Font by Mehr Nastaliq Web

संपादकों के लिए स्कूल

sampadkon ke liye school

महावीर प्रसाद द्विवेदी

महावीर प्रसाद द्विवेदी

संपादकों के लिए स्कूल

महावीर प्रसाद द्विवेदी

कुछ दिन हुए अख़बारों में यह चर्चा हुई थी कि अमेरिका में संपादकों के लिए स्कूल खुलने वाला है। इस स्कूल का बनना शुरू हो गया और इस वर्ष इसकी इमारत तो पूरी हो जाएगी। आशा है कि स्कूल इसी वर्ष ज़ारी भी हो जाए। अमेरिका के न्यू प्रांत में कोलंबिया नामक एक विश्वविद्यालय है। वही इस स्कूल को खोल रहा है। जैसे, क़ानून, डॉक्टरी, इंजीनियरी और कला-कौशल आदि के अलग-अलग स्कूल और कॉलेज हैं। और अलग-अलग होकर भी किसी विश्वविद्यालय से संबंध रखते हैं, वैसे ही संपादकीय विद्या सिखाने का यह स्कूल भी कोलंबिया के विश्वविद्यालय मे संबंध रखेगा। संसार में इस प्रकार का पहला स्कूल होगा।

और कोई देश ऐसा नहीं जिसमें अमेरिका के बराबर अख़बार निकलते हो। मासिक और साप्ताहिक अख़बारों को जाने दीजिए, केवल दैनिक अख़बार यहाँ से 2,000 से भी अधिक निकलते हैं। इतने दैनिक अख़बार दुनिया में कहीं नहीं निकलते। जहाँ अख़बारों का इतना आधिक्य है वहाँ अख़बार नवीसी का स्कूल खोलने की यदि ज़रूरत पड़े तो कोई आश्चर्य की बात नहीं। अमेरिका में जैसे और व्यवसाय-रोजगार हैं—वैसे ही अख़बार लिखना भी एक व्यवसाय है। जो लोग इस व्यवसाय को करना चाहेंगे वे इस स्कूल में दो वर्ष तक रहकर संपादकीय विद्या सीखेंगे। जो लोग इस समय संपादन कर भी रहे हैं वे भी इस स्कूल में, कुछ काल तक रहकर, संपादन कला में कुशलता प्राप्त कर सकेंगे। इस स्कूल के लिए बीस लाख डॉलर धन एकत्र किया गया है; और पचास हज़ार डॉलर लगाकर इसकी इमारत बन रही है। हार्वर्ड विश्वविद्यालय के सभापति, इलियट साहब से पूछा गया था कि इस स्कूल में कौन-कौन से विषय सिखाए जाएँ। इलियट साहब ने विषयों की नामावली इस प्रकार दी है—

प्रबंध-विषय—दफ़्तर की स्थिति-स्थापकता, प्रकाशक के कर्त्तव्य; अख़बार का प्रचार, विज्ञापन-विभाग; संपादकीय और संवाददाताओं का विभाग; स्थानीय, बाहरी और विदेशी समाचार-विभाग, साहित्य और समालोचना-विभाग, राज-कर-विभाग, खेल-कूद और शारीरिक व्यायाम विभाग इन सब विभागों के विषय में अच्छी तरह से शिक्षा दी जाएगी और प्रत्येक विषय की छोटी से भी छोटी बातों पर व्याख्यान होंगे।

कला-कौशल (कारीगरी) विषय—छापना, स्याही, काग़ज़, इल्यक्ट्रो-टाइपिंग, स्टीरियो टाइपिंग, अक्षर-योजना, अक्षर ढालना, चित्रों की नक़ल उतारना, जिल्द बाँधना, काग़ज़ काटना और सीना इत्यादि।

क़ानून-विषय—स्वत्व-रक्षण (कॉपी राइट), विधि दीवानी और फ़ौजदारी, मानहानि-विधि; राजद्रोह-विषयक विधि, न्यायालय के काव्यों का समालोचना-संबंधी कर्त्तव्य; संपादक, प्रकाशक, लेखक और संवाददाताओं की ज़िम्मेदारी का विधान, संपादकीय कर्त्तव्याकर्त्तव्य अथवा नीतिविद्या। संपादकों की सर्वसाधारण के संबंध रखने वाली ज़िम्मेदारी का ज्ञान। समाचारों को प्रकाशित करने में समाचारपत्रों के संपादक और स्वामी के मत प्रदर्शन की सीमा मत प्रकट करने में संपादक, प्रकाशक और संवाददाता का परस्पर संबंध।

अख़बारों का इतिहास। अख़बारों की स्वतंत्रता इत्यादि।

फुटकर बातें—सर्वसम्मत से स्वीकार किए गए विराम-चिह्न, वर्ण-विचार, संक्षेप-चिह्न, शोधन-विधि आदि। पैराग्राफ़ और संपादकीय लेख लिखना, इतिहास, भूगोल, राजकर, राज्य स्थिति, देश व्यवस्था, गार्हस्थ्य-विधान और अर्थशास्त्र आदि के सिद्धांतों के अनुसार प्रस्तुत विषयों का विचार करना।

इलियट साहब का मत है कि संपादक के लिए इन सब बातों को जानना बहुत ज़रूरी है। सत्य की खोज में जो लोग रहते हैं, उनकी भी अपेक्षा संपादकों के लिए अधिक शिक्षा दरकार है। आजकल के संपादकों में सबसे बड़ी न्यूनता यह पाई जाती है कि वे सत्य को जानने में बहुधा असफ़ल होते हैं, उनमें इतनी योग्यता ही नहीं होती कि वे यथार्थ बात जान सकें। इतिहास के तत्त्व और दूसरे शास्त्रों के मूल सिद्धांतों को भली-भाँति जानने के कारण संपादक लोग कभी-कभी बहुत बड़ी ग़लतियाँ कर बैठते हैं।

संपादकों के लिए एक और भी गुण दरकार होता है। वह है लेखन कौशल। इसका भी होना बहुत आवश्यक है। इसके बिना अख़बारों का आदर नहीं हो सकता। यह कौशल स्वाभाविक भी होता है और सीखने से भी सकता है। जिनमें लेखन-कला स्वभाव-सिद्ध नहीं होती उनको शिक्षण से सादृश लाभ नहीं होता। परंतु स्वभाव-सिद्ध लेखकों को शिक्षण मिलने से उनकी लेखन शक्ति और भी तीव्र हो जाती है।

इलियट साहब ने संपादक के लिए जिन-जिन विषयों का ज्ञान आवश्यक बतलाया है उनका विचार करके हम हिंदी के समाचार-पत्र और मासिक पुस्तकों के संपादकों को, अपनी योग्यता का अनुमान करने में बहुत बड़ी विषमता दृग्गोचर होती है। अमेरिका के समान सभ्य और शिक्षित देश में जब संपादकों को उनका व्यवसाय सिखलाने की ज़रूरत है, तब अर्द्धशिक्षित देशों की क्या कथा? इस दशा में बेचारा भारतवर्ष किस गिनती में है?

[जनवरी, 1904 में प्रकाशित। 'साहित्य-सीकर' पुस्तक में संकलित।]

स्रोत :
  • पुस्तक : महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड-2 (पृष्ठ 414)
  • संपादक : भारत यायावर
  • रचनाकार : महावीरप्रसाद द्विवेदी
  • प्रकाशन : किताबघर प्रकाशन
  • संस्करण : 2007

संबंधित विषय

हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

Additional information available

Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

OKAY

About this sher

Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

Close

rare Unpublished content

This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

OKAY