कहानियों की कहानी

kahaniyon ki kahani

एक था बैगा बालक। उसका नाम था थुरिया। जब वह बहुत छोटा था तभी उसके माता-पिता का देहांत हो गया था। थुरिया को उसके चाचा ने अपने घर में शरण दी थी। थुरिया चाचा के साथ उनके काम में हाथ बँटाता और उन्हीं के साथ रहता। चाचा थुरिया को विशेष पसंद नहीं करता था लेकिन गाँव वालों के डर से अपने घर से निकाल भी नहीं पाता था।

एक बार चाचा को अपनी बेटी से मिलने के लिए बेटी के ससुराल जाने की इच्छा हुई। चाचा ने रास्ते के साथ के लिए थुरिया को अपने साथ ले लिया। चाचा और थुरिया चाचा की बेटी की ससुराल की ओर चल पड़े। चाचा की बेटी की ससुराल बहुत दूर थी। रास्ता भी जंगल से होकर गुज़रता था। चलते-चलते दुपहर हो गई। चाचा को भूख लग आई। उसने थुरिया से भोजन पकाने को कहा। थुरिया ने झटपट सूखी लकड़ियाँ बटोरीं और आग जलाकर भोजन पका डाला। पहले चाचा को खिलाया और फिर बचा हुआ स्वयं खाया। भोजन करने पर चाचा को आलस्य ने घेर लिया।

‘थोड़ा आराम कर लें फिर आगे चलते हैं।’ चाचा ने कहा।

चाचा लेटते ही ख़र्राटे लेने लगा। थुरिया भी लेट गया किंतु उसे नींद नहीं रही थी। उसे याद आने लगा कि जब उसकी चचेरी बहन की शादी नहीं हुई थी और वह छोटी थी तो चाचा उसे कहानियाँ सुनाया करता था किंतु चाचा ने थुरिया को कभी कोई कहानी नहीं सुनाई। थुरिया यह सोच ही रहा था कि एक विचित्र घटना घटी। हुआ यह कि चाचा के मस्तिष्क में चार कहानियाँ थीं। उन कहानियों को थुरिया के विचारों की भनक लग गई और उन्हें भी लगा कि यह बूढ़ा कितना कंजूस है जो हमें अपने मस्तिष्क में सहेज कर रखे हुए है लेकिन हमें बाहर निकालता ही नहीं है।

चारों कहानियाँ चाचा के मस्तिष्क से निकलकर उसके पेट पर बैठीं और आपस में बातें करने लगीं।

‘मैं इस बूढे़ से तंग गई हूँ। मेरा तो इसके मस्तिष्क में बैठे-बैठे दम घुटने लगा है। देखना में इस बूढे को मारकर इससे छुटकारा पा लूँगी। जब ये अपनी बेटी की ससुराल में भोजन कर रहा होगा उस समय मैं काँटा बनकर इसके भोजन के पहले कौर में मिल जाऊँगी और उसके पेट में पहुँचकर इसे मार डालूँगी।’ पहली कहानी ने कहा।

‘मैं भी इस बूढे से छुटकारा पाना चाहती हूँ। हम कहानियाँ तो सभी के लिए होती हैं लेकिन ये तो अब किसी को सुनाता ही नहीं है और हमें अपने मस्तिष्क में बंदी बनाए हुए है। देख लेना, यदि तुम इसे मारने में असफल हो गईं तो जब ये बेटी की ससुराल से लौट रहा होगा तो मैं हरे वृक्ष की सूखी डाल बनकर इस पर गिर पड़ूँगी और इसे मार डालूँगी।’ दूसरी कहानी ने क्रोधित होते हुए कहा।

‘तुम दोनों ठीक कहती हो। यह बूढ़ा मर जाने योग्य है। इसने हमें बंदी बना रखा है। अब इससे छुटकारे का एक ही उपाय है कि इसे मार डाला जाए। यदि तुम दोनों इसे मारने में सफल नहीं हो पाईं तो मैं नागिन बनकर इसे डँस लूँगी।’ तीसरी कहानी ने कहा।

‘और यदि तुम तीनों इसे मारने में असफल रहीं तो मैं तो इसे मारकर ही रहूँगी। लौटते समय जब यह नदी पार करेगा तो मैं बड़ी-सी लहर बनकर इसे डुबा दूँगी।’ चौथी कहानी ने दाँत पीसते हुए कहा।

चारो कहानियाँ इस तरह चाचा को मारने की योजना पर चर्चा कर रही थीं कि थुरिया को छींक पड़ गई। थुरिया की छींक सुनकर चारों कहानियाँ चौंक गई।

‘कहीं इसने हमारी बातें सुन तो नहीं लीं?’ दूसरी कहानी ने संदेह प्रकट किया।

‘हाँ, यदि इसने हमारी बातें सुन ली होगी तो ये अपने चाचा को बता देगा और हम इसके चाचा को मार नहीं सकेंगी।’ तीसरी कहानी ने कहा।

‘तुम लोग डरो नहीं! जो भी हमारी बातें किसी दूसरे को बताएगा वह बताते ही पत्थर का बन जाएगा। इसलिए जिसको पत्थर का बनना हो वही हमारी बातें किसी और को बताए।’ पहली कहानी ने इतराते हुए कहा।

‘अरे वाह! ये तो बढ़िया है। लेकिन ये तो बताओ कि पत्थर बनने के बाद वापस मनुष्य बना जा सकता है या नहीं?’ चौथी कहानी ने पूछा।

‘बना तो जा सकता है लेकिन है बहुत कठिन।’ पहली कहानी ने कहा।

‘वो कैसे?’ शेष तीनों कहानियों ने एक स्वर में पूछा।

‘वो ऐसे कि यदि थुरिया हमारी बातें अपने चाचा को बता देगा तो वह पत्थर का बन जाएगा। वह फिर से मनुष्य तभी बन सकेगा जब इसके चाचा का नाती अपने हाथों से इसके ऊपर हल्दी और चावल के घोल की छाप लगाएगा। लेकिन इसका चाचा इसे बचाने के लिए अपने नाती को कभी नहीं लाएगा।’ पहली कहानी ने हँसते हुए कहा।

इसके बाद चारों कहानियाँ वापस चाचा के मस्तिष्क में जा बैठीं।

थोड़ी देर बाद चाचा की नींद खुली। वह थुरिया को साथ लेकर आगे चल पड़ा। पूरी शाम और पूरी रात चलने के बाद दोनों चाचा की बेटी की ससुराल पहुँचे। धुरिया ने कहानियों की बातें सुन ली थीं। वह बहुत चिंतित था। उसे लगा कि यदि वह कहानियों की बातें अपने चाचा को बताएगा तो पत्थर का बन जाएगा और यदि नहीं बताएगा तो उसके चाचा मारे जाएँगे। इसी उधेड़बुन में भोजन का समय हो गया।

चाचा की बेटी ने अपने पिता और अपने चचेरे भाई के लिए बड़े प्रेम से भोजन पकाया और दोनों को एक साथ बिठाकर भोजन परोस दिया। चाचा ने जैसे ही भोजन का पहला कौल उठाया वैसे ही थुरिया को पहली कहानी की बात याद गई। उसने चाचा के हाथ पर अपना हाथ मारा जिससे कौर ज़मीन पर गिर गया। चाचा को पहले तो थुरिया पर बहुत क्रोध आया लेकिन जब उसने ज़मीन पर गिरे कौर की ओर ध्यानपूर्वक देखा तो उसमें उसे काँटा दिखाई दिया। काँटा देखकर उसे समझ में गया कि थुरिया ने उसकी जान बचाई है।

थुरिया ने अपना भोजन चाचा को दे दिया और स्वयं चाचा की थाली का भोजन खा लिया।

दूसरे दिन चाचा ने अपनी बेटी और उसके ससुराल वालों से विदा ली और अपने गाँव लौट चला। थुरिया भी साथ था। जिस रास्ते से वे आए थे, उसी रास्ते से लौट रहे थे। तभी थुरिया ने देखा कि एक हरे-भरे वृक्ष पर एक मोटी-सी डाल है जो बिलकुल सूखी हुई है। यह देखकर धुरिया को बहुत आश्चर्य हुआ कि हरे-भरे वृक्ष पर सूखी है डाल कैसे? उसी क्षण थुरिया को दूसरी कहानी की बात याद गई। वह चाचा से आगे बढ़कर उस वृक्ष को पार करके खड़ा हो गया। जैसे ही उसका चाचा वृक्ष के नीचे गुज़रा वैसे ही थुरिया ने चाचा का हाथ पकड़कर उसे एक झटके से खींच लिया। डाल गिरी लेकिन चाचा बच गया। चाचा ने जब डाल को देखा तो उसने थुरिया को धन्यवाद दिया कि उसने उसकी जान बचाई।

थुरिया और उसका चाचा आगे बढ़े। अभी वे दस-पंद्रह क़दम ही गए होंगे कि एक नागिन लहराती हुई सामने दिखाई दी। चाचा डर के मारे थर-थर काँपने लगा किंतु थुरिया समझ गया कि यह तीसरी कहानी है जो नागिन का वेश धारण करके उसके चाचा को डँसने आई है। थुरिया ने लपककर नागिन की पूँछ पकड़ी और उसे एक चट्टान पर दे मारा। नागिन बेहोश हो गई। थुरिया ने उसे एक ओर फेंका और चाचा का हाथ पकड़कर तेज़ी आगे चल पड़ा।

चाचा ने विचार किया कि ये कैसी अनहोनी हो रही है कि एक ही दिन में तीन बार उसके प्राणों पर संकट आया और तीनों बार थुरिया ने उसके प्राण बचा लिए। इधर थुरिया सोच रहा था कि तीन कहानियों ने जब अपना निश्चय पूरा करने का प्रयास किया तो अब चौथी कहानी भी अपना निश्चय अवश्य पूरा करेगी और चाचा को मारने का प्रयास करेगी। इसी उधेड़बुन में थुरिया और उसका चाचा अपने गाँव के पास वाली नदी तक पहुँचे। अब उन्हें नदी पार करके अपने गाँव पहुँचना था।

चाचा ने जैसे ही नदी के पानी में पाँव रखना चाहा वैसे ही नदी में एक बड़ी लहर उठी और चाचा की ओर बढ़ी। चाचा घबरा कर जड़वत् हो गया। किंतु थुरिया जानता था कि यह चौथी कहानी है। यदि इससे पार पा लिया जाए तो फिर आगे कोई संकट नहीं रहेगा। उसने तेज़ी दिखाते हुए चाचा को पीछे खींच लिया। लहर किनारे से टकरा कर लौटने लगी। जैसे ही लहर वापस होने लगी वैसे ही थुरिया ने चाचा का हाथ पकड़ा और दौड़ते हुए नदी पार कर गया। नदी पार करके चाचा ने पलटकर नदी की ओर देखा तो वह शांत दिखाई दी। चाचा को बहुत आश्चर्य हुआ।

‘थुरिया, सच-सच बता कि ये सब क्या हो रहा है? आज मेरे प्राणों पर चार बार संकट आया और चारों बार मानो तुझे पहले से ही संकट का पता था और तूने मुझे बचा लिया। मुझसे कुछ मत छिपा, मुझे पूरी बात बता।’ चाचा ने थुरिया से कहा। वह सच्चाई जानने को व्याकुल हो उठा था।

‘ये सच है कि मुझे पहले से सब पता था किंतु मैं आपको नहीं बता सकता हूँ।’ थुरिया ने कहा।

‘क्यों नहीं बता सकता है?’ चाचा ने पूछा।

‘क्यों कि यदि मैं आपको पूरी बात बताऊँगा तो मैं पत्थर का बन जाऊँगा।’ थुरिया ने कहा।

‘चल हट, तू बहाना बना रहा है वरना कोई मनुष्य भला पत्थर का कैसे बन सकता है?’ चाचा ने थुरिया को डाँटते हुए कहा।

‘ठीक है, यदि आप जानना ही चाहते हैं तो मैं आपको बता देता हूँ लेकिन जब मैं पत्थर का बन जाऊँ तो आप अपने नाती को लेकर आइएगा और उसके हाथों से मेरे ऊपर हल्दी और चावल के घोल की छाप लगवाइएगा। जिससे मैं फिर से मनुष्य बन जाऊँगा।’ थुरिया ने कहा।

‘ठीक है, जैसा तूने कहा मैं वैसा ही करूँगा। अब मुझे पूरी बात बता।’ चाचा ने व्याकुलता से पूछा।

धुरिया ने चाचा को सारी बात बता दी कि किस प्रकार चार कहानियों ने चाचा को मारने का प्रयास किया। बात समाप्त होते ही थुरिया पत्थर का बन गया। चाचा था दुष्ट। वह तो थुरिया से पीछा छुड़ाने का रास्ता ढूँढ़ ही रहा था इसलिए उसने अपने नाती को बुलाने के बदले पाषाण हो चुके थुरिया को वहीं छोड़ा और अपने घर चल दिया।

घर में पहुँचकर चाचा ने सब लोगों से यही कहा कि थुरिया को जंगल में शेर खा गया। जब यह समाचार थुरिया की चचेरी बहन के पास पहुँचा तो वह बहुत रोई। थुरिया की चचेरी बहन थुरिया को बहुत प्रेम करती थी। चचेरी बहन के पति और ससुर ने चचेरी बहन से कहा कि ऐसी दुख की घड़ी में उसे अपने मायके जाना चाहिए। धुरिया की चचेरी बहन अपने पति और अपने बेटे के साथ अपने मायके चल पड़ी। गाँव के पास वाली नदी पार करते ही बहन के पति ने कहा कि हम जहाँ जा रहे हैं वहाँ शोक का वातावरण होगा और ऐसे में वहाँ खाने-पीने की कोई व्यवस्था नहीं होगी इसलिए अच्छा होगा कि हम यहीं भोजन पकाएंँ और अपने बेटे को खिला दें ताकि उसे भूखा रहना पड़े।

बहन दुखी थी लेकिन उसे अपने पति की बात जँची। उसे लगा कि उसका चचेरा भाई तो अब स्वर्ग सिधार गया है और बेटे को भूखे रखने से वह वापस तो नहीं जाएगा अत: भोजन पकाकर बेटे को खिला देना चाहिए। थुरिया की चचेरी बहन ने लकड़ियाँ इकट्ठी की और आग जलाई। चावल धोकर मसल दिया ताकि शीघ्र पक जाए। बहन का नन्हा बेटा वहीं खेल रहा था। उसने खेल-खेल में सामान की पोटली खोली, उसमें से हल्दी निकाली और चावल के घोल में मिला दी। बहन ने देखा तो वह सोचकर चुप रह गई कि चलो, हल्दी मिला चावल ही पका लूँगी। लेकिन बहन का बेटा था चंचल उसने अपने दोनों हाथ हल्दी-चावल के घोल में डाल दिए। इस पर बहन ने उसे डाँटा। बहन का बेटा डाँट खाकर इधर-उधर देखने लगा। बहन के बेटे की दृष्टि एक पाषाण के पुतले पर पड़ी। वह पुतला उसे अपने मामा जैसा दिखाई दिया। बहन का बेटा दौड़कर उस पुतले के पास पहुँचा और उसने दोनों हाथों से उस पुतले को पकड़ लिया। इधर बहन के बेटे के हाथ पुतले पर लगे और उधर थुरिया वापस मनुष्य बन गया।

‘मामा, मामा!’ कहता हुआ बहन का बेटा थुरिया से लिपट गया।

अपने बेटे की आवाज़ सुनकर थुरिया की चचेरी बहन और उसके पति ने अपने बेटे की ओर देखा तो वे चकित रह गए। उनका बेटा थुरिया से लिपटा खड़ा था।

‘भैया तुम जीवित हो!’ कहती हुई चचेरी बहन दौड़कर थुरिया के पास जा पहुँची।

‘ये सब क्या है? हमने तो सुना था कि तुम्हें शेर खा गया और यहाँ तुम पत्थर के पुतले बने पड़े थे। लेकिन हमारे बेटे का हाथ लगते ही पुन: मनुष्य बन गए, ये कौन-सा मायाजाल है?’ थुरिया के चचेरी बहन के पति ने धुरिया से पूछा।

थुरिया ने अपनी बहन और बहनोई को पूरा क़िस्सा सुनाया। धुरिया के साथ घटी घटना और अपने पिता द्वारा किए गए अमानवीय कर्म के बारे में जानकर थुरिया की चचेरी बहन को बहुत क्रोध आया। वह अपने पति, अपने बेटे और धुरिया को लेकर अपने पिता के पास पहुँची। उसने गाँव वालों को अपने पिता के कुकर्म के बारे में बताया और अपने पिता को जी भरकर धिक्कारा। थुरिया का चाचा अपनी बेटी से धिक्कार सुनकर बहुत लज्जित हुआ और उसने थुरिया से क्षमा माँगी।

‘अब मैं तुम्हें कभी कोई कष्ट नहीं होने दूँगा।’ थुरिया के चाचा ने थुरिया से कहा।

‘किंतु अब मुझे आपके वचन पर भरोसा नहीं है अत: मैं अपने भाई को अपने साथ ले जाऊँगी।’ थुरिया की चचेरी बहन ने अपने पिता से कहा और वह धुरिया को अपने साथ अपने गाँव ले गई। थुरिया अपनी चचेरी बहन और बहनोई के साथ मज़े से रहने लगा।

स्रोत :
  • पुस्तक : भारत के आदिवासी क्षेत्रों की लोककथाएं (पृष्ठ 170)
  • संपादक : शरद सिंह
  • प्रकाशन : राष्ट्रीय पुस्तक न्यास भारत
  • संस्करण : 2009

Additional information available

Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

OKAY

About this sher

Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

Close

rare Unpublished content

This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

OKAY

जश्न-ए-रेख़्ता (2023) उर्दू भाषा का सबसे बड़ा उत्सव।

पास यहाँ से प्राप्त कीजिए