‘तुलसी’ संत सुअंब तरु
‘tulsi’ sant suamb taru
‘तुलसी’ संत सुअंब तरु, फूलि फलहिं पर हेत।
इतते ये पाहन हनत, उतते वे फल देत॥
तुलसीदास कहते हैं कि सज्जन और रसदार फलों वाले वृक्ष दूसरों के लिए फलते-फूलते हैं क्योंकि लोग तो उन वृक्षों पर या सज्जनों पर इधर से पत्थर मारते हैं पर उधर से वे उन्हें पत्थरों के बदले में फल देते हैं। भाव यह है कि सज्जनों के साथ कोई कितना ही बुरा व्यवहार क्यों न करे, पर सज्जन उनके साथ सदा भला ही व्यवहार करते हैं।
- पुस्तक : तुलसी सतसई (पृष्ठ 59)
- संपादक : बिहारीलाल चौबे
- रचनाकार : तुलसीदास
- प्रकाशन : बप्तिस्त मिशन प्रेस, कलकत्ता
- संस्करण : 1897
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