निकोबार में दो गाँव थे फरक्का और किमूस। इन दोनों गाँवों का व्यापारिक संबंध पास के एक अन्य द्वीप से था जिसका नाम था चावरा। किमूस का मुखिया था एलहट और फरक्का का होको। दोनों परस्पर मित्र तो थे ही अपितु आचार-विचार में भी दोनों एक जैसे थे। दोनों मिलजुल कर व्यापार एवं अन्य योजनाओं पर विचार करते और फिर उसे क्रियान्वित करते। फरक्का और किमुस दोनों गाँवों में होड़िया अर्थात् नावें चावरा द्वीप से ख़रीदी जाती थीं। चावरा के वासी होड़ियाँ बनाने में अत्यंत कुशल थे। होड़ियों के बदले वे इन दोनों गाँवों से छुरियाँ लिया करते थे जो कि उन्हें होड़ियाँ बनाने तथा अन्य दैनिक उपयोग में काम आती थीं। फरक्का और किमूस के लोग छुरियाँ बनाने में माहिर थे। इस प्रकार चावरा और फरक्का तथा किमूस के मध्य अच्छा व्यापार होता था।
एक बार चावरा के कारीगरों ने पहले से कहीं अधिक अच्छी और अधिक लागत वाली होड़ियाँ बनाईं। उन्होंने नमूने के रूप में एक होड़ी एलहट और होको को दिखाई। एलहट और होको को होड़ियाँ बहुत पसंद आईं। जब मोल-भाव शुरू हुआ तो चावरा के कारीगरों ने लागत के अनुरूप होड़ियों का मूल्य भी अधिक बताया। यह सुनकर एलहट और होको को लगा कि चावरा के कारीगर उन्हें धोखा देकर अधिक मूल्य वसूलने का प्रयास कर रहे हैं।
‘चावरा के कारीगर यह ठीक नहीं कर रहे हैं। इन्हें इस धोखे का सबक सिखाना चाहिए।’ एलहट ने होको से कहा।
‘हम भला इन्हें कैसे सबक सिखा सकते हैं?’ होको ने पूछा। वह भी चावरा के कारीगरों से चिढ़ गया था और इस भ्रम में था कि वे कारीगर धोखे से अधिक मूल्य लेना चाहते हैं। यद्यपि होड़ी इतनी अच्छी थी कि वे दोनों अपने-अपने गाँवों के लिए छ:-छ: होड़ियाँ ख़रीदना भी चाहते थे।
‘हमें धोखे का बदला धोखे से देना चाहिए।’ एलहट बोला।
‘वो कैसे?’ होको ने पूछा।
‘हम इन्हें होड़ियों के बदले धातु की छुरियाँ देने के बदले लकड़ी की छुरियाँ दे देंगे।’ एलहट ने कहा।
‘लेकिन लकड़ी की छुरियाँ तो तुरंत पहचान में आ जाएँगी।’ होको ने ध्यान दिलाया।
‘नहीं, हमारे कारीगर लकड़ी की छुरियों को ऐसा रंग-रोगन करेंगे कि चावरावासी यह पहचान ही नहीं सकेंगे कि वे असली हैं या नक़ली।’ एलहट ने मुस्कुराते हुए कहा।
‘लेकिन यह तो धोखा होगा।’ होको तनिक डरा।
‘वे लोग भी तो हमसे धोखा कर रहे हैं। हम तो उनके धोखे के बदले धोखा देने वाले हैं। वह भी उन्हें सबक सिखाने के लिए।’ एलहट ने समझाया। होको मान गया।
इसके बाद एलहट और होको ने दो सौ छुरियों के बदले बारह होड़ियाँ ख़रीदना स्वीकार करके चावरा के कारीगरों को होड़ियाँ बनाने का आदेश दे दिया।
जब फरक्का और किमूस के कारीगरों को अपने-अपने मुखिया की मंशा का पता चला तो वे पहले तो नक़ली छुरियाँ बनाने को तैयार नहीं हुए फिर एलहट और होको द्वारा समझाने पर वे भी मान गए। बस, एक बूढ़ा जो किमूस का निवासी था उसने इस धोखाधड़ी का विरोध किया।
‘यह उचित नहीं है। निकोबारवासियों ने कभी किसी के साथ धोखा नहीं किया। यह पाप है। किसी को धोखा देने का परिणाम बहुत बुरा होता है।’ बूढ़े ने समझाने का प्रयास किया।
‘तुम तो सठिया गए हो। तुम चुप रहो।’ एलहट ने बूढ़े को झिड़क दिया।
जब होड़ियाँ बनकर तैयार हो जाने का संदेश मिला तो एलहट और होको। नक़ली छुरियाँ लेकर चावरा पहुँचे। वहाँ उन्होंने छुरियाँ देकर होड़ियाँ लीं और वापस आ गए। छुरियाँ इतनी असली जैसी थीं कि चावरावासियों को असली-नक़ली का पत्ता ही नहीं चला। एलहट और होको होड़ियों के बदले नक़ली छुरियाँ देकर बहुत प्रसन्न थे। वस्तुतत: उन्होंने होड़ियों का मूल्य चुकाया ही नहीं था। किमूस का बूढ़ा अभी भी चिंतित था।
‘तुम लोग किस बात पर प्रसन्न हो रहे हो? इस प्रकार का धोखा देना निकोबारी परंपरा के विरुद्ध है। तुमने परंपरा को तोड़कर अनुचित तो किया ही है और संकट को भी न्योता दे डाला है।’ बूढ़े ने सचेत करना चाहा।
छल-कपट की भावना व्यक्ति को निर्बुद्धि कर देती है। फरक्का और किमूसवासिया के साथ भी यही हुआ। वे इस बात को भूल गए कि जब चावरावासियों को सच्चाई का पता चलेगा तो वे कुपित होकर कोई न कोई क़दम अवश्य उठाएँगे।
हुआ भी यही। जब चावरावासियों ने छुरियों को काम में लाना शुरू किया तो उन्हें छुरियों की वास्तविकता पता चली। वे यह देखकर अवाक् रह गए कि सभी छुरियाँ लकड़ी की बनी थीं। उनसे कोई काम नहीं किया जा सकता था। चावरावासियों को फरक्का और किमूस के लोगों पर बहुत क्रोध आया। उन्होंने उन्हें इस छल के लिए दंडित करने का निश्चय किया। उन्होंने धोखे का बदला धोखे से देने की योजना बनाई। चावरावासियों को पता था कि फरक्का और किमूस के लोगों को अपने भोजन में केवड़े का उपयोग करना बहुत प्रिय है तथा इन दोनों गाँवों में केवड़े का उत्पादन नहीं होता है। अत: चावरावासियों ने एक बड़ी होड़ी में केवड़ा भरकर चुपके से किमूस के तट पर होड़ी पहुँचा दी। केवड़े में विष मिला दिया गया था।
किमूस के लोगों ने होड़ी भर केवड़ा देखा तो वे बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने यह भी नहीं सोचा कि केवड़े से भरी होड़ी बिना होड़ी के मालिक के वहाँ कैसे पहुँच गई? वे तो ढेर सारा केवड़ा मिलने से प्रसन्न हो उठे। उन्होंने फरक्का के लागों को भी आमंत्रित किया। एलहट और होको ने अपने लोगों से उत्सव मनाने का आग्रह किया। फरक्का और किमूस के लोग मिल-जुलकर नाचने-गाने लगे। उन्होंने अच्छा-अच्छा खाना पकाया और उन सब में जी भरकर केवड़ा मिलाया। बूढ़ा केवड़े के प्रति सशंकित था।
‘कोई केवड़े से भरी डोंगी भला यहाँ क्यों छोड़ जाएगा?' बूढ़े ने एलहट का ध्यान आकृष्ट करना चाहा किंतु एलहट को बूढ़े की बात सुनने में तनिक भी रुचि नहीं थी।
बूढ़े को छोड़कर फरक्का और किमूस के लोगों ने जम कर केवड़ा डले व्यंजन खाए और रात-भर नाचते-गाते रहे। भोर होते-होते विष ने असर करना शुरू कर दिया और लोग एक-एक करके मरने लगे। देखते ही देखते गाँव जीवित लोगों से ख़ाली हो गया और वहाँ शवों का अंबार लग गया। चावरावासियों ने बदला ले लिया था। फरक्का और किमूस में शोक का वातावरण छा गया। जो थोड़े-बहुत लोग जीवित बचे थे उनसे बूढ़े ने कहा कि वे मृतकों का अंतिम संस्कार कर दें और मृतकों की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करें। शेष लोग अब तक समझ गए थे कि बूढ़े ने जो कहा था वह सही कहा था अत: उन्होंने बूढ़े को अपना मुखिया मानते हुए उसके निर्देशानुसार मृतकों का अंतिम संस्कार किया और मृतात्माओं की शांति के लिए प्रार्थनाएँ कीं। इसके साथ उन सभी ने इस बात की शपथ ली कि वे कभी किसी को धोखा नहीं देंगे।
आज भी निकोबार में मृतात्माओं की शांति के लिए प्रार्थना-समारोह आयोजित किया जाता है जिसे ‘ओसरी पर्व’ कहते हैं।
nikobar mein do gaanv the pharakka aur kimus. in donon ganvon ka vyaparik sambandh paas ke ek anya dveep se tha jiska naam tha chavra. kimus ka mukhiya tha elhat aur pharakka ka hoko. donon paraspar mitr to the hi apitu achar vichar mein bhi donon ek jaise the. donon miljul kar vyapar evan anya yojnaon par vichar karte aur phir use kriyanvit karte. pharakka aur kimus donon ganvon mein hoDiya arthat naven chavra dveep se kharidi jati theen. chavra ke vasi hoDiyan banane mein atyant kushal the. hoDiyon ke badle ve in donon ganvon se chhuriyan liya karte the jo ki unhen hoDiyan banane tatha anya dainik upyog mein kaam aati theen. pharakka aur kimus ke log chhuriyan banane mein mahir the. is prakar chavra aur pharakka tatha kimus ke madhya achchha vyapar hota tha.
ek baar chavra ke karigron ne pahle se kahin adhik achchhi aur adhik lagat vali hoDiyan banain. unhonne namune ke roop mein ek hoDi elhat aur hoko ko dikhai. elhat aur hoko ko hoDiyan bahut pasand ain. jab mol bhaav shuru hua to chavra ke karigron ne lagat ke anurup hoDiyon ka mulya bhi adhik bataya. ye sunkar elhat aur hoko ko laga ki chavra ke karigar unhen dhokha dekar adhik mulya vasulne ka prayas kar rahe hain.
‘chavra ke karigar ye theek nahin kar rahe hain. inhen is dhokhe ka sabak sikhana chahiye. ’ elhat ne hoko se kaha.
‘ham bhala inhen kaise sabak sikha sakte hain?’ hoko ne puchha. wo bhi chavra ke karigron se chiDh gaya tha aur is bhram mein tha ki ve karigar dhokhe se adhik mulya lena chahte hain. yadyapi hoDi itni achchhi thi ki ve donon apne apne ganvon ke liye chhah chhah hoDiyan kharidna bhi chahte the.
‘hamen dhokhe ka badla dhokhe se dena chahiye. ’ elhat bola.
‘vo kaise?’ hoko ne puchha.
‘ham inhen hoDiyon ke badle dhatu ki chhuriyan dene ke badle lakDi ki chhuriyan de denge. ’ elhat ne kaha.
‘lekin lakDi ki chhuriyan to turant pahchan mein aa jayengi. ’ hoko ne dhyaan dilaya.
‘nahin, hamare karigar lakDi ki chhuriyon ko aisa rang rogan karenge ki chavravasi ye pahchan hi nahin sakenge ki ve asli hain ya naqli. ’ elhat ne muskurate hue kaha.
‘lekin ye to dhokha hoga. ’ hoko tanik Dara.
‘ve log bhi to hamse dhokhakar rahe hain. hum to unke dhokhe ke badle dhokha dene vale hain. wo bhi unhen sabak sikhane ke liye. ’ elhat ne samjhaya. hoko maan gaya.
iske baad elhat aur hoko ne do sau chhuriyon ke badle barah hoDiyan kharidna svikar karke chavra ke karigron ko hoDiyan banane ka adesh de diya.
jab pharakka aur kimus ke karigron ko apne apne mukhiya ki mansha ka pata chala to ve pahle to naqli chhuriyan banane ko taiyar nahin hue phir elhat aur hoko dvara samjhane par ve bhi maan ge. bas, ek buDha jo kimus ka nivasi tha usne is dhokhadhDi ka virodh kiya.
‘yah uchit nahin hai. nikobarvasiyon ne kabhi kisi ke saath dhokha nahin kiya. ye paap hai. kisi ko dhokha dene ka parinam bahut bura hota hai. ’ buDhe ne samjhane ka prayas kiya.
‘tum to sathiya ge ho. tum chup raho. ’ elhat ne buDhe ko jhiDak diya.
jab hoDiyan bankar taiyar ho jane ka sandesh mila to elhat aur hoko. naqli chhuriyan lekar chavra pahunche. vahan unhonne chhuriyan dekar hoDiyan leen aur vapas aa ge. chhuriyan itni asli jaisi theen ki chavravasiyon ko asli naqli ka patta hi nahin chala. elhat aur hoko hoDiyon ke badle naqli chhuriyan dekar bahut prasann the. vastuttah unhonne hoDiyon ka mulya chukaya hi nahin tha. kimus ka buDha abhi bhi chintit tha.
‘tum log kis baat par prasann ho rahe ho? is prakar ka dhokha dena nikobari parampara ke viruddh hai. tumne parampara ko toD kar anuchit to kiya hi hai aur sankat ko bhi nyota de Dala hai. ’ buDhe ne sachet karna chaha.
chhal kapat ki bhavna vyakti ko nirbuddhi kar deti hai. pharakka aur kimusvasiya ke saath bhi yahi hua. ve is baat ko bhool ge ki jab chavravasiyon ko sachchai ka pata chalega to ve kupit hokar koi na koi qadam avashya uthayenge.
hua bhi yahi. jab chavravasiyon ne chhuriyon ko kaam mein lana shuru kiya to unhen chhuriyon ki vastavikta pata chali. ve ye dekhkar avak rah ge ki sabhi chhuriyan lakDi ki bani theen. unse koi kaam nahin kiya ja sakta tha. chavravasiyon ko pharakka aur kimus ke logon par bahut krodh aaya. unhonne unhen is chhal ke liye danDit karne ka nishchay kiya. unhonne dhokhe ka badla dhokhe se dene ki yojna banai. chavravasiyon ko pata tha ki pharakka aur kimus ke logon ko apne bhojan mein kevDe ka upyog karna bahut priy hai tatha in donon ganvon mein kevDe ka utpadan nahin hota hai. atah chavravasiyon ne ek baDi hoDi mein kevDa bharkar chupke se kimus ke tat par hoDi pahuncha di. kevDe mein vish mila diya gaya tha.
kimus ke logon ne hoDi bhar kevDa dekha to ve bahut prasann hue. unhonne ye bhi nahin socha ki kevDe se bhari hoDi bina hoDi ke malik ke vahan kaise pahunch gai? ve to Dher sara kevDa milne se prasann ho uthe. unhonne pharakka ke lagon ko bhi amantrit kiya. elhat aur hoko ne apne logon se utsav manane ka agrah kiya. pharakka aur kimus ke log mil jul kar nachne gane lage. unhonne achchha achchha khana pakaya aur un sab mein ji bharakarkevDa milaya. buDha kevDe ke prati sashankit tha.
‘koi kevDe se bhari Dongi bhala yahan kyon chhoD jayega? buDhe ne elhat ka dhyaan akrisht karna chaha kintu elhat ko buDhe ki baat sunne mein tanik bhi ruchi nahin thi.
buDhe ko chhoDkar pharakka aur kimus ke logon ne jam karkevDa Dale vyanjan khaye aur raat bhar nachte gate rahe. bhor hote hote vish ne asar karna shuru kar diya aur log ek ek karke marne lage. dekhte hi dekhte gaanv jivit logon se khali ho gaya aur vahan shavon ka ambar lag gaya. chavravasiyon ne badla le liya tha. pharakka aur kimus mein shok ka vatavran chha gaya. jo thoDe bahut log jivit bache the unse buDhe ne kaha ki ve mritkon ka antim sanskar kar den aur mritkon ki aatma ki shanti ke liye pararthna karen. shesh log ab tak samajh ge the ki buDhe ne jo kaha tha wo sahi kaha tha atah unhonne buDhe ko apna mukhiya mante hue uske nirdeshanusar mritkon ka antim sanskar kiya aur mritatmaon ki shanti ke liye prarthnayen keen. iske saath un sabhi ne is baat ki shapath li ki ve kabhi kisi ko dhokha nahin denge.
aaj bhi nikobar mein mritatmaon ki shanti ke liye pararthna samaroh ayojit kiya jata hai jise ‘osari parv’ kahte hain.
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‘vo kaise?’ hoko ne puchha.
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aaj bhi nikobar mein mritatmaon ki shanti ke liye pararthna samaroh ayojit kiya jata hai jise ‘osari parv’ kahte hain.
स्रोत :
पुस्तक : भारत के आदिवासी क्षेत्रों की लोककथाएं (पृष्ठ 113)
हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी
‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।