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मिट्टी की मूर्तियाँ

mitti ki murtiyan

जया विवेक

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मिट्टी की मूर्तियाँ

जया विवेक

और अधिकजया विवेक

    नोट

    प्रस्तुत पाठ एनसीईआरटी की कक्षा सातवीं के पाठ्यक्रम में शामिल है।

    मिट्टी से विभिन्न तरह के खिलौने बनाना तुममें से कई लोग जानते होगे। कईयों का तो यह प्रिय खेल भी होगा। पर क्या तुम जानते हो कि मिट्टी के खिलौने या चीज़ें बनना कब शुरू हुआ? इतिहास में तुमने पढ़ा होगा कि सिंधु घाटी की सभ्यता में मिट्टी से बनी और पकी हुई कुछ मूर्तियाँ खुदाई के दौरान मिली हैं। सिंधु घाटी की सभ्यता लगभग 2500-3000 वर्ष पुरानी मानी जाती है। सोचो केवल मिट्टी से बनी ये मूर्तियाँ इतने लंबे समय तक कैसे सुरक्षित रही होंगी? जबकि मिट्टी तो पानी में घुल जाती है। वास्तव में मिट्टी से बनी और आग में पकी मूर्तियाँ या वस्तुएँ पानी में नहीं घुलती हैं। ऐसी मूर्तियों को मृणमूर्ति कहा जाता है। पकाने से मिट्टी एक तरह से मृत हो जाती है यानी पकने के बाद उसका पुनः उपयोग नहीं किया जा सकता। वास्तव में मिट्टी की मूर्तियों का इतिहास उतना ही पुराना है जितना मानव का मानव के पास अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त करने का चित्र और मूर्ति के अलावा शायद अन्य कोई माध्यम नहीं था।

    आओ देखते हैं कि मिट्टी से मूर्ति बनाने की व्यवस्थित प्रक्रिया क्या है। मिट्टी से मूर्तियाँ दो तरह से बनाई जा सकती हैं। एक तरीक़ा है केवल हाथ से बनाना। इस तरीक़े से ठोस, पोली तथा उभरी (रिलीफ़) मूर्तियाँ बनाई जा सकती हैं। दूसरा तरीक़ा है चॉक की मदद से बनाना। चॉक पर कुम्हार को मटके या कुल्हड़ बनाते हुए तो तुमने देखा ही होगा। क्या कभी इसके लिए मिट्टी तैयार करते हुए भी देखा है?

     

    मिट्टी तैयार करना

    हर जगह अलग-अलग तरह की मिट्टी मिलती है, कहीं चिकनी, कहीं रेतीली, कहीं लाल, तो कहीं पीली, सफ़ेद, काली मिट्टी मूर्ति बनाने लायक मिट्टी तैयार करने के लिए उसमें दूसरी मिट्टी मिलानी पड़ती है। जैसे मिट्टी चिकनी है तो उसमें थोड़ी रेतीली मिट्टी राख या रेत मिलानी पड़ेगी।

    मिट्टी को साफ़ करके (यानी उसमें से कंकड़, पत्थर या और कोई कचरा आदि हो तो निकाल दो) किसी बर्तन, होद या तसले में पानी के साथ गला दो मिट्टी जब पानी में घुल जाए तो उसे एक-दो बार नीचे तक हिलाकर छोड़ दो। जिससे अगर बारीक कंकड़ वग़ैरा रह गए हों तो वे भी नीचे बैठ जाएँ। अब बर्तन को एकाध दिन के लिए छोड़ दो।

    एक-दो दिन बाद ऊपर-ऊपर की मिट्टी किसी दूसरे बर्तन में निकाल लो। थोड़ी देर बाद उस मिट्टी का पानी ऊपर आ जाएगा। बर्तन को तिरछा करके इस पानी को निकाल दो। मिट्टी ज़्यादा गीली हो तो साफ़ जगह में फैला दो। अगर लिपी हुई ज़मीन होगी तो पानी सोख लेगी। कुछ समय बाद मिट्टी को हाथ में लेकर गोली जैसी बनाकर देखो, अगर गोली बनने लगे तो समझो अपने काम लायक मिट्टी तैयार हो गई है।

    अब सारी मिट्टी को समेट लो और पत्थर की सिल पर रखकर उसे लकड़ी के चपटे हथौड़े से कूटो। साथ-ही-साथ मिट्टी को ऊपर नीचे करते रहो। बीच-बीच में हाथ से आटे की तरह माड़ते भी जाओ। मिट्टी की कुटाई अच्छी प्रकार होनी चाहिए। अगर कुटाई अच्छी नहीं होगी तो मूर्ति चटक जाएगी और पकते समय टूट भी सकती है। कूट कर तैयार हुई मिट्टी को गीले कपड़े या बोरी में लपेटकर पॉलीथीन से ढक दो ताकि मिट्टी सूख न पाए। अगर सूख गई तो तुम्हारी सारी मेहनत बेकार चली जाएगी।

    अब हमें यह तय करना है कि हम किस तरीक़े से मूर्ति बनाना चाहते हैं। चाक पर बनाने के लिए तो चाक न केवल चाहिए होगा वरन् उसे कैसे चलाते हैं यह भी सीखना होगा। अपने गाँव के कुम्हार के पास जाकर तुम चाक चलाना सीख सकते हो। बहरहाल हम तुम्हें दोनों ही तरीक़े बताएँगे। तुम ख़ुद करके देखना कौन सा तरीक़ा सुविधाजनक या आसान है।

    मूर्ति बनाते समय हमें कुछ छोटी-मोटी चीज़ों की ज़रूरत पड़ेगी। जैसे बाँस के टुकड़े, जिन्हें चाकू से छीलकर अलग-अलग आकार दिया जा सके। बाँस के इन टुकड़ों की मदद से हम मूर्ति में से अनावश्यक मिट्टी खुरच सकते हैं। इनकी मदद से मूर्ति में कोई अंग उभार सकते हैं। इसके अलावा पुराना चाकू, लकड़ी आदि की भी आवश्यकता होगी।

     

    हाथ से मूर्ति बनाना

    हाथ से तीन तरह की मूर्तियाँ बनाई जा सकती हैं। ठोस, पोली तथा रिलीफ़ (उभरी हुई)।

     

    ठोस मूर्ति

    पहले ठोस मूर्ति की बात करें। यह सबसे सरल तथा आसान है। पर इस तरह की मूर्तियाँ ज़्यादा बड़ी नहीं बना सकते। अधिक से अधिक एक बिलांस यानी 15-20 सेंटीमीटर ऊँची।

    अच्छा बताओ सबसे पहले क्या बनाएँ। अरे यह क्या...कोई बिल्ली बनाना चाहता है, कोई कुत्ता, कोई शेर, गधा, हाथी, घोड़ा, पक्षी...! चलो ऐसा करते हैं घोड़ा बनाते हैं। इसके बाद तुम स्वयं अन्य मनचाही चीज़ें बनाना।

    तैयार मिट्टी से रोटी की लोई के बराबर दो हिस्से लो। लोई जैसे दो गोले बनाओ। अब दोनों गोलों को एक-एक करके पत्थर या पट्टे पर रखकर लंबा करो। जब वह एक बिलांस लंबे हो जाएँ तो दोनों को चित्रानुसार बीच से जोड़ते हुए खड़ा करो। अब थोड़ी-सी मिट्टी और लो और इस मिट्टी से घोड़े के सिर का आकार बनाकर जोड़ पर लगा दो। मिट्टी को थोड़ा सा दबाकर दोनों तरफ़ कान बना दो। तीली या सींक से छेद करके आँखें बना दो। लो बन गया अपना घोड़ा! भई ये एकदम सचमुच के घोड़े जैसा तो नहीं दिखेगा। इस तरीके से तुम लगभग सभी चौपाए जानवर बना सकते हो और मानव आकृतियाँ भी बना सकते हो। पर छोटी-छोटी ही ठोस रूप में ज़्यादा बड़ी बनाने से सूखते समय या पकाते समय चटकने या टूटने का अंदेशा रहता है।

     

    पोली मूर्ति

    आओ अब पोली मूर्ति बनाने का तरीक़ा देखें।

    पोली मूर्ति चाहे जितनी बड़ी बना सकते हैं, बशर्ते उसे सँभाला जा सके यानी ऐसा न हो कि हम बाहर का हिस्सा मिला रहे हैं और अंदर की मिट्टी गिर रही है या इतनी ज़ोर से ठोक रहे हैं कि कहीं और से टेड़ा हो रहा है। वास्तव में आधार से बहुत ज़्यादा बाहर की ओर निकली हुई चीज़ें इस तरीक़े से नहीं बना सकते। साधारण रूप से एक बार में 3 फुट लंबी मूर्ति बना सकते हैं। सॉकेट सिस्टम से चाहे जितनी ऊँची मूर्ति बना सकते हैं यानी यदि मानव की मूर्ति बनानी हो तो हाथ अलग, पैर अलग, सिर अलग बनाकर फिर उन्हें जोड़ लिया जाता है। इन्हें ज़रूरत पड़ने पर अलग भी किया जा सकता है।

    जैसे पहले मिट्टी की लंबी पट्टियाँ बनाई थीं, वैसी ही आठ-दस पट्टियाँ बना लो। पट्टियों के दोनों सिरे जोड़कर छल्ले बनाओ और इन्हें एक के ऊपर एक रखते जाओ।

    तुम यह तो समझ ही गए होगे कि पट्टियों की लंबाई तथा छल्लों का आकार लगभग समान होना चाहिए। छल्ली से एक लंबा जार जैसी रचना बन जाएगी। अब अंदर की तरफ़ हाथ का सहारा लगाकर बाहर से छल्लों के जोड़ों को मिलाकर एक सा कर लो। इसी तरह बाहर से हाथ का आधार देकर अंदर के जोड़ भी मिला दो। तुमने कुम्हार को मटकों को ठोक-ठोक कर बनाते देखा होगा। उसी तरह कोई बेलनाकार लकड़ी की वस्तु या टूटा बेलन लेकर अंदर से हाथ लगाते हुए बाहर से ठोको और फिर बाहर से हाथ लगाकर अंदर से ठोको ठोकना धीरे-धीरे ही, क्योंकि गीली मिट्टी होने के कारण ठोकने से फैलेगी। इस बात का ध्यान रखना कि ज़्यादा नहीं फैले। क्योंकि ज़्यादा पतला होने पर तुम्हारी जार जैसी रचना टूट सकती है। यह एक-डेढ़ सेंटीमीटर से अधिक पतला नहीं होना चाहिए।

    इस बार हम मानव आकृति बनाते हैं। पर इसमें भी हाथ-पैर सब चिपके हुए होंगे। कहीं दबाकर, कहीं उभारकर, कहीं छेद करके या काटकर इसे आकार देना होगा। इसे कैसे बनाना है यह चित्रों को देखकर समझने की कोशिश करो।

    भारत में कुछ जगह इन मृण मूर्तियों के लिए प्रसिद्ध हैं जैसे बंगाल में बाँकुरा; उत्तर प्रदेश में गोरखपुर; राजस्थान में मुलैला और मध्य प्रदेश में बस्तर। राजस्थान के मुलैला नामक गाँव, जो नाथद्वारा के पास है, के कलाकार रिलीफ़ बनाने के लिए प्रसिद्ध हैं। ये बहुत बड़े-बड़े लगभग 7x7 फुट के बनते हैं, इन्हें पकाया भी जाता है। इन कलाकारों में से कुछ नाम हैं—किशनलाल कुम्हार, खेमराज कुम्हार, लोगरलाला कुम्हार। यहाँ के कुछ कुम्हारों को राष्ट्रीय स्तर के पुरस्कार “मास्टर क्राफ़्ट मैन” भी मिल चुका है। देश के इन आदिवासी और लोक कलाकारों की कृतियाँ विदेशों में भी प्रदर्शित की गई हैं।

     

    उभरी हुई (रिलीफ़) मूर्ति

    अब देखते हैं कि रिलीफ़ यानी उभारदार मूर्ति कैसे बनाई जाती है। ऐसी उभारदार मूर्तियाँ तुमने अपने आसपास घरों में देखी होंगी। इन्हें मिट्टी से बनाने की एक कोशिश हम भी कर देखते हैं

    पहले एक छोटी मूर्ति बनाते हैं। फिर तुम चाहो तो बड़ी या अपने घर की दीवार पर बनाना चाहो तो बना सकते हो। पत्थर या लकड़ी का एक समतल 45x45 सेंटीमीटर का या इससे बड़ा टुकड़ा लो। उस पर तैयार मिट्टी से लगभग 3 सेंटीमीटर मोटी और 30 सेंटीमीटर लंबी और 30 सेंटीमीटर चौड़ी तह जमाओ। चारों तरफ़ से और ऊपर से भी इसे एक सा कर लो। इस पर बनाने के लिए ऐसी चीज़ चुनो जिसमें बहुत ज़्यादा गड्ढे या उभार न हों क्योंकि इसी से आगे चलकर हम तुम्हें प्लास्टर में साँचा बनाना और साँचे से मूर्ति ढालना बताएँगे। तब ऐसी रचना होने से आसानी होगी।

    इस बार हम हाथी चुनते हैं। अब मिट्टी से बनी अपनी प्लेट पर हाथी की उभारदार आकृति बनाते हैं। चाहो तो सींक से हाथी की आकृति प्लेट पर बना लो और फिर मिट्टी लगाना शुरू करो।

    मान लो हाथी का यह चित्र तुमने अपनी मिट्टी की प्लेट पर बनाया। इसके पीछे की तरफ़ वाले जो दो छोटे पैर दिख रहे हैं उसे थोड़ी सी मिट्टी लगाकर उभारो। आगे की तरफ़ जो थोड़े लंबे पैर दिख रहे हैं उन्हें थोड़ी ज़्यादा मिट्टी लगाकर उभारो पेट (धड़) को पैरों से थोड़ा और ऊँचा बनाओ। चेहरे को पेट से थोड़ा कम, पैरों के बराबर उभारो कान के लिए एक पतली सी मिट्टी की तह जमाकर कान का आकार दे दो। छोटी सी पूँछ भी बना दो। आँख के लिए सींक से छेद कर सकते हो, हलका सा बहुत गहरा नहीं।

    अब हाथी के शरीर को गोलाई देना है। यह तुम पुराने चाकू या बाँस की चिकनी पट्टी से दे सकते हो।

    अब हाथ थोड़ा गीला करके इन सबको एक सा करो। एक-दो घंटे इसे गीले कपड़े और पन्नी से ढक कर रख दो मिट्टी थोड़ी कड़क हो जाएगी। फिर चाकू या बाँस से थोड़ा रगड़कर उसे चिकना करो। जब ये मूर्ति चिकनी हो जाए तो इस पर हलकी सी चमक आ जाएगी। (अगर इसे इस तरह से चिकना कर लोगे तो बाद में ढालने में आसानी होगी।)

     

    चॉक की मदद से मूर्ति

    आओ अब देखते हैं कि चॉक पर मूर्ति कैसे बनाते हैं। वास्तव में चॉक पर पूरी मूर्ति नहीं बनती। मूर्ति के कुछ हिस्सों को चॉक पर बनाया जाता है। उदाहरण के लिए हम हाथी की ही बात करें। अगर तुमने चाक चलाना सीख लिया है तो मिट्टी के चार कुल्हड़, एक दिया, दो मटके (एक छोटा, एक बड़ा) बना लो। अब कुल्हड़ों को उल्टा करके इस तरह जमाओ कि वे हाथी के पैरों का रूप ले लें। इन पैरों पर बड़ा मटका रखकर मिट्टी से जोड़ दो छोटे मटके को आगे सिर की जगह रखकर जोड़ो। नीचे से कुछ आधार लगाओ, नहीं तो सिर गिर पड़ेगा। अब दिये को बीच से काटकर दो भागों में बाँट लो। इनसे कान बनाओ। गीली मिट्टी लेकर हाथी की सूँड और पूँछ भी बना लो। आँखों की जगह दो बड़े छेद चवन्नी के आकार के बना दो। देखो कितना प्यारा हाथी बना है। छत्तीसगढ़ के एक इलाक़े में ऐसा हाथी बहुतायत मात्रा में बनाया जाता है। जानते हो, ख़रीददार क्या क़ीमत देते हैं इसकी? क़ीमत के रूप में उसी हाथी के पेट में धान भरकर एक नई चादर से ढक दिया जाता है। यानी जितना बड़ा हाथी होगा कुम्हार को उतनी ही ज़्यादा धान मिलेगी।

    मूर्ति तो बना ली। अब अगर इन्हें ज़्यादा दिन तक सुरक्षित रखना चाहते हो तो पकाना पड़ेगा। तुमने कुम्हार को आवा (भट्टी) लगाते हुए देखा होगा। अपनी बनाई हुई मूर्ति को तुम ख़ुद भी पका सकते हो। कैसे पकाना है, यह हम बता रहे हैं। पर अगर जगह और साधन का जुगाड़ नहीं कर सकते, तो इसे कुम्हार के यहाँ देकर भी पकवा सकते हो। कुम्हार अपने मटके, गमले आदि के साथ तुम्हारी मूर्ति भी पका देगा।

     

    पकाने के पहले सुखाना

    मूर्ति को पकाने के लिए सुखाना पड़ता है। सुखाते समय कुछ सावधानियाँ रखनी होती हैं वरना मूर्ति चटक या टूट सकती है। सूखने में समय भी लगता है। जब तुम्हारी मूर्ति बन जाए तो इसे एकदम खुली जगह में मत छोड़ो। पन्नी से ढककर रखो। पर दिन में तीन-चार बार एक-दो घंटे के लिए खोल भी दो ताकि उसे हवा लग सके। यह भी देखते रहना कि कहीं तुम्हारी मूर्ति में दरार तो नहीं पड़ रही। अगर पड़ रही हो तो उसे बंद करने की कोशिश करो। इस तरह तीन-चार दिन तक सुखाओ। इसके बाद मूर्ति को कपड़े से लपेट दो, धीरे-धीरे मूर्ति सूखने लगेगी।

    दो-तीन दिन बाद कपड़ा और पन्नी हटाकर देखो। अगर ऊपर की सतह सूख गई है तो अब मूर्ति को खुला छोड़ दो। जब तुम्हें लगे कि मूर्ति बिलकुल सूख गई है, तो दिन भर के लिए उसे धूप में रख दो। इससे अगर मूर्ति के भीतर थोड़ी-बहुत नमी रह गई होगी तो वह सूख जाएगी। अब मूर्ति पकने के लिए तैयार है।

     

    पकाने के लिए भट्टी

    मूर्ति पकाने के लिए ऐसा दिन चुनो जब मौसम बिल्कुल साफ़ हो और बारिश होने का अंदेशा न हो। भट्टी लगाने के लिए 20-25 कंडे, लकड़ी के छोटे-छोटे टुकड़े, सूखी घास (पैकिंग में काम आने वाला भूसा या पुआल), मिट्टी और एक बालटी पानी की जुगाड़ करो। अब खुली ज़मीन पर एक इतना बड़ा गड्ढा खोदो कि जिसमें तुम्हारी मूर्ति आसानी से खड़ी हो सके। यह एक बिलांस यानी क़रीब आधा फुट गहरा गड्ढा हो। गड्ढे में कंडे के टुकड़ों की एक तह बिछा दो और उस पर अपनी मूर्ति खड़ी कर दो। अब मूर्ति को चारों तरफ़ से लकड़ी के टुकड़ों तथा कंडों के टुकड़ों से ढक दो। बीच-बीच में पुआल भी लगा दो। अब चारों तरफ से बड़े-बड़े कंडे लगा दो और ऊपर से पुआल। मिट्टी को पानी में घोलकर गाढ़ा सा घोल बनाओ। इस घोल की एक मोटी परत पुआल के ऊपर चढ़ा दो यानी लीप दो। हाँ, दो-तीन जगह धुआँ निकलने व एक जगह नीचे की तरफ़ आग लगाने के लिए छेद छोड़ दो। तो इस तरह तुम्हारी भट्टी तैयार है। कागज़ की एक पुँगी बना लो और उसमें आग लगाकर नीचे वाले छेद से धीरे-धीरे अंदर डालो। जब अंदर का पुआल व कंडे जलने लगें तो उसे छोड़ दो। कंडे धीरे-धीरे जलेंगे। अब पाँच-छह घंटे के लिए इसे भूल जाओ। यह अपने आप धीरे-धीरे जलेगा और बुझेगा। तुम इसे बिलकुल मत छेड़ना, न जल्दी जलाने या बुझाने की कोशिश करना, वरना गड़बड़ हो जाएगी। पाँच-छः घंटे बाद जब भट्टी ठंडी हो जाए तब इसे धीरे-धीरे खोलना। मूर्ति को एकदम उतावली में हाथ मत लगाना, वह गर्म होगी। मूर्ति को अपने आप ठंडी होने देना, पानी डालकर ठंडी मत करना। तो लो तुम्हारी मूर्ति तैयार है अगर इसे सँभालकर रखो तो यह लंबे समय तक रह सकती है।

    एक और बात, मूर्ति पकने के बाद हल्के लाल रंग की होगी, जैसा मटके का रंग होता है। इसे ज़्यादा लाल करना चाहो तो गेरू से कर सकते हो। वैसे तो तुम अपने मन चाहे रंग ऊपर से लगा सकते हो। इसमें एक मज़ेदार बात है, ये मूर्तियाँ पकने के बाद काले रंग की भी हो सकती हैं, मगर कैसे? यह हम तुम्हारे लिए छोड़ते हैं। तुम्हीं करके देखो और हमें भी बताओ पर ऊपर से काला रंग मत कर लेना।

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    जया विवेक

    जया विवेक

    स्रोत :
    • पुस्तक : दूर्वा (भाग-2) (पृष्ठ 87-93)
    • रचनाकार : जया विवेक
    • प्रकाशन : एनसीईआरटी
    • संस्करण : 2022
    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

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