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कहिं घहरत बरसत कहीं

kahin ghahrat barsat kahin

जमाल

जमाल

कहिं घहरत बरसत कहीं

जमाल

और अधिकजमाल

    कहिं घहरत बरसत कहीं, कहीं ठहरत घन जाय।

    ये करणी इन कीह क्यों, कह जमाल समुझाय॥

    सामान्य अर्थ : ये बादल (घन) कहीं पर गरजते हैं, तो अन्य स्थान पर जाकर वर्षा करते हैं और फिर कहीं पर जाकर ठहरते हैं। इन बादलों का ऐसा व्यवहार क्यों है?

    गूढ़ार्थ : इन बादलों का नाम भी घन है, इसलिए ये घनश्याम का अनुसरण करते हैं, जो कि सदा मधुकर की भाँति स्थान-स्थान पर भटकते रहते हैं।

    स्रोत :
    • पुस्तक : जमाल दोहावली (पृष्ठ 60)
    • संपादक : महावीर सिंह गहलोत
    • रचनाकार : जमाल
    • प्रकाशन : पुस्तक भवन काशी

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