कहा जाता है कि 15 साल की उम्र में मास्टर मदन को किसी ने दूध में पारा खिला दिया जिससे उनकी मौत हो गई
जो लोग जन्म-परंपरा को नहीं मानते—जो लोग इस बात पर विश्वास नहीं करते कि पूर्व-जन्म के संस्कार बीज रूप से बने रहते हैं और समुचित उत्तेजना पाते ही फूलने और फलने लगते हैं—उन्हें मास्टर मदन को देखना चाहिए, उसका गाना सुनना चाहिए और यह सोचना चाहिए कि इस शिशु में उत्पन्न हुई इस अलौकिक गान-शक्ति का कारण क्या है। तीन वर्ष के बालक अच्छी तरह बातचीत भी नहीं कर सकते। किसी अपरिचित आदमी को देखते ही भागकर माँ की गोद में छिपे रहते है, और पाँच वर्ष के होने पर भी क, ख, ग, तक का भी शुद्ध-शुद्ध उच्चारण नहीं कर सकते। पर मास्टर मदन को देखिए। यह शिशु इस समय केवल 5 वर्ष का है। पर गाने में यह इतना प्रवीण है कि यदि मियां तानसेन भी इसे गाते सुनते तो इसे गोद में उठा लेते और प्रसन्नता से पागल होकर नाचने भी लगते।
मास्टर मदन का पूरा नाम मदनमोहन चटर्जी है। यह अद्भुत बालक कलकत्ते की एमहस्ड स्ट्रीट में रहने वाले बाबू वसंतकुमार चटर्जी का पुत्र है। वसंत बाबू को संगीत-विद्या से बड़ा प्रेम है। आप हारमोनियम बहुत अच्छा बजाते हैं। एक दिन की बात सुनिए। मदन उस समय केवल दो वर्ष नौ महीना का था। वसंत बाबू ने देखा कि मदन बड़े मज़े में गा रहा है। आवश्यकतानुसार कभी वह अपनी आवाज़ को धीमी कर देता है और कभी ख़ूब उच्च स्वर से गाने लगता है। उन्हें यह तमाशा देखकर बड़ा आश्चर्य हुआ। उसकी परीक्षा करने के लिए उन्होंने हारमोनियम बजाना शुरू किया और मदन से कहा, गाओ। मदन ने हारमोनियम पर गाया। ख़ूब अच्छा गाया। ताल-स्वर में उसने कहीं भी भूल न की। वसंत बाबू अवाक् हो गए। उन्होंने समझा, यह शिशु उस जन्म का कोई प्रसिद्ध गायक है। संगीत-विद्या का बीज इसके हृदय में जो संस्कार-रूप से विद्यमान था वह मेरे हारमोनियम का सस्वर वादन सुनकर उग आया।
1908 ईसवी की देवी-पूजा का उत्सव बाबू एच. सी. राय चौधरी के मकान पर हुआ। यह महाशय कलकत्ते की मल्लिक लेन में रहते हैं। उस समय मदन तीन वर्ष दो महीने का था। पिता के साथ मदन भी इस उत्सव में गया। सैकड़ों प्रतिष्ठित पुरुषों के सामने वहाँ उसका पहला सर्वसाधारण गाना हुआ। मदन ने कई एक ऐसे गाने गाए जिन्हें गाना बड़ा कठिन काम था, जिन्हें केवल अभ्यस्त और अच्छे गाने वाले ही गा सकते थे। इस तरह सबको प्रसन्न करके और सबका आशीर्वाद लेकर मास्टर मदन हँसता हुआ अपने घर आया। बस इसी समय से मास्टर मदन के इस अपूर्व करतब की प्रशंसा आरंभ हुई। उसकी प्रसिद्धि दिन-दिन बढ़ने लगी। बड़े-बड़े उत्सवों और हुआ समारोहों में उसे निमंत्रण दिया जाने लगा और वह श्रोताओं को अपने गान से मुग्ध करने लगा।
1909 के अगस्त में अलीपुर जाइंट मैजिस्ट्रेट, मिस्टर डी. एल. राय के मकान पर मदन ने अपना सुरीला गाना सुनाया। उस समय मदन का वय केवल चार वर्ष का था। कलकत्ते के कितने ही सम्मान्य श्रोता उपस्थित थे। गायक था अकेला मदन पर उसने सबको अपने मनोहर और ताल-स्वर-विशुद्ध गान से प्रसन्न और पुलकित कर दिया। दस-दस पंद्रह-पंद्रह वर्ष तक अभ्यास करने वाले गायकों और गायिकाओं से जो बात नहीं हो सकती वह मास्टर मदन ने कर दिखाई।
मार्च 1910 में कलकत्ते के राय सिताबचंद बहादुर ने अपने स्थान पर सायंकाल एक भोज दिया। महाराजा कासिम बाज़ार, महाराजा निशिपुरी, माननीय बाबू राधाचरणपाल आदि अनेक बहुत बड़े-बड़े सज्जन निमंत्रित हुए। इन सबका मनोरंजन करने के लिए आहूत हुआ मास्टर मदन। इस चार वर्ष के बालक को पिता वसंत बाबू गोद में लेकर यहाँ पहुँचे। उसे देखकर उपस्थित सज्जनों को उसके गायक होने में संदेह होने लगा। चार वर्ष का बालक कहीं गाता है! यह उम्र खेलने-कूदने, रोने और शोरगुल मचाने की है, गाने की नहीं। बहुतेरे सज्जनों ने यहाँ तक विकल्प किया कि इतनी बड़ी सभा को देखकर यह बालक गाने के बदले ज़रूर रोने लगेगा। पर इस तरह के सारे संकल्प-विकल्पों को मदन ने भ्रमात्मक सिद्ध कर दिया। डरना और रोना तो दूर रहा, उसने उस उतने बड़े समाज को बड़ी बेपरवाही से देखा। हारमोनियम बजने लगा। बालक मदन ने भी आलाप आरंभ किया। सामाजिकों का आश्चर्य उत्थित होकर बढ़ने लगा। मदन भी गान का आरंभ करके सबको मुग्ध करने लगा। उसकी स्पष्ट, मधुर और सुरीली आवाज़ को सुनकर श्रोता जन अलौकिक आनंद-सागर में निमग्न होने लगे। मदन का निर्दोष, स्वर-ताल पूर्ण और शास्त्र सम्मत गाना सुनकर सब लोग बड़े ही प्रसन्न हुए। सबके हृदय में यही भावना उद्भूत हुई कि इतनी थोड़ी उम्र में इतना अच्छा गाना ईश्वर की कृपा और पूर्वजन्म के संचित संस्कार के बिना शक्य नहीं।
सितंबर 1910 में मास्टर मदन की पाँचवीं वर्षगाँठ थी। इस उपलक्ष्य में मदन के पिता ने एक उत्सव किया। कलकते के बड़े-बड़े धनी-मानी उपाधि-धारी प्रतिष्ठित पुरुष वसंत बाबू की 'बाड़ी' से पधारे। मदन का सुर श्रोतृ सुखद है और रूप नेत्र सुखद। गौर वर्ण मदन रेशमी कोट, मख़मली टोपी पहनकर और कई एक सोने के पदक छाती पर लटकाकर सबके सामने उपस्थित हुआ। सर गुरुदास बैनर्जी के चरणों पर गिरकर उसने उन्हें माला पहनाई। उन्होंने आशीर्वाद दिया जिस तरह तुम इन इतने सज्जनों को प्रसन्न कर रहे हो उसी तरह परमेश्वर प्रसन्न करेगा। मदन की समर्पित माला को सर गुरुदास चलते समय उसी को प्रसादस्वरूप पहना गए। इस अवसर पर मदन की तबीयत अच्छी न थी। वह बहुत अशक्त था। बीमारी से हाल ही में उठा था। तथापि उसने कई चीज़ें गाई। सुनकर सब लोग प्रेमानंद से पुलकित हो उठे। उसके छोटे-छोटे हाथों का यथासमय उठना और उसका सशास्त्र और सस्वर गाना एक अद्भुत दृश्य था। जिन्होंने मदन को गाते देखा है वे कहते हैं कि उस श्रवण और दर्शन का आनंद वर्णन की वस्तु नहीं। उसका अनुभव देखकर ही हो सकता है। उसे सुनने ही से यह जाना जा सकता है कि उसमें क्या जादू है—उससे कितना और किस तरह का आनंद प्राप्त हो सकता है।
मदन एक अलौकिक बालक है। संगीत-विद्या में मदन की बराबरी करने वाला अन्य बालक संसार में आज तक और कहीं उत्पन्न नहीं हुआ। नामी-नामी गवैयों की यही राय है। योरप और अमेरिका तक अख़बारों में मदन की प्रशंसा से पूर्ण लेख मिलते हैं। उनके लेखक भी यही बात कहते हैं। उनका भी यही मत है कि मदन अपना सानी नहीं रखता। वह भारत का भूषण है। मदन ने यद्यपि अभी तक वर्णमाला अच्छी तरह नहीं सीखी तथापि उसे कोई एक सौ गीत कंठाग्र हैं और उन सबको वह विशुद्धता-पूर्वक गाता है। इस समय तक उसे एक चाँदी का ओर पंद्रह सोने के पदक मिल चुके है। मदन-चिरंजीव।
[अप्रैल, 1911 की 'सरस्वती' में प्रकाशित]
jo log janm parampara ko nahin mante—jo log is baat par vishvas nahin karte ki poorv janm ke sanskar beej roop se bane rahte hain aur samuchit uttejna pate hi phulne aur phalne lagte hain—unhen mastar madan ko dekhana chahiye, uska gana sunna chahiye aur ye sochna chahiye ki is shishu mein utpann hui is alaukik gaan shakti ka karan kya hai. teen varsh ke balak achchhi tarah baat cheet bhi nahin kar sakte. kisi aprichit adami ko dekhte hi bhagkar maan ki god mein chhipe rahte hai, aur paanch varsh ke hone par bhi ka, kha, ga, tak ka bhi shuddh shuddh uchcharan nahin kar sakte. par mastar madan ko dekhiye. ye shishu is samay keval 5 varsh ka hai. par gane mein ye itna prveen hai ki yadi miyan tansen bhi ise gate sunte to ise god mein utha lete aur prasannata se pagal hokar nachne bhi lagte.
mastar madan ka pura naam madanmohan chaitarji hai. ye adbhut balak kalkatte ki emhasD street mein rahne vale babu vasantakumar chaitarji ka putr hai. vasant babu ko sangit vidya se baDa prem hai. aap harmoniyam bahut achchha bajate hain. ek din ki baat suniye. madan us samay keval do varsh nau mahina ka tha. vasant babu ne dekha ki madan baDe maje mein ga raha hai. avashyaktanusar kabhi wo apni avaz ko dhimi kar deta hai aur kabhi khoob uchch svar se gane lagta hai. unhen ye tamasha dekhkar baDa ashcharya hua. uski pariksha karne ke liye unhonne harmoniyam bajana shuru kiya aur madan se kaha, gao. madan ne harmoniyam par gaya. khoob achchha gaya. taal svar mein usne kahin bhi bhool na ki. vasant babu avak ho ge. unhonne samjha, ye shishu us janm ka koi prasiddh gayak hai. sangit vidya ka beej iske hriday mein jo sanskar roop se vidyaman tha wo mere harmoniyam ka sasvar vadan sunkar ug aaya.
1908 iisvi ki devi puja ka utsav babu ech० see० raay chaudhari ke makan par hua. ye mahashay kalkatte ki mallik len mein rahte hain. us samay madan teen varsh ke samne vahan uska pahla sarvsadhran gana hua. madan ne kai ek aise gane gaye do mahine ka tha. pita ke saath madan bhi is utsav mein gaya. saikDon pratishthit purushon jinhen gana baDa kathin kaam tha jinhen keval abhyast aur achchhe gane vale hi ga sakte the. is tarah sabko prasann karke aur sabka ashirvad lekar mastar madan prshansa arambh hui. uski prasiddhi din din baDhne lagi. baDe baDe utsvon aur hua samarohon mein use nimantran diya jane laga aur wo shrotaon ko apne gaan se mugdh karne laga.
1909 ke agast mein alipur jaint maijistret, mistar Dee० el० raay ke makan par madan ne apna surila gana sunaya. us samay madan ka vay keval chaar varsh ka tha. kalkatte ke kitne hi sammanya shrota upasthit the. gayak tha akela madan par usne sabko apne manohar aur taal svar vishuddh gaan se prasann aur pulkit kar diya. das das pandrah pandrah varsh tak abhyas karne vale gaykon aur gayikaon se jo baat nahin ho sakti wo mastar madan ne kar dikhai.
march 1910 mein kalkatte ke raay sitabchand bahadur ne apne sthaan par sayan kaal ek bhoj diya. maharaja kasim bazar, maharaja nishipuri, mananiy babu radhacharanpal aadi anek bahut baDe baDe sajjan nimantrit hue. in sabka manoranjan karne ke liye ahut hua mastar madan. is chaar varsh ke balak ko pita vasant babu god mein lekar yahan pahunche. use dekhkar upasthit sajjnon ko uske gayak hone mein sandeh hone laga. chaar varsh ka balak kahin gata hai. ye umr khelne kudne, rone aur shoro gul machane ki hai, gane ki nahin. bahutere sajjnon ne yahan tak vikalp kiya ki itni baDi sabha ko dekhkar ye balak gane ke badle zarur rone lagega. par is tarah ke sare sankalp vikalpon ko madan ne bhramatmak siddh kar diya. Darna aur rona to door raha, usne us utne baDe samaj ko baDi beparvahi se dekha. harmoniyam bajne laga. balak madan ne bhi alap arambh kiya. samajikon ka ashcharya utthit hokar baDhne laga. madan bhi gaan ka arambh karke sabko mugdh karne laga. uski aspasht, madhur aur surili avaz ko sunkar shrota jan alaukik anand sagar mein nimagn hone lage. madan ka nirdosh, svar saal poorn aur shaastr sammat gana sunkar sab log baDe hi prasann hue. sabke hriday mein yahi bhavna udbhut hui ki itni thoDi umr mein itna achchha gana iishvar ki kripa aur poorv janm ke sanchit sanskar ke bina shakya nahin.
sitambar 1910 mein mastar madan ki panchavin varshganth thi. is uplakshya mein madan ke pita ne ek utsav kiya. kalakte ke baDe baDe dhani mani upadhidhari pratishthit purush vasant babu ki baDi se padhare. madan ka sur shrotri sukhad hai aur roop netr sukhad gaur varn madan reshmi kot, makhamli topi pahankar aur kai ek sone ke padak chhati par latkakar sabke samne upasthit hua sar gurudas bainarji ke charnon par girkar usne unhen mala pahnai. unhonne ashirvad diya jis tarah tum in itne sajjnon ko prasann kar rahe ho usi tarah parmeshvar prasann karega. madan ki samarpit mala ko sar gurudas chalte samay usi ko prsadasvrup pahna ge. is avsar par madan ki tabiyat achchhi na thi. wo bahut ashakt tha. bimari se haal hi mein utha tha. tathapi usne kai chizen gai. sunkar sab log premanand se pulkit ho uthe. uske chhote chhote hathon ka yathasmay uthna aur uska sashastr aur sasvar gana ek adbhut drishya tha. jinhonne madan ko gate dekha hai ve kahte hain ki us shrvan aur darshan ka anand varnan ki vastu nahin. uska anubhav dekhkar hi ho sakta hai. use sunne hi se ye jana ja sakta hai ki usmen kya jadu hai—usse kitna aur kis tarah ka anand praapt ho sakta hai.
madan ek alaukik balak hai. sangit vidya mein madan ki barabari karne vala anya balak sansar mein aaj tak aur kahin utpann nahin hua. nami nami gavaiyon ki yahi raay hai. yorap aur amerika tak akhbaron mein madan ki prshansa se poorn lekh milte hain. unke lekhak bhi yahi baat kahte hain. unka bhi yahi mat hai ki madan apna sani nahin rakhta. wo bharat ka bhushan hai. madan ne yadyapi abhi tak varnmala achchhi tarah nahin sikhi tathapi use koi ek sau geet kanthagr hain aur un sabko wo vishuddhata purvak gata hai. is samay tak use ek chandi ka or pandrah sone ke padak mil chuke hai. madan chiranjiv.
[april, 1911 ki sarasvati mein prakashit asanklit]
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mastar madan ka pura naam madanmohan chaitarji hai. ye adbhut balak kalkatte ki emhasD street mein rahne vale babu vasantakumar chaitarji ka putr hai. vasant babu ko sangit vidya se baDa prem hai. aap harmoniyam bahut achchha bajate hain. ek din ki baat suniye. madan us samay keval do varsh nau mahina ka tha. vasant babu ne dekha ki madan baDe maje mein ga raha hai. avashyaktanusar kabhi wo apni avaz ko dhimi kar deta hai aur kabhi khoob uchch svar se gane lagta hai. unhen ye tamasha dekhkar baDa ashcharya hua. uski pariksha karne ke liye unhonne harmoniyam bajana shuru kiya aur madan se kaha, gao. madan ne harmoniyam par gaya. khoob achchha gaya. taal svar mein usne kahin bhi bhool na ki. vasant babu avak ho ge. unhonne samjha, ye shishu us janm ka koi prasiddh gayak hai. sangit vidya ka beej iske hriday mein jo sanskar roop se vidyaman tha wo mere harmoniyam ka sasvar vadan sunkar ug aaya.
1908 iisvi ki devi puja ka utsav babu ech० see० raay chaudhari ke makan par hua. ye mahashay kalkatte ki mallik len mein rahte hain. us samay madan teen varsh ke samne vahan uska pahla sarvsadhran gana hua. madan ne kai ek aise gane gaye do mahine ka tha. pita ke saath madan bhi is utsav mein gaya. saikDon pratishthit purushon jinhen gana baDa kathin kaam tha jinhen keval abhyast aur achchhe gane vale hi ga sakte the. is tarah sabko prasann karke aur sabka ashirvad lekar mastar madan prshansa arambh hui. uski prasiddhi din din baDhne lagi. baDe baDe utsvon aur hua samarohon mein use nimantran diya jane laga aur wo shrotaon ko apne gaan se mugdh karne laga.
1909 ke agast mein alipur jaint maijistret, mistar Dee० el० raay ke makan par madan ne apna surila gana sunaya. us samay madan ka vay keval chaar varsh ka tha. kalkatte ke kitne hi sammanya shrota upasthit the. gayak tha akela madan par usne sabko apne manohar aur taal svar vishuddh gaan se prasann aur pulkit kar diya. das das pandrah pandrah varsh tak abhyas karne vale gaykon aur gayikaon se jo baat nahin ho sakti wo mastar madan ne kar dikhai.
march 1910 mein kalkatte ke raay sitabchand bahadur ne apne sthaan par sayan kaal ek bhoj diya. maharaja kasim bazar, maharaja nishipuri, mananiy babu radhacharanpal aadi anek bahut baDe baDe sajjan nimantrit hue. in sabka manoranjan karne ke liye ahut hua mastar madan. is chaar varsh ke balak ko pita vasant babu god mein lekar yahan pahunche. use dekhkar upasthit sajjnon ko uske gayak hone mein sandeh hone laga. chaar varsh ka balak kahin gata hai. ye umr khelne kudne, rone aur shoro gul machane ki hai, gane ki nahin. bahutere sajjnon ne yahan tak vikalp kiya ki itni baDi sabha ko dekhkar ye balak gane ke badle zarur rone lagega. par is tarah ke sare sankalp vikalpon ko madan ne bhramatmak siddh kar diya. Darna aur rona to door raha, usne us utne baDe samaj ko baDi beparvahi se dekha. harmoniyam bajne laga. balak madan ne bhi alap arambh kiya. samajikon ka ashcharya utthit hokar baDhne laga. madan bhi gaan ka arambh karke sabko mugdh karne laga. uski aspasht, madhur aur surili avaz ko sunkar shrota jan alaukik anand sagar mein nimagn hone lage. madan ka nirdosh, svar saal poorn aur shaastr sammat gana sunkar sab log baDe hi prasann hue. sabke hriday mein yahi bhavna udbhut hui ki itni thoDi umr mein itna achchha gana iishvar ki kripa aur poorv janm ke sanchit sanskar ke bina shakya nahin.
sitambar 1910 mein mastar madan ki panchavin varshganth thi. is uplakshya mein madan ke pita ne ek utsav kiya. kalakte ke baDe baDe dhani mani upadhidhari pratishthit purush vasant babu ki baDi se padhare. madan ka sur shrotri sukhad hai aur roop netr sukhad gaur varn madan reshmi kot, makhamli topi pahankar aur kai ek sone ke padak chhati par latkakar sabke samne upasthit hua sar gurudas bainarji ke charnon par girkar usne unhen mala pahnai. unhonne ashirvad diya jis tarah tum in itne sajjnon ko prasann kar rahe ho usi tarah parmeshvar prasann karega. madan ki samarpit mala ko sar gurudas chalte samay usi ko prsadasvrup pahna ge. is avsar par madan ki tabiyat achchhi na thi. wo bahut ashakt tha. bimari se haal hi mein utha tha. tathapi usne kai chizen gai. sunkar sab log premanand se pulkit ho uthe. uske chhote chhote hathon ka yathasmay uthna aur uska sashastr aur sasvar gana ek adbhut drishya tha. jinhonne madan ko gate dekha hai ve kahte hain ki us shrvan aur darshan ka anand varnan ki vastu nahin. uska anubhav dekhkar hi ho sakta hai. use sunne hi se ye jana ja sakta hai ki usmen kya jadu hai—usse kitna aur kis tarah ka anand praapt ho sakta hai.
madan ek alaukik balak hai. sangit vidya mein madan ki barabari karne vala anya balak sansar mein aaj tak aur kahin utpann nahin hua. nami nami gavaiyon ki yahi raay hai. yorap aur amerika tak akhbaron mein madan ki prshansa se poorn lekh milte hain. unke lekhak bhi yahi baat kahte hain. unka bhi yahi mat hai ki madan apna sani nahin rakhta. wo bharat ka bhushan hai. madan ne yadyapi abhi tak varnmala achchhi tarah nahin sikhi tathapi use koi ek sau geet kanthagr hain aur un sabko wo vishuddhata purvak gata hai. is samay tak use ek chandi ka or pandrah sone ke padak mil chuke hai. madan chiranjiv.
[april, 1911 ki sarasvati mein prakashit asanklit]
स्रोत :
पुस्तक : महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड-5 (पृष्ठ 315)
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