देव-खूँटा की दाल
एक पेड़ पर एक छोटी-सी गौरैया घोंसला बना कर रह रही थी। कहीं भी खाने को कुछ भी मिले तो उसे ला कर अपने बच्चों के साथ मिल-बाँट कर खाती थी। इसी तरह एक दिन क्या हुआ कि वह गौरिया खाने के लिए बहुत दूर-दूर तक उड़ी और किसी के दाल-बाड़ी से अरहर दाल का एक बीज (दाना) चोंच में घर कर ले आई। बहुत दूर से उड़ कर आने के कारण गौरैया थक गई थी। पेड़ के नीचे किसी एक देवता का खूँटा था। गौरैया उसी खूँटे के ऊपर जा बैठी। गौरैया थकी-माँदी थी। चोंच में पकड़े दाल के दाने को उसने उसी खूँटे के ऊपर रख दिया। दाल के दाने को वहाँ रख देने पर हुआ क्या कि वह देव-खूँटा था पुराना,तो उसके द्वारा लाया गया दाल का वह दाना गिर कर उस फटे हुए देव-खूँटे के भीतर के खोखले हिस्से में जा घुसा। गौरैया को यह देख कर बहुत दुख हुआ। वह सोचने लगी,कितनी दूर जाकर अरहर दाल का एक दाना लेकर आई थी और वह दाना भी देव-खूँटे के भीतर चला गया।
गौरैया गाँव के बढ़ई के पास गई और बोली,बढ़ई,दादा! बढ़ई दादा! तुम देवता के इस खूँटे को चीर दो। खूँटे के भीतर दाल मैं दाल को खाऊँ।
बढ़ई ने गौरैया की बात सुनी और उसे भगा दिया। बढ़ई द्वारा भगा दिए जाने पर गौरैया राजा के पास गई और कहने लगी,मैंने बढ़ई से खूँटे को चीर देने को कहा किंतु मेरी बात सुन कर बढ़ई ने मुझे भगा दिया। खूँटे के भीतर दाल,मैं क्या खाऊँ?
गौरैया की बात राजा ने सुनी अवश्य किंतु क्या राजा भला एक गौरैया का काम करेगा? राजा ने भी उसे भगा दिया। राजा द्वारा भगाये जाने के बाद वह गई रानी के पास और कहने लगी,रानी,रानी। राजा नाराज़ हो गए। उन्होंने मुझे भगा दिया। देव-खूँटे के भीतर दाल है। बढ़ई से मैंने उस खूँटे को चीरने के लिए कहा किंतु बढ़ई ने मुझे भगा दिया। खूँटे के भीतर दाल है,मैं क्या खाऊँ?
उसकी बात सुन कर रानी बोली,देख री,गौरैया! मुझे बहुत काम है। तुम मुझसे मत उलझो। मैं तुम्हारी कोई सहायता नहीं कर सकती। तुम यहाँ से चली जाओ।
गौरैया क्या करे....? चूहे के पास गई और अपना दुखड़ा कह सुनाया। चूहा भी भला उसकी बात क्यों सुनता! उसने भी गौरैया को भगा दिया। 'खूँटे के भीतर दाल,मैं क्या खाऊँ' कहते-कहते चली जा रही है। इतने में रास्ते में बिल्ली से भेंट हो गई। गौरैया ने सारी रामकहानी बिल्ली से कह सुनाई और कहा,मेरे बच्चे भूखे हैं। मैंने बढ़ई से कहा किंतु उसने मुझे भगा दिया। राजा से कहा तो उसने भी भगा दिया। रानी से कहा तो रानी ने भी भगा दिया। चूहे से कहा किंतु उसने भी भगा दिया। सभी लोगों ने मुझे भगा दिया। हे बिल्ली, भाई! अब तुम ही कुछ करो। मैं बहुत मशक्कत कर बहुत दूर से दाल का दाना लेकर आई। 'खूँटे के भीतर दाल,मैं क्या खाऊँ?
बिल्ली ने भी गौरैया की बात सुनी और सोचने लगी कि यह मुसीबत कहाँ से आ गई? ऐसा सोच कर वह नाराज हो गई और उसने भी उसे भगा दिया। अब गौरैया क्या करे?'खूँटे के भीतर दाल, मैं क्या खाऊँ' रटते-रटते उसका चेहरा उतर गया था और वह दुखी हो गई थी। उसी समय सामने से एक कुत्ता आता दिखाई पड़ा। गौरैया उसे देख कर बहुत ख़ुश हो गई। कुत्ते को रोक कर अपनी सारी रामकहानी कह सुनाई। अपना दुखड़ा रोया और बोली,खूँटे के भीतर दाल,मैं क्या खाऊँ? कुत्ते ने गौरैया की बातें सुनी। उसके पास कोई काम-धाम नहीं था। ऊपर से बिल्ली के साथ थी उसकी दुश्मनी! बिल्ली का नाम सुनते ही उसने बहुत नाराज़गी दिखाई और ग़ुस्से में भर कर बिल्ली को भगाया। बिल्ली ने उसके डर से चूहे को भगाया। चूहे ने ग़ुस्से में आ कर रानी के सारे कपड़ों को कुतर डाला। रानी अपने कपड़ों का नुकसान देख कर रुँआसी होकर बैठ गई। तब राजा ने बढ़ई को बुला भेजा और उससे लकड़ी चीरने को कहा,जा रे, बढ़ई! तुम उस देवता के खूँटे को चीर दो। राजा का आदेश पा कर बढ़ई भागता हुआ घर पहुँचा कुल्हाड़ी ली और उस देव-खूँटे को चीर डाला। देव-खूँटा को चीरने पर दाल का वह दाना बाहर निकल पड़ा। इतने में गौरैया की ख़ुशी का ठिकाना न रहा। उसने दाल का दाना चोंच में दबाया और अपने घोंसले में लौट कर अपने बच्चों के साथ मिल-बाँट कर उस दाने को खाया।
मेरी कहानी ख़त्म हो गई।
- पुस्तक : बस्तर की लोक कथाएँ (पृष्ठ 157)
- संपादक : लाला जगदलपुरी, हरिहर वैष्णव
- प्रकाशन : राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, भारत
- संस्करण : 2013
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