भारतवर्ष में नशेबाज़ी
bharatvarsh mein nashebazi
रोचक तथ्य
[मई 1915 की ‘सरस्वती’ में प्रकाशित]
प्रजा को बुराइयों से बचाना और उसे सच्चरित्र बनाना राजा का बहुत बड़ा कर्तव्य है। हर देश का राजा अपने इस कर्तव्य-पालन के लिए उत्तरदाता है। राजा के इस काम से केवल प्रजा ही का उपकार नहीं, राजा का भी बड़ा भारी उपकार है। प्रजा के सच्चरित्र और गुणी होने से देश का शासन बड़ी सरलता से किया जा सकता है। देश में सुख और शांति रहती है।
मान लीजिए कि किसी देश या नगर की प्रजा बड़ी उद्दंड है; न वह सच्चरित्र है, न गुणी। इस दशा में वहाँ के राजा को अपनी प्रजा के शासन में बहुत कष्ट उठाना पड़ेगा। मार-पीट, हत्या, चोरी आदि दुष्कर्मों की संख्या बढ़ेगी। सैकड़ों-हज़ारों मुक़द्दमे चलेंगे। देश से शांति पलायन कर जाएगी।
नशेबाज़ी से प्रजा की सच्चरित्रता को बहुत बड़ा धक्का पहुँचता है। दुःख की बात है, भारत में नशेबाज़ी की अधिकता है। अशिक्षितों ही पर नहीं, शिक्षितों पर भी इस बुरी बला ने अपना प्रभाव जमा रखा है। अनेक शिक्षित और कुलीन बाबू लोग भी इस व्यसन के दास बन गए हैं। गाँजा, भंग और चरस आदि की भी ख़ूब खपत है। साधु, संत और महात्मा कहलाने वाले लोग इन नशीले पदार्थों का निःशंक सेवन करते हैं। देश के अनेक होनहार नवयुवक तक नशेबाज़ी की बुरी आदत के कारण अपना सत्यानाश कर रहे हैं।
सन् 1907 ईसवी के अगस्त में भारतवासियों का एक प्रतिनिधि-दल विलायत पहुँचा। उसने वहाँ जाकर भारत के स्टेट-सेक्रेटरी से प्रार्थना की कि भारत की रक्षा नशेबाज़ी से कीजिए। प्रार्थना में उसने नशेबाज़ी के नाश के अनेक उपाय भी बताए। स्टेट-सेक्रेटरी ने पूर्वोक्त प्रतिनिधि-दल की प्रार्थना के अनुसार भारत सरकार से इस विषय में पूछ-पाँछ की। इस पर जाँच होती रही। पर उसका परिणाम क्या हुआ, यह बात अज्ञात ही रही।
इतने में, 1912 ईसवी के जुलाई महीने में, एक प्रतिनिधि-दल लार्ड हार्डिंग के भी पास पहुँचा। बाँकीपुर में एक साल पहले मादकता-निवारिणी सभा (Temperance Society) का जो अधिवेशन हुआ था, उसी में इस प्रतिनिधि-दल के भेजे जाने का निश्चय किया गया था। लार्ड हार्डिंग इस दल से सादर मिले। उसका वक्तव्य सुना और बहुत ही सहानुभूतिपूर्ण उत्तर दिया।
पूर्वोक्त प्रतिनिधि-दल के प्रार्थना-पत्र में कहा गया—नशीली चीज़ों पर अधिक कर लगाया जाए। इन चीज़ों की बिक्री के लिए दुकानें खोलने के लैसंसों की संख्या कम कर दी जाए। दुकानें ऐसी जगह खोली जाएँ जहाँ बहुत कम लोगों की पहुँच हो। दुकानों के प्रतिदिन खुलने और बंद होने का समय नियत कर दिया जाए, वे बहुत कम समय तक खुली रहें।
इस पर लार्ड हार्डिंग ने प्रांतीय गवर्नमेंटों से रिपोर्टें तलब कीं। यही सब रिपोर्टें, अन्यान्य आवश्यकीय काग़ज़ों के साथ, अब पुस्तकाकार प्रकाशित हुई है। इस पुस्तक की मुख्य-मुख्य बातों का उल्लेख नीचे किया जाता है।
1901-02 में आबकारी के महकमे से गवर्नमेंट को 6 करोड़ 17 लाख रुपये की आमदनी हुई थी। पर 1910-11 में बढ़कर वह 10 करोड़ 54 लाख रुपये हो गई। अर्थात् 10 वर्षों के भीतर ही 4 करोड़ 37 लाख की वृद्धि हुई। गाँजा, चरस और अफ़ीम आदि से जितनी आमदनी हुई, उससे कहीं अधिक शराब से हुई। देखिए—
गाँजा, चरस, अफ़ीम आदि शराब
रुपया रुपया
सन् 1901-02 1,63,41,483 4,51,79,518
सन् 1910-11 2,62,52,486 7,88,01,710
यद्यपि सभी नशीली चीज़ों से अधिक आमदनी हुई, तथापि शराब की आमदनी में बहुत ही अधिक वृद्धि हुई।
गवर्नमेंट का कथन है कि इस बढ़ी हुई आमदनी से यह न समझना चाहिए कि इन चीज़ों का ख़र्च अधिक हुआ। वह कहती है कि नशे की चीज़ों पर अधिक कर का लगाया जाना इस वृद्धि का कारण है। पर गवर्नमेंट को चाहिए था कि वह अपने कथन की पुष्टि में बिके हुए सब प्रकार के मादक पदार्थों की तोल प्रकाशित कर देती। हाँ, एक बात गवर्नमेंट के कथन की पोषक अवश्य है। वह यह कि सन् 1901-02 में गाँजा, भंग और अफ़ीम आदि की 20,155 दुकानें थीं। पर सन् 1910-11 में उनकी संख्या घट कर 20,014 रह गई। शराब की दुकानों की संख्या सन् 1901-02 में 84,925 थी। 1910-11 में घटकर वह 71,052 रह गई। इस प्रकार इन 10 वर्षों के भीतर सब प्रकार की दुकानों में 14,028 की कमी हुई।
1912-13 में भी गाँजा, भंग, अफ़ीम और शराब की सब मिला कर 1632 दुकानें बंदकर दी गई। इससे तो यही सूचित होता है कि सरकार मादकता बढ़ाना नहीं चाहती। उसे धीरे-धीरे कम ही करना चाहती है।
गवर्नमेंट देशी तथा विदेशी शराब, गाँजा, भंग और अफ़ीम आदि पर लगाए गए कर को अधिकाधिक कड़ा भी करती जाती है। जो लोग नशे की हालत में दंगा-फिसाद करते हैं, उन्हें वह सज़ा भी देती है। सन् 1911-12 में म्युनिसिपैलिटी वाले शहरों की हद के भीतर 30,743 आदमियों ने इस ज़ुर्म में सज़ा पाई। इन सभी बातों से गवर्नमेंट की शुभ-चिंतना ही सूचित होती है।
देशी शराब की बिक्री बढ़ी है। इसका कारण यह है कि विदेशी शराब अब बहुत महँगी बिकती है। उस पर अधिक कर लगा दिया गया है। इससे थोड़ी आमदनी वाले शराबी देशी शराब पीने लगे हैं। देशी शराब की सबसे अधिक बिक्री बंबई प्रांत में है। उसके बाद मदरास और फिर युक्त प्रदेश का नंबर है। सन् 1911-12 में बंबई प्रांत में 27,33,034 गैलन देशी शराब की खपत हुई। उसी साल, मदरास में, 16,28,178 गैलन और युक्त प्रदेश में 15,38,504 गैलन।
मादक पदार्थों की सूची में अब एक नया पदार्थ भी शामिल हो गया है। उसका नाम कोकेन है। यह एक प्रकार का विष है, जिसके विशेष सेवन से मनुष्य का शरीर मिट्टी हो जाता है। दवा के काम के सिवा और किसी काम के लिए इसे बेचना ज़ुर्म है। इसका प्रचार रोकने की चेष्टा गवर्नमेंट बड़े ज़ोरों से कर रही है। आशा है, इसके सेवन की आदत बहुत जल्द छूट जाएगी।
कानपुर के कलेक्टर टाइलर साहब की रिपोर्ट पढ़कर हमें सबसे अधिक दुःख हुआ। वे कहते हैं कि कितने ही ब्राह्मण, बनिये, खत्री, ठाकुर और मुसलमान भी शराब पीने लगे हैं। यह पुरातन सामाजिक रीतियों के टूट जाने और धर्म पर अश्रद्धा होने का परिणाम है। नई रोशनी, नई शिक्षा-दीक्षा, नए ढंग की सामाजिक व्यवस्था ने इस अनाचार की सृष्टि की है। स्कूलों और कॉलेजों के कुछ लड़के तक इसकी लपेट में आ रहे हैं। ईश्वर इस बला से हमारी रक्षा करे।
- पुस्तक : महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड-7 (पृष्ठ 306)
- संपादक : भारत यायावर
- रचनाकार : महावीरप्रसाद द्विवेदी
- प्रकाशन : किताबघर प्रकाशन
- संस्करण : 2007
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