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नारियल का जन्म

nariyal ka janm

बहुत पुरानी बात है, निकोबार द्वीप समूह के प्रमुख द्वीप कारनिकोबार के एकलामेरो नामक स्थान में दो मित्र रहते थे। एक का नाम था असंगीतोसंग और दूसरे का एनालो। दोनों में घनिष्ठ मित्रता थी। वे साथ-साथ आखेट करते, साथ-साथ घूमते और साथ-साथ खाते-पीते। आखेट में जो भी शिकार हाथ लगता वे उसे परस्पर बाँटकर खाते। जो कोई उन्हें देखता उसे यही लगता कि वे दोनों सगे भाई हैं।

यूँ तो एकलामेरो में शिकार और फल-फूल की कमी नहीं थी किंतु दुर्भाग्यवश एक बार भयावह अकाल पड़ा। मीठे जल के अभाव में तो पशु बचे और फल-फूल। अब असंगीतोसंग और एनालो को भोजन और पानी के लाले पड़ने लगे। द्वीप के चारों ओर हहराता समुद्र था। वे समुद्री मछली पकड़कर भूख तो मिटा लेते थे लेकिन मीठे पानी के बिना जीवित रहना कठिन हो गया। तब असंगीतोसंग और एनालो ने निश्चय किया कि एकलामेरो छोड़कर किसी अन्य जगह चले जाना चाहिए। कारनिकोबार में उस समय एकलामेरो के अलावा कोई दूसरी जगह नहीं थी। इसलिए दोनों मित्रों ने कारनिकोबार छोड़ देने का मन बनाया। द्वीप के अन्य लोग भी द्वीप छोड़कर जा चुके थे।

असंगीतोसंग और एनालो जंगल के रास्ते चल पड़े। जंगल में ऊँची-ऊँची घास थी। उन्होंने घास काट कर रास्ता बनाने के लिए घास काटने का दाब (घास काटने का औज़ार) रख लिया। वे अपने-अपने दाब से घास काटते जाते, रास्ता बनाते जाते और आगे बढ़ते जाते। घास काटते-काटते दाब की धार कुंद होने लगी।

‘असंगीतोसंग मेरे दाब की धार भोथरी होती जा रही है। यदि इसकी धार तेज़ नहीं की गई तो हम आगे रास्ता नहीं बना पाएँगे और इस जंगल में ही फँसकर रह जाएँगे।’ एनालो ने असंगीतोसंग से कहा।

‘हाँ एनालो, मेरे दाब का भी यही हाल है। इससे तो अब एक तिनका भी नहीं काटा जा रहा है। अपने दाबों में धार तो करनी पड़ेगी।’ असंगीतोसंग ने कहा।

‘लेकिन दाब में धार करने के लिए पानी की आवश्यकता पड़ेगी। यहाँ तो दूर-दूर तक पानी नहीं है।’ एनालो ने चिंतित होते हुए कहा।

‘हाँ, तुम कहते तो सही हो फिर भी तुम यहीं ठहरो, मैं आस-पास देखकर आता हूँ शायद कहीं पानी मिल जाए।’ असंगीतोसंग ने कहा।

‘चलो, मैं भी तुम्हारे साथ चलता हूँ। यहाँ अकेला रुककर क्या करूँगा?’ एनालो ने कहा।

‘नहीं, तुम यहीं ठहरो! जब तक मैं पानी लेकर आता हूँ तब तक तुम आराम करो। दोनों एक साथ थक जाएँगे तो आगे घास काटने में कठिनाई होगी।’ असंगीतोसंग ने एनालो को समझाया और अकेला ही जंगल में आगे बढ़ गया।

कुछ दूर जाने पर असंगीतोसंग को घासविहीन समतल भूमि दिखाई दी। असंगीतोसंग वहीं रुक गया। उसने उस भूमि को अपने कपड़ों से साफ़ किया और फिर घुटनों के बल बैठकर कोई मंत्र पढ़ने लगा। मंत्र पढ़ने के बाद उसने अपनी कोहनी से भूमि को रगड़ा तो भूमि से जल का स्रोत फूट पड़ा। असंगीतोसंग ने एक बड़ी-सी सीप में पानी भरा और फिर मंत्र पढ़ने लगा। देखते ही देखते भूमि फिर पहले जैसी शुष्क हो गई और जल-स्रोत लुप्त हो गया।

असंगीतोसंग पानी से भरी सीप लेकर अपने मित्र एनालो के पास पहुँचा। पानी देखकर एनालो के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा।

‘ये समुद्र का खारा पानी है या मीठा पानी?’ एनालो ने असंगीतोसंग से पूछा ‘ये मीठा पानी है।’ असंगीतोसंग ने बताया।

‘मीठा पानी? ये कहाँ मिला तुम्हें?’ एनालो चकित रह गया। उसने असंगीतोसंग से पूछा, ‘मेरे प्रिय मित्र, मुझे विश्वास नहीं हो रहा है कि तुम सचमुच मीठा पानी लाए हो। जब इस द्वीप में मीठे पानी की एक बूँद नहीं बची है तब तुम्हें यह मीठा पानी कहाँ से मिल गया?’

‘कहीं से भी मिला हो तुम्हें इससे क्या? तुम्हें पानी की आवश्यकता थी, दाब में धार करने के लिए भी और पीने के लिए भी, सो मैंने कहीं से पानी खोज निकाला। अब तुम पानी पियो, दाब में धार तेज़ करो फिर हम आगे बढ़ेंगे।’ असंगीतोसंग ने एनालो से कहा।

‘मुझे और कहीं नहीं जाना है, तुम तो मुझे उस स्थान पर ले चलो जहाँ से तुम ये पानी लाए हो।’ एनालो ने हठ करते हुए कहा।

‘अरे, मैं तो भटकते-भटकते अचानक उस स्थान पर पहुँच गया था। मैं फिर से वह स्थान नहीं ढूँढ़ पाऊँगा। हठ मत करो, चलो हमें जल्दी से यहाँ से आगे बढ़ना है।’ असंगीतोसंग ने एनालो से कहा।

एनालो को लगा कि असंगीतोसंग उसे मीठे पानी का स्रोत दिखाना नहीं चाहता है इसीलिए टाल रहा है। असंगीतोसंग ने आज तक उससे कुछ भी नहीं छिपाया था लेकिन मीठे पानी के स्रोत की जानकारी छिपा रहा था। यह बात एनालो को बहुत बुरी लगी। उसने असंगीतोसंग को बुरा-भला कहना शुरू कर दिया।

‘मैं समझ गया हूँ कि तुम्हारे मन में खोट गया है इसीलिए तुम मुझे मीठे पानी का स्रोत नहीं बता रहे हो। तुम्हें भय है कि मैं उस स्रोत पर अधिकार कर लूँगा। है न!’ एनालो ने क्रोधित होते हुए कहा।

‘नहीं मित्र, ऐसी बात नहीं है।' असंगीतोसंग ने एनालो को समझाने का प्रयास किया। वस्तुत: जिस देवता ने असंगीतोसंग को जादुई शक्तियाँ दी थीं उसने असंगीतोसंग से वादा लिया था कि वह अपनी शक्तियों के बारे में अपने जीते जी किसी को नहीं बताएगा और अपनी शक्तियों को सिर्फ़ अच्छे काम के लिए ही उपयोग में लाएगा। इसलिए असंगीतोसंग चाहकर भी एनालो को सच्चाई नहीं बता पा रहा था।

असंगीतोसंग एनालो को जितना ही समझाने का प्रयास करता, एनालो का क्रोध उतना ही बढ़ता जाता। कहते हैं कि क्रोध में मनुष्य अंधा हो जाता है, उसे भले-बुरे की समझ नहीं रह जाती है। यही एनालो के साथ हुआ। क्रोध की पराकाष्ठा पर पहुँचकर एनालो की मति मारी गई और उसने अपने दाब से असंगीतोसंग की गर्दन काट दी। असंगीतोसंग का सिर कट कर भूमि पर जा गिरा। एनालो को इतने पर भी संतोष नहीं हुआ। उसने असंगीतोसंग का धड़ वहीं भूमि में गाड़ दिया और सिर लेकर अपने घर लौट आया। एनालो ने असंगीतोसंग के सिर को अपने कमरे में टाँग दिया ताकि वह प्रतिदिन असंगीतोसंग को कोस सके।

मगर हुआ इसके विपरीत। रात होते ही असंगीतोसंग का सिर बोलने लगता। वह अपने मित्र एनालो से हँसी-ठिठोली करता, उसे किस्से-कहानी सुनाने लगता। एनालो को यह सब देखकर डर लगने लगता। वह अपने घर के बाहर सोने जाता तो असंगीतोसंग का सिर उसे पुकार कर अपने पास आने को कहता। धीरे-धीरे एनालो के मन में भय बढ़ता गया और एक दिन उसने अपना घर छोड़ दिया और दूसरे स्थान पर जाकर बस गया। उसने असंगीतोसंग का सिर अपने पुराने घर में ही छोड़ दिया।

कुछ दिन बाद अकाल की स्थिति सुधर गई। वर्षा हुई तो फल-फूल, पशु-पक्षियों की कमी नहीं रही। कारनिकोबार के पुराने निवासी भी अपने पुराने निवास में धीरे-धीरे लौट आए। एनालो को कभी-कभी अपने मित्र असंगीतोसंग की याद आती तो उसका मन कडुवाहट से भर जाता। वह तो असंगीतोसंग को कृतघ्न ही मानता का। इस घटना के बाद से एनाली एकाकी अनुभव करने लगा था। अत: उसने विवाह करने का निश्चय किया।

वैवाहिक जीवन ने एनालो के मन से पुरानी स्मृतियाँ धुँधली कर दीं। कुछ समय बाद एनालो एक सुंदर पुत्री का पिता बना। इसके बाद तो एनालो की सारी दुनिया अपनी बेटी के चारो ओर सिमट गई। बेटी जैसे-जैसे युवा होती गई वैसे-वैसे उसकी सुंदरता में निखार आता गया। एनालो ने विचार किया कि द्वीप के सबसे सुंदर युवक से अपनी बेटी का विवाह किया जाए। उसने द्वीप के सबसे सुंदर युवक से अपनी बेटी का विवाह तय किया और विवाह की तैयारियाँ करने लगा।

दुर्भाग्यवश, विवाह कुछ दिन पहले एनालो की बेटी बीमार पड़ गई। बीमारी थी कि ठीक होने का नाम ही नहीं ले रही थी। एनालो जितनी दवा कराता, बीमारी उतनी बढ़ जाती। कोई भी वैद्य उस बीमारी को ठीक-ठीक पहचान नहीं पा रहा था। अपनी बेटी का निरंतर गिरता स्वास्थ्य देख-देखकर एनालो और उसकी पत्नी का कलेजा मुँह को आता।

‘आप किसी भी तरह से मेरी बेटी के प्राण बचा लीजिए अन्यथा मैं भी अपने प्राण त्याग दूँगी।’ एनालो की पत्नी ने व्याकुल होकर एनालो से कहा।

‘ओह, मैं कुछ नहीं कर पा रहा हूँ! देखना, अगर मेरी बेटी को कुछ हो गया तो मैं भी जीवित नहीं रहूँगा। मैं भी अपने प्राण दे दूँगा।’ एनालो ने हताश होकर कहा।

एनालो अपनी बेटी की शैया के पास बैठा हुआ था कि तभी उसे नींद गई। सपने में उसने देखा कि उसका मित्र असंगीतोसंग उसके सामने खड़ा है।

‘मित्र एनालो, तुम चिंता मत करो। तुम्हारी बेटी को कुछ नहीं होगा। वह बिलकुल ठीक हो जाएगी।’ असंगीतोसंग ने एनालो ढाढ़स बाँधते हुए कहा।

‘वह कैसे ठीक होगी असंगीतोसंग, किसी भी दवा से उसे लाभ नहीं हो रहा है।’ एनालो ने व्यथित स्वर में कहा।

‘सुनो मित्र, मैं जैसा कहता हूँ तुम वैसा करो। देखना, तुम्हारी बेटी अवश्य ठीक हो जाएगी।’ असंगीतोसंग ने एनालो से कहा।

‘बताओ मुझे क्या करना है?’ एनालो ने उद्विग्न होकर असंगीतोसंग से पूछा।

‘तुम्हें करना ये है कि तुम अपने पुराने घर जाओ। वहाँ मेरा सिर तुमने खूँटे पर लटका रखा है। मेरे सिर को खूँटे से उतार कर भूमि में गाड़ दो जिससे मुझे मुक्ति मिल जाएगी। मुझे मुक्ति मिलते ही उस स्थान पर एक पेड़ उग आएगा जहाँ तुम मेरा सिर गाड़ोगे। उस पेड़ पर तुरंत एक फल लगेगा। तुम उस फल को तोड़ लेना। उस फल के बीच में पानी भरा होगा। वह पानी तुम अपनी बेटी को पिलाना। देखना, तुम्हारी बेटी पानी पीते ही स्वस्थ हो जाएगी।’ इतना कहकर असंगीतोसंग अदृश्य हो गया और एनालो की भी नींद टूट गई।

जागने पर एनालो ने अपने स्वप्न पर विचार किया। उसे लगा कि बेटी के प्राण बचाने के लिए यह प्रयास भी करके देख लेना चाहिए।

एनालो उसी समय उठकर अपने पुराने घर की ओर चल पड़ा। अपने पुराने घर में पहुँचकर एनालो ने खूँटे पर टँगे हुए असंगीतोसंग के सिर को खूँटे से उतारा और विधि-विधान पूर्वक भूमि में गाड़ दिया। थोड़ी ही देर में उस जगह एक पेड़ उग आया। देखते ही देखते वह पेड़ ऊँचा, और ऊँचा होता चला गया। जैसे ही पेड़ की ऊँचाई बढ़नी बंद हुई वैसे ही उसमें एक फल दिखाई देने लगा।

एनालो किसी प्रकार उस पेड़ पर चढ़ गया और उसने वह फल तोड़ लिया। फल तोड़कर एनालो उसे अपने नए घर में अपनी बेटी के पास ले आया। एनालो ने फल को सावधानी पूर्वक तोड़ा और उसमें भरे हुए पानी को अपनी बेटी को पिला दिया। जैसा कि असंगीतोसंग ने कहा था वैसा ही हुआ। फल का पानी पीते ही एनालो की बेटी के चेहरे की रौनक लौट आई। उसकी बीमारी दूर हो गई और वह स्वस्थ हो गई।

अपनी बेटी को स्वस्थ देखकर एनालो बहुत ख़ुश हुआ। अब उसे समझ में आया कि उसके मित्र असंगीतोसंग ने उससे कपट नहीं किया था अपितु वह तो जादुई शक्तियों का स्वामी था। इसीलिए उसने मीठे पानी के जादुई स्रोत के बारे में नहीं बताया था।

एनालो को अपनी करनी पर बड़ा पछतावा हुआ कि उसने क्रोध में आकर असंगीतोसंग की हत्या कर दी थी। किंतु असंगीतोसंग ने फिर भी एक सच्चे मित्र की भाँति संकट के समय उसकी सहायता की।

उस दिन के बाद कारनिकोबार में असंगीतोसंग के पेड़ उग आए जो वस्तुत: नारियल के पेड़ थे। आज भी निकोबार के शेम्फेन आदिवासी मानते हैं कि नारियल की उत्पत्ति असंगीतोसंग के कटे हुए सिर से हुई है।

स्रोत :
  • पुस्तक : भारत के आदिवासी क्षेत्रों की लोककथाएं (पृष्ठ 105)
  • संपादक : शरद सिंह
  • प्रकाशन : राष्ट्रीय पुस्तक न्यास भारत
  • संस्करण : 2009

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