इसे तो सभी स्वीकार करेंगे कि अनेक प्रकार की शक्तियाँ जो वरदान की भाँति ईश्वर ने मनुष्य को दी हैं, उनमें वाक्शक्ति भी एक है। यदि मनुष्य की और इंद्रियाँ अपनी-अपनी शक्तियों में अविकल रहतीं और वाक्शक्ति मनुष्यों में न होती तो हम नहीं जानते कि इस गूँगी सृष्टि का क्या हाल होता। सब लोग लुंज-पुंज से हो मानो कोने में बैठा दिए गए होते और जो कुछ सुख-दुख का अनुभव हम अपनी दूसरी-दूसरी इंद्रियों के द्वारा करते, उसे अवाक् होने के कारण, आपस में एक-दूसरे से कुछ न कह सुन सकते। इस वाक्शक्ति के अनेक फ़ायदों में 'स्पीच' वक्तृता और बातचीत दोनों हैं। किंतु स्पीच से बातचीत का ढंग ही निराला है। बातचीत में वक्ता को नाज़-नख़रा ज़ाहिर करने का मौक़ा नहीं दिया जाता है कि वह बड़े अंदाज़ से गिन-गिनकर पाँव रखता हुआ पुलपिट पर जा खड़ा हो और पुण्यवाचन या नांदीपाठ की भाँति घड़ियों तक साहबान मजलिस, चेयरमैन, लेडीज एंड जेंटलमेन की बहुत सी स्तुति करे-करावे और तब किसी तरह वक्तृता का आरंभ करे। जहाँ कोई मर्म या नोक की चुटीली बात वक्ता महाशय के मुख से निकली कि ताली ध्वनि से कमरा गूँज उठा। इसलिए वक्ता को ख़ामख़्वाह ढूँढ़कर कोई ऐसा मौका अपनी वक्तृता में लाना ही पड़ता है जिसमें करतलध्वनि अवश्य हो।
वहीं हमारी साधारण बातचीत का कुछ ऐसा घरेलू ढंग है कि उसमें न करतलध्वनि का कोई मौका है, न लोगों के क़हक़हे उड़ाने की कोई बात ही रहती है। हम दो आदमी प्रेमपूर्वक संलाप कर रहे हैं। कोई चुटीली बात आ गई, हँस पड़े। मुसकराहट से होठों का केवल फड़क उठना ही इस हँसी की अंतिम सीमा है। स्पीच का उद्देश्य सुनने वालों के मन में जोश और उत्साह पैदा कर देना है। घरेलू बातचीत मन रमाने का ढंग है। उसमें स्पीच की वह संजीदगी बेक़दर हो धक्के खाती फिरती है।
जहाँ आदमी की अपनी ज़िंदगी मजेदार बनाने के लिए खाने, पीने, चलने फिरने आदि की ज़रूरत है, वहाँ बातचीत की भी उसको अत्यंत आवश्यकता है। जो कुछ मवाद या धुआँ जमा रहता है, वह बातचीत के जरिए भाप बनकर बाहर निकल पड़ता है। चित्त हल्का और स्वच्छ हो परम आनंद में मग्न हो जाता है। बातचीत का भी एक खास तरह का मज़ा होता है। जिनको बातचीत करने की लत पड़ जाती है, वे इसके पीछे खाना-पीना भी छोड़ बैठते हैं। अपना बड़ा हर्ज़ कर देना उन्हें पसंद आता है, पर वे बातचीत का मज़ा नहीं खोना चाहते। राबिंसन क्रूसो का क़िस्सा बहुधा लोगों ने पढ़ा होगा जिसे 16 वर्ष तक मनुष्य-मुख देखने को भी नहीं मिला। कुत्ता, बिल्ली आदि जानवरों के बीच में रह 16 वर्ष के उपरांत उसने फ्राइडे के मुख से एक बात सुनी। यद्यपि उसने अपनी जंगली बोली में कहा था, पर उस समय रॉबिंसन को ऐसा आनंद हुआ मानो उसने नए सिरे से फिर से आदमी का चोला पाया। इससे सिद्ध होता है कि मनुष्य की वाक्शक्ति में कहाँ तक लुभा लेने की ताक़त है। जिनसे केवल 'पत्र-व्यवहार' है, कभी एक बार भी साक्षात्कार नहीं हुआ, उन्हें अपने प्रेमी से बातें करने की कितनी लालसा रहती है। अपना आभ्यंतरिक भाव दूसरे पर प्रकट करना और उसका आशय आप ग्रहण कर लेना शब्दों के ही द्वारा हो सकता है। सच है, जब तक मनुष्य बोलता नहीं तब तक उसका गुण-दोष प्रकट नहीं होता। बेन जानसन का यह कहना कि बोलने से ही मनुष्य के रूप का साक्षात्कार होता है, बहुत ही उचित जान पड़ता है।
इस बातचीत की सीमा दो से लेकर वहाँ तक रखी जा सकती है, जहाँ तक उनकी जमात मीटिंग या सभा न समझ ली जाए। एडीसन का मत है कि असल बातचीत सिर्फ़ दो व्यक्तियों में हो सकती है, जिसका तात्पर्य यह हुआ कि जब दो आदमी होते हैं तभी अपना दिल एक दूसरे के सामने खोलते हैं। जब तीन हुए तब वह दो की बात कोसों दूर गई। कहा भी है कि छह कानों में पड़ी बात खुल जाती है। दूसरे यह कि किसी तीसरे आदमी के आ जाते ही या तो वे दोनों अपनी बातचीत से निरस्त हो बैठेंगे या उसे निपट मूर्ख अज्ञानी समझ बनाने लगेंगे।
जैसे गरम दूध और ठंढे पानी के दो बर्तन पास-पास साट के रखे जाएँ तो एक का असर दूसरे में पहुँच जाता है, अर्थात दूध ठंढा हो जाता है और पानी गरम, वैसे ही दो आदमी पास बैठे हों तो एक का गुप्त असर दूसरे पर पहुँच जाता है, चाहे एक दूसरे को देखें भी नहीं, तब बोलने को कौन कहे, एक के शरीर की विद्युत दूसरे में प्रवेश करने लगती है। जब पास बैठने का इतना असर होता है तब बातचीत में कितना अधिक असर होगा, इसे कौन न स्वीकार करेगा। अस्तु, अब इस बात को तीन आदमियों के साथ देखना चाहिए। मानो एक त्रिकोण सा बन जाता है। तीनों चित्त मानो तीन कोण हैं और तीनों की मनोवृत्ति के प्रसरण की धारा मानो उस त्रिकोण की तीन रेखाएँ हैं। गुप-चुप असर तो उन तीनों में परस्पर होता ही है। जो बातचीत तीन में की गई, वह मानो अँगूठी में नग सी जड़ जाती है। उपरांत जब चार आदमी हुए तब बेतकल्लुफ़ी को बिलकुल स्थान नहीं रहता। खुल के बातें न होंगी। जो कुछ बातचीत की जाएगी वह 'फॉर्मेलिटी' गौरव और संजीदगी के लच्छे में सनी हुई होगी। चार से अधिक की बातचीत तो केवल राम-रमौवल कहलाएगी। उसे हम संलाप नहीं कह सकते। इस बातचीत के अनेक भेद हैं। दो बुड्ढों की बातचीत प्रायः जमाने की शिकायत पर हुआ करती है। वे बाबा आदम के समय की ऐसी दास्तान शुरू करते हैं; जिसमें चार सच तो दस झूठ। एक बार उनकी बातचीत का घोड़ा छूट जाना चाहिए, पहरों बीत जाने पर भी अंत न होगा। प्राय: अंग्रेजी राज्य, परदेश और पुराने समय की रीति-नीति का अनुमोदन और इस समय के सब भाँति लायक नौजवानों की निंदा उनकी बातचीत का मुख्य प्रकरण होगा! पढ़े-लिखे हुए के लिए तो शेक्सपियर, मिल्टन, मिल और स्पेंसर जीभ पर नाचा करेंगे। अपनी लियाक़त के नशे में चूर 'हमचुनी दीगरे नेस्त' अक्खड़पन की चर्चा छेड़ेंगे। दो हम सहेलियों की बातचीत का कुछ ज़ायका ही निराला है। रस का समुंद्र मानो उमड़ा चला आ रहा है। इसका पूरा स्वाद उन्हीं से पूछना चाहिए जिन्हें ऐसों की रस सनी बात सुनने को कभी भाग्य लड़ा।
दो बुढ़ियों की बातचीत का मुख्य प्रकरण, बहू-बेटी वाली हुईं तो, अपनी बहुओं या बेटों का गिला शिकवा होगा। या वे बिरादराने का कोई ऐसा रमरसरा छेड़ बैठेंगी कि बात करते-करते अंत में खोढ़े दाँत निकाल लड़ने लगेंगी। लड़कों की बातचीत, खिलाड़ी हुए तो, अपनी-अपनी तारीफ़ करने के बाद वे कोई सलाह गाँठेंगे जिससे उनको अपनी शैतानी ज़ाहिर करने का पूरा मौका मिले। स्कूल के लड़कों की बातचीत का उद्देश्य अपने उस्ताद की शिकायत या तारीफ़ या अपने सहपाठियों में किसी के गुन औगुन का कथोपकथन होता है। पढ़ने में कोई लड़का तेज हुआ तो कभी अपने सामने दूसरे को कुछ न गिनेगा। पढ़ने में सुस्त और बोदा हुआ तो दबी बिल्ली का सा स्कूल भर को अपना गुरु ही मानेगा। इसके अलावा बातचीत की और बहुत सी किस्में हैं। राजकाज की बात, व्यापार संबंधी बातचीत, दो मित्रों में प्रेमालाप इत्यादि। हमारे देश में अशिक्षित लोगों में बतकही होती है। लड़की लड़के वालों की ओर से एक-एक आदमी बिचवई होकर दोनों में विवाह संबंध की कुछ बातचीत करते हैं। उस दिन से बिरादरी वालों को ज़ाहिर कर दिया जाता है कि अमुक की लड़की का अमुक के लड़के के साथ विवाह पक्का हो गया और यह रसम बड़े उत्सव के साथ की जाती है। चंडूखाने की बातचीत भी निराली होती है। निदान, बात करने के अनेक प्रकार और ढंग हैं।
यूरोप के लोगों में बात करने का हुनर है। 'आर्ट ऑफ कनवरसेशन' यहाँ तक बढ़ा है कि स्पीच और लेख दोनों इसे नहीं पाते। इसकी पूर्ण शोभा काव्यकला प्रवीण विद्वन्मंडली में है। ऐसे चतुराई के प्रसंग छेड़े जाते हैं कि जिन्हें सुन कान को अत्यंत सुख मिलता है। सुहृद गोष्ठी इसी का नाम है सुहृद गोष्ठी की बातचीत की यह तारीफ़ है कि बात करने वालों की लियाक़त अथवा पंडिताई का अभिमान या कपट कहीं एक बात में भी प्रकट न हो, वरन् क्रम में रसाभास पैदा करने वाले शब्दों को बरकते हुए चतुर सयाने अपनी बातचीत को सरस रखते हैं। वह रस हमारे आधुनिक शुष्क पंडित की बातचीत में, जिसे शास्त्रार्थ कहते हैं, कभी आवेगा ही नहीं। मुर्ग और बटेर की लड़ाइयों की झपटा-झपटी के समान उनकी नीरस काँव-काँव में सरस संलाप की चर्चा ही चलाना व्यर्थ है, वरन् कपट और एक दूसरे को अपने पांडित्य के प्रकाश से बाद में परास्त करने का संघर्ष आदि रसाभास की सामग्री वहाँ बहुतायत के साथ आपको मिलेगी। घंटे भर तक काँव-काँव करते रहेंगे तो कुछ न होगा। बड़ी-बड़ी कंपनी और कारख़ाने आदि बड़े से बड़े काम इसी तरह पहले दो-चार दिली दोस्तों की बातचीत से शुरू किए गए।
उपरांत बढ़ते-बढ़ते यहाँ तक बढ़े कि हजारों मनुष्यों की उनसे जीविका चलने लगी और साल में लाखों की आमदनी होने लगी। पच्चीस वर्ष के ऊपर वालों की बातचीत अवश्य ही कुछ न कुछ सारगर्भित होती होगी, अनुभव और दूरंदेशी से खाली न होगी और पच्चीस से नीचे की बातचीत में यद्यपि अनुभव, दूरदर्शिता और गौरव नहीं पाया जाता, पर इसमें एक प्रकार का ऐसा दिल बहलाव और ताजगी रहती है जिसकी मिठास उससे दस गुनी चढ़ी-बढ़ी है।
यहाँ तक हमने बाहरी बातचीत का हाल लिखा है जिसमें दूसरे फ़रीक के होने की बहुत आवश्यकता है, बिना किसी दूसरे मनुष्य के हुए जो किसी तरह संभव नहीं है और जो दो ही तरह पर हो सकता है या तो कोई हमारे यहाँ कृपा करे या हमीं जाकर दूसरे को कृतार्थ करें। पर यह सब तो दुनियादारी है जिसमें कभी-कभी रसाभास होते देर नहीं लगती क्योंकि जो महाशय अपने यहाँ पधारें उनकी पूरी दिलजोई न हो सकती तो शिष्टाचार में त्रुटि हुई। अगर हमीं उनके यहाँ गए तो पहले तो बिना बुलाए जाना ही अनादर का मूल है और जाने पर अपने मन माफ़िक बर्ताव न किया गया तो मानो दूसरे प्रकार का नया घाव हुआ।
इसलिए सबसे उत्तम प्रकार बातचीत करने का हम यही समझते हैं कि हम वह शक्ति अपने में पैदा कर सकें कि अपने आप बात कर लिया करें। हमारी भीतरी मनोवृत्ति प्रतिक्षण नए-नए रंग दिखाया करती है, वह प्रपंचात्मक संसार का एक बड़ा भारी आईना है, जिसमें जैसी चाहो वैसी सूरत देख लेना कुछ दुर्घट बात नहीं है और जो एक ऐसा चमनिस्तान है जिसमें हर किस्म के बेल-बूटे खिले हुए हैं, ऐसे चमनिस्तान की औट में क्या कम दिलबहलाव है? मित्रों का प्रेमालाप कभी इसकी सोलहवीं कला तक भी न पहुँच सका इसी सैर का नाम ध्यान या मनोयोग या चित्त को एकाग्र करना है जिसका साधन एक-दो दिन का काम नहीं।
बरसों के अभ्यास के उपरांत यदि हम थोड़ी भी अपनी मनोवृत्ति स्थिर कर अवाक् हो अपने मन के साथ बातचीत कर सकें तो मानो अहोभाग्य! एक वाक्शक्ति मात्र के दमन से न जाने कितने प्रकार का दमन हो गया। हमारी जिह्वा कतरनी के समान सदा स्वच्छंद चला करती है, उसे यदि हमने काबू में कर लिया तो क्रोधादिक बड़े-बड़े अजेय शत्रुओं को बिना प्रयास जीत अपने वश में कर डाला। इसलिए अवाक् रह अपने बातचीत करने का यह साधन यावत् साधनों का मूल है, शक्ति परम पूज्य मंदिर है, परमार्थ का एकमात्र सोपान है।
ise to sabhi swikar karenge ki anek prakar ki shaktiyan jo wardan ki bhanti ishwar ne manushya ko di hain, unmen wakshakti bhi ek hai yadi manushya ki aur indriyan apni apni shaktiyon mein awikal rahtin aur wakshakti manushyon mein na hoti to hum nahin jante ki is gungi sirishti ka kya haal hota sab log lunj punj se ho mano kone mein baitha diye gaye hote aur jo kuch sukh dukh ka anubhaw hum apni dusri dusri indriyon ke dwara karte, use awak hone ke karan, aapas mein ek dusre se kuch na kah sun sakte is wakshakti ke anek faydon mein speech waktrita aur batachit donon hain kintu speech se batachit ka Dhang hi nirala hai batachit mein wakta ko naz nakhra zahir karne ka mauqa nahin diya jata hai ki wo baDe andaz se gin ginkar panw rakhta hua pulpit par ja khaDa ho aur punywachan ya nandipath ki bhanti ghaDiyon tak sahban majlis, cheyarmain, leDij enD jentalmen ki bahut si istuti kare karawe aur tab kisi tarah waktrita ka arambh kare jahan koi marm ya nok ki chutili baat wakta mahashay ke mukh se nikli ki tali dhwani se kamra goonj utha isliye wakta ko khamakhwah DhunDhakar koi aisa mauka apni waktrita mein lana hi paDta hai jismen karatladhwani awashy ho
wahin hamari sadharan batachit ka kuch aisa gharelu Dhang hai ki usmen na karatladhwani ka koi mauka hai, na logon ke qahqahe uDane ki koi baat hi rahti hai hum do adami prempurwak sanlap kar rahe hain koi chutili baat aa gai, hans paDe musakrahat se hothon ka kewal phaDak uthna hi is hansi ki antim sima hai speech ka uddeshy sunne walon ke man mein josh aur utsah paida kar dena hai gharelu batachit man ramane ka Dhang hai usmen speech ki wo sanjidgi beqdar ho dhakke khati phirti hai
jahan adami ki apni zindagi majedar banane ke liye khane, pine, chalne phirne aadi ki zarurat hai, wahan batachit ki bhi usko atyant awashyakta hai jo kuch mawad ya dhuan jama rahta hai, wo batachit ke jariye bhap bankar bahar nikal paDta hai chitt halka aur swachchh ho param anand mein magn ho jata hai batachit ka bhi ek khas tarah ka maza hota hai jinko batachit karne ki lat paD jati hai, we iske pichhe khana pina bhi chhoD baithte hain apna baDa harz kar dena unhen pasand aata hai, par we batachit ka maza nahin khona chahte rabinsan kruso ka qissa bahudha logon ne paDha hoga jise 16 warsh tak manushya mukh dekhne ko bhi nahin mila kutta, billi aadi janawron ke beech mein rah 16 warsh ke uprant usne phraiDe ke mukh se ek baat suni yadyapi usne apni jangli boli mein kaha tha, par us samay raubinsan ko aisa anand hua mano usne nae sire se phir se adami ka chola paya isse siddh hota hai ki manushya ki wakshakti mein kahan tak lubha lene ki taqat hai jinse kewal patr wywahar hai, kabhi ek bar bhi sakshatkar nahin hua, unhen apne premi se baten karne ki kitni lalsa rahti hai apna abhyantrik bhaw dusre par prakat karna aur uska ashay aap grahn kar lena shabdon ke hi dwara ho sakta hai sach hai, jab tak manushya bolta nahin tab tak uska gun dosh prakat nahin hota ben jansan ka ye kahna ki bolne se hi manushya ke roop ka sakshatkar hota hai, bahut hi uchit jaan paDta hai
is batachit ki sima do se lekar wahan tak rakhi ja sakti hai, jahan tak unki jamat miting ya sabha na samajh li jaye edison ka mat hai ki asal batachit sirf do wyaktiyon mein ho sakti hai, jiska tatpary ye hua ki jab do adami hote hain tabhi apna dil ek dusre ke samne kholte hain jab teen hue tab wo do ki baat koson door gai kaha bhi hai ki chhah kanon mein paDi baat khul jati hai dusre ye ki kisi tisre adami ke aa jate hi ya to we donon apni batachit se nirast ho baithenge ya use nipat moorkh agyani samajh banane lagenge
jaise garam doodh aur thanDhe pani ke do bartan pas pas sat ke rakhe jayen to ek ka asar dusre mein pahunch jata hai, arthat doodh thanDha ho jata hai aur pani garam, waise hi do adami pas baithe hon to ek ka gupt asar dusre par pahunch jata hai, chahe ek dusre ko dekhen bhi nahin, tab bolne ko kaun kahe, ek ke sharir ki widyut dusre mein prawesh karne lagti hai jab pas baithne ka itna asar hota hai tab batachit mein kitna adhik asar hoga, ise kaun na swikar karega astu, ab is baat ko teen adamiyon ke sath dekhana chahiye mano ek trikon sa ban jata hai tinon chitt mano teen kon hain aur tinon ki manowritti ke prasarn ki dhara mano us trikon ki teen rekhayen hain gup chup asar to un tinon mein paraspar hota hi hai jo batachit teen mein ki gai, wo mano anguthi mein nag si jaD jati hai uprant jab chaar adami hue tab betakallufi ko bilkul sthan nahin rahta khul ke baten na hongi jo kuch batachit ki jayegi wo phaurmeliti gauraw aur sanjidgi ke lachchhe mein sani hui hogi chaar se adhik ki batachit to kewal ram ramauwal kahlayegi use hum sanlap nahin kah sakte is batachit ke anek bhed hain do buDDhon ki batachit prayः jamane ki shikayat par hua karti hai we baba aadam ke samay ki aisi dastan shuru karte hain; jismen chaar sach to das jhooth ek bar unki batachit ka ghoDa chhoot jana chahiye, pahron beet jane par bhi ant na hoga prayah angreji rajy, pardesh aur purane samay ki riti niti ka anumodan aur is samay ke sab bhanti layak naujwanon ki ninda unki batachit ka mukhy prakarn hoga! paDhe likhe hue ke liye to shakespeare, miltan, mil aur spencer jeebh par nacha karenge apni liyaqat ke nashe mein choor hamachuni digre nest akkhaDpan ki charcha chheDenge do hum saheliyon ki batachit ka kuch zayka hi nirala hai ras ka samundr mano umDa chala aa raha hai iska pura swad unhin se puchhna chahiye jinhen aison ki ras sani baat sunne ko kabhi bhagya laDa
do buDhiyon ki batachit ka mukhy prakarn, bahu beti wali huin to, apni bahuon ya beton ka gila shikwa hoga ya we biradrane ka koi aisa ramarasra chheD baithengi ki baat karte karte ant mein khoDhe dant nikal laDne lagengi laDkon ki batachit, khilaDi hue to, apni apni tarif karne ke baad we koi salah ganthenge jisse unko apni shaitani zahir karne ka pura mauka mile school ke laDkon ki batachit ka uddeshy apne ustad ki shikayat ya tarif ya apne sahpathiyon mein kisi ke gun augun ka kathopakthan hota hai paDhne mein koi laDka tej hua to kabhi apne samne dusre ko kuch na ginega paDhne mein sust aur boda hua to dabi billi ka sa school bhar ko apna guru hi manega iske alawa batachit ki aur bahut si kismen hain rajakaj ki baat, wyapar sambandhi batachit, do mitron mein premalap ityadi hamare desh mein ashikshait logon mein batakhi hoti hai laDki laDke walon ki or se ek ek adami bichawi hokar donon mein wiwah sambandh ki kuch batachit karte hain us din se biradri walon ko zahir kar diya jata hai ki amuk ki laDki ka amuk ke laDke ke sath wiwah pakka ho gaya aur ye rasam baDe utsaw ke sath ki jati hai chanDukhane ki batachit bhi nirali hoti hai nidan, baat karne ke anek prakar aur Dhang hain
europe ke logon mein baat karne ka hunar hai art auph kanawarseshan yahan tak baDha hai ki speech aur lekh donon ise nahin pate iski poorn shobha kawyakla prween widwanmanDli mein hai aise chaturai ke prsang chheDe jate hain ki jinhen sun kan ko atyant sukh milta hai suhrd goshthi isi ka nam hai suhrd goshthi ki batachit ki ye tarif hai ki baat karne walon ki liyaqat athwa panDitai ka abhiman ya kapat kahin ek baat mein bhi prakat na ho, waran kram mein rasabhas paida karne wale shabdon ko barakte hue chatur sayane apni batachit ko saras rakhte hain wo ras hamare adhunik shushk panDit ki batachit mein, jise shastrarth kahte hain, kabhi awega hi nahin murg aur bater ki laDaiyon ki jhapta jhapti ke saman unki niras kanw kanw mein saras sanlap ki charcha hi chalana byarth hai, waran kapat aur ek dusre ko apne panDitya ke parkash se baad mein parast karne ka sangharsh aadi rasabhas ki samagri wahan bahutayat ke sath aapko milegi ghante bhar tak kanw kanw karte rahenge to kuch na hoga baDi baDi kampni aur karkhane aadi baDe se baDe kaam isi tarah pahle do chaar dili doston ki batachit se shuru kiye gaye
uprant baDhte baDhte yahan tak baDhe ki hajaron manushyon ki unse jiwika chalne lagi aur sal mein lakhon ki amdani hone lagi pachchis warsh ke upar walon ki batachit awashy hi kuch na kuch saragarbhit hoti hogi, anubhaw aur durandeshi se khali na hogi aur pachchis se niche ki batachit mein yadyapi anubhaw, duradarshita aur gauraw nahin paya jata, par ismen ek prakar ka aisa dil bahlaw aur tajagi rahti hai jiski mithas usse das guni chaDhi baDhi hai
yahan tak hamne bahari batachit ka haal likha hai jismen dusre farik ke hone ki bahut awashyakta hai, bina kisi dusre manushya ke hue jo kisi tarah sambhaw nahin hai aur jo do hi tarah par ho sakta hai ya to koi hamare yahan kripa kare ya hamin jakar dusre ko kritarth karen par ye sab to duniyadari hai jismen kabhi kabhi rasabhas hote der nahin lagti kyonki jo mahashay apne yahan padharen unki puri diljoi na ho sakti to shishtachar mein truti hui agar hamin unke yahan gaye to pahle to bina bulaye jana hi anadar ka mool hai aur jane par apne man mafi bartaw na kiya gaya to mano dusre prakar ka naya ghaw hua
isliye sabse uttam prakar batachit karne ka hum yahi samajhte hain ki hum wo shakti apne mein paida kar saken ki apne aap baat kar liya karen hamari bhitari manowritti pratikshan nae nae rang dikhaya karti hai, wo prpanchatmak sansar ka ek baDa bhari aina hai, jismen jaisi chaho waisi surat dekh lena kuch durghat baat nahin hai aur jo ek aisa chamanistan hai jismen har kism ke bel bute khile hue hain, aise chamanistan ki aut mein kya kam dilbahlaw hai? mitron ka premalap kabhi iski solahwin kala tak bhi na pahunch saka isi sair ka nam dhyan ya manoyog ya chitt ko ekagr karna hai jiska sadhan ek do din ka kaam nahin
barson ke abhyas ke uprant yadi hum thoDi bhi apni manowritti sthir kar awak ho apne man ke sath batachit kar saken to mano ahobhagya! ek wakshakti matr ke daman se na jane kitne prakar ka daman ho gaya hamari jihwa katarni ke saman sada swachchhand chala karti hai, use yadi hamne kabu mein kar liya to krodhadik baDe baDe ajey shatruon ko bina prayas jeet apne wash mein kar Dala isliye awak rah apne batachit karne ka ye sadhan yawat sadhnon ka mool hai, shakti param poojy mandir hai, paramarth ka ekmatr sopan hai
ise to sabhi swikar karenge ki anek prakar ki shaktiyan jo wardan ki bhanti ishwar ne manushya ko di hain, unmen wakshakti bhi ek hai yadi manushya ki aur indriyan apni apni shaktiyon mein awikal rahtin aur wakshakti manushyon mein na hoti to hum nahin jante ki is gungi sirishti ka kya haal hota sab log lunj punj se ho mano kone mein baitha diye gaye hote aur jo kuch sukh dukh ka anubhaw hum apni dusri dusri indriyon ke dwara karte, use awak hone ke karan, aapas mein ek dusre se kuch na kah sun sakte is wakshakti ke anek faydon mein speech waktrita aur batachit donon hain kintu speech se batachit ka Dhang hi nirala hai batachit mein wakta ko naz nakhra zahir karne ka mauqa nahin diya jata hai ki wo baDe andaz se gin ginkar panw rakhta hua pulpit par ja khaDa ho aur punywachan ya nandipath ki bhanti ghaDiyon tak sahban majlis, cheyarmain, leDij enD jentalmen ki bahut si istuti kare karawe aur tab kisi tarah waktrita ka arambh kare jahan koi marm ya nok ki chutili baat wakta mahashay ke mukh se nikli ki tali dhwani se kamra goonj utha isliye wakta ko khamakhwah DhunDhakar koi aisa mauka apni waktrita mein lana hi paDta hai jismen karatladhwani awashy ho
wahin hamari sadharan batachit ka kuch aisa gharelu Dhang hai ki usmen na karatladhwani ka koi mauka hai, na logon ke qahqahe uDane ki koi baat hi rahti hai hum do adami prempurwak sanlap kar rahe hain koi chutili baat aa gai, hans paDe musakrahat se hothon ka kewal phaDak uthna hi is hansi ki antim sima hai speech ka uddeshy sunne walon ke man mein josh aur utsah paida kar dena hai gharelu batachit man ramane ka Dhang hai usmen speech ki wo sanjidgi beqdar ho dhakke khati phirti hai
jahan adami ki apni zindagi majedar banane ke liye khane, pine, chalne phirne aadi ki zarurat hai, wahan batachit ki bhi usko atyant awashyakta hai jo kuch mawad ya dhuan jama rahta hai, wo batachit ke jariye bhap bankar bahar nikal paDta hai chitt halka aur swachchh ho param anand mein magn ho jata hai batachit ka bhi ek khas tarah ka maza hota hai jinko batachit karne ki lat paD jati hai, we iske pichhe khana pina bhi chhoD baithte hain apna baDa harz kar dena unhen pasand aata hai, par we batachit ka maza nahin khona chahte rabinsan kruso ka qissa bahudha logon ne paDha hoga jise 16 warsh tak manushya mukh dekhne ko bhi nahin mila kutta, billi aadi janawron ke beech mein rah 16 warsh ke uprant usne phraiDe ke mukh se ek baat suni yadyapi usne apni jangli boli mein kaha tha, par us samay raubinsan ko aisa anand hua mano usne nae sire se phir se adami ka chola paya isse siddh hota hai ki manushya ki wakshakti mein kahan tak lubha lene ki taqat hai jinse kewal patr wywahar hai, kabhi ek bar bhi sakshatkar nahin hua, unhen apne premi se baten karne ki kitni lalsa rahti hai apna abhyantrik bhaw dusre par prakat karna aur uska ashay aap grahn kar lena shabdon ke hi dwara ho sakta hai sach hai, jab tak manushya bolta nahin tab tak uska gun dosh prakat nahin hota ben jansan ka ye kahna ki bolne se hi manushya ke roop ka sakshatkar hota hai, bahut hi uchit jaan paDta hai
is batachit ki sima do se lekar wahan tak rakhi ja sakti hai, jahan tak unki jamat miting ya sabha na samajh li jaye edison ka mat hai ki asal batachit sirf do wyaktiyon mein ho sakti hai, jiska tatpary ye hua ki jab do adami hote hain tabhi apna dil ek dusre ke samne kholte hain jab teen hue tab wo do ki baat koson door gai kaha bhi hai ki chhah kanon mein paDi baat khul jati hai dusre ye ki kisi tisre adami ke aa jate hi ya to we donon apni batachit se nirast ho baithenge ya use nipat moorkh agyani samajh banane lagenge
jaise garam doodh aur thanDhe pani ke do bartan pas pas sat ke rakhe jayen to ek ka asar dusre mein pahunch jata hai, arthat doodh thanDha ho jata hai aur pani garam, waise hi do adami pas baithe hon to ek ka gupt asar dusre par pahunch jata hai, chahe ek dusre ko dekhen bhi nahin, tab bolne ko kaun kahe, ek ke sharir ki widyut dusre mein prawesh karne lagti hai jab pas baithne ka itna asar hota hai tab batachit mein kitna adhik asar hoga, ise kaun na swikar karega astu, ab is baat ko teen adamiyon ke sath dekhana chahiye mano ek trikon sa ban jata hai tinon chitt mano teen kon hain aur tinon ki manowritti ke prasarn ki dhara mano us trikon ki teen rekhayen hain gup chup asar to un tinon mein paraspar hota hi hai jo batachit teen mein ki gai, wo mano anguthi mein nag si jaD jati hai uprant jab chaar adami hue tab betakallufi ko bilkul sthan nahin rahta khul ke baten na hongi jo kuch batachit ki jayegi wo phaurmeliti gauraw aur sanjidgi ke lachchhe mein sani hui hogi chaar se adhik ki batachit to kewal ram ramauwal kahlayegi use hum sanlap nahin kah sakte is batachit ke anek bhed hain do buDDhon ki batachit prayः jamane ki shikayat par hua karti hai we baba aadam ke samay ki aisi dastan shuru karte hain; jismen chaar sach to das jhooth ek bar unki batachit ka ghoDa chhoot jana chahiye, pahron beet jane par bhi ant na hoga prayah angreji rajy, pardesh aur purane samay ki riti niti ka anumodan aur is samay ke sab bhanti layak naujwanon ki ninda unki batachit ka mukhy prakarn hoga! paDhe likhe hue ke liye to shakespeare, miltan, mil aur spencer jeebh par nacha karenge apni liyaqat ke nashe mein choor hamachuni digre nest akkhaDpan ki charcha chheDenge do hum saheliyon ki batachit ka kuch zayka hi nirala hai ras ka samundr mano umDa chala aa raha hai iska pura swad unhin se puchhna chahiye jinhen aison ki ras sani baat sunne ko kabhi bhagya laDa
do buDhiyon ki batachit ka mukhy prakarn, bahu beti wali huin to, apni bahuon ya beton ka gila shikwa hoga ya we biradrane ka koi aisa ramarasra chheD baithengi ki baat karte karte ant mein khoDhe dant nikal laDne lagengi laDkon ki batachit, khilaDi hue to, apni apni tarif karne ke baad we koi salah ganthenge jisse unko apni shaitani zahir karne ka pura mauka mile school ke laDkon ki batachit ka uddeshy apne ustad ki shikayat ya tarif ya apne sahpathiyon mein kisi ke gun augun ka kathopakthan hota hai paDhne mein koi laDka tej hua to kabhi apne samne dusre ko kuch na ginega paDhne mein sust aur boda hua to dabi billi ka sa school bhar ko apna guru hi manega iske alawa batachit ki aur bahut si kismen hain rajakaj ki baat, wyapar sambandhi batachit, do mitron mein premalap ityadi hamare desh mein ashikshait logon mein batakhi hoti hai laDki laDke walon ki or se ek ek adami bichawi hokar donon mein wiwah sambandh ki kuch batachit karte hain us din se biradri walon ko zahir kar diya jata hai ki amuk ki laDki ka amuk ke laDke ke sath wiwah pakka ho gaya aur ye rasam baDe utsaw ke sath ki jati hai chanDukhane ki batachit bhi nirali hoti hai nidan, baat karne ke anek prakar aur Dhang hain
europe ke logon mein baat karne ka hunar hai art auph kanawarseshan yahan tak baDha hai ki speech aur lekh donon ise nahin pate iski poorn shobha kawyakla prween widwanmanDli mein hai aise chaturai ke prsang chheDe jate hain ki jinhen sun kan ko atyant sukh milta hai suhrd goshthi isi ka nam hai suhrd goshthi ki batachit ki ye tarif hai ki baat karne walon ki liyaqat athwa panDitai ka abhiman ya kapat kahin ek baat mein bhi prakat na ho, waran kram mein rasabhas paida karne wale shabdon ko barakte hue chatur sayane apni batachit ko saras rakhte hain wo ras hamare adhunik shushk panDit ki batachit mein, jise shastrarth kahte hain, kabhi awega hi nahin murg aur bater ki laDaiyon ki jhapta jhapti ke saman unki niras kanw kanw mein saras sanlap ki charcha hi chalana byarth hai, waran kapat aur ek dusre ko apne panDitya ke parkash se baad mein parast karne ka sangharsh aadi rasabhas ki samagri wahan bahutayat ke sath aapko milegi ghante bhar tak kanw kanw karte rahenge to kuch na hoga baDi baDi kampni aur karkhane aadi baDe se baDe kaam isi tarah pahle do chaar dili doston ki batachit se shuru kiye gaye
uprant baDhte baDhte yahan tak baDhe ki hajaron manushyon ki unse jiwika chalne lagi aur sal mein lakhon ki amdani hone lagi pachchis warsh ke upar walon ki batachit awashy hi kuch na kuch saragarbhit hoti hogi, anubhaw aur durandeshi se khali na hogi aur pachchis se niche ki batachit mein yadyapi anubhaw, duradarshita aur gauraw nahin paya jata, par ismen ek prakar ka aisa dil bahlaw aur tajagi rahti hai jiski mithas usse das guni chaDhi baDhi hai
yahan tak hamne bahari batachit ka haal likha hai jismen dusre farik ke hone ki bahut awashyakta hai, bina kisi dusre manushya ke hue jo kisi tarah sambhaw nahin hai aur jo do hi tarah par ho sakta hai ya to koi hamare yahan kripa kare ya hamin jakar dusre ko kritarth karen par ye sab to duniyadari hai jismen kabhi kabhi rasabhas hote der nahin lagti kyonki jo mahashay apne yahan padharen unki puri diljoi na ho sakti to shishtachar mein truti hui agar hamin unke yahan gaye to pahle to bina bulaye jana hi anadar ka mool hai aur jane par apne man mafi bartaw na kiya gaya to mano dusre prakar ka naya ghaw hua
isliye sabse uttam prakar batachit karne ka hum yahi samajhte hain ki hum wo shakti apne mein paida kar saken ki apne aap baat kar liya karen hamari bhitari manowritti pratikshan nae nae rang dikhaya karti hai, wo prpanchatmak sansar ka ek baDa bhari aina hai, jismen jaisi chaho waisi surat dekh lena kuch durghat baat nahin hai aur jo ek aisa chamanistan hai jismen har kism ke bel bute khile hue hain, aise chamanistan ki aut mein kya kam dilbahlaw hai? mitron ka premalap kabhi iski solahwin kala tak bhi na pahunch saka isi sair ka nam dhyan ya manoyog ya chitt ko ekagr karna hai jiska sadhan ek do din ka kaam nahin
barson ke abhyas ke uprant yadi hum thoDi bhi apni manowritti sthir kar awak ho apne man ke sath batachit kar saken to mano ahobhagya! ek wakshakti matr ke daman se na jane kitne prakar ka daman ho gaya hamari jihwa katarni ke saman sada swachchhand chala karti hai, use yadi hamne kabu mein kar liya to krodhadik baDe baDe ajey shatruon ko bina prayas jeet apne wash mein kar Dala isliye awak rah apne batachit karne ka ye sadhan yawat sadhnon ka mool hai, shakti param poojy mandir hai, paramarth ka ekmatr sopan hai
हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी
‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।