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शहीद झलकारीबाई

shahid jhalkaribai

अज्ञात

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शहीद झलकारीबाई

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    नोट

    प्रस्तुत पाठ एनसीईआरटी की कक्षा सातवीं के पाठ्यक्रम में शामिल है।

    (सन् 1857 ई. अपने महल में रानी लक्ष्मीबाई। चिंतित अवस्था में। रानी वीर वेश में रानी के सामने नाना साहब और कुछ विश्वासपात्र सामंत बैठे हैं। पास ही एक पलंग पर रानी का दत्तक पुत्र दामोदर राव बैठा है।) 

    लक्ष्मीबाई: झाँसी के वीरो अँग्रेज़ों की विशाल सेना ने झाँसी को चारों ओर से घेर लिया है। हमारी सेना के अनेक योद्धा वीरगति प्राप्त कर चुके हैं। कुछ सरदार अँग्रेज़ों से जा मिले हैं। अब हमारे सामने सिर्फ़ एक ही रास्ता बचा है कि हम क़िले का फाटक खोल दें और अँग्रेज़ सेना को युद्ध के लिए ललकारें। झाँसी की रक्षा के लिए अपने प्राणों के बलिदान का अवसर आ गया है।

    सामंत: रानी माँ! झाँसी पर अपने प्राण न्योछावर करने के लिए हम हमेशा तैयार हैं। दामोदर राव की सुरक्षा का प्रबंध भी हम कर लेंगे। लेकिन जान-बूझकर अँग्रेज़ों की सेना के सामने जाकर प्राण देने में कोई समझदारी नहीं है। उचित तो यह होगा कि किसी तरह क़िले से सुरक्षित निकलकर हम फिर से सेना को संगठित करें। 

    लक्ष्मीबाई: मैं आपकी योजना से सहमत हूँ। लेकिन अब इस अँग्रेज़ सेना का घेरा तोड़कर किले से बाहर निकल पाना आसान नहीं है। आप तो जानते ही हैं कि अँग्रेज़ों के भेदिए महल के भीतर भी हैं। ये गद्दार हमारी छोटी-छोटी बातें अँग्रेज़ों तक पहुँचा रहे हैं। ऐसी स्थिति में चूहे की तरह बिल में घुसे रहने से तो अच्छा है, हम शेर की तरह शत्रु पर टूट पड़ें। 

    नाना साहब: महारानी! आप जैसी वीरांगना को हम मरने के लिए अँग्रेज़ों की सेना के सामने नहीं धकेल सकते। मैं सामंत की बात से सहमत हूँ। आपका यह निर्णय वीरोचित तो है पर रणनीति की दृष्टि से उचित नहीं है। हमें कोई दूसरा रास्ता निकालना होगा। आपकी पराजय केवल रानी लक्ष्मीबाई की पराजय नहीं होगी। वह झाँसी की पराजय होगी। यदि झाँसी इतनी आसानी से पराजित हो गई तो पूरे भारत में चल रहा स्वाधीनता संग्राम ही ख़तरे में पड़ जाएगा। सबकी निगाहें आप पर टिकी हैं। 

    (एक दूत का प्रवेश)

    दूत: महारानी की जय!

    लक्ष्मीबाई: कहो दूत, क्या समाचार लाए हो? 

    दूत: रानी माँ समाचार शुभ नहीं है। अँग्रेज़ों की सेना का घेरा झाँसी के चारों ओर बहुत कड़ा हो गया है। उन्होंने आपको ज़िंदा ही पकड़ने की ठान रखी है। 

    लक्ष्मीबाई: दूत तुम जाओ! घटनाओं पर कड़ी निगाह रखो!

    (दूत तेज़ क़दमों से चला जाता है।)

    लक्ष्मीबाई: नाना साहब! मैं किसी भी हालत में अँग्रेज़ों की बंदी नहीं होना चाहती। मैं झाँसी की रक्षा करते-करते शहीद हो जाना पसंद करूँगी। आप आदेश दें! हम अँग्रेज़ों पर टूट पड़ना चाहते हैं।

    (तभी नारी सेना की सेनापति झलकारीबाई का प्रवेश होता है। लक्ष्मीबाई की हमशक्ल)

    झलकारीबाई: महारानी की जय! 

    लक्ष्मीबाई: आओ-आओ झलकारी बाई। तुम ठीक समय पर आई हो। कहो तुम्हारी सेना की क्या तैयारी है? 

    झलकारीबाई: रानी माँ! नारी सेना, अगली पंक्तियों में लड़ने के लिए तैयार खड़ी है। बस...आपके आदेश की प्रतीक्षा है! किंतु...

    लक्ष्मीबाई: किंतु क्या? निस्संकोच होकर कहो। 

    झलकारीबाई: गुस्ताख़ी माफ़ हो रानी माँ! मुझे इस निर्णायक युद्ध के लिए आपके वस्त्र, पगड़ी और कलगी चाहिए।

    लक्ष्मीबाई: (मुस्कुराकर) ठीक है झलकारी! तुम्हारी यह इच्छा अवश्य पूरी होगी। (लक्ष्मीबाई कक्ष में जाती है और एक थाल लाकर झलकारी को देती है। झलकारी उन्हें झुककर प्रणाम करती है। झलकारी का प्रस्थान।) 

    लक्ष्मीबाई: देखा आपने! अब अधिक सोचने का समय नहीं है। मैदान में उतरने का समय है।

    (नाना साहब कुछ कहना ही चाहते हैं तभी झलकारीबाई, रानी की वेशभूषा में सजकर प्रवेश करती है। सब लोग उसे देखकर आश्चर्य में पड़ जाते हैं।) 

    नाना साहब: अरे झलकारीबाई, तुम! तुम तो हू-ब-हू लक्ष्मीबाई लग रही हो। 

    झलकारीबाई: आप ठीक कह रहे हैं। मेरा रानी माँ का हमशक्ल होना शायद आज ही सार्थक हो सकता है। 

    नाना साहब: झलकारीबाई, तुम्हारी योजना क्या है। यह तो बताओ?

    झलकारीबाई: मेरी योजना यह है कि मैं अपनी सेना लेकर क़िले के मुख्य द्वार पर अँग्रेज़ों को उलझाकर रखूँगी। इससे उनका पूरा ध्यान मुझ पर बना रहेगा। वे रानी समझकर मुझे घेरने का प्रयत्न करते रहेंगे। इतने में रानी माँ दामोदर सहित अपने वीर सैनिकों को लेकर महल से दूर निकल जाएँगी।

    लक्ष्मीबाई: लेकिन झलकारीबाई! मैं तुम्हें जानबूझ कर मौत के मुँह में कैसे जाने दूँ?

    झलकारीबाई: रानी माँ! आप ही ने हमें सिखाया है कि वीरांगनाएँ मौत से नहीं डरतीं। हम प्राणों की बाज़ी लगाकर भी झाँसी की रक्षा करेंगे। 

    नाना साहब: झलकारीबाई ठीक कहती है महारानी अब आप देर मत कीजिए। झलकारीबाई जैसा कहती है वैसा ही कीजिए।

    (महारानी की जय! झाँसी अमर रहे का जयघोष करते झलकारीबाई का प्रस्थान।)

    (लक्ष्मीबाई के वेश में झलकारीबाई अँग्रेज़ी सेना पर टूट पड़ती है। अँग्रेज़ी सेना को काटती हुई झलकारीबाई आगे बढ़ती है। नारी सेना भी शत्रुओं को काटती हुई युद्ध कर रही है। झलकारीबाई के शरीर पर अनेक घाव लगे हैं। वह निढाल है। यह देखकर जनरल अपने सैनिकों को हुक्म देता है।) 

    जनरल रोज: सैनिको! झाँसी की रानी को ज़िंदा पकड़ना है। चारों ओर से घेर लो इसे। (अँग्रेज़ी सेना आगे बढ़ती है और निढाल झलकारीबाई को बंदी बना लेती है।)

    जनरल रोज़: झाँसी की रानी! तुम बहुत बहादुर हो। हम तुम्हारी बहादुरी को सलाम करते हैं। लेकिन अब तुम हमारी बंदी हो। 

    झलकारीबाई: जनरल! झाँसी की रानी को ज़िंदा पकड़ना तुम्हारे बूते की बात नहीं है। वह जीवित रहने तक स्वतंत्र ही रहेगी। रानी झाँसी की जय! (इतना कहकर झलकारीबाई बेहोश हो जाती है।)

    जनरल रोज: क्या यहाँ कोई है जो इसे पहचानता हो? (एक सैनिक वहाँ आता है और झलकारी को पहचान लेता है।) 

    सैनिक: जनरल, आपका शक ठीक है। यह लक्ष्मीबाई नहीं उनकी हमशक्ल झलकारीबाई है। 

    जनरल रोज: झलकारीबाई! इस औरत ने तो कमाल कर दिया।

    (झलकारीबाई का मृत शरीर धरती पर पड़ा है। जनरल रोज़ अवाक खड़ा है। पर्दा धीरे-धीरे गिरता है।) 

    स्रोत :
    • पुस्तक : दूर्वा (भाग-2) (पृष्ठ 66)
    • प्रकाशन : एनसीईआरटी
    • संस्करण : 2022
    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

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