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सपना और आईना

sapna aur aina

किसी वेश्या ने एक सपना देखा कि एक ब्राह्मण उसके पास आया और उसके साथ सहवास किया। सुबह आँख खुलने पर उसने अपने नौकरों को उस ब्राह्मण का हुलिया बताया और उससे उसकी सेवा का दाम वसूलने को कहा। नौकरों ने ब्राह्मण को रास्ते पर जा पकड़ा और उसे सारी बात समझाकर दाम चुकाने को कहा। ब्राह्मण को काटो तो ख़ून नहीं! उसने कहा कि वह इसके बारे में कुछ नहीं जानता। पिछली रात वह अपनी पत्नी के साथ घर पर सो रहा था। और ही उसके पास देने के लिए पैसे ही हैं। पर वेश्या के नौकरों ने उसका पिंड नहीं छोड़ा। वह गिड़गिड़ाया, विनती की, पर उनके कान पर जूं भी नहीं रेंगी। तमाशा देखने के लिए राह चलते लोगों की भीड़ लग गई। राजा को इसकी सूचना मिली तो उसने वेश्या और ब्राह्मण को दरबार में तलब किया।

वेश्या ने कहा, “मेरे ग्राहक को मेरी सेवा का मोल चुकाना पड़ता है। कल रात यह आदमी मेरे सपने में आया और सुख भोगा। इसने मेरे साथ क्या-क्या किया, मैं आपको बता नहीं सकती। उसकी क़ीमत तो इसे चुकानी ही होगी।”

राजा ने कहा, “ठीक है, तुम्हें तुम्हारी क़ीमत मिलेगी, पर उसके लिए तुम्हें थोड़ा इंतज़ार करना पड़ेगा।”

राजा ने गली में एक खंभा गाड़ने का आदेश दिया। खंभे के ऊपरी छोर पर चाँदी के सिक्कों की एक थैली बंधवाई और नीचे ज़मीन पर एक आईना रखवा दिया।

फिर राजा ने वेश्या से कहा, “आईने में हाथ डालकर अपने रुपए ले लो! ये रुपए तुम्हारे हैं।”

वेश्या चकरा गई। कहने लगी, “आईने में हाथ डालकर मैं रुपए कैसे ले सकती हूँ? मुझे असली रुपए चाहिए जो उस थैली में हैं।”

राजा ने कहा, “नहीं, वे रुपए तुम्हारे नहीं हैं। ब्राह्मण सपने में तुम्हारे पास आया था। आईने में जो रुपए तुम देख रही हो, वही तुम्हारी क़ीमत का सही भुगतान है।”

स्रोत :
  • पुस्तक : भारत की लोक कथाएँ (पृष्ठ 335)
  • संपादक : ए. के. रामानुजन
  • प्रकाशन : राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, भारत
  • संस्करण : 2001

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