ से आ गई कि इसने मेरे घोड़े की लगाम पकड़कर मेरे घोड़े को रोक रखा है। छोटे राजकुमार ने बुढ़िया पर सटा-सट् कोड़े बरसाए तो बुढ़िया ने घोड़े की लगाम छोड़ दी। छोटा राजकुमार घोड़ा दौड़ाता हुआ चल दिया।
कुछ दूर जाने पर उसे एक राक्षस मिला।
‘मैं ‘भूखा हूँ। मैं तुम्हें खा जाऊँगा।’ राक्षस ने कहा।
‘अरे नाना, ये क्या कह रहे हो? जो तुम मुझे खाओगे तो तुम्हारी बेटी तुमसे नाराज़ हो जाएगी।’ छोटे राजकुमार ने डरे बिना राक्षस से कहा।
राक्षस ने सोचा कि यह लड़का ठीक कहता है। भले ही यह मनुष्य है लेकिन है तो मेरी बेटी का पुत्र यानी मेरा नाती। अब मैं अपने नाती को कैसे खाऊँ?
छोटे ‘नाना तुम्हें भूख लगी है तो मैं तुम्हारे लिए हिरण मार देता हूँ, तुम उसे खा लो।’ राजकुमार ने कहा और एक हिरण मारकर राक्षस को दे दिया। राक्षस हिरण पाकर बहुत प्रसन्न हुआ।
‘नाती, तुम कहाँ जा रहे हो?’ राक्षस ने पूछा।
‘नाना जी, मैं हंसराज घोड़ा और मुखबोलता तोता लाने जा रहा हूँ।’ छोटे राजकुमार ने बताया।
‘यह तो बहुत कठिन काम है।’ राक्षस ने कहा।
‘लेकिन मैं तो उन्हें पाकर रहूँगा।’ छोटे राजकुमार ने आत्मविश्वास के साथ कहा।
ऐसा है तो ठीक है, मैं तुम्हें तुम्हारे मामा के पास भेजता हूँ। उसे यह हीरा दे देना तो वह समझ जाएगा कि मैंने तुम्हें भेजा है और तुम उसके भाँजे हो।’ राक्षस ने एक हीरा देते हुए छोटे राजकुमार से कहा।
छोटे राजकुमार ने हीरा लिया और दूसरे राक्षस के पास चल पड़ा। दूसरा राक्षस जवान था। उसने जैसे ही छोटे राजकुमार को देखा वैसे ही उसे खाने को लपका।
‘अरे अरे, मामा! ये क्या कर रहे हो? अपने भाँजे को खाओगे क्या?’ छोटे राजकुमार ने कहा और हीरा निकालकर उस जवान राक्षस को दे दिया।
जवान राक्षस हीरा देखकर बहुत प्रसन्न हुआ। वह पहली बार अपने भाँजे से मिल रहा था। उसने छोटे राजकुमार से उसके आने का उद्देश्य पूछा। छोटे राजकुमार ने बताया कि उसे हंसराज घोड़ा और मुखबोलता तोता ले जाना है। जिसे पाने में उसे छोटे राजकुमार की मदद करनी होगी।
‘ये दोनों तो मेरे दानवराज के पास हैं जिनके यहाँ मैं काम करता हूँ। यह दोनों तुम्हें नहीं मिल सकेंगे।’ मामा राक्षस ने कहा।
‘ठीक है, मैं उन्हें एक बार देख तो सकता हूँ?’ छोटे राजकुमार ने पूछा।
‘हाँ, मैं एक बार तुम्हें दिखा दूँगा।’ मामा राक्षस मान गया।
छोटा राजकुमार मामा राक्षस के साथ दानवराज के महल पहुँचा। वहाँ उसे हंसराज घोड़ा और मुखबोलता तोता दिखाई दिए। अभी वह सोच ही रहा था कि इन दोनों को कैसे हथियाया जाए कि उसी समय दानवराज की पुत्री उधर आ निकली।
दानवराज की पुत्री ने छोटे राजकुमार को देखा तो बस, देखती ही रह गई। प्रथम दृष्टि में ही छोटा राजकुमार उसे भा गया। उसने यह बात तत्काल अपने पिता को बताई।
दानवराज ने मामा राक्षस को बुलाया और उससे छोटे राजकुमार के बारे में पूछ-ताछ की। जब दानवराज को पता चला कि वह मामा राक्षस का भाँजा है तो उसने अपनी पुत्री का विवाह छोटे राजकुमार से करने का निश्चय कर लिया।
दानवराज ने छोटे राजकुमार को अपने पास बुलाकर कहा कि वह उसकी पुत्री से विवाह कर ले।
‘यह तो मेरे लिए सौभाग्य की बात है दानवराज! किंतु मैं एक ही शर्त पर विवाह करने को तैयार हूँ यदि आप विवाह करने पर मुझे हंसराज घोड़ा औनर मुखबोलता तोता दे दें।’ छोटे राजकुमार ने कहा।
अपनी पुत्री के प्रेम को ध्यान में रखते हुए दानवराज ने छोटे राजकुमार की शर्त मान ली। इसके बाद छोटे राजकुमार ने अपना घोड़ा मामा राक्षस को उपहार में दे दिया और हंसराज घोड़े पर अपनी दुल्हन सहित सवार होकर, अपने कंधे पर मुखबोलते तोते को बिठाकर अपने राज्य की ओर चल पड़ा।
रास्ते में बुढ़िया की झोपड़ी मिली। जिसके दरवाज़े पर दो मेढे चर रहे थे। उन्हें देखते ही दानवराज की पुत्री ने बता दिया कि यह मेढे वास्तव में दो राजकुमार हैं। उसी समय बुढ़िया आ गई। छोटे राजकुमार ने तलवार से बुढ़िया की गर्दन काट दी। बुढ़िया की गर्दन कटते ही दोनों राजकुमार अपने असली रूप में आ गए। छोटे राजकुमार ने देखा कि ये तो उसके बड़े और मंझले भाई हैं, वह बहुत हर्षित हुआ। तीनों भाई छोटे राजकुमार की पत्नी सहित प्रसन्नतापूर्वक अपने महल में लौट आए।
हंसराज घोड़ा और मुखबोलता तोता देखकर राजा के सभी रोग दूर हो गए और वह पूर्णतया स्वस्थ होकर अपने पुत्रों की सहायता से राजकाज देखने लगा।
kisi desh mein ek raja rahta tha. uski teen raniyan theen aur tinon raniyon se ek ek rajakumar the. ek baar raja ne svapn mein hans ke saman sundar shvet rang ka ghoDa dekha. wo hansraj ghoDa tha. usi ke saath raja ko ek vichitr tota dikhai paDa jo manushya ki boli mein bol raha tha jiska naam tha mukhbolta tota. neend se jagne par raja ko laga ki wo hansraj ghoDa aur mukhbolta tota use milna chahiye. raja ne DhinDhora pitva diya ki jo koi bhi hansraj ghoDa aur mukhbolta tota lekar ayega use iinam mein aadha rajya de diya jayega. aadha rajya pane ki lalach mein anek vyakti aage aaye. unhonne hansraj ghoDa aur mukhbolta tota DhunDhane ka bahut prayas kiya lekin ve saphal nahin ho sake.
raja ne dekha ki koi bhi uski ichchha puri nahin kar pa raha hai to dukh ke karan uska svasthya bigaD gaya. din pratidin uska svasthya girne laga. ye dekhkar rajakumaron ko chinta hui. sabse pahle baDe rajakumar ne hansraj ghoDa aur mukhbolta tota DhunDhane jane ka nishchay kiya.
baDa rajakumar apne shvet shyaam ghoDe par savar hokar jangal ki or nikal paDa. chalte chalte wo ghane jangal mein pahunch gaya. tab tak use zor ki bhookh lag aai thi. usne aas paas dekha lekin khane yogya kuch bhi na dikha. usi samay vahan ek buDhiya dikhai di. rajakumar ne usse puchha ki yahan khane ko kuch mil sakta hai kyaa?
‘is ghane jangal mein kya milega? tum meri jhopDi mein chalo, main tumhein dahi chiuDa khilaungi. ’ buDhiya ne kaha.
rajakumar buDhiya ke saath uski jhopDi mein ja pahuncha. buDhiya ne dahi mein chiuDa Dala aur rajakumar ko khane ko diya. dahi bahut mithi thi aur chiuDa bhi svadisht tha. aisa svadisht dahi chiuDa rajakumar ne kabhi nahin khaya tha. dahi chiuDa khakar jab rajakumar buDhiya se vida lekar jane ko hua to buDhiya ne uske ghoDe ki lagam pakaD li.
‘ja kahan rahe ho, ye to bataya nahin. ’ buDhiya ne kaha.
‘main hansraj ghoDa aur mukhbolta tota lene ja raha hoon. ’ rajakumar ne bataya.
‘tum mat jao. ye kaam tumhare vash ka nahin hai. tum rakshas ke hathon mare jaoge ya dum daba kar bhaag aoge. ’ buDhiya ne rajakumar se kaha.
‘na to main mara jaunga aur na hi dum dabakar bhagunga. main rakshas ko markar aage baDh jaunga. ’ rajakumar ne kaha.
‘tum aisa nahin kar paoge. ’ buDhiya ne kaha.
‘main aisa hi karunga. ’ rajakumar bola.
‘to lagi shart?’ buDhiya boli.
‘haan, lagi shart!’ rajakumar bola.
‘yadi main hari to main jivan bhar tumhari dasi bankar rahungi lekin yadi tum hare tumhein jivan bhar mera daas bankar rahna hoga. ’ buDhiya ne kaha.
‘mujhe svikar hai. ’ rajakumar ne buDhiya ki shart maan li aur apna ghoDa dauData hua chal paDa.
kuch door jane par use ek rakshas mila.
‘main bhukha hoon! main tumhein kha jaunga!’ rakshas ne garajte hue kaha rajakumar ne rakshas ko dekha to uski bhayanak akriti dekhkar hi wo Dar gaya aur ghoDa moDkar apni jaan bachakar bhaag khaDa hua. rajakumar bhagkar buDhiya ke paas pahuncha.
‘kyon shart haar ge?’ buDhiya ne muskurate hue kaha. iske baad usne rajakumar ko apna daas bana liya.
jab kai din ho ge aur baDe rajakumar ki koi suchana nahin mili to shesh donon rajakumaron ko chinta hui. ab manjhle rajakumar ne hansraj ghoDa aur mukhbolta tota lane aur baDe rajakumar ko DhunDhane jane ka nishchay kiya. wo apne bhure rang ke ghoDe par savar hokar nikal paDa.
manjhle rajakumar ke saath bhi vahi hua. use vahi buDhiya mili. usne manjhle rajakumar ko dahi chiuDa khilaya. shart lagai aur manjhla rajakumar bhi shart haar kar uska daas ban gaya.
kai saptah vyatit ho jane par bhi baDe tatha manjhle rajakumar ki koi suchana na milne par sabse chhote rajakumar ne hansraj ghoDa aur mukhbolta tota lane aur apne donon bhaiyon ko DhunDhane jane ka nishchay kiya. wo apne kale rang ke ghoDe par savar hokar nikal paDa. chalne se pahle usne apni maan se dahi chiuDa bandhvaya jo raste mein khane ke kaam aata aur ghoDe ke liye thoDa sa chara bandhva liya. iske baad wo bhala, barchhi, dhanush baan, talvar aur koDa lekar nikal paDa.
ghane jangal mein pahunchne par chhote rajakumar ko bhookh lagi. usne dahi chiuDa ki hanDi nikali aur khane laga. itne mein buDhiya aa gai. usne dekha ki chhota rajakumar apne saath laya dahi chiuDa kha raha hai. atah usne dusra bahana kiya aur chhote rajakumar se boli, ‘beta, main buDhi thak gai hoon. bhatak gai hoon. mujhe apne ghoDe par bitha kar meri jhopDi tak mujhe pahuncha do. ’
rajakumar ko buDhi par daya aa gai. usne buDhiya ko ghoDe par bithaya aur uski jhopDi tak pahuncha diya. buDhiya chhote rajakumar ko dekhkar hi samajh gai thi ki pahle vale rajakumar isi ke bhai hain atah usne jadu ke bal se donon rajakumaron ko meDhe mein badal diya tha jisse chhota rajakumar unhen pahchan na sake.
chhota rajakumar buDhiya ko pahunchakar aage baDhne ko hua to buDhiya ne lapakkar uske gheDe ki lagam pakaD li.
‘tumne ye to bataya nahin ki tum kahan ja rahe ho?’ buDhiya boli.
chhote rajakumar ko laga ki abhi kuch der pahle to ye buDhiya thakan ke mare mari ja rahi thi aur ab iske paas itni himmat kahan se aa gai ki isne mere ghoDe ki lagam pakaD kar mere ghoDe ko rok rakha hai. chhote rajakumar ne buDhiya par sata sat koDe barsaye to buDhiya ne ghoDe ki lagam chhoD di. chhota rajakumar ghoDa dauData hua chal diya.
kuch door jane par use ek rakshas mila.
‘main ‘bhukha hoon. main tumhein kha jaunga. ’ rakshas ne kaha.
‘are nana, ye kya kah rahe ho? jo tum mujhe khaoge to tumhari beti tumse naraz ho jayegi. ’ chhote rajakumar ne Dare bina rakshas se kaha.
rakshas ne socha ki ye laDka theek kahta hai. bhale hi ye manushya hai lekin hai to meri beti ka putr yani mera nati. ab main apne nati ko kaise khaun?
chhote ‘nana tumhein bhookh lagi hai to main tumhare liye hiran maar deta hoon, tum use kha lo. ’ rajakumar ne kaha aur ek hiran markar rakshas ko de diya. rakshas hiran pakar bahut prasann hua.
‘nati, tum kahan ja rahe ho?’ rakshas ne puchha.
‘nana ji, main hansraj ghoDa aur mukhbolta tota lane ja raha hoon. ’ chhote rajakumar ne bataya.
‘yah to bahut kathin kaam hai. ’ rakshas ne kaha.
‘lekin main to unhen pakar rahunga. ’ chhote rajakumar ne atmavishvas ke saath kaha.
aisa hai to theek hai, main tumhein tumhare mama ke paas bhejta hoon. use ye hira de dena to wo samajh jayega ki mainne tumhein bheja hai aur tum uske bhanje ho. ’ rakshas ne ek hira dete hue chhote rajakumar se kaha.
chhote rajakumar ne hira liya aur dusre rakshas ke paas chal paDa. dusra rakshas javan tha. usne jaise hi chhote rajakumar ko dekha vaise hi use khane ko lapka.
‘are are, mama! ye kya kar rahe ho? apne bhanje ko khaoge kyaa?’ chhote rajakumar ne kaha aur hira nikal kar us javan rakshas ko de diya.
javan rakshas hira dekhkar bahut prasann hua. wo pahli baar apne bhanje se mil raha tha. usne chhote rajakumar se uske aane ka uddeshya puchha. chhote rajakumar ne bataya ki use hansraj ghoDa aur mukhbolta tota le jana hai. jise pane mein use chhote rajakumar ki madad karni hogi.
‘ye donon to mere danavraj ke paas hain jinke yahan main kaam karta hoon. ye donon tumhein nahin mil sakenge. ’ mama rakshas ne kaha.
‘theek hai, main unhen ek baar dekh to sakta hoon?’ chhote rajakumar ne puchha.
‘haan, main ek baar tumhein dikha dunga. ’ mama rakshas maan gaya.
chhota rajakumar mama rakshas ke saath danavraj ke mahl pahuncha. vahan use hansraj ghoDa aur mukhbolta tota dikhai diye. abhi wo soch hi raha tha ki in donon ko kaise hathiyaya jaye ki usi samay danavraj ki putri udhar aa nikli.
danavraj ki putri ne chhote rajakumar ko dekha to bas, dekhti hi rah gai. pratham drishti mein hi chhota rajakumar use bha gaya. usne ye baat tatkal apne pita ko batai.
danavraj ne mama rakshas ko bulaya aur usse chhote rajakumar ke bare mein poochh taachh ki. jab danavraj ko pata chala ki wo mama rakshas ka bhanja hai to usne apni putri ka vivah chhote rajakumar se karne ka nishchay kar liya.
danavraj ne chhote rajakumar ko apne paas bulakar kaha ki wo uski putri se vivah kar le.
‘yah to mere liye saubhagya ki baat hai danavraj! kintu main ek hi shart par vivah karne ko taiyar hoon yadi aap vivah karne par mujhe hansraj ghoDa aunar mukhbolta tota de den. ’ chhote rajakumar ne kaha.
apni putri ke prem ko dhyaan mein rakhte hue danavraj ne chhote rajakumar ki shart maan li. iske baad chhote rajakumar ne apna ghoDa mama rakshas ko uphaar mein de diya aur hansraj ghoDe par apni dulhan sahit savar hokar, apne kandhe par mukhbolte tote ko bithakar apne rajya ki or chal paDa.
raste mein buDhiya ki jhopDi mili. jiske darvaze par do meDhe char rahe the. unhen dekhte hi danavraj ki putri ne bata diya ki ye meDhe vastav mein do rajakumar hain. usi samay buDhiya aa gai. chhote rajakumar ne talvar se buDhiya ki gardan kaat di. buDhiya ki gardan katte hi donon rajakumar apne asli roop mein aa ge. chhote rajakumar ne dekha ki ye to uske baDe aur manjhle bhai hain, wo bahut harshit hua. tinon bhai chhote rajakumar ki patni sahit prasannatapurvak apne mahl mein laut aaye.
hansraj ghoDa aur mukhbolta tota dekhkar raja ke sabhi rog door ho ge aur wo purnatya svasth hokar apne putron ki sahayata se rajakaj dekhne laga.
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‘main ‘bhukha hoon. main tumhein kha jaunga. ’ rakshas ne kaha.
‘are nana, ye kya kah rahe ho? jo tum mujhe khaoge to tumhari beti tumse naraz ho jayegi. ’ chhote rajakumar ne Dare bina rakshas se kaha.
rakshas ne socha ki ye laDka theek kahta hai. bhale hi ye manushya hai lekin hai to meri beti ka putr yani mera nati. ab main apne nati ko kaise khaun?
chhote ‘nana tumhein bhookh lagi hai to main tumhare liye hiran maar deta hoon, tum use kha lo. ’ rajakumar ne kaha aur ek hiran markar rakshas ko de diya. rakshas hiran pakar bahut prasann hua.
‘nati, tum kahan ja rahe ho?’ rakshas ne puchha.
‘nana ji, main hansraj ghoDa aur mukhbolta tota lane ja raha hoon. ’ chhote rajakumar ne bataya.
‘yah to bahut kathin kaam hai. ’ rakshas ne kaha.
‘lekin main to unhen pakar rahunga. ’ chhote rajakumar ne atmavishvas ke saath kaha.
aisa hai to theek hai, main tumhein tumhare mama ke paas bhejta hoon. use ye hira de dena to wo samajh jayega ki mainne tumhein bheja hai aur tum uske bhanje ho. ’ rakshas ne ek hira dete hue chhote rajakumar se kaha.
chhote rajakumar ne hira liya aur dusre rakshas ke paas chal paDa. dusra rakshas javan tha. usne jaise hi chhote rajakumar ko dekha vaise hi use khane ko lapka.
‘are are, mama! ye kya kar rahe ho? apne bhanje ko khaoge kyaa?’ chhote rajakumar ne kaha aur hira nikal kar us javan rakshas ko de diya.
javan rakshas hira dekhkar bahut prasann hua. wo pahli baar apne bhanje se mil raha tha. usne chhote rajakumar se uske aane ka uddeshya puchha. chhote rajakumar ne bataya ki use hansraj ghoDa aur mukhbolta tota le jana hai. jise pane mein use chhote rajakumar ki madad karni hogi.
‘ye donon to mere danavraj ke paas hain jinke yahan main kaam karta hoon. ye donon tumhein nahin mil sakenge. ’ mama rakshas ne kaha.
‘theek hai, main unhen ek baar dekh to sakta hoon?’ chhote rajakumar ne puchha.
‘haan, main ek baar tumhein dikha dunga. ’ mama rakshas maan gaya.
chhota rajakumar mama rakshas ke saath danavraj ke mahl pahuncha. vahan use hansraj ghoDa aur mukhbolta tota dikhai diye. abhi wo soch hi raha tha ki in donon ko kaise hathiyaya jaye ki usi samay danavraj ki putri udhar aa nikli.
danavraj ki putri ne chhote rajakumar ko dekha to bas, dekhti hi rah gai. pratham drishti mein hi chhota rajakumar use bha gaya. usne ye baat tatkal apne pita ko batai.
danavraj ne mama rakshas ko bulaya aur usse chhote rajakumar ke bare mein poochh taachh ki. jab danavraj ko pata chala ki wo mama rakshas ka bhanja hai to usne apni putri ka vivah chhote rajakumar se karne ka nishchay kar liya.
danavraj ne chhote rajakumar ko apne paas bulakar kaha ki wo uski putri se vivah kar le.
‘yah to mere liye saubhagya ki baat hai danavraj! kintu main ek hi shart par vivah karne ko taiyar hoon yadi aap vivah karne par mujhe hansraj ghoDa aunar mukhbolta tota de den. ’ chhote rajakumar ne kaha.
apni putri ke prem ko dhyaan mein rakhte hue danavraj ne chhote rajakumar ki shart maan li. iske baad chhote rajakumar ne apna ghoDa mama rakshas ko uphaar mein de diya aur hansraj ghoDe par apni dulhan sahit savar hokar, apne kandhe par mukhbolte tote ko bithakar apne rajya ki or chal paDa.
raste mein buDhiya ki jhopDi mili. jiske darvaze par do meDhe char rahe the. unhen dekhte hi danavraj ki putri ne bata diya ki ye meDhe vastav mein do rajakumar hain. usi samay buDhiya aa gai. chhote rajakumar ne talvar se buDhiya ki gardan kaat di. buDhiya ki gardan katte hi donon rajakumar apne asli roop mein aa ge. chhote rajakumar ne dekha ki ye to uske baDe aur manjhle bhai hain, wo bahut harshit hua. tinon bhai chhote rajakumar ki patni sahit prasannatapurvak apne mahl mein laut aaye.
hansraj ghoDa aur mukhbolta tota dekhkar raja ke sabhi rog door ho ge aur wo purnatya svasth hokar apne putron ki sahayata se rajakaj dekhne laga.
स्रोत :
पुस्तक : भारत के आदिवासी क्षेत्रों की लोककथाएं (पृष्ठ 14)
हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी
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