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बैठत इक पग ध्यान धरि

baithat ek pag dhyan dhari

रसनिधि

रसनिधि

बैठत इक पग ध्यान धरि

रसनिधि

और अधिकरसनिधि

    बैठत इक पग ध्यान धरि, मीनन कौं दुख देत।

    बक मुख कारै हो गए, रसनिधि याही हेत॥

    ये बगुले ऊपर से तो ऐसे दीखते हैं कि मानो एक पाँव पर खड़े होकर तपस्या कर रहे हैं और भगवान का ध्यान कर रहे हैं, ये मछलियों को पकड़ कर खा जाते हैं; इस प्रकार उन्हें दुःख देते हैं। रसनिधि कहते हैं कि मानो इसी पाप के कारण ही बगुलों के मुख और चोंच काली हो गई है।

    स्रोत :
    • पुस्तक : पुष्प-पराग (पृष्ठ 297)
    • संपादक : टेकचंद शास्त्री
    • रचनाकार : रसनिधि
    • प्रकाशन : भारती सदन, दिल्ली
    • संस्करण : 1955

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