भारत में तनाव सन् 1942 के शुरू के महीनों में बढ़ा। युद्ध का मंच लगातार निकट आता जा रहा था और भारत के शहरों पर हवाई हमलों की संभावना पैदा हो गई थी। जिन पूर्वी देशों में युद्ध ज़ोरों पर था, वहाँ क्या होगा? भारत और इंग्लैंड के संबंधों में क्या नया अंतर आएगा?
चुनौती—'भारत छोड़ो' प्रस्ताव
बंबई में 7 और 8 अगस्त को अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी ने खुली सभा में उस प्रस्ताव पर विचार किया और बहस की जो अब 'भारत छोड़ो' प्रस्ताव
नाम से जाना जाता है। वह एक लंबा और विशद प्रस्ताव था। उसमें अंतरिम सरकार बनाने का सुझाव दिया गया था। ऐसी सरकार जो मिली-जुली हो, जिसमें सभी महत्त्वपूर्ण वर्गों के लोगों का प्रतिनिधित्व हो और जिसका पहला काम होगा मित्र शक्तियों के सहयोग से भारत की सुरक्षा और अपनी सारी हथियारबंद और अहिंसक शक्तियों के साथ बाहरी हमले को रोकना।
कांग्रेस कमेटी ने 'संसार की आज़ादी के लिए ब्रिटेन और संयुक्त राष्ट्र से फिर अपील की' और इस बात की स्वीकृति देना तय किया कि गांधी जी के अपरिहार्य नेतृत्व में अहिंसात्मक ढंग से एक जन-आंदोलन शुरू किया जाए। यह स्वीकृति उसी समय लागू होती जब गांधी जी ऐसा निर्णय लेते। अंत में कहा गया कि कमेटी 'कांग्रेस के लिए शक्ति हासिल करना नहीं चाहती। ताक़त जब भी आएगी तो वह भारत की सारी जनता की होगी।'
अपने समापन भाषणों में कांग्रेस सभापति मौलाना अबुल कलाम आज़ाद और गांधी जी ने यह स्पष्ट कर दिया कि उनका अगला क़दम होगा, ब्रिटिश सरकार के प्रतिनिधि, वायसराय से मुलाक़ात करना और ख़ास संयुक्त राष्ट्रों के मुख्याधिकारियों से एक सम्मानपूर्ण समझौते के लिए अपील करना।
8 अगस्त सन् 1942 को काफ़ी रात गए यह प्रस्ताव अंततः पास हो गया। कुछ घंटे बाद, 9 अगस्त की सुबह-सुबह बंबई में और पूरे देश में अनेक स्थानों पर बहुत सी गिरफ़्तारियाँ हुईं और इस तरह हम अहमदनगर के क़िले में आए।