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कुझाली

kujhali

नीलगिरि की घाटी में वह गाँव कुरुम्बा आदिवासियों का था। उस गाँव के लोग जंगल से जड़ी-बूटी और शहद एकत्र करके उसे पास के शहर में बेचकर अपना जीवनयापन करते थे। उसी गाँव में एक लड़की रहती थी जिसका नाम था कुझाली। यथा नाम तथा गुण। कुझाली का अर्थ होता है बाँसुरी। अपने नाम के अनुरूप उसका स्वर बाँसुरी के समान मधुर था। जब वह बोलती थी तो पक्षी चहकने लगते थे। झरने गीत गाने लगते थे और पेड़-पौधे झूमने लगते थे।

कुझाली जिस जंगल में शहद एकत्र करने जाती थी उस जंगल में एक जादूगरनी रहती थी। एक बार जादूगरनी ने कुझाली को गीत गाते सुन लिया। उसे लगा कि कुझाली के स्वर के जादू के सामने उसका जादू कुछ भी नहीं है। अतः उसने कुझाली को बंदी बना लिया और जंगल के बीचों-बीच एक ऊँची मीनार बनाकर उसमें रख दिया। मीनार इतनी ऊँची थी कि तो उस पर कोई चढ़ सकता था और ही कोई उतर सकता था। उस मीनार में कोई सीढ़ी भी नहीं थी। मात्र एक खिड़की थी जिससे कुझाली ऊँचे-ऊँचे वृक्षों के शिखरों को देख सकती थी लेकिन उससे नीचे नहीं देख सकती थी।

मीनार में क़ैद होकर कुझाली उदास रहने लगी। उसके साथ कोई नहीं था जिससे वह बोलती, बातें करतीं। उसका स्वर भी उदास रहने लगा। एक दिन कुझाली बहुत दुखी थी। उसे अपने गाँव की, अपने घर की याद रही थी। उसी समय हवा का एक झोंका आया। उसने कुझाली को उदास देखा तो पल भर के लिए उसके पास ठहर गया।

‘तुम उदास क्यों हो?’ हवा के झोंके ने कुझाली से पूछा।

‘मैं उदास हूँ क्योंकि मैं अकेली हूँ। बंदी हूँ। कुझाली ने कहा।

‘ठीक है। तो फिर तुम एक गीत गाओ जिसे मैं तुम्हारे लोगों तक पहुँचा दूँगा और वे आकर तुम्हें छुड़ा लेंगे।’ हवा के झोंके ने कहा।

हवा के झोंके के आग्रह पर कुझाली ने एक दुख भरा गीत गया। उस गीत में कुझाली की समस्त वेदना पिरोई हुई थी। हवा का झोंका उस गीत को लेकर चल पड़ा। बीच रास्ते में हवा के झोंके को याद आया कि वह कुझाली के गाँव का पता पूछना तो भूल ही गया। अब वह वापस भी नहीं जा सकता था अतः उसने आगे आने वाले वन में उस गीत को छोड़ देने का निश्चय किया जिससे हवा का कोई दूसरा झोंका उस गीत को सही ठिकाने पर पहुँचा सके।

एक सुंदर-सा वन आते ही हवा के झोंके ने कुझाली के दुख भरे गीत को वहीं छोड़ दिया और स्वयं आगे बढ़ गया। गीत के दुख के प्रभाव से देखते ही देखते वन के पेड़-पौधे मुरझाने लगे। चिड़ियों ने चहकना बंद कर दिया और झरनों ने मौन साध लिया। उस वन के लकड़हारों ने यह सब देखा तो वे घबरा गए और दौड़कर अपने राजा के पास पहुँचे। राजा ने अपने पुत्र को वन में भेजा ताकि वह सच्चाई का पता लगाकर आए।

राजकुमार वन में पहुँचा तो उसने भी अत्यंत मधुर स्वर में अत्यंत दुखी गीत सुना। उसकी आँखों से अश्रु-धारा बहने लगी। वह समझ गया कि इस दुख भरे गीत के कारण वन के सभी पेड़-पौधे मुरझा गए हैं, चिड़ियाँ और झरने मौन हो गए हैं। उसने पता लगाने का निश्चय किया कि यह दुख भरा गीत किसने गाया है। राजकुमार यह विचार कर ही रहा था कि किस दिशा में जाया जाए कि उसी समय हवा का एक झोंका आया।

‘राजकुमार तुम किस सोच में डूबे हो?’ उसने राजकुमार से पूछा।

‘मैं इस गीत गाने वाली के पास पहुँचने का रास्ता ढूँढ़ रहा हूँ किंतु समझ नहीं पा रहा हूँ कि किस दिशा में जाऊँ।’ राजकुमार ने कहा।

‘मेरा भाई इस गीत को इस जंगल में छोड़ गया था और उसने मुझसे कहा है कि मैं इस गीत गाने वाली के पास जाकर उससे उसके गाँव का पता पूछ लूँ और इस गीत को उसके गाँव तक पहुँचा दूँ ताकि गाँव वाले उसे जाकर बंदीगृह से छुड़ा सकें।’ हवा के झोंके ने कहा।

‘अरे वाह! तब तो तुम मुझे अपने साथ ले चलो।’ राजकुमार ने हवा के झोंके से कहा। हवा का झोंका मान गया। उसने राजकुमार को अपनी बाँहों में उठाया और उड़ चला।

कुछ देर बाद वे लोग उस मीनार के पास पहुँचे जहाँ कुझाली बंदी थी। हवा के झोंके ने राजकुमार को मीनार पर उतार दिया और स्वयं आगे बढ़ गया। राजकुमार ने उससे कहा था कि वह कुझाली को छुड़ाकर उसके गाँव पहुँचा देगा अतः अव गाँव वालों तक संदेश पहुँचाने की आवश्यकता नहीं है।

राजकुमार ने जब कुझाली को देखा तो बस, देखता ही रह गया। अपने स्वर के समान वह अत्यंत सुंदर थी। राजकुमार उसे देखते ही मोहित हो गया। कुझाली को भी राजकुमार अच्छा लगा। किंतु समस्या थी मीनार से नीचे उतरने की। बिना किसी साधन के मीनार से नीचे नहीं उतरा जा सकता था और साधन वहाँ था नहीं। तब राजकुमार को एक उपाय सूझा। उसने कुझाली से कहा कि वह एक ऐसा गीत गाए जिससे मीनार के पास खड़े वृक्ष ऊँचे हो जाएँ। कुझाली ने ऐसा ही गीत गाया। कुझाली के गीत के प्रभाव से वृक्षों की ऊँचाई बढ़ गई और वे मीनार की खिड़की के पास तक पहुँचे। अब राजकुमार ने कुझाली के साथ वृक्ष के सहारे नीचे उतरना आरंभ किया। वे दोनों अभी मध्य में ही पहुँचे थे कि जादूगरनी पहुँची। दरअसल उसने भी कुझाली का गीत सुन लिया था।

जादूगरनी ने राजकुमार और कुझाली को वृक्ष से नीचे गिराने का प्रयास किया किंतु राजकुमार ने बिना अवसर गँवाए अपनी तलवार से जादूगरनी का सिर काट दिया। इसके बाद कुझाली और राजकुमार आराम से नीचे उतर आए।

नीचे उतरकर राजकुमार ने कुझाली के समक्ष विवाह प्रस्ताव रखा जिसे कुझाली ने सहर्ष स्वीकार कर लिया। राजकुमार कुझाली सहित अपने राज्य पहुँचा जहाँ उन दोनों का भरपूर स्वागत किया गया और राजा ने भी दोनों के विवाह की स्वीकृति दे दी।

स्रोत :
  • पुस्तक : भारत के आदिवासी क्षेत्रों की लोककथाएं (पृष्ठ 238)
  • संपादक : शरद सिंह
  • प्रकाशन : राष्ट्रीय पुस्तक न्यास भारत
  • संस्करण : 2009

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