एक था बैगा बालक। उसका नाम था थुरिया। जब वह बहुत छोटा था तभी उसके माता-पिता का देहांत हो गया था। थुरिया को उसके चाचा ने अपने घर में शरण दी थी। थुरिया चाचा के साथ उनके काम में हाथ बँटाता और उन्हीं के साथ रहता। चाचा थुरिया को विशेष पसंद नहीं करता था लेकिन गाँव वालों के डर से अपने घर से निकाल भी नहीं पाता था।
एक बार चाचा को अपनी बेटी से मिलने के लिए बेटी के ससुराल जाने की इच्छा हुई। चाचा ने रास्ते के साथ के लिए थुरिया को अपने साथ ले लिया। चाचा और थुरिया चाचा की बेटी की ससुराल की ओर चल पड़े। चाचा की बेटी की ससुराल बहुत दूर थी। रास्ता भी जंगल से होकर गुज़रता था। चलते-चलते दुपहर हो गई। चाचा को भूख लग आई। उसने थुरिया से भोजन पकाने को कहा। थुरिया ने झटपट सूखी लकड़ियाँ बटोरीं और आग जलाकर भोजन पका डाला। पहले चाचा को खिलाया और फिर बचा हुआ स्वयं खाया। भोजन करने पर चाचा को आलस्य ने घेर लिया।
‘थोड़ा आराम कर लें फिर आगे चलते हैं।’ चाचा ने कहा।
चाचा लेटते ही ख़र्राटे लेने लगा। थुरिया भी लेट गया किंतु उसे नींद नहीं आ रही थी। उसे याद आने लगा कि जब उसकी चचेरी बहन की शादी नहीं हुई थी और वह छोटी थी तो चाचा उसे कहानियाँ सुनाया करता था किंतु चाचा ने थुरिया को कभी कोई कहानी नहीं सुनाई। थुरिया यह सोच ही रहा था कि एक विचित्र घटना घटी। हुआ यह कि चाचा के मस्तिष्क में चार कहानियाँ थीं। उन कहानियों को थुरिया के विचारों की भनक लग गई और उन्हें भी लगा कि यह बूढ़ा कितना कंजूस है जो हमें अपने मस्तिष्क में सहेज कर रखे हुए है लेकिन हमें बाहर निकालता ही नहीं है।
चारों कहानियाँ चाचा के मस्तिष्क से निकलकर उसके पेट पर आ बैठीं और आपस में बातें करने लगीं।
‘मैं इस बूढे़ से तंग आ गई हूँ। मेरा तो इसके मस्तिष्क में बैठे-बैठे दम घुटने लगा है। देखना में इस बूढे को मारकर इससे छुटकारा पा लूँगी। जब ये अपनी बेटी की ससुराल में भोजन कर रहा होगा उस समय मैं काँटा बनकर इसके भोजन के पहले कौर में मिल जाऊँगी और उसके पेट में पहुँचकर इसे मार डालूँगी।’ पहली कहानी ने कहा।
‘मैं भी इस बूढे से छुटकारा पाना चाहती हूँ। हम कहानियाँ तो सभी के लिए होती हैं लेकिन ये तो अब किसी को सुनाता ही नहीं है और हमें अपने मस्तिष्क में बंदी बनाए हुए है। देख लेना, यदि तुम इसे मारने में असफल हो गईं तो जब ये बेटी की ससुराल से लौट रहा होगा तो मैं हरे वृक्ष की सूखी डाल बनकर इस पर गिर पड़ूँगी और इसे मार डालूँगी।’ दूसरी कहानी ने क्रोधित होते हुए कहा।
‘तुम दोनों ठीक कहती हो। यह बूढ़ा मर जाने योग्य है। इसने हमें बंदी बना रखा है। अब इससे छुटकारे का एक ही उपाय है कि इसे मार डाला जाए। यदि तुम दोनों इसे मारने में सफल नहीं हो पाईं तो मैं नागिन बनकर इसे डँस लूँगी।’ तीसरी कहानी ने कहा।
‘और यदि तुम तीनों इसे मारने में असफल रहीं तो मैं तो इसे मारकर ही रहूँगी। लौटते समय जब यह नदी पार करेगा तो मैं बड़ी-सी लहर बनकर इसे डुबा दूँगी।’ चौथी कहानी ने दाँत पीसते हुए कहा।
चारो कहानियाँ इस तरह चाचा को मारने की योजना पर चर्चा कर रही थीं कि थुरिया को छींक पड़ गई। थुरिया की छींक सुनकर चारों कहानियाँ चौंक गई।
‘कहीं इसने हमारी बातें सुन तो नहीं लीं?’ दूसरी कहानी ने संदेह प्रकट किया।
‘हाँ, यदि इसने हमारी बातें सुन ली होगी तो ये अपने चाचा को बता देगा और हम इसके चाचा को मार नहीं सकेंगी।’ तीसरी कहानी ने कहा।
‘तुम लोग डरो नहीं! जो भी हमारी बातें किसी दूसरे को बताएगा वह बताते ही पत्थर का बन जाएगा। इसलिए जिसको पत्थर का बनना हो वही हमारी बातें किसी और को बताए।’ पहली कहानी ने इतराते हुए कहा।
‘अरे वाह! ये तो बढ़िया है। लेकिन ये तो बताओ कि पत्थर बनने के बाद वापस मनुष्य बना जा सकता है या नहीं?’ चौथी कहानी ने पूछा।
‘बना तो जा सकता है लेकिन है बहुत कठिन।’ पहली कहानी ने कहा।
‘वो कैसे?’ शेष तीनों कहानियों ने एक स्वर में पूछा।
‘वो ऐसे कि यदि थुरिया हमारी बातें अपने चाचा को बता देगा तो वह पत्थर का बन जाएगा। वह फिर से मनुष्य तभी बन सकेगा जब इसके चाचा का नाती अपने हाथों से इसके ऊपर हल्दी और चावल के घोल की छाप लगाएगा। लेकिन इसका चाचा इसे बचाने के लिए अपने नाती को कभी नहीं लाएगा।’ पहली कहानी ने हँसते हुए कहा।
इसके बाद चारों कहानियाँ वापस चाचा के मस्तिष्क में जा बैठीं।
थोड़ी देर बाद चाचा की नींद खुली। वह थुरिया को साथ लेकर आगे चल पड़ा। पूरी शाम और पूरी रात चलने के बाद दोनों चाचा की बेटी की ससुराल पहुँचे। धुरिया ने कहानियों की बातें सुन ली थीं। वह बहुत चिंतित था। उसे लगा कि यदि वह कहानियों की बातें अपने चाचा को बताएगा तो पत्थर का बन जाएगा और यदि नहीं बताएगा तो उसके चाचा मारे जाएँगे। इसी उधेड़बुन में भोजन का समय हो गया।
चाचा की बेटी ने अपने पिता और अपने चचेरे भाई के लिए बड़े प्रेम से भोजन पकाया और दोनों को एक साथ बिठाकर भोजन परोस दिया। चाचा ने जैसे ही भोजन का पहला कौल उठाया वैसे ही थुरिया को पहली कहानी की बात याद आ गई। उसने चाचा के हाथ पर अपना हाथ मारा जिससे कौर ज़मीन पर गिर गया। चाचा को पहले तो थुरिया पर बहुत क्रोध आया लेकिन जब उसने ज़मीन पर गिरे कौर की ओर ध्यानपूर्वक देखा तो उसमें उसे काँटा दिखाई दिया। काँटा देखकर उसे समझ में आ गया कि थुरिया ने उसकी जान बचाई है।
थुरिया ने अपना भोजन चाचा को दे दिया और स्वयं चाचा की थाली का भोजन खा लिया।
दूसरे दिन चाचा ने अपनी बेटी और उसके ससुराल वालों से विदा ली और अपने गाँव लौट चला। थुरिया भी साथ था। जिस रास्ते से वे आए थे, उसी रास्ते से लौट रहे थे। तभी थुरिया ने देखा कि एक हरे-भरे वृक्ष पर एक मोटी-सी डाल है जो बिलकुल सूखी हुई है। यह देखकर धुरिया को बहुत आश्चर्य हुआ कि हरे-भरे वृक्ष पर सूखी है डाल कैसे? उसी क्षण थुरिया को दूसरी कहानी की बात याद आ गई। वह चाचा से आगे बढ़कर उस वृक्ष को पार करके खड़ा हो गया। जैसे ही उसका चाचा वृक्ष के नीचे गुज़रा वैसे ही थुरिया ने चाचा का हाथ पकड़कर उसे एक झटके से खींच लिया। डाल गिरी लेकिन चाचा बच गया। चाचा ने जब डाल को देखा तो उसने थुरिया को धन्यवाद दिया कि उसने उसकी जान बचाई।
थुरिया और उसका चाचा आगे बढ़े। अभी वे दस-पंद्रह क़दम ही गए होंगे कि एक नागिन लहराती हुई सामने दिखाई दी। चाचा डर के मारे थर-थर काँपने लगा किंतु थुरिया समझ गया कि यह तीसरी कहानी है जो नागिन का वेश धारण करके उसके चाचा को डँसने आई है। थुरिया ने लपककर नागिन की पूँछ पकड़ी और उसे एक चट्टान पर दे मारा। नागिन बेहोश हो गई। थुरिया ने उसे एक ओर फेंका और चाचा का हाथ पकड़कर तेज़ी आगे चल पड़ा।
चाचा ने विचार किया कि ये कैसी अनहोनी हो रही है कि एक ही दिन में तीन बार उसके प्राणों पर संकट आया और तीनों बार थुरिया ने उसके प्राण बचा लिए। इधर थुरिया सोच रहा था कि तीन कहानियों ने जब अपना निश्चय पूरा करने का प्रयास किया तो अब चौथी कहानी भी अपना निश्चय अवश्य पूरा करेगी और चाचा को मारने का प्रयास करेगी। इसी उधेड़बुन में थुरिया और उसका चाचा अपने गाँव के पास वाली नदी तक आ पहुँचे। अब उन्हें नदी पार करके अपने गाँव पहुँचना था।
चाचा ने जैसे ही नदी के पानी में पाँव रखना चाहा वैसे ही नदी में एक बड़ी लहर उठी और चाचा की ओर बढ़ी। चाचा घबरा कर जड़वत् हो गया। किंतु थुरिया जानता था कि यह चौथी कहानी है। यदि इससे पार पा लिया जाए तो फिर आगे कोई संकट नहीं रहेगा। उसने तेज़ी दिखाते हुए चाचा को पीछे खींच लिया। लहर किनारे से टकरा कर लौटने लगी। जैसे ही लहर वापस होने लगी वैसे ही थुरिया ने चाचा का हाथ पकड़ा और दौड़ते हुए नदी पार कर गया। नदी पार करके चाचा ने पलटकर नदी की ओर देखा तो वह शांत दिखाई दी। चाचा को बहुत आश्चर्य हुआ।
‘थुरिया, सच-सच बता कि ये सब क्या हो रहा है? आज मेरे प्राणों पर चार बार संकट आया और चारों बार मानो तुझे पहले से ही संकट का पता था और तूने मुझे बचा लिया। मुझसे कुछ मत छिपा, मुझे पूरी बात बता।’ चाचा ने थुरिया से कहा। वह सच्चाई जानने को व्याकुल हो उठा था।
‘ये सच है कि मुझे पहले से सब पता था किंतु मैं आपको नहीं बता सकता हूँ।’ थुरिया ने कहा।
‘क्यों नहीं बता सकता है?’ चाचा ने पूछा।
‘क्यों कि यदि मैं आपको पूरी बात बताऊँगा तो मैं पत्थर का बन जाऊँगा।’ थुरिया ने कहा।
‘चल हट, तू बहाना बना रहा है वरना कोई मनुष्य भला पत्थर का कैसे बन सकता है?’ चाचा ने थुरिया को डाँटते हुए कहा।
‘ठीक है, यदि आप जानना ही चाहते हैं तो मैं आपको बता देता हूँ लेकिन जब मैं पत्थर का बन जाऊँ तो आप अपने नाती को लेकर आइएगा और उसके हाथों से मेरे ऊपर हल्दी और चावल के घोल की छाप लगवाइएगा। जिससे मैं फिर से मनुष्य बन जाऊँगा।’ थुरिया ने कहा।
‘ठीक है, जैसा तूने कहा मैं वैसा ही करूँगा। अब मुझे पूरी बात बता।’ चाचा ने व्याकुलता से पूछा।
धुरिया ने चाचा को सारी बात बता दी कि किस प्रकार चार कहानियों ने चाचा को मारने का प्रयास किया। बात समाप्त होते ही थुरिया पत्थर का बन गया। चाचा था दुष्ट। वह तो थुरिया से पीछा छुड़ाने का रास्ता ढूँढ़ ही रहा था इसलिए उसने अपने नाती को बुलाने के बदले पाषाण हो चुके थुरिया को वहीं छोड़ा और अपने घर चल दिया।
घर में पहुँचकर चाचा ने सब लोगों से यही कहा कि थुरिया को जंगल में शेर खा गया। जब यह समाचार थुरिया की चचेरी बहन के पास पहुँचा तो वह बहुत रोई। थुरिया की चचेरी बहन थुरिया को बहुत प्रेम करती थी। चचेरी बहन के पति और ससुर ने चचेरी बहन से कहा कि ऐसी दुख की घड़ी में उसे अपने मायके जाना चाहिए। धुरिया की चचेरी बहन अपने पति और अपने बेटे के साथ अपने मायके चल पड़ी। गाँव के पास वाली नदी पार करते ही बहन के पति ने कहा कि हम जहाँ जा रहे हैं वहाँ शोक का वातावरण होगा और ऐसे में वहाँ खाने-पीने की कोई व्यवस्था नहीं होगी इसलिए अच्छा होगा कि हम यहीं भोजन पकाएंँ और अपने बेटे को खिला दें ताकि उसे भूखा न रहना पड़े।
बहन दुखी थी लेकिन उसे अपने पति की बात जँची। उसे लगा कि उसका चचेरा भाई तो अब स्वर्ग सिधार गया है और बेटे को भूखे रखने से वह वापस तो आ नहीं जाएगा अत: भोजन पकाकर बेटे को खिला देना चाहिए। थुरिया की चचेरी बहन ने लकड़ियाँ इकट्ठी की और आग जलाई। चावल धोकर मसल दिया ताकि शीघ्र पक जाए। बहन का नन्हा बेटा वहीं खेल रहा था। उसने खेल-खेल में सामान की पोटली खोली, उसमें से हल्दी निकाली और चावल के घोल में मिला दी। बहन ने देखा तो वह सोचकर चुप रह गई कि चलो, हल्दी मिला चावल ही पका लूँगी। लेकिन बहन का बेटा था चंचल उसने अपने दोनों हाथ हल्दी-चावल के घोल में डाल दिए। इस पर बहन ने उसे डाँटा। बहन का बेटा डाँट खाकर इधर-उधर देखने लगा। बहन के बेटे की दृष्टि एक पाषाण के पुतले पर पड़ी। वह पुतला उसे अपने मामा जैसा दिखाई दिया। बहन का बेटा दौड़कर उस पुतले के पास पहुँचा और उसने दोनों हाथों से उस पुतले को पकड़ लिया। इधर बहन के बेटे के हाथ पुतले पर लगे और उधर थुरिया वापस मनुष्य बन गया।
‘मामा, मामा!’ कहता हुआ बहन का बेटा थुरिया से लिपट गया।
अपने बेटे की आवाज़ सुनकर थुरिया की चचेरी बहन और उसके पति ने अपने बेटे की ओर देखा तो वे चकित रह गए। उनका बेटा थुरिया से लिपटा खड़ा था।
‘भैया तुम जीवित हो!’ कहती हुई चचेरी बहन दौड़कर थुरिया के पास जा पहुँची।
‘ये सब क्या है? हमने तो सुना था कि तुम्हें शेर खा गया और यहाँ तुम पत्थर के पुतले बने पड़े थे। लेकिन हमारे बेटे का हाथ लगते ही पुन: मनुष्य बन गए, ये कौन-सा मायाजाल है?’ थुरिया के चचेरी बहन के पति ने धुरिया से पूछा।
थुरिया ने अपनी बहन और बहनोई को पूरा क़िस्सा सुनाया। धुरिया के साथ घटी घटना और अपने पिता द्वारा किए गए अमानवीय कर्म के बारे में जानकर थुरिया की चचेरी बहन को बहुत क्रोध आया। वह अपने पति, अपने बेटे और धुरिया को लेकर अपने पिता के पास पहुँची। उसने गाँव वालों को अपने पिता के कुकर्म के बारे में बताया और अपने पिता को जी भरकर धिक्कारा। थुरिया का चाचा अपनी बेटी से धिक्कार सुनकर बहुत लज्जित हुआ और उसने थुरिया से क्षमा माँगी।
‘अब मैं तुम्हें कभी कोई कष्ट नहीं होने दूँगा।’ थुरिया के चाचा ने थुरिया से कहा।
‘किंतु अब मुझे आपके वचन पर भरोसा नहीं है अत: मैं अपने भाई को अपने साथ ले जाऊँगी।’ थुरिया की चचेरी बहन ने अपने पिता से कहा और वह धुरिया को अपने साथ अपने गाँव ले गई। थुरिया अपनी चचेरी बहन और बहनोई के साथ मज़े से रहने लगा।
ek tha baiga balak. uska naam tha thuriya. jab wo bahut chhota tha tabhi uske mata pita ka dehant ho gaya tha. thuriya ko uske chacha ne apne ghar mein sharan di thi. thuriya chacha ke saath unke kaam mein haath bantata aur unhin ke saath rahta. chacha thuriya ko vishesh pasand nahin karta tha lekin gaanv valon ke Dar se apne ghar se nikal bhi nahin pata tha.
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‘thoDa aram kar len phir aage chalte hain. ’ chacha ne kaha.
chacha lette hi kharrate lene laga. thuriya bhi let gaya kintu use neend nahin aa rahi thi. use yaad aane laga ki jab uski chacheri bahan ki shadi nahin hui thi aur wo chhoti thi to chacha use kahaniyan sunaya karta tha kintu chacha ne thuriya ko kabhi koi kahani nahin sunai. thuriya ye soch hi raha tha ki ek vichitr ghatna ghati. hua ye ki chacha ke mastishk mein chaar kahaniyan theen. un kahaniyon ko thuriya ke vicharon ki bhanak lag gai aur unhen bhi laga ki ye buDha kitna kanjus hai jo hamein apne mastishk mein sahej kar rakhe hue hai lekin hamein bahar nikalta hi nahin hai.
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‘tum donon theek kahti ho. ye buDha mar jane yogya hai. isne hamein bandi bana rakha hai. ab isse chhutkare ka ek hi upaay hai ki ise maar Dala jaye. yadi tum donon ise marne mein saphal nahin ho pain to main nagin bankar ise Dans lungi. ’ tisri kahani ne kaha.
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‘kahin isne hamari baten sun to nahin leen?’ dusri kahani ne sandeh prakat kiya.
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bahan dukhi thi lekin use apne pati ki baat janchi. use laga ki uska chachera bhai to ab svarg sidhar rha gaya hai aur bete ko bhukhe rakhne se wo vapas to aa nahin jayega atah bhojan pakakar bete ko khila dena chahiye. thuriya ki chacheri bahan ne lakDiyan ikatthi ki aur aag jalaya. chaval dhokar masal diya taki sheeghr pak jaye. bahan ka nanha beta vahin khel raha tha. usne khel khel mein saman ki potli kholi, usmen se haldi nikali aur chaval ke ghol mein mila di. bahan ne dekha to wo sochkar chup rah gai ki chalo, haldi mila chaval hi paka lungi. lekin bahan ka beta tha chanchal usne apne donon haath haldi chaval ke ghol mein Daal diye. is par bahan ne use Danta. bahan ka beta Daant khakar idhar udhar dekhne laga. bahan ke bete ki drishti ek pashan ke putle par paDi. wo putla use apne mama jaisa dikhai diya. bahan ka beta dauD kar us putle ke paas pahuncha aur usne donon hathon se us putle ko pakaD liya. idhar bahan ke bete ke haath putle par lage aur udhar thuriya vapas manushya ban gaya.
‘mama, mama!’ kahta hua bahan ka beta thuriya se lipat gaya.
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‘ab main tumhein kabhi koi kasht nahin hone dunga. ’ thuriya ke chacha ne thuriya se kaha.
‘kintu ab mujhe aapke vachan par bharosa nahin hai atah main apne bhai ko apne saath le jaungi. ’ thuriya ki chacheri bahan ne apne pita se kaha aur wo dhuriya ko apne saath apne gaanv le gai. thuriya apni chacheri bahan aur bahnoi ke saath maze se rahne laga.
ek tha baiga balak. uska naam tha thuriya. jab wo bahut chhota tha tabhi uske mata pita ka dehant ho gaya tha. thuriya ko uske chacha ne apne ghar mein sharan di thi. thuriya chacha ke saath unke kaam mein haath bantata aur unhin ke saath rahta. chacha thuriya ko vishesh pasand nahin karta tha lekin gaanv valon ke Dar se apne ghar se nikal bhi nahin pata tha.
ek baar chacha ko apni beti se milne ke liye beti ke sasural jane ki ichchha hui. chacha ne raste ke saath ke liye thuriya ko apne saath le liya. chacha aur thuriya chacha ki beti ki sasural ki or chal paDe. chacha ki beti ki sasural bahut door thi. rasta bhi jangal se hokar guzarta tha. chalte chalte dopahar ho gai. chacha ko bhookh lag aai. usne thuriya se bhojan pakane ko kaha. thuriya ne jhatpat sukhi lakDiyan batorin aur aag jalakar bhojan paka Dala. pahle chacha ko khilaya aur phir bacha hua svayan khaya. bhojan karne par chacha ko alasya ne gher liya.
‘thoDa aram kar len phir aage chalte hain. ’ chacha ne kaha.
chacha lette hi kharrate lene laga. thuriya bhi let gaya kintu use neend nahin aa rahi thi. use yaad aane laga ki jab uski chacheri bahan ki shadi nahin hui thi aur wo chhoti thi to chacha use kahaniyan sunaya karta tha kintu chacha ne thuriya ko kabhi koi kahani nahin sunai. thuriya ye soch hi raha tha ki ek vichitr ghatna ghati. hua ye ki chacha ke mastishk mein chaar kahaniyan theen. un kahaniyon ko thuriya ke vicharon ki bhanak lag gai aur unhen bhi laga ki ye buDha kitna kanjus hai jo hamein apne mastishk mein sahej kar rakhe hue hai lekin hamein bahar nikalta hi nahin hai.
charon kahaniyan chacha ke mastishk se nikalkar uske pet par aa baithin aur aapas mein baten karne lagin.
‘main is buDhe se tang aa gai hoon. mera to iske mastishk mein baithe baithe dam ghutne laga hai. dekhana mein is buDhe ko markar isse chhutkara pa lungi. jab ye apni beti ki sasural mein bhojan kar raha hoga us samay main kanta bankar iske bhojan ke pahle kaur mein mil jaungi aur uske pet mein pahunchakar ise maar Dalungi. ’ pahli kahani ne kaha.
‘main bhi is buDhe se chhutkara pana chahti hoon. hum kahaniyan to sabhi ke liye hoti hain lekin ye to ab kisi ko sunata hi nahin hai aur hamein apne mastishk mein bandi banaye hue hai. dekh lena, yadi tum ise marne mein asaphal ho gain to jab ye beti ki sasural se laut raha hoga to main hare vriksh ki sukhi Daal bankar is par gir paDungi aur ise maar Dalungi. ’ dusri kahani ne krodhit hote hue kaha.
‘tum donon theek kahti ho. ye buDha mar jane yogya hai. isne hamein bandi bana rakha hai. ab isse chhutkare ka ek hi upaay hai ki ise maar Dala jaye. yadi tum donon ise marne mein saphal nahin ho pain to main nagin bankar ise Dans lungi. ’ tisri kahani ne kaha.
‘aur yadi tum tinon ise marne mein asaphal rahin to main to ise markar hi rahungi. lautte samay jab ye nadi paar karega to main baDi si lahr bankar ise Duba dungi. ’ chauthi kahani ne daant piste hue kaha.
charo kahaniyan is tarah chacha ko marne ki yojna par charcha kar rahi theen ki thuriya ko chheenk paD gai. thuriya ki chheenk sunkar charon kahaniyan chaunk gai.
‘kahin isne hamari baten sun to nahin leen?’ dusri kahani ne sandeh prakat kiya.
‘haan, yadi isne hamari baten sun li hogi to ye apne chacha ko bata dega aur hum iske chacha ko maar nahin sakengi. ’ tisri kahani ne kaha.
‘tum log Daro nahin! jo bhi hamari baten kisi dusre ko batayega wo batate hi patthar ka ban jayega. isliye jisko patthar ka banna ho vahi hamari baten kisi aur ko bataye. ’ pahli kahani ne itrate hue kaha.
‘are vaah! ye to baDhiya hai. lekin ye to batao ki patthar banne ke baad vapas manushya bana ja sakta hai ya nahin?’ chauthi kahani ne puchha.
‘bana to ja sakta hai lekin hai bahut kathin. ’ pahli kahani ne kaha.
‘vo kaise?’ shesh tinon kahaniyon ne ek svar mein puchha.
‘vo aise ki yadi thuriya hamari baten apne chacha ko bata dega to wo patthar ka ban jayega. wo phir se manushya tabhi ban sakega jab iske chacha ka nati apne hathon se iske uupar haldi aur chaval ke ghol ki chhaap lagayega. lekin iska chacha ise bachane ke liye apne nati ko kabhi nahin layega. ’ pahli kahani ne hanste hue kaha.
iske baad charon kahaniyan vapas chacha ke mastishk mein ja baithin.
thoDi der baad chacha ki neend khuli. wo thuriya ko saath lekar aage chal paDa. puri shaam aur puri raat chalne ke baad donon chacha ki beti ki sasural pahunche. dhuriya ne kahaniyon ki baten sun li theen. wo bahut chintit tha. use laga ki yadi wo kahaniyon ki baten apne chacha ko batayega to patthar ka ban jayega aur yadi nahin batayega to uske chacha mare jayenge. isi udheDbun mein bhojan ka samay ho gaya.
chacha ki beti ne apne pita aur apne chachere bhai ke liye baDe prem se bhojan pakaya aur donon ko ek saath bithakar bhojan paros diya. chacha ne jaise hi bhojan ka pahla kaul uthaya vaise hi thuriya ko pahli kahani ki baat yaad aa gai. usne chacha ke haath par apna haath mara jisse kaur zamin par gir gaya. chacha ko pahle to thuriya par bahut krodh aaya lekin jab usne zamin par gire kaur ki or dhyanapurvak dekha to usmen use kanta dikhai diya. kanta dekhkar use samajh mein aa gaya ki thuriya ne uski jaan bachai hai.
thuriya ne apna bhojan chacha ko de diya aur svayan chacha ki thali ka bhojan kha liya.
dusre din chacha ne apni beti aur uske sasural valon se vida li aur apne gaanv laut chala. thuriya bhi saath tha. jis raste se ve aaye the, usi raste se laut rahe the. tabhi thuriya ne dekha ki ek hare bhare vriksh par ek moti si Daal hai jo bilkul sukhi hui hai. ye dekhkar dhuriya ko bahut ashcharya hua ki hare bhare vriksh par sukhi hai Daal kaise? usi kshan thuriya ko dusri kahani ki baat yaad aa gai. wo chacha se aage baDhkar us vriksh ko paar karke khaDa ho gaya. jaise hi uska chacha vriksh ke niche guzra vaise hi thuriya ne chacha ka haath pakaD kar use ek jhatke se kheench liya. Daal giri lekin chacha bach gaya. chacha ne jab Daal ko dekha to usne thuriya ko dhanyavad diya ki usne uski jaan bachai.
thuriya aur uska chacha aage baDhe. abhi ve das pandrah qadam hi ge honge ki ek nagin lahrati hui samne dikhai di. chacha Dar ke mare thar thar kanpne laga kintu thuriya samajh gaya ki ye tisri kahani hai jo nagin ka vesh dharan karke uske chacha ko Dansane aai hai. thuriya ne lapakkar nagin ki poonchh pakDi aur use ek chattan par de mara. nagin behosh ho gai. thuriya ne use ek or phenka aur chacha ka haath pakaD kar tezi aage chal paDa.
chacha ne vichar kiya ki ye kaisi anhoni ho rahi hai ki ek hi din mein teen baar uske pranon par sankat aaya aur tinon baar thuriya ne uske praan bacha liye. idhar thuriya soch raha tha ki teen kahaniyon ne jab apna nishchay pura karne ka prayas kiya to ab chauthi kahani bhi apna nishchay avashya pura karegi aur chacha ko marne ka prayas karegi. isi udheDbun mein thuriya aur uska chacha apne gaanv ke paas vali nadi tak aa pahunche. ab unhen nadi paar karke apne gaanv pahunchna tha.
chacha ne jaise hi nadi ke pani mein paanv rakhna chaha vaise hi nadi mein ek baDi lahr uthi aur chacha ki or baDhi. chacha ghabra kar jaDvat ho gaya. kintu thuriya janta tha ki ye chauthi kahani hai. yadi isse paar pa liya jaye to phir aage koi sankat nahin rahega. usne tezi dikhate hue chacha ko pichhe kheench liya. lahr kinare se takra kar lautne lagi. jaise hi lahr vapas hone lagi vaise hi thuriya ne chacha ka haath pakDa aur dauDte hue nadi paar kar gaya. nadi paar karke chacha ne palatkar nadi ki or dekha to wo shaant dikhai di. chacha ko bahut ashcharya hua.
‘thuriya, sach sach bata ki ye sab kya ho raha hai? aaj mere pranon par chaar baar sankat aaya aur charon baar mano tujhe pahle se hi sankat ka pata tha aur tune mujhe bacha liya. mujhse kuch mat chhipa, mujhe puri baat bata. ’ chacha ne thuriya se kaha. wo sachchai janne ko vyakul ho utha tha.
‘ye sach hai ki mujhe pahle se sab pata tha kintu main aapko nahin bata sakta hoon. ’ thuriya ne kaha.
‘kyon nahin bata sakta hai?’ chacha ne puchha.
‘kyon ki yadi main aapko puri baat bataunga to main patthar ka ban jaunga. ’ thuriya ne kaha.
‘chal hat, tu bahana bana raha hai varna koi manushya bhala patthar ka kaise ban sakta hai?’ chacha ne thuriya ko Dantte hue kaha.
‘theek hai, yadi aap janna hi chahte hain to main aapko bata deta hoon lekin jab main patthar ka ban jaun to aap apne nati ko lekar aiega aur uske hathon se mere uupar haldi aur chaval ke ghol ki chhaap lagvaiyega. jisse main phir se manushya ban jaunga. ’ thuriya ne kaha.
‘theek hai, jaisa tune kaha main vaisa hi karunga. ab mujhe puri baat bata. ’ chacha ne vyakulta se puchha.
dhuriya ne chacha ko sari baat bata di ki kis prakar chaar kahaniyon ne chacha ko marne ka prayas kiya. vaat samapt hote hi thuriya patthar ka ban gaya. chacha tha dusht. wo to thuriya se pichha chhuDane ka rasta DhoonDh hi raha tha isliye usne apne nati ko bulane ke badle pashan ho chuke thuriya ko vahin chhoDa aur apne ghar chal diya.
ghar mein pahunchakar chacha ne sab logon se yahi kaha ki thuriya ko jangal mein sher kha gaya. jab ye samachar thuriya ki chacheri bahan ke paas pahuncha to wo bahut roi. thuriya ki chacheri bahan thuriya ko bahut prem karti thi. chacheri bahan ke pati aur sasur ne chacheri bahan se kaha ki aisi dukh ki ghaDi mein use apne mayke jana chahiye. dhuriya ki chacheri bahan apne pati aur apne bete ke saath apne mayke chal paDi. gaanv ke paas vali nadi paar karte hi bahan ke pati ne kaha ki hum jahan ja rahe hain vahan shok ka vatavran hoga aur aise mein vahan khane pine ki koi vyavastha nahin hogi isliye achchha hoga ki hum yahin bhojan pakayenn aur apne bete ko khila den taki use bhukha na rahna paDe.
bahan dukhi thi lekin use apne pati ki baat janchi. use laga ki uska chachera bhai to ab svarg sidhar rha gaya hai aur bete ko bhukhe rakhne se wo vapas to aa nahin jayega atah bhojan pakakar bete ko khila dena chahiye. thuriya ki chacheri bahan ne lakDiyan ikatthi ki aur aag jalaya. chaval dhokar masal diya taki sheeghr pak jaye. bahan ka nanha beta vahin khel raha tha. usne khel khel mein saman ki potli kholi, usmen se haldi nikali aur chaval ke ghol mein mila di. bahan ne dekha to wo sochkar chup rah gai ki chalo, haldi mila chaval hi paka lungi. lekin bahan ka beta tha chanchal usne apne donon haath haldi chaval ke ghol mein Daal diye. is par bahan ne use Danta. bahan ka beta Daant khakar idhar udhar dekhne laga. bahan ke bete ki drishti ek pashan ke putle par paDi. wo putla use apne mama jaisa dikhai diya. bahan ka beta dauD kar us putle ke paas pahuncha aur usne donon hathon se us putle ko pakaD liya. idhar bahan ke bete ke haath putle par lage aur udhar thuriya vapas manushya ban gaya.
‘mama, mama!’ kahta hua bahan ka beta thuriya se lipat gaya.
apne bete ki avaz sunkar thuriya ki chacheri bahan aur uske pati ne apne bete ki or dekha to ve chakit rah ge. unka beta thuriya se lipta khaDa tha.
‘bhaiya tum jivit ho!’ kahti hui chacheri bahan dauDkar thuriya ke paas ja pahunchi.
‘ye sab kya hai? hamne to suna tha ki tumhein shor kha gaya aur yahan tum patthar ke putle bane paDe the. lekin hamare bete ka haath lagte hi punah manushya ban ge, ye kaun sa mayajal hai?’ thuriya ke chacheri bahan ke pati ne dhuriya se puchha.
thuriya ne apni bahan aur bahnoi ko pura qissa sunaya. dhuriya ke saath ghati ghatna aur apne pita dvara kiye ge amanaviy karm ke bare mein jankar thuriya ki chacheri bahan ko bahut krodh aaya. wo apne pati, apne bete aur dhuriya ko lekar apne pita ke paas pahunchi. usne gaanv valon ko apne pita ke kukarm ke bare mein bataya aur apne pita ko ji bharkar dhikkara. thuriya ka chacha apni beti se dhikkar sunkar bahut lajjit hua aur usne thuriya se kshama mangi.
‘ab main tumhein kabhi koi kasht nahin hone dunga. ’ thuriya ke chacha ne thuriya se kaha.
‘kintu ab mujhe aapke vachan par bharosa nahin hai atah main apne bhai ko apne saath le jaungi. ’ thuriya ki chacheri bahan ne apne pita se kaha aur wo dhuriya ko apne saath apne gaanv le gai. thuriya apni chacheri bahan aur bahnoi ke saath maze se rahne laga.
स्रोत :
पुस्तक : भारत के आदिवासी क्षेत्रों की लोककथाएं (पृष्ठ 170)
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