स्वामी होनो सहज है
swami hono sahj hai
स्वामी होनो सहज है, दुर्लभ होनो दास।
गाडर लाए ऊन को, लागी चरन कपास॥
संसार में किसी का स्वामी बन कर रहना तो बड़ा सरल है, पर सेवक बन कर रहना बड़ा कठिन है। मनुष्य आया तो यहाँ भगवान् का सेवक बनने के लिए है पर सेवक न बन कर वह विषय-वासना में फँस जाता है। यह तो वैसे हुआ जैसे कि कोई ऊन के लोभ से भेड़ को रखे कि चलो इससे ऊन मिलेगी, पर वह ऊन देने के बदले खेत के कपास को ही चर जाय, लाभ की बजाय हानि करने लग पड़े। वैसे ही मनुष्य-जन्म पाकर भी जीव प्रभु-भक्ति का लाभ नहीं प्राप्त करता और विषय-वासनाओं में फँसा रहता है।
- पुस्तक : पुष्प-पराग (पृष्ठ 85)
- संपादक : टेकचंद शास्त्री
- रचनाकार : तुलसीदास
- प्रकाशन : भारती सदन, दिल्ली
- संस्करण : 1955
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