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अब ना लगें जुबनवा नोंनें

ab na lagen jubanwa nonnen

ईसुरी

ईसुरी

अब ना लगें जुबनवा नोंनें

ईसुरी

अब ना लगें जुबनवा नोंनें।

हो आई हौ गौनें।

इतै भले कैसे लागत ते, सुंदर सुघर सलौने॥

ऐसी जल्दी जाने कैसें, दए मिटाय निरोंगें॥

चलन लगी नेचे खों फलियाँ, हलन लगी देउ टोंनें॥

अब जुबना अच्छे नहीं लगते। तुम गौनें होकर आई हो ना। पहले वे कैसे अच्छे लगते थे—सुन्दर सुडौल और सलोंने। हाय जानें कैसे इन मनोरम उरोजों को इतनी जल्दी तहस-नहस कर दिए? अब उनके फल नीचे लटकने लगे हैं और दोनों टोंने हिलने लगी हैं।

स्रोत :
  • पुस्तक : ईसुरी की फागें (पृष्ठ 212)
  • संपादक : घनश्याम कश्यप
  • प्रकाशन : शब्दपीठ
  • संस्करण : 1995

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