Font by Mehr Nastaliq Web

दुबेजी की चिट्ठी

dubeji ki chitthi

विश्वंभरनाथ शर्मा 'कौशिक'

विश्वंभरनाथ शर्मा 'कौशिक'

दुबेजी की चिट्ठी

विश्वंभरनाथ शर्मा 'कौशिक'

और अधिकविश्वंभरनाथ शर्मा 'कौशिक'

    अजी संपादकजी महाराज,

    जय राम जी की!

    लोग कहते हैं कि मुसीबत अकेली नहीं आती, तो यह कहावत मेरे ऊपर अक्षरशः चरितार्थ हुई। कानपुर की कांग्रेस देखने की उत्सुकता हृदय में इतनी प्रबल थी कि यद्यपि बीमारी के कारण इस योग्य था कि घर के बाहर निकलूँ; परंतु फिर भी किसी किसी प्रकार हृदय को कड़ा करके यह पक्का इरादा कर लिया कि इस बार यदि कांग्रेस देखी, तो नर-देह धारण करना व्यर्थ हो जाएगा, अतएव कांग्रेस देखनी चाहिए। अब इरादा पक्का हो गया, तब दुसरी मुसीबत सामने आई—वह थी ख़र्च की। कांग्रेस में जाने के लिए ख़र्च कहाँ से आए! इस पर तुर्रा यह है कि लल्ला की महत्तारी भी चलने के लिए कमर कसकर तैयार हो गई। मैंने कहा भी कि तुम क्या करोगी चलके, पर उसने तुनककर जवाब दिया—क्या तुम्हीं बड़े शौक़ीन हो-तुम्हीं बड़े कांग्रेस-भक्त हो? मैं भी किसी बात में तुमसे कम नहीं हूँ। मैं अवश्य चलूँगी। मैंने सोचा ख़ैर, चलने दो अपना क्या हर्ज है। साथ में रहने से आराम ही मिलेगा।

    ख़ैर, लल्ला की महतारी का चलना भी निश्चित हो गया। अब फ़िक्र हुई कि दो आदमियों का ख़र्च कहाँ से लाया जाए। पास टका नहीं ओर कांग्रेस के लिए तैयार—फिर एक दो, पूरा घर भर। ख़ैर, जनाब, पहले तो मैंने सोचा कि लल्ला की महतारी का गहना कहीं गिरवी धरके काम निकालना चाहिए, परंतु इस पर लल्ला की महतारी राज़ी हुई उसने कहा, गहना गिरवी नहीं धरा जा सकता। मेले-तमाशे में तो गहने की आवश्यकता ही पड़ती है। ऐसे अवसर पर गहना गिरवी धरना बदनामी का कारण होगा। ख़ैर, इस ओर से निराश होने पर यह किया गया कि दस किसी से लिये, पाँच किसी से लिये। इस प्रकार यथेष्ट रूपये इकट्ठे करके पच्चीस तारीख़ को कानपुर के लिए रवाना हुए। हमारी गाड़ी सुबह कानपुर पहुँचनेवाली थी। रात को बारह-एक बजे तक जागते रहे, इसके पश्चात् जो लंबी तानी तो नौ बजे आँख खुली। एक मुसाफ़िर से पूछा, क्यों महाशय, कानपुर कितनी दूर रह गया? उसने उत्तर दिया—कानपुर तो कभी का निकल गया, अब तो आप फतेहपुर से आगे निकल आए! इतना सुनते ही जान निकल गई। झट से लल्ला की महतारी को जगाया और उससे सब हाल कहा। उसने कहा, चलो, यह भी अच्छा हुआ। अब प्रयागराज चले चलो, वहाँ त्रिवेणी में स्नान करके कल लौटेंगे।

    ख़ैर साहब, प्रयागराज पहुँचे। वहाँ कानपुर से प्रयाग तक का अधिक किराया देने के बाद स्टेशन से बाहर पहुँचे। एक धर्मशाला में बिस्तर जमाया। दिन में त्रिवेणी-स्नान किया, संध्या-समय गहरी छानकर चौक की सैर की। रात को फिर लद-फँदकर स्टेशन पहुँचे और गाड़ी में सवार होकर कानपुर की ओर चले। इस बार यह निश्चय कर लिया था कि रात भर जागरण करेंगे, क्योंकि गाड़ी सवेरे चार बजे कानपुर पहुँचती थी। ख़ैर साहब, रात के दो बजे तक तो किसी किसी प्रकार जागते रहे; पर इसके बाद पता नहीं, कब और कैसे नींद गई। आँख खुली तो देखा कि ख़ूब दिन चढ़ आया है—जान निकल गई। एक साहब से पूछा-क्यों महोदय, इस समय कितने बजे होंगे? उन्होंने कहा—नौ बजने के निकट है। मैंने कहा—भई वाह, इन नौ बजे ने मेरा अच्छा पिंड पकड़ा है! इधर से जाते हुए भी नौ बजे आँख खुली और उधर से आते हुए भी नौ बजे होश आया। अब क्या किया जाए? गाड़ी फफूँद के निकट पहुँच रही थी। फिर लल्ला की महतारी से सलाह गाँठी। उसने कहा—चलो, यह भी अच्छा हुआ। इधर से मथुराजी होते चलें। बहुत दिनों से मथुराजी देखने की लालसा लगी हुई थी। ख़ैर साहब, हाथरस पहुँचे, वहाँ से मथुराजी की गाड़ी में बैठे। मथुराजी पहुँचकर एक पंडे के यहाँ ठहरे। एक दिन मथुराजी रहे। पास-पल्ले जो कुछ था, वह सब ख़र्च हो गया—अब केवल घर लौटने भर के पैसे बच रहे।

    दूसरे दिन घर का टिकट लेकर गाड़ी पर सवार हुए—तीसरे दिन घर पहुँचे। ज्यों ही मित्रों को हमारे लौटने की सूचना मिली, सब एक-एक कर आने लगे। अब जिसे देखिए, वह यही प्रश्न करता है कि कांग्रेस में क्या देखा? मैं किस-किससे क्या-क्या कहूँ? अंत में मैंने सोच समझकर ऐसे उत्तर देने आरंभ किये कि जिससे कोई भकुआ यह भी समझ सका कि यह कांग्रेस नहीं गए। सबको यही विश्वास हो गया कि यह अवश्य कांग्रेस देखकर आये हैं। एक महोदय ने प्रश्न किया—कांग्रेस में कितने आदमी थे?

    मैंने कहा—जनाब, आदमियों की पूछिए—तिल धरने की जगह थी।

    उन्होंने प्रश्न किया—हज़ारों आदमी होंगे?

    मैंने उत्तर दिया—हज़ारों क्या, सैकड़ों आदमी थे, ऐसी कांग्रेस तो आज तक हुई ही नहीं।

    वह—तिलक नगर कैसा बना था?

    मैं—बस, आज तक ऐसा नगर नहीं बना था—नगर क्या, पूरी बस्ती थी—जो चीज़ चाहिए, वहाँ मिलती थी।

    वह—सुना, सब चीज़ों की दूकानें वहाँ थीं?

    मैं—यानी बस आप यह समझ लीजिए कि पूरी और पान तक की दूकानें थीं—हद है।

    वह—और पंडाल कैसा बना था?

    मैं—पंडाल क्या, पूरा पेंडाल था। ऐसा पंडाल तो मैंने कभी देखा ही नहीं।

    वह—भला, पंडाल में कितने आदमी बैठ सकते थे?

    मैं—चाहे कितने आदमी बैठते चले जाएँ—जिसके पास टिकट हो, वही बैठ सकता था।

    वह—हाँ, व्याख्यान कैसे हुए?

    मैं—ओहो, इसके बारे में मत पूछिए, ऐसे व्याख्यान तो आज तक सुने ही नहीं।

    वह—सुना, मालवीयजी ख़ूब बोले।

    मैं—ऐसे बोले कि लोग मुग्ध हो गए।

    वह—सभानेत्री का भाषण भी सुना, अच्छा था?

    मैं—एक अच्छा कि बहुत अच्छा। ऐसा भाषण तो आज तक सुना ही नहीं।

    वह—प्रदर्शनी कैसी थी?

    मैं—प्रदर्शनी का क्या कहना है—ऐसी प्रदर्शनी तो आज तक देखी ही नहीं।

    वह—प्रबंध कैसा था?

    मैं—बस क्या कहूँ, मुझे यह भी नहीं मालूम कि मैं गया था या नहीं- यह तक पता नहीं कि मैं कानपुर में था या कहीं और—बस, यह मालूम होता था कि मैं कानपुर-कांग्रेस में नहीं आया हूँ, वरन् प्रयागराज या मथुराजी में बैठा हूँ।

    स्रोत :
    • पुस्तक : हिंदी निबंध की विभिन्न शैलियाँ (पृष्ठ 165)
    • संपादक : मोहन अवस्थी
    • रचनाकार : विश्वंभरनाथ शर्मा कौशिक’
    • प्रकाशन : सरस्वती प्रेस
    • संस्करण : 1969

    संबंधित विषय

    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    ‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    जश्न-ए-रेख़्ता | 13-14-15 दिसम्बर 2024 - जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम, गेट नंबर 1, नई दिल्ली

    टिकट ख़रीदिए