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तोतले

totle

चार भाई थे। चारों के चारों तोतले थे। जब वे विवाह योग्य हुए तो उनके पिता ने एक ही घर की चार बहनों को उनके लिए दुल्हन के रूप में चुना। लड़कियों के पिता ने कहा कि ‘अच्छा होगा यदि आपके बेटे मेरी बेटियों को एक बार देख लें।’

‘इसकी कोई आवश्यकता नहीं हैं।’ तोतलों के पिता ने टालना चाहा किंतु लड़कियों का पिता नहीं माना। थक-हारकर तोतलों के पिता ने लड़कियों को देखने के लिए अपने बेटों को लेकर आने का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया।

चलने से पहले पिता पहले अपने तोतले बेटों को समझाया, ‘देखो, कुछ भी हो जाए लेकिन तुम लोग अपना मुँह मत खोलना। यदि तुमने एक शब्द भी बोल दिया तो तुम्हारा ब्याह नहीं हो सकेगा।’

लड़कों ने आश्वस्त किया कि वे मौन रहेंगे। इसके बाद वे लड़की वालों के घर पहुँचे। बेटियों के पिता ने उन सभी का बहुत स्वागत सत्कार किया। लेकिन हर बात पर लड़कों के मौन रहने पर लड़कियों के पिता को कुछ संदेह हो गया। इसलिए उसने एक योजना बनाई। उसने अपनी पत्नी से कहा कि वह बिना नमक के दहीबड़े बनाए। उसकी पत्नी ने बिना नमक के दही बड़े बना दिए।

शाम के नाश्ते में दहीबड़े परोसे गए। संयोगवश बड़े लड़के को दहीबड़े बहुत पसंद थे। उसने बड़े चाव से एक दहीबड़ा उठाया और मुँह में डाला। उसमें नमक नहीं था। अब बड़े बेटे का मज़ा किरकिरा हो गया। उसने अपेक्षाकृत धीमें स्वर में अपने पिता से कहा, ‘टाटा-टाटा, ज़रा नमक टो टेना।’

दूसरे बेटे को लगा कि कहीं कोई सुन ले। इसलिए उसने अपने बड़े भाई को टोंका, ‘भैया टुप करो। कहीं किसी ने टुन लिया टो??

इतने में तीसरा बोल उठा, ‘लो, हमारे होने वाले टटुर जी ने तो टुन भी लिया।’

यह देखकर तोतलों के पिता ने अपना सिर पीट लिया। लड़कियों के पिता ने सचमुच सुन लिया था। उसने अपनी बेटियों का व्याह तोतलों के साथ करने से मना कर दिया। फिर छोटे बेटे से छोटी बेटी का रिश्ता करना स्वीकार कर लिया। इस पर तोतलों का पिता अपने बेटों के बोल पड़ने पर और अधिक नाराज़ हो गया और उन्हें डाँटने लगा।

‘यदि तुम लोग भी अपने चौथे भाई की तरह चुप रहते तो तुम्हारा भी रिश्ता तय हो जाता। अब देख लिया बोलने का परिणाम!’ पिता आगबबूला होता हुआ बोला।

‘टभी तो हम नईं बोले, भई!’ चौथा पुत्र अपनी प्रशंसा सुनकर अति उत्साह में बोल पड़ा। जिससे उसका भी भेद खुल गया। चारों लड़कों का भेद खुलने पर लड़कियों के पिता ने चारों भाइयों को अपनी लड़कियाँ देने से मना कर दिया। चारों भाई अपना-सा मुँह लेकर लौट आए।

स्रोत :
  • पुस्तक : भारत के आदिवासी क्षेत्रों की लोककथाएं (पृष्ठ 305)
  • संपादक : शरद सिंह
  • प्रकाशन : राष्ट्रीय पुस्तक न्यास भारत
  • संस्करण : 2009

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