Font by Mehr Nastaliq Web

विदाई-संभाषण

vidai sambhashan

बालमुकुंद गुप्त

बालमुकुंद गुप्त

विदाई-संभाषण

बालमुकुंद गुप्त

और अधिकबालमुकुंद गुप्त

    नोट

    प्रस्तुत पाठ एनसीईआरटी की कक्षा ग्यारहवीं के पाठ्यक्रम में शामिल है।

    माई लार्ड! अंत को आपके शासन-काल का इस देश में अंत हो गया। अब आप इस देश से अलग होते हैं। इस संसार में सब बातों का अंत है। इससे आपके शासन-काल का भी अंत होता, चाहे आपकी एक बार की कल्पना के अनुसार आप यहाँ के चिरस्थायी वायसराय भी हो जाते। किंतु इतनी जल्दी वह समय पूरा हो जाएगा, ऐसा विचार न आप ही का था, न इस देश के निवासियों का। इससे जान पड़ता है कि आपके और यहाँ के निवासियों के बीच में कोई तीसरी शक्ति और भी है, जिस पर यहाँ वालों का तो क्या, आपका भी क़ाबू नहीं है।

    बिछड़न-समय बड़ा करुणोत्पादक होता है। आपको बिछड़ते देखकर आज हृदय में बड़ा दुःख है। माई लार्ड! आपके दूसरी बार इस देश में आने से भारतवासी किसी प्रकार प्रसन्न न थे। वह यही चाहते थे कि आप फिर न आवें। पर आप आए और उस से यहाँ के लोग बहुत ही दुखित हुए। वे दिन-रात यही मनाते थे कि जल्द श्रीमान् यहाँ से पधारें। पर अहो! आज आपके जाने पर हर्ष की जगह विषाद होता है। इसी से जाना कि बिछड़न-समय बड़ा करुणोत्पादक होता है, बड़ा पवित्र, बड़ा निर्मल और कोमल होता है। वैर-भाव छूटकर शांत रस का आविर्भाव उस समय होता है।

    माई लार्ड का देश देखने का इस दीन ब्राह्मण को कभी इस जन्म में सौभाग्य नहीं हुआ। इससे नहीं जानता कि वहाँ बिछड़ने के समय लोगों का क्या भाव होता है। पर इस देश के पशु-पक्षियों को भी बिछड़ने के समय उदास देखा है। एक बार शिवशंभू के दो गायें थीं। उनमें एक अधिक बलवाली थी। वह कभी-कभी अपने सींगों की टक्कर से दूसरी कमज़ोर गाय को गिरा देती थी। एक दिन वह टक्कर मारने वाली गाय पुरोहित को दे दी गई। देखा कि दुर्बल गाय उसके चले जाने से प्रसन्न नहीं हुई, वरंच उस दिन वह भूखी खड़ी रही, चारा छुआ तक नहीं। माई लार्ड! जिस देश के पशुओं की बिछड़ते समय यह दशा होती है, वहाँ के मनुष्यों की कैसी दशा हो सकती है, इसका अंदाज़ा लगाना कठिन नहीं है।

    आगे भी इस देश में जो प्रधान शासक आए, अंत में उनको जाना पड़ा। इससे आपका जाना भी परंपरा की चाल से कुछ अलग नहीं है, तथापि आपके शासन-काल का नाटक घोर दुखांत है, और अधिक आश्चर्य की बात यह है कि दर्शक तो क्या, स्वयं सूत्रधार भी नहीं जानता था कि उसने जो खेल सुखांत समझकर खेलना आरंभ किया था, वह दुखांत हो जावेगा। जिसके आदि में सुख था, मध्य में सीमा से बाहर सुख था, उसका अंत ऐसे घोर दुःख के साथ कैसे हुआ? आह! घमंडी खिलाड़ी समझता है कि दूसरों को अपनी लीला दिखाता हूँ। किंतु पर्दे के पीछे एक और ही लीलामय की लीला हो रही है, यह उसे ख़बर नहीं!

    इस बार बंबई1 में उतरकर माई लार्ड! आपने जो जो इरादे ज़ाहिर किए थे, ज़रा देखिए तो उनमें से कौन-कौन पूरे हुए। आपने कहा था कि यहाँ से जाते समय भारतवर्ष को ऐसा कर जाऊँगा कि मेरे बाद आने वाले बड़े लाटों को वर्षो तक कुछ करना न पड़ेगा, वह कितने ही वर्षों सुख की नींद सोते रहेंगे। किंतु बात उल्टी हुई। आपको स्वयं इस बार बेचैनी उठानी पड़ी है और इस देश में जैसी अशांति आप फैला चले हैं, उसके मिटाने में आपके पद पर आने वालों को न जाने कब तक नींद और भूख हराम करनी पड़ेगी। इस बार आपने अपना बिस्तर गर्म राख पर रखा है और भारतवासियों को गर्म तवे पर पानी की बूँदों की भाँति नचाया है। आप स्वयं भी ख़ुश न हो सके और यहाँ की प्रजा को सुखी न होने दिया, इसका लोगों के चित्त पर बड़ा ही दुःख है।

    विचारिए तो क्या शान आपकी इस देश में थी और अब क्या हो गई! कितने ऊँचे होकर आप कितने नीचे गिरे! अलिफ़ लैला के अलहदीन ने चिराग़ रगड़कर और अबुलहसन ने बग़दाद के ख़लीफ़ा की गद्दी पर आँख खोलकर वह शान न देखी, जो दिल्ली-दरबार में आपने देखी। आपकी और आपकी लेडी की कुर्सी सोने की थी और आपके प्रभु महाराज के छोटे भाई और उनकी पत्नी की चाँदी की। आप दाहिने थे, वह बाएँ, आप प्रथम थे वह दूसरे। इस देश के सब रईसों ने आपको सलाम पहले किया और बादशाह के भाई को पीछे। जुलूस में आपका हाथी सबसे आगे और सबसे ऊँचा था; हौदा, चँवर, छत्र आदि सामान सबसे बढ़-चढ़कर थे। सारांश यह कि ईश्वर और महाराज एडवर्ड के बाद इस देश में आप ही का दरजा था। किंतु अब देखते हैं कि जंगी लाट के मुक़ाबले में आपने पटखनी खाई, सिर के बल नीचे आ रहे! आप के स्वदेश में वही ऊँचे माने गए, आपको साफ़ नीचा देखना पड़ा! पद-त्याग की धमकी से भी ऊँचे न हो सके।

    आप बहुत धीर-गंभीर प्रसिद्ध थे। उस सारी धीरता-गंभीरता का आपने इस बार कौंसिल में बेक़ानूनी क़ानून पास करते और कनवोकेशन में वक्तृता देते समय दीवाला निकाल दिया। यह दीवाला तो इस देश में हुआ। उधर विलायत में आपके बार-बार इस्तीफ़ा देने की धमकी ने प्रकाश कर दिया कि जड़ हिल गई है। अंत में वहाँ भी आपको दिवालिया होना पड़ा और धीरता-गंभीरता के साथ दृढ़ता को भी तिलांजलि देनी पड़ी। इस देश के हाकिम आपकी ताल पर नाचते थे, राजा-महाराजा डोरी हिलाने से सामने हाथ बाँधे हाज़िर होते थे। आपके एक इशारे में प्रलय होती थी। कितने ही राजों को मट्टी के खिलौने की भाँति आपने तोड़-फोड़ डाला। कितने ही मट्टी-काठ के खिलौने आपकी कृपा के जादू से बड़े-बड़े पदाधिकारी बन गए। आपके एक इशारे में इस देश की शिक्षा पायमाल हो गई, स्वाधीनता उड़ गई। बंग देश के सिर पर आरह रखा गया। आह, इतने बड़े माई लार्ड का यह दरजा हुआ कि एक फ़ौजी अफ़सर उनके इच्छित पद पर नियत न हो सका और उनको उसी ग़ुस्से के मारे इस्तीफ़ा दाख़िल करना पड़ा, वह भी मंज़ूर हो गया। उनका रखाया एक आदमी नौकर न रखा गया, उल्टा उन्हीं के निकल जाने का हुक्म मिला!

    जिस प्रकार आपका बहुत ऊँचे चढ़कर गिरना यहाँ के निवासियों को दुखित कर रहा है, गिरकर पड़ा रहना उससे भी अधिक दुखित करता है। आपका पद छूट गया तथापि आपका पीछा नहीं छूटा है। एक अदना क्लर्क जिसे नौकरी छोड़ने के लिए एक महीने का नोटिस मिल गया हो नोटिस की अवधि को बड़ी घृणा से काटता है। आपको इस समय अपने पद पर रहना कहाँ तक पसंद है—यह आप ही जानते होंगे। अपनी दशा पर आपको कैसी घृणा आती है, इस बात के जान लेने का इन देशवासियों को अवसर नहीं मिला, पर पतन के पीछे इतनी उलझन में पड़ते उन्होंने किसी को नहीं देखा।

    माई लार्ड, एक बार अपने कामों की ओर ध्यान दीजिए। आप किस काम को आए थे और क्या कर चले। शासक-प्रजा के प्रति कुछ तो कर्तव्य होता है, यह बात आप निश्चय मानते होंगे। सो कृपा करके बतलाइए, क्या कर्तव्य आप इस देश की प्रजा के साथ पालन कर चले! क्या आँख बंद करके मनमाने हुक्म चलाना और किसी की कुछ न सुनने का नाम ही शासन है? क्या प्रजा की बात पर कभी कान न देना और उसको दबाकर उसकी मर्ज़ी के विरुद्ध ज़िद्द से सब काम किए चले जाना ही शासन कहलाता है? एक काम हो ऐसा बतलाइए, जिसमें आपने ज़िद्द छोड़कर प्रजा की बात पर ध्यान दिया हो। कैसर2 और ज़ार3 भी घेरने-घोटने से प्रजा की बात सुन लेते हैं पर आप एक मौक़ा तो ऐसा बताइए जिसमें किसी अनुरोध या प्रार्थना सुनने के लिए प्रजा के लोगों को आपने अपने निकट फटकने दिया हो और उनकी बात सुनी हो। नादिरशाह4 ने जब दिल्ली में क़तलेआम किया तो आसिफ़ज़ाह के तलवार गले में डालकर प्रार्थना करने पर उसने क़तलेआम उसी दम रोक दिया। पर आठ करोड़ प्रजा के गिड़गिड़ाकर विच्छेद न करने की प्रार्थना पर आपने ज़रा भी ध्यान नहीं दिया। इस समय आपकी शासन-अवधि पूरी हो गई है तथापि बंग-विच्छेद किए बिना घर जाना आपको पसंद नहीं है! नादिर से भी बढ़कर आपकी ज़िद्द है। क्या आप समझते हैं कि आपकी ज़िद्द से प्रजा के जी में दुःख नहीं होता? आप विचारिए तो एक आदमी को आपके कहने पर पद न देने से आप नौकरी छोड़े जाते हैं, इस देश की प्रजा को भी यदि कहीं जाने की जगह होती, तो क्या वह नाराज़ होकर इस देश को छोड़ न जाती?

    यहाँ की प्रजा ने आपकी ज़िद्द का फल यहीं देख लिया। उसने देखा लिया कि आपकी जिस ज़िद्द ने इस देश की प्रजा को पीड़ित किया, आपको भी उसने कम पीड़ा न दी, यहाँ तक कि आप स्वयं उसका शिकार हुए। यहाँ की प्रजा वह प्रजा है, जो अपने दुःख और कष्टों की अपेक्षा परिणाम का अधिक ध्यान रखती है। वह जानती है कि संसार में सब चीज़ों का अंत है। दुःख का समय भी एक दिन निकल जावेगा, इसी से सब दुःखों को झेलकर, पराधीनता सहकर भी वह जीती है। माई लार्ड! इस कृतज्ञता की भूमि की महिमा आपने कुछ न समझी और न यहाँ की दीन प्रजा की श्रद्धा-भक्ति अपने साथ ले जा सके, इसका बड़ा दुःख है।

    इस देश के शिक्षितों को तो देखने की आपकी आँखों को ताब नहीं। अनपढ़-गूँगी प्रजा का नाम कभी-कभी आपके मुँह से निकल जाया करता है। उसी अनपढ़ प्रजा में नर सुलतान नाम के एक राजकुमार का गीत गाया जाता है। एक बार अपनी विपद के कई साल सुलतान ने नरवरगढ़ नाम के एक स्थान में काटे थे। वहाँ चौकीदारी से लेकर उसे एक ऊँचे पद तक काम करना पड़ा था। जिस दिन घोड़े पर सवार होकर वह उस नगर से विदा हुआ, नगर-द्वार से बाहर आकर उस नगर को जिस रीति से उसने अभिवादन किया था, वह सुनिए। उसने आँखों में आँसू भरकर कहा, प्यारे नरवरगढ़! मेरा प्रणाम ले, आज मैं तुझसे जुदा होता हूँ। तू मेरा अन्नदाता है। अपनी विपद के दिन मैंने तुझमें काटे हैं। तेरे ऋण का बदला मैं ग़रीब सिपाही नहीं दे सकता। भाई नरवरगढ़! यदि मैंने जानबूझकर एक दिन भी अपनी सेवा में चूक की हो, यहाँ की प्रजा की शुभ चिंता न की हो, यहाँ की स्त्रियों को माता और बहन की दृष्टि से न देखा हो तो मेरा प्रणाम न ले, नहीं तो प्रसन्न होकर एक बार मेरा प्रणाम ले और मुझे जाने की आज्ञा दे!'' माई लार्ड! जिस प्रजा में ऐसे राजकुमार का गीत गाया जाता है, उसके देश से क्या आप भी चलते समय कुछ संभाषण करेंगे? क्या आप कह सकेंगे, अभागे भारत! मैंने तुझसे सब प्रकार का लाभ उठाया और तेरी बदौलत वह शान देखी, जो इस जीवन में असंभव है। तूने मेरा कुछ नहीं बिगाड़ा; पर मैंने तेरे बिगाड़ने में कुछ कमी न की। संसार के सबसे पुराने देश! जब तक मेरे हाथ में शक्ति थी, तेरी भलाई की इच्छा मेरे जी में न थी। अब कुछ शक्ति नहीं है, जो तेरे लिए कुछ कर सकूँ। पर आशीर्वाद करता हूँ कि तू फिर उठे और अपने प्राचीन गौरव और यश को फिर से लाभ करे। मेरे बाद आने वाले तेरे गौरव को समझें।'' आप कर सकते हैं और यह देश आपकी पिछली सब बातें भूल सकता है, पर इतनी उदारता माई लार्ड में कहाँ? 

    वीडियो
    This video is playing from YouTube

    Videos
    This video is playing from YouTube

    बालमुकुंद गुप्त

    बालमुकुंद गुप्त

    स्रोत :
    • पुस्तक : आरोह (भाग-1) (पृष्ठ 46)
    • रचनाकार : बालमुकुंद गुप्त
    • प्रकाशन : एन.सी. ई.आर.टी
    • संस्करण : 2022
    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    ‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    जश्न-ए-रेख़्ता | 13-14-15 दिसम्बर 2024 - जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम, गेट नंबर 1, नई दिल्ली

    टिकट ख़रीदिए